माँ महाकाली - जय काली कंकाल मालिनी! (Maa Maha Kali Jai Kali Kankal Malini Lyrics in Hindi) - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind

माँ महाकाली - जय काली कंकाल मालिनी! (Maa Maha Kali Jai Kali Kankal Malini Lyrics in Hindi) - Bhaktilok

माँ महाकाली - जय काली कंकाल मालिनी! (Maa Maha Kali Jai Kali Kankal Malini Lyrics in Hindi) - Bhaktilok

माँ महाकाली - जय काली कंकाल मालिनी! (Maa Maha Kali Jai Kali Kankal Malini Lyrics in Hindi) - 


॥ दोहा ॥


जय जय सीताराम के मध्यवासिनी अम्ब

देहु दर्श जगदम्ब अब करहु न मातु विलम्ब ॥

जय तारा जय कालिका जय दश विद्या वृन्द

काली चालीसा रचत एक सिद्धि कवि हिन्द ॥

प्रातः काल उठ जो पढ़े दुपहरिया या शाम

दुःख दरिद्रता दूर हों सिद्धि होय सब काम ॥



॥ चौपाई ॥


जय काली कंकाल मालिनी

जय मंगला महाकपालिनी ॥


रक्तबीज वधकारिणी माता

सदा भक्तन की सुखदाता ॥


शिरो मालिका भूषित अंगे

जय काली जय मद्य मतंगे ॥


हर हृदयारविन्द सुविलासिनी

जय जगदम्बा सकल दुःख नाशिनी ॥ ४ ॥


ह्रीं काली श्रीं महाकाराली

क्रीं कल्याणी दक्षिणाकाली ॥


जय कलावती जय विद्यावति

जय तारासुन्दरी महामति ॥


देहु सुबुद्धि हरहु सब संकट

होहु भक्त के आगे परगट ॥


जय ॐ कारे जय हुंकारे

महाशक्ति जय अपरम्पारे ॥ ८ ॥


कमला कलियुग दर्प विनाशिनी

सदा भक्तजन की भयनाशिनी ॥


अब जगदम्ब न देर लगावहु

दुख दरिद्रता मोर हटावहु ॥


जयति कराल कालिका माता

कालानल समान घुतिगाता ॥


जयशंकरी सुरेशि सनातनि

कोटि सिद्धि कवि मातु पुरातनी ॥ १२ ॥


कपर्दिनी कलि कल्प विमोचनि

जय विकसित नव नलिन विलोचनी ॥


आनन्दा करणी आनन्द निधाना

देहुमातु मोहि निर्मल ज्ञाना ॥


करूणामृत सागरा कृपामयी

होहु दुष्ट जन पर अब निर्दयी ॥


सकल जीव तोहि परम पियारा

सकल विश्व तोरे आधारा ॥ १६ ॥


प्रलय काल में नर्तन कारिणि

जग जननी सब जग की पालिनी ॥


महोदरी माहेश्वरी माया

हिमगिरि सुता विश्व की छाया ॥


स्वछन्द रद मारद धुनि माही

गर्जत तुम्ही और कोउ नाहि ॥


स्फुरति मणिगणाकार प्रताने

तारागण तू व्योम विताने ॥ २० ॥


श्रीधारे सन्तन हितकारिणी

अग्निपाणि अति दुष्ट विदारिणि ॥


धूम्र विलोचनि प्राण विमोचिनी

शुम्भ निशुम्भ मथनि वर लोचनि ॥


सहस भुजी सरोरूह मालिनी

चामुण्डे मरघट की वासिनी ॥


खप्पर मध्य सुशोणित साजी

मारेहु माँ महिषासुर पाजी ॥ २४ ॥


अम्ब अम्बिका चण्ड चण्डिका

सब एके तुम आदि कालिका ॥


अजा एकरूपा बहुरूपा

अकथ चरित्रा शक्ति अनूपा ॥


कलकत्ता के दक्षिण द्वारे

मूरति तोरि महेशि अपारे ॥


कादम्बरी पानरत श्यामा

जय माँतगी काम के धामा ॥ २८ ॥


कमलासन वासिनी कमलायनि

जय श्यामा जय जय श्यामायनि ॥


मातंगी जय जयति प्रकृति हे

जयति भक्ति उर कुमति सुमति हे ॥


कोटि ब्रह्म शिव विष्णु कामदा

जयति अहिंसा धर्म जन्मदा ॥


जलथल नभ मण्डल में व्यापिनी

सौदामिनी मध्य आलापिनि ॥ ३२ ॥


झननन तच्छु मरिरिन नादिनी

जय सरस्वती वीणा वादिनी ॥


ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे

कलित कण्ठ शोभित नरमुण्डा ॥


जय ब्रह्माण्ड सिद्धि कवि माता

कामाख्या और काली माता ॥


हिंगलाज विन्ध्याचल वासिनी

अटठहासिनि अरु अघन नाशिनी ॥ ३६ ॥


कितनी स्तुति करूँ अखण्डे

तू ब्रह्माण्डे शक्तिजित चण्डे ॥


करहु कृपा सब पे जगदम्बा

रहहिं निशंक तोर अवलम्बा ॥


चतुर्भुजी काली तुम श्यामा

रूप तुम्हार महा अभिरामा ॥


खड्ग और खप्पर कर सोहत

सुर नर मुनि सबको मन मोहत ॥ ४० ॥


तुम्हारी कृपा पावे जो कोई

रोग शोक नहिं ताकहँ होई ॥


जो यह पाठ करै चालीसा

तापर कृपा करहिं गौरीशा ॥


॥ दोहा ॥


जय कपालिनी जय शिवा

जय जय जय जगदम्ब

सदा भक्तजन केरि दुःख हरहु

मातु अविलम्ब ॥




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