रामायण मनका 108 Ramayan Manka 108 Lyrics in Hindi) - By Sarita Joshi Manka 108 - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind

 

रामायण मनका 108 Ramayan Manka 108 Lyrics in Hindi) - 


रघुपति राघव राजाराम

पतितपावन सीताराम |

जय रघुनन्दन जय घनश्याम

पतितपावन सीताराम | |


भीड़ पड़ी जब भक्त पुकारे

दूर करो प्रभु दु:ख हमारे |

दशरथ के घर जन्मे राम

पतितपावन सीताराम | |1 | |


विश्वामित्र मुनीश्वर आये

दशरथ भूप से वचन सुनाये |

संग में भेजे लक्ष्मण राम

पतितपावन सीताराम | |2 | |


वन में जाए ताड़का मारी

चरण छुआए अहिल्या तारी |

ऋषियों के दु:ख हरते राम

पतितपावन सीताराम | |3 | |


जनक पुरी रघुनन्दन आए

नगर निवासी दर्शन पाए |

सीता के मन भाए राम

पतितपावन सीताराम | |4 | |


रघुनन्दन ने धनुष चढ़ाया

सब राजो का मान घटाया |

सीता ने वर पाए राम

पतितपावन सीताराम | |5 | |


परशुराम क्रोधित हो आये

दुष्ट भूप मन में हरषाये |

जनक राय ने किया प्रणाम

पतितपावन सीताराम | |6 | |


बोले लखन सुनो मुनि ग्यानी

संत नहीं होते अभिमानी |

मीठी वाणी बोले राम

पतितपावन सीताराम | |7 | |


लक्ष्मण वचन ध्यान मत दीजो

जो कुछ दण्ड दास हो को दीजो |

धनुष तोडय्या मैं हूँ राम

पतितपावन सीताराम | |8 | |


लेकर के यह धनुष चढ़ाओ

अपनी शक्ति मुझे दिखलाओ |

छूवत चाप चढ़ाये राम

पतितपावन सीताराम | |9 | |


हुई उर्मिला लखन की नारी

श्रुतिकीर्ति रिपुसूदन प्यारी |

हुई माण्डवी भरत के बाम

पतितपावन सीताराम | |10 | |


अवधपुरी रघुनन्दन आये

घर-घर नारी मंगल गाये |

बारह वर्ष बिताये राम

पतितपावन सीताराम | |11 | |


गुरु वशिष्ठ से आज्ञा लीनी

राज तिलक तैयारी कीनी |

कल को होंगे राजा राम

पतितपावन सीताराम | |12 | |


कुटिल मंथरा ने बहकाई

कैकई ने यह बात सुनाई |

दे दो मेरे दो वरदान

पतितपावन सीताराम | |13 | |


मेरी विनती तुम सुन लीजो

भरत पुत्र को गद्दी दीजो |

होत प्रात वन भेजो राम

पतितपावन सीताराम | |14 | |


धरनी गिरे भूप तत्काला

लागा दिल में सूल विशाला |

तब सुमन्त बुलवाये राम

पतितपावन सीताराम | |15 | |


राम पिता को शीश नवाये

मुख से वचन कहा नहीं जाये |

कैकई वचन सुनायो राम

पतितपावन सीताराम | |16 | |


राजा के तुम प्राण प्यारे

इनके दु:ख हरोगे सारे |

अब तुम वन में जाओ राम

पतितपावन सीताराम | |17 | |


वन में चौदह वर्ष बिताओ

रघुकुल रीति-नीति अपनाओ |

तपसी वेष बनाओ राम

पतितपावन सीताराम | |18 | |


सुनत वचन राघव हरषाये

माता जी के मंदिर आये |

चरण कमल में किया प्रणाम

पतितपावन सीताराम | |19 | |


माता जी मैं तो वन जाऊं

चौदह वर्ष बाद फिर आऊं |

चरण कमल देखूं सुख धाम

पतितपावन सीताराम | |20 | |


सुनी शूल सम जब यह बानी

भू पर गिरी कौशल्या रानी |

धीरज बंधा रहे श्रीराम

पतितपावन सीताराम | |21 | |


सीताजी जब यह सुन पाई

रंग महल से नीचे आई |

कौशल्या को किया प्रणाम

पतितपावन सीताराम | |22 | |



मेरी चूक क्षमा कर दीजो

वन जाने की आज्ञा दीजो |

सीता को समझाते राम |

पतितपावन सीताराम | |23 | |


मेरी सीख सिया सुन लीजो

सास ससुर की सेवा कीजो |

मुझको भी होगा विश्राम

पतितपावन सीताराम | |24 | |


मेरा दोष बता प्रभु दीजो

संग मुझे सेवा में लीजो |

अर्द्धांगिनी मैं तुम्हारी राम

पतितपावन सीताराम | |25 | |


