कबीर मन पंछी भया भावे तो उड़ जाय भजन इन हिंदी लिरिक्स

Deepak Kumar Bind

कबीर मन पंछी भया भावे तो उड़ जाय भजन इन हिंदी लिरिक्स



कबीर मन पंछी भया भावे तो उड़ जाय |

जो जैसी संगती करें वो वैसा ही फल पाय |

कबीर तन पंछी भया | जहां मन तहां उडी जाइ |

जो जैसी संगती कर | सो तैसा ही फल पाइ |

हम वासी उन देश के |

जहाँ जाती वरण कुल नाहीं |

शब्द से मिलावा हो रहा देह मिलावा नाहीं

हम वासी उस देश के | 

जहाँ जात वर्ण कुल नाय |

ये जी शब्द मिलावा हो रहा | 

और देह मिलावा नाय

हम पंछी परदेशी मुसाफ़िर आये हैं सैलानी |

रहावूँ तुम्हारी नगरी में जब लग है दाना पानी |

हम पंछी परदेशी मुसाफ़िर आये हैं सैलानी.........


खेल पर खेल तू खूब कर ले आखिर है जो जानी |

ओ अवसर थारो फेर नहीं आवे फेर मिलण को नाहीं |

हम पंछी परदेशी मुसाफ़िर आये हैं सैलानी.......


चेतन होकर चेत ज्यो भाई नहीं तो तासों हैरानी |

देखो दुनियाँ यूँ चली जावे जैसे नदियों का पानी |

हम पंछी परदेशी मुसाफ़िर आये हैं सैलानी.......


परदेशी से प्रीत लगाईं डूब गई जिंदगानी |

बोल्यो चाल्यो माफ़ करज्यो इतनी रखना मेहरबानी |

हम पंछी परदेशी मुसाफ़िर आये हैं सैलानी.......


मनुष्य जनम महा पदार्थी जैसे पारस की खानी |

कहत कबीरा सुनों भाई साधो वाणी कोई बिरले जाणि |

हम पंछी परदेशी मुसाफ़िर आये हैं सैलानी.......


 

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