श्री श्याम चैरासी लिरिक्स (Shri Shyam Chairasee Lyrics in Hindi) -
दोहा - सबसे बड़ा तेरा दरबार है तू ही सब का पालनहार है ।
सजा दे या करदे क्षमा सांवरे तू ही हमारी सरकार है।
महर करो जन के सुखरासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||1||
प्रथम शीश चरणों में नाऊँ,
किरपा दृष्टि रावरी चाहँू ||2||
माफ सभी अपराध कराऊँ,
आदि कथा सुछंद रच गाऊँ ||3||
भक्त सुजन सुनकर हरषासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||4||
कुरु पांडव में विरोध छाया,
समर महाभारत रचवाया ||5||
बलि एक बर्बरीक आया,
तीन सुबाण साथ में लाया ||6||
यह लखि हरि को आई हाँसी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||7||
मधुर वचन तब कृष्ण सुनाये,
समर भूमि केहि कारन आये ||8||
तीन बाण धनु कंध सुहाये,
अजब अनोखा रूप बनाये ||9||
बाण अपार वीर सब ल्यासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||10||
बर्बरीक इतने दल माहीं,
तीन वाण की गिनती नाहीं ||11||
योद्धा एक से एक निराले,
वीर बहादुर अति मतवाले ||12||
समर सभी मिल कठिन मचासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||13||
बर्बरीक मम कहना मानो,
समर भूमि तुम खेल न जानो ||14||
द्रोण गुरू कृपा आदि जुझारा,
जिनसे पारथ का मन हारा ||15||
तू क्या पेश इन्हों से पासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||16||
बर्बरीक हरि से यों कहता,
समर देखना मैं हूँ चाहता ||17||
कौन बली रण शूर निहारुँ,
वीर बहादुर कौन जुझारुँ ||18||
तीन लोक त्रावाण से मारुँ,
हँसता रहँू कभी नहिं हारुँ ||19||
सत्य कहूँ हरि झूठ न जानो,
दोनों दल इक तरफ हो मानो ||20||
एक वाण दल दोऊ खपासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||21||
बर्बरीक से हरि फरमावें,
तेरी बात समझ नहिं आवे ||22||
प्रान बचाओ तुम घर जाओ,
क्यों नादानपन दिखलाओ ||23||
तेरी जान मुफत में जासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||24||
अगर विश्वास न तुम्हें मुरारी,
तो कर लीजे जाँच हमारी ||25||
यह सुन कृष्ण बहुत हरषाये,
बर्बरीक से वचन सुनाये ||26||
मैं अब लेऊँ परीक्षा खासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||27||
पात विटप के सभी निहारो,
बेंध एक वाण से सब डारो ||28||
कह इतना इक पात मुरारी,
दबा लिया पद तले करारी ||29||
अजब रची माया अविनाशी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||30||
बर्बरीक धनु बाण चढ़ाया,
जानी जाय न हरि की माया ||31||
विटप निहार बली मुसकाया,
अजित अमर अहिल्यावती जाया ||32||
बली सुमिर शिव बाण चलासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||33||
बाण बली ने अजब चलाया,
पत्ते बेध विटप के आया ||34||
गिरा कृष्ण के चरनों माहीं,
विध पात हरि चरन हटाई ||35||
इनसे कौन फतेह किमि पासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||36
कृष्ण बली से कहे बताओ,
किस दल की तुम जीत कराओ ||37||
बली हार का दल बतलाया,
यह सुन कृष्ण सनका खाया ||38||
विजय किस तरह पारथ पासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||39||
छल करना कृष्ण ने विचारा,
बली से बोले नंद कुमारा ||40||
ना जाने क्या ज्ञान तुम्हारा,
कहना मानो बली हमारा ||41||
हो निज तरफ नाम पाजासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||42||
कहे बर्बरीक कृष्ण हमारा,
टूट न सकता प्रन है करारा ||43||
माँगे दान उसे मैं देता,
हारा देख सहारा देता ||44||
सत्य कहँू ना झूठ जरासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||45||
बेसक वीर बहादुर तुम हो,
जचते दानी हमें न तुम हो ||46||
कहे बर्बरीक हरि बतलाओ,
तुमको चहिये क्या फरमाओ ||47||
जो माँगे सो हमसे पासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||48||
बली अगर तुम सच्चे दानी,
तो मैं तुमसे कहूँ बखानी ||49||
समर भूमि बलि देने खातिर,
शीश चाहिए एक बहादुर ||50||
शीश दान दे नाम कमासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||51||
हम तुम तीनों अर्जुन माहीं,
शीश दान दे को बलदाई ||52||
जिसको आप योग्य बतलायें,
वही शीश बलिदान चढ़ायें ||53||
आवागमन मिटे चैरासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||54||
अर्जुन नाम समर में पावे,
तुम बिन सारथी कौन कहावे ||55||
मम शीश दान देहु भगवाना,
महाभारत देखन मन ललचाना ||56||
शीश शिखर गिरि पर धरवासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||57||
शीशदान बर्बरीक दिया है,
हरि ने गिरि पर धरा दिया है ||58||
समर अठारह रोज हुआ है,
कुरु दल सारा नाश हुआ है ||59||
विजय पताका पाण्डु फैहरासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||60||
भीम, नकुल सहदेव, पारथ,
करते निज तारीफ अकारथ ||61||
यों सोचें मन में यदुराया,
इनके दिल अभियान है छाया ||62||
हरि भक्तों का दुःख मिटासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||63||
पारथ,भीम आदि बलधरी,
से यों बोले गिरिवर धरी ||64||
किसने विजय समर में पाई,
पूछो सिर बर्बरीक से भाई ||65||
सत्य बात सिर सभी बतासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||66||
हरि सबको संग ले गिरवर पर,
सिर बैठा था मगन शिखर पर ||67||
जा पहँुचे झटपट नंदलाला,
पुनि पँूछा शिर से सब हाला ||68||
सिर दानी है खुद अविनाशी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||69||
हरि यों कहै सही फरमाओ,
समर विजयी है कौन बताओ ||70||
बली कहैं मैं सही बताऊँ,
नहिं पितु चाचा बली नाहिं ताऊ ||71||
भगवत ने पाई स्याबासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||72||
चक्र सुदर्शन है बलदाई,
काट रहा था दल जिमि काई ||73||
रूप द्रौपदी काली का धर,
हो विकराल ले कर में खप्पर ||74||
भर-भर रूधिर पिये थी प्यासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||75||
मैंने जो कुछ समर निहारा,
सत्य सुनाया हाल है सारा ||76||
सत्य वचन सुनकर यदुराई,
वर दीन्हा शिर को हर्षाई ||77||
श्याम रूप मम धरि पुजासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||78||
कलि में तुमको श्याम कन्हाई,
पूजेगें सब लोग-लुगाई ||79||
मन वचन कर्म से जो ध्यावेंगे,
मन इच्छा फल सब पायेंगे ||80||
‘सेवक’ सद्गति को पाजासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||81||
भक्तों को धनवान बनाना,
पत्नि गोद में सुमन खिलाना ||82||
रामकृष्ण वंश है शरन तिहारी,
श्रीपति यदुपति कंुज बिहारी ||83||
सब सुखदायक आनन्द रासी,
साँवलशाह खाटू के वासी ||84||
*** Singer - Sapna Vishwakarma ***
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