समाचार सुनि लक्ष्मण आये

धनुष बाण संग परम सुहाये |

बोले संग चलूंगा राम

पतितपावन सीताराम | |26 | |


राम लखन मिथिलेश कुमारी

वन जाने की करी तैयारी |

रथ में बैठ गये सुख धाम

पतितपावन सीताराम | |27 | |


अवधपुरी के सब नर नारी

समाचार सुन व्याकुल भारी |

मचा अवध में कोहराम

पतितपावन सीताराम | |28 | |


श्रृंगवेरपुर रघुवर आये

रथ को अवधपुरी लौटाये |

गंगा तट पर आये राम

पतितपावन सीताराम | |29 | |


केवट कहे चरण धुलवाओ

पीछे नौका में चढ़ जाओ |

पत्थर कर दी नारी राम

पतितपावन सीताराम | |30 | |


लाया एक कठौता पानी

चरण कमल धोये सुखकारी |

नाव चढ़ाये लक्ष्मण राम

पतितपावन सीताराम | |31 | |


उतराई में मुदरी दीनी

केवट ने यह विनती कीनी |

उतराई नहीं लूंगा राम

पतितपावन सीताराम | |32 | |



तुम आये हम घाट उतारे

हम आयेंगे घाट तुम्हारे |

तब तुम पार लगायो राम

पतितपावन सीताराम | |33 | |


भरद्वाज आश्रम पर आये

राम लखन ने शीष नवाए |

एक रात कीन्हा विश्राम

पतितपावन सीताराम | |34 | |


भाई भरत अयोध्या आये

कैकई को कटु वचन सुनाये |

क्यों तुमने वन भेजे राम

पतितपावन सीताराम | |35 | |


चित्रकूट रघुनंदन आये

वन को देख सिया सुख पाये |

मिले भरत से भाई राम

पतितपावन सीताराम | |36 | |


अवधपुरी को चलिए भाई

यह सब कैकई की कुटिलाई |

तनिक दोष नहीं मेरा राम

पतितपावन सीताराम | |37 | |


चरण पादुका तुम ले जाओ

पूजा कर दर्शन फल पावो |

भरत को कंठ लगाये राम

पतितपावन सीताराम | |38 | |


आगे चले राम रघुराया

निशाचरों का वंश मिटाया |

ऋषियों के हुए पूरण काम

पतितपावन सीताराम | |39 | |


अनसूईया की कुटीया आये

दिव्य वस्त्र सिय मां ने पाय |

था मुनि अत्री का वह धाम

पतितपावन सीताराम | |40 | |


मुनि-स्थान आए रघुराई

शूर्पनखा की नाक कटाई |

खरदूषन को मारे राम

पतितपावन सीताराम | |41 | |


पंचवटी रघुनंदन आए

कनक मृग मारीच संग धाये |

लक्ष्मण तुम्हें बुलाते राम

पतितपावन सीताराम | |42 | |



रावण साधु वेष में आया

भूख ने मुझको बहुत सताया |

भिक्षा दो यह धर्म का काम

पतितपावन सीताराम | |43 | |


भिक्षा लेकर सीता आई

हाथ पकड़ रथ में बैठाई |

सूनी कुटिया देखी भाई

पतितपावन सीताराम | |44 | |


धरनी गिरे राम रघुराई

सीता के बिन व्याकुलता आई |

हे प्रिय सीते चीखे राम

पतितपावन सीताराम | |45 | |


लक्ष्मण सीता छोड़ नहीं तुम आते

जनक दुलारी नहीं गंवाते |

बने बनाये बिगड़े काम

पतितपावन सीताराम | |46 | |


कोमल बदन सुहासिनि सीते

तुम बिन व्यर्थ रहेंगे जीते |

लगे चाँदनी-जैसे घाम

पतितपावन सीताराम | |47 | |


सुन री मैना सुन रे तोता

मैं भी पंखो वाला होता |

वन वन लेता ढूंढ तमाम

पतितपावन सीताराम | |48 | |


श्यामा हिरनी तू ही बता दे

जनक नन्दनी मुझे मिला दे |

तेरे जैसी आँखे श्याम

पतितपावन सीताराम | |49 | |


वन वन ढूंढ रहे रघुराई

जनक दुलारी कहीं न पाई |

गृद्धराज ने किया प्रणाम

पतितपावन सीताराम | |50 | |


चख चख कर फल शबरी लाई

प्रेम सहित खाये रघुराई |

ऎसे मीठे नहीं हैं आम

पतितपावन सीताराम | |51 | |


विप्र रुप धरि हनुमत आए

चरण कमल में शीश नवाये |

कन्धे पर बैठाये राम

पतितपावन सीताराम | |52 | |


सुग्रीव से करी मिताई

अपनी सारी कथा सुनाई |

बाली पहुंचाया निज धाम

