श्री श्याम चैरासी लिरिक्स (Shri Shyam Chairasee Lyrics in Hindi) - महर करो जन के सुखरासी Shyam Bhajan - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind

 

श्री श्याम चैरासी लिरिक्स (Shri Shyam Chairasee Lyrics in Hindi) - 


दोहा - सबसे बड़ा तेरा दरबार है तू ही सब का पालनहार है ।

सजा दे या करदे क्षमा सांवरे तू ही हमारी सरकार है।


महर करो जन के सुखरासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||1||


प्रथम शीश चरणों में नाऊँ, 

किरपा दृष्टि रावरी चाहँू ||2||


माफ सभी अपराध कराऊँ, 

आदि कथा सुछंद रच गाऊँ ||3||


भक्त सुजन सुनकर हरषासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||4||


कुरु पांडव में विरोध छाया, 

समर महाभारत रचवाया ||5||


बलि एक बर्बरीक आया, 

तीन सुबाण साथ में लाया ||6||


यह लखि हरि को आई हाँसी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||7||


मधुर वचन तब कृष्ण सुनाये, 

समर भूमि केहि कारन आये ||8||


तीन बाण धनु कंध सुहाये, 

अजब अनोखा रूप बनाये ||9||


बाण अपार वीर सब ल्यासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||10||


बर्बरीक इतने दल माहीं, 

तीन वाण की गिनती नाहीं ||11||


योद्धा एक से एक निराले, 

वीर बहादुर अति मतवाले ||12||


समर सभी मिल कठिन मचासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||13||


बर्बरीक मम कहना मानो, 

समर भूमि तुम खेल न जानो ||14||


द्रोण गुरू कृपा आदि जुझारा, 

जिनसे पारथ का मन हारा ||15||


तू क्या पेश इन्हों से पासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||16||


बर्बरीक हरि से यों कहता, 

समर देखना मैं हूँ चाहता ||17||


कौन बली रण शूर निहारुँ, 

वीर बहादुर कौन जुझारुँ ||18||


तीन लोक त्रावाण से मारुँ, 

हँसता रहँू कभी नहिं हारुँ ||19||


सत्य कहूँ हरि झूठ न जानो, 

दोनों दल इक तरफ हो मानो ||20||


एक वाण दल दोऊ खपासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||21||


बर्बरीक से हरि फरमावें, 

तेरी बात समझ नहिं आवे ||22||


प्रान बचाओ तुम घर जाओ, 

क्यों नादानपन दिखलाओ ||23||


तेरी जान मुफत में जासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||24||


अगर विश्वास न तुम्हें मुरारी, 

तो कर लीजे जाँच हमारी ||25||


यह सुन कृष्ण बहुत हरषाये, 

बर्बरीक से वचन सुनाये ||26||


मैं अब लेऊँ परीक्षा खासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||27||


पात विटप के सभी निहारो, 

बेंध एक वाण से सब डारो ||28||


कह इतना इक पात मुरारी, 

दबा लिया पद तले करारी ||29||


अजब रची माया अविनाशी, 

साँवलशाह खाटू के वासी  ||30||


बर्बरीक धनु बाण चढ़ाया, 

जानी जाय न हरि की माया ||31||


विटप निहार बली मुसकाया, 

अजित अमर अहिल्यावती जाया ||32||


बली सुमिर शिव बाण चलासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||33||


