आरती कुंजबिहारी की - श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ( Kunj Bihari Shri Girdhar Krishna Murari ) - Bhakti lok

Deepak Kumar Bind


आरती कुंजबिहारी की - श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ( Kunj Bihari Shri Girdhar Krishna Murari ) 


आरती कुंजबिहारी की

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

गले में बैजंती माला,

बजावै मुरली मधुर बाला ।

श्रवण में कुण्डल झलकाला

नंद के आनंद नंदलाला ।

गगन सम अंग कांति काली

राधिका चमक रही आली ।

लतन में ठाढ़े बनमाली

भ्रमर सी अलक

कस्तूरी तिलक

चंद्र सी झलक

ललित छवि श्यामा प्यारी की

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की.....॥


कनकमय मोर मुकुट बिलसै

देवता दरसन को तरसैं ।

गगन सों सुमन रासि बरसै ।

बजे मुरचंग

मधुर मिरदंग

ग्वालिन संग

अतुल रति गोप कुमारी की

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की.....॥


जहां ते प्रकट भई गंगा

सकल मन हारिणि श्री गंगा ।

स्मरन ते होत मोह भंगा

बसी शिव सीस

जटा के बीच

हरै अघ कीच,

चरन छवि श्रीबनवारी की

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की.....॥


चमकती उज्ज्वल तट रेनू

बज रही वृंदावन बेनू ।

चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू

हंसत मृदु मंद

चांदनी चंद

कटत भव फंद

टेर सुन दीन दुखारी की

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की.....॥


आरती कुंजबिहारी की

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥





 

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