पतितपावन सीताराम | |53 | |


सिंहासन सुग्रीव बिठाया

मन में वह अति हर्षाया |

वर्षा ऋतु आई हे राम

पतितपावन सीताराम | |54 | |


हे भाई लक्ष्मण तुम जाओ

वानरपति को यूं समझाओ |

सीता बिन व्याकुल हैं राम

पतितपावन सीताराम | |55 | |


देश देश वानर भिजवाए

सागर के सब तट पर आए |

सहते भूख प्यास और घाम

पतितपावन सीताराम | |56 | |


सम्पाती ने पता बताया

सीता को रावण ले आया |

सागर कूद गए हनुमान

पतितपावन सीताराम | |57 | |


कोने कोने पता लगाया

भगत विभीषण का घर पाया |

हनुमान को किया प्रणाम

पतितपावन सीताराम | |58 | |


अशोक वाटिका हनुमत आए

वृक्ष तले सीता को पाये |

आँसू बरसे आठो याम

पतितपावन सीताराम | |59 | |


रावण संग निशिचरी लाके

सीता को बोला समझा के |

मेरी ओर तुम देखो बाम

पतितपावन सीताराम | |60 | |


मन्दोदरी बना दूँ दासी

सब सेवा में लंका वासी |

करो भवन में चलकर विश्राम

पतितपावन सीताराम | |61 | |


चाहे मस्तक कटे हमारा

मैं नहीं देखूं बदन तुम्हारा |

मेरे तन मन धन है राम

पतितपावन सीताराम | |62 | |


ऊपर से मुद्रिका गिराई

सीता जी ने कंठ लगाई |

हनुमान ने किया प्रणाम

पतितपावन सीताराम | |63 | |


मुझको भेजा है रघुराया

सागर लांघ यहां मैं आया |

मैं हूं राम दास हनुमान

पतितपावन सीताराम | |64 | |


भूख लगी फल खाना चाहूँ

जो माता की आज्ञा पाऊँ |

सब के स्वामी हैं श्री राम

पतितपावन सीताराम | |65 | |


सावधान हो कर फल खाना

रखवालों को भूल ना जाना |

निशाचरों का है यह धाम

पतितपावन सीताराम | |66 | |


हनुमान ने वृक्ष उखाड़े

देख देख माली ललकारे |

मार-मार पहुंचाये धाम

पतितपावन सीताराम | |67 | |


अक्षयकुमार को स्वर्ग पहुंचाया

इन्द्रजीत को फांस ले आया |

ब्रह्मपाश से बंधे हनुमान

पतितपावन सीताराम | |68 | |


सीता को तुम लौटा दीजो |

उन से क्षमा याचना कीजो |

तीन लोक के स्वामी राम

पतितपावन सीताराम | |69 | |


भगत बिभीषण ने समझाया

रावण ने उसको धमकाया |

सनमुख देख रहे रघुराई

पतितपावन सीताराम | |70 | |


रूई तेल घृत वसन मंगाई

पूंछ बांध कर आग लगाई |

पूंछ घुमाई है हनुमान

पतितपावन सीताराम | |71 | |


सब लंका में आग लगाई

सागर में जा पूंछ बुझाई |

ह्रदय कमल में राखे राम

पतितपावन सीताराम | |72 | |


सागर कूद लौट कर आये

समाचार रघुवर ने पाये |

दिव्य भक्ति का दिया इनाम

पतितपावन सीताराम | |73 | |


वानर रीछ संग में लाए

लक्ष्मण सहित सिंधु तट आए |

लगे सुखाने सागर राम

पतितपावन सीताराम | |74 | |


सेतू कपि नल नील बनावें

राम-राम लिख सिला तिरावें |

लंका पहुँचे राजा राम

पतितपावन सीताराम | |75 | |


अंगद चल लंका में आया

सभा बीच में पांव जमाया |

बाली पुत्र महा बलधाम

पतितपावन सीताराम | |76 | |


रावण पाँव हटाने आया

अंगद ने फिर पांव उठाया |

क्षमा करें तुझको श्री राम

पतितपावन सीताराम | |77 | |


निशाचरों की सेना आई

गरज तरज कर हुई लड़ाई |

वानर बोले जय सिया राम

पतितपावन सीताराम | |78 | |


इन्द्रजीत ने शक्ति चलाई

धरनी गिरे लखन मुरझाई |

चिन्ता करके रोये राम

पतितपावन सीताराम | |79 | |


जब मैं अवधपुरी से आया

हाय पिता ने प्राण गंवाया |

वन में गई चुराई बाम

पतितपावन सीताराम | |80 | |


भाई तुमने भी छिटकाया

जीवन में कुछ सुख नहीं पाया |

सेना में भारी कोहराम

पतितपावन सीताराम | |81 |