बाण बली ने अजब चलाया, 

पत्ते बेध विटप के आया ||34||


गिरा कृष्ण के चरनों माहीं, 

विध पात हरि चरन हटाई ||35||


इनसे कौन फतेह किमि पासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||36


कृष्ण बली से कहे बताओ, 

किस दल की तुम जीत कराओ ||37||


बली हार का दल बतलाया, 

यह सुन कृष्ण सनका खाया ||38||


विजय किस तरह पारथ पासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||39||


छल करना कृष्ण ने विचारा, 

बली से बोले नंद कुमारा ||40||


ना जाने क्या ज्ञान तुम्हारा, 

कहना मानो बली हमारा ||41||


हो निज तरफ नाम पाजासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||42||


कहे बर्बरीक कृष्ण हमारा, 

टूट न सकता प्रन है करारा ||43||


माँगे दान उसे मैं देता, 

हारा देख सहारा देता ||44||


सत्य कहँू ना झूठ जरासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||45||


बेसक वीर बहादुर तुम हो, 

जचते दानी हमें न तुम हो ||46||


कहे बर्बरीक हरि बतलाओ, 

तुमको चहिये क्या फरमाओ ||47||


जो माँगे सो हमसे पासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||48||


बली अगर तुम सच्चे दानी, 

तो मैं तुमसे कहूँ बखानी ||49||


समर भूमि बलि देने खातिर, 

शीश चाहिए एक बहादुर ||50||


शीश दान दे नाम कमासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||51||


हम तुम तीनों अर्जुन माहीं, 

शीश दान दे को बलदाई ||52||


जिसको आप योग्य बतलायें, 

वही शीश बलिदान चढ़ायें ||53||


आवागमन मिटे चैरासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||54||


अर्जुन नाम समर में पावे, 

तुम बिन सारथी कौन कहावे ||55||


मम शीश दान देहु भगवाना, 

महाभारत देखन मन ललचाना ||56||


शीश शिखर गिरि पर धरवासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||57||


शीशदान बर्बरीक दिया है, 

हरि ने गिरि पर धरा दिया है ||58||


समर अठारह रोज हुआ है, 

कुरु दल सारा नाश हुआ है ||59||


विजय पताका पाण्डु फैहरासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||60||


भीम, नकुल सहदेव, पारथ, 

करते निज तारीफ अकारथ ||61||


यों सोचें मन में यदुराया, 

इनके दिल अभियान है छाया ||62||


हरि भक्तों का दुःख मिटासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||63||


पारथ,भीम आदि बलधरी, 

से यों बोले गिरिवर धरी ||64||


किसने विजय समर में पाई, 

पूछो सिर बर्बरीक से भाई ||65||


सत्य बात सिर सभी बतासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||66||


हरि सबको संग ले गिरवर पर, 

सिर बैठा था मगन शिखर पर ||67||


जा पहँुचे झटपट नंदलाला, 

पुनि पँूछा शिर से सब हाला ||68||


सिर दानी है खुद अविनाशी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||69||


हरि यों कहै सही फरमाओ, 

समर विजयी है कौन बताओ ||70||


बली कहैं मैं सही बताऊँ, 

नहिं पितु चाचा बली नाहिं ताऊ ||71||


भगवत ने पाई स्याबासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||72||


चक्र सुदर्शन है बलदाई, 

काट रहा था दल जिमि काई ||73||


रूप द्रौपदी काली का धर, 

हो विकराल ले कर में खप्पर ||74||


भर-भर रूधिर पिये थी प्यासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||75||


मैंने जो कुछ समर निहारा, 

सत्य सुनाया हाल है सारा ||76||


सत्य वचन सुनकर यदुराई, 

वर दीन्हा शिर को हर्षाई ||77||


श्याम रूप मम धरि पुजासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||78||


कलि में तुमको श्याम कन्हाई, 

पूजेगें सब लोग-लुगाई ||79||


मन वचन कर्म से जो ध्यावेंगे, 

मन इच्छा फल सब पायेंगे ||80||


‘सेवक’ सद्गति को पाजासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||81||


भक्तों को धनवान बनाना, 

पत्नि गोद में सुमन खिलाना ||82||


रामकृष्ण वंश है शरन तिहारी, 

श्रीपति यदुपति कंुज बिहारी ||83||


सब सुखदायक आनन्द रासी, 

साँवलशाह खाटू के वासी ||84||


*** Singer - Sapna Vishwakarma ***



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