रामायण आवाहन दोहे (Ramayan Aavahan Dohe Lyrics in Hindi) - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind

 

रामायण आवाहन दोहे (Ramayan Aavahan Dohe Lyrics in Hindi) 


रामायण आवाहन

जेहि सुमिरत सिध्द होय गण नायक करिवर बदन ।

करहुँ अनुग्रह सोई बुध्दि राशि शुभ गुण सदन ॥


मूक होई वाचाल पंगु चढ़ई गिरिवर गहन ।

जासु कृपासु दयालु द्रवहॅुं सकल कलिमल दहन ॥


नील सरोरुह श्याम तरुन अरुन वारिज नयन ।

करहुँ सो मम उर धाम सदा क्षीर सागर सयन ॥


ह्लाुंँद - इंदु सम देह उमा रमन करुणा अयन ।

जाहिं दीन पर नेह करहुँ कृपा मर्दन मयन ॥


बंदहु गुरु पद कंज कृपा सिंधु नर रुप हरि ।

महा मोह तब पुंज जासु वचन रवि कर निकर ॥


बंदहु मुनि पद कंज रामायन जेहि निर मयऊ ।

सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दुषन सहित ॥


बंदहु चारहुं वेद भव वारिध वो हित सरिस ।

जिनहिं न सपनेहु खेद वरनत रघुपति विमल यश ॥


वंदहु विधि पद रेनु भव सागर जिन कीन्ह यह ।

संत सुधा शशि धेनु प्रगटे खल विष वारुनी ॥


बंदहु अवध भुआल सत्य प्रेम जेहि राम पद ।

बिछुरत दीन दयाल प्रिय तनु तृन इव पर हरेऊ ॥


बंदहु पवन कुमार खल वन पावक ज्ञान घन ।

जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चापधर ॥


राम कथा के रसिक तुम,भक्ति राशि मति धीर ।

आय सो आसन लीजिये, तेज पुंज कपि वीर ॥


रामायण तुलसीकृत कहँऊ कथा अनुसार ।

प्रेम सहित आसन गहँऊ आवहँ पवन कुमार ॥


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