जो संजीवनी बूटी को लाए

तो भाई जीवित हो जाये |

बूटी लायेगा हनुमान

पतितपावन सीताराम | |82 | |


जब बूटी का पता न पाया

पर्वत ही लेकर के आया |

काल नेम पहुंचाया धाम

पतितपावन सीताराम | |83 | |


भक्त भरत ने बाण चलाया

चोट लगी हनुमत लंगड़ाया |

मुख से बोले जय सिया राम

पतितपावन सीताराम | |84 | |


बोले भरत बहुत पछताकर

पर्वत सहित बाण बैठाकर |

तुम्हें मिला दूं राजा राम

पतितपावन सीताराम | |85 | |


बूटी लेकर हनुमत आया

लखन लाल उठ शीष नवाया |

हनुमत कंठ लगाये राम

पतितपावन सीताराम | |86 | |


कुंभकरन उठकर तब आया

एक बाण से उसे गिराया |

इन्द्रजीत पहुँचाया धाम

पतितपावन सीताराम | |87 | |


दुर्गापूजन रावण कीनो

नौ दिन तक आहार न लीनो |

आसन बैठ किया है ध्यान

पतितपावन सीताराम | |88 | |


रावण का व्रत खंडित कीना

परम धाम पहुँचा ही दीना |

वानर बोले जय श्री राम

पतितपावन सीताराम | |89 | |


सीता ने हरि दर्शन कीना

चिन्ता शोक सभी तज दीना |

हँस कर बोले राजा राम

पतितपावन सीताराम | |90 | |


पहले अग्नि परीक्षा पाओ

पीछे निकट हमारे आओ |

तुम हो पतिव्रता हे बाम

पतितपावन सीताराम | |91 | |


करी परीक्षा कंठ लगाई

सब वानर सेना हरषाई |

राज्य बिभीषन दीन्हा राम

पतितपावन सीताराम | |92 | |


फिर पुष्पक विमान मंगाया

सीता सहित बैठे रघुराया |

दण्डकवन में उतरे राम

पतितपावन सीताराम | |93 | |


ऋषिवर सुन दर्शन को आये

स्तुति कर मन में हर्षाये |

तब गंगा तट आये राम

पतितपावन सीताराम | |94 | |


नन्दी ग्राम पवनसुत आये

भाई भरत को वचन सुनाए |

लंका से आए हैं राम

पतितपावन सीताराम | |95 | |


कहो विप्र तुम कहां से आए

ऐसे मीठे वचन सुनाए |

मुझे मिला दो भैया राम

पतितपावन सीताराम | |96 | |


अवधपुरी रघुनन्दन आये

मंदिर मंदिर मंगल छाये |

माताओं ने किया प्रणाम

पतितपावन सीताराम | |97 | |


भाई भरत को गले लगाया

सिंहासन बैठे रघुराया |

जग ने कहा हैं राजा राम

पतितपावन सीताराम | |98 | |


सब भूमि विप्रो को दीनी

विप्रों ने वापस दे दीनी |

हम तो भजन करेंगे राम

पतितपावन सीताराम | |99 | |


धोबी ने धोबन धमकाई

रामचन्द्र ने यह सुन पाई |

वन में सीता भेजी राम

पतितपावन सीताराम | |100 | |


बाल्मीकि आश्रम में आई

लव व कुश हुए दो भाई |

धीर वीर ज्ञानी बलवान

पतितपावन सीताराम | |101 | |


अश्वमेघ यज्ञ किन्हा राम

सीता बिन सब सूने काम |

लव कुश वहां दीयो पहचान

पतितपावन सीताराम | |102 | |


सीता राम बिना अकुलाई

भूमि से यह विनय सुनाई |

मुझको अब दीजो विश्राम

पतितपावन सीताराम | |103 | |


सीता भूमि में समाई

देखकर चिन्ता की रघुराई |

बार बार पछताये राम

पतितपावन सीताराम | |104 | |


राम राज्य में सब सुख पावें

प्रेम मग्न हो हरि गुन गावें |

दुख क्लेश का रहा ना नाम

पतितपावन सीताराम | |105 | |


ग्यारह हजार वर्ष परयन्ता

राज कीन्ह श्री लक्ष्मी कंता |

फिर बैकुण्ठ पधारे धाम

पतितपावन सीताराम | |106 | |


अवधपुरी बैकुण्ठ सिधाई

नर नारी सबने गति पाई |

शरनागत प्रतिपालक राम

पतितपावन सीताराम | |107 | |


भक्तों ने लीला है गाई

मेरी विनय सुनो रघुराई |

भूलूँ नहीं तुम्हारा नाम

पतितपावन सीताराम | |108 | |



*** Singer: Sarita Joshi ***




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