शिरडी साईं बाबा चालीसा (Shirdi Sai Baba Chalisa Lyrics in Hindi) - Sai Chalisha by Raja Pandit Harish Gwala -
शिरडी साईं बाबा चालीसा (Shirdi Sai Baba Chalisa Lyrics in Hindi) -
पहले साईं के चरणों में
अपना शीश नवाऊँ मैं।।
कैसे शिर्डी साईं आए
सारा हाल सुनाऊँ मैं।।
कौन हैं माता पिता कौन हैं
यह न किसी ने भी जाना।।
कहाँ जनम साईं ने धारा
प्रश्न पहली सा रहा बना।।
कोई कहे अयोध्या के
ये रामचन्द्र भगवान हैं।।
कोई कहता साईं बाबा
पवन-पुत्र हनुमान हैं।।
कोई कहता है मंगल मूर्ति
श्री गजानन हैं साई।।
कोई कहता गोकुल
मोहन देवकी नन्दन हैं साईं।।
शंकर समझे भक्त कई तो
बाबा को भजते रहते।।
कोई कहे अवतार दत्त का
पूजा साईं की करते।।
कुछ भी मानो उनको तुम
पर साईं हैं सच्चे भगवान।।
बड़े दयालु दीनबन्धु
कितनों को दिया जीवन दान।।
कई वर्ष पहले की घटना
तुम्हें सुनाऊँगा मैं बात।।
किसी भाग्यशाली की
शिर्डी में आई थी बारात।।
आया साथ उसी के था
बालक एक बहुत सुन्दर।।
आया आकर वहीं बस गया
पावन शिर्डी किया नगर।।
कई दिनों तक रहा भटकता
भिक्षा माँगी उसने दर-दर।।
और दिखायी ऐसी लीला
जग में जो हो गई अमर।।
जैसे जैसे उमर बढ़ी
बढ़ती गई वैसे ही शान।।
घर-घर होने लगा नगर में
साईं बाबा का गुणगान।।
दिन दिगन्त में लगा गूंजने
फिर तो साईंजी का नाम।।
दीन-दुखी की रक्षा करना
यही रहा बाबा का काम।।
बाबा के चरणों में जाकर
जो कहता मैं हूँ निर्धन।।
दया उसी पर होती उनकी
खुल जाते दुःख के बन्धन।।
कभी किसी ने माँगी भिक्षा
दो बाबा मुझको सन्तान।।
एवमस्तु तब कहकर साईं
देते थे उसको वरदान ।।
स्वयं दुःखी बाबा हो जाते
दीन-दुखी जन का लख हाल।।
अन्तःकरन श्री साईं का
सागर जैसा रहा विशाल।।
भक्त एक मद्रासी आया
घर का बहुत बड़ा धनवान।।
माल खजाना बेहद उसका
केवल नहीं रही सन्तान।।
लगा मनाने साईं नाथ को
बाबा मुझ पर दया करो।।
झंझा से झंकृत नैया को
तुमहीं मेरी पार करो।।
कुलदीपक के बिना अंधेरा
छाया हुआ है घर में मेरे।।
इसलिए आया हूँ बाबा
होकर शरणागत तेरे।।
कुलदीपक के ही अभाव में
व्यर्थ है दौलत की माया।।
आज भिखारी बनकर बाबा
शरण तुम्हारी मैं आया।।
दे-दो मुझको पुत्र-दान
मैं ऋणी रहूँगा जीवन भर।।
और किसी की आशा न मुझको
सिर्फ भरोसा है तुम पर।।
अनुनय-विनय बहुत की उसने
चरणों में धरकर के शीश।।
तब प्रसन्न होकर बाबा ने
दिया भक्त को यह आशीष।।
अल्ला भला करेगा तेरा
पुत्र जन्म हो तेरे घर।।
कृपा रहेगी तुझ पर उसकी
और तेरे उस बालक पर।।
अब तक नहीं किसी ने पाया
साईं की कृपा का पार।।
पुत्र रत्न दे मद्रासी को
धन्य किया उसका संसार।।
तन-मन से जो भजे उसी का
जग में होता है उद्धार।।
साँच को आँच नहीं है कोई
सदा झूठ की होती हार।।
मैं हूँ सदा सहारे उसके
सदा रहूँगा उसका दास।।
साईं जैसा प्रभु मिला है
इतनी ही कम है क्या आस।।
मेरा भी दिन था इक ऐसा
मिलती नहीं मुझे थी रोटी।।
तन पर कपड़ा दूर रहा था
शेष रही नन्ही सी लंगोटी।।
सरिता सन्मुख होने पर भी
मैं प्यासा था।।
दुर्दिन मेरा मेरे ऊपर
दावाग्न बरसाता था।।
धरती के अतिरिक्त जगत में
मेरा कुछ अवलम्ब न था।।
बना भिखारी मैं दुनिया में
दर-दर ठोकर खाता था।।
ऐसे में इक मित्र मिला जो
परम भक्त साईं का था।।
जंजालों से मुक्त मगर
जगती में वह भी मुझ सा था।।
बाबा के दर्शनों की खातिर
मिल दोनों के किया विचार।।
साईं जैसे दया मूर्ति के
दर्शन को हो गए तैयार।।
पावन शिडी नगर में जाकर
देखी मतवाली मूरति।।
धन्य जनम हो गया कि हमने
जब देखी साईं की मूरति।।
जब से किए हैं दर्शन हमने
दुःख सारा काफूर हो गया।।
संकट सारे मिटे और
विपदाओं का हो अन्त गया।।
मान और सम्मान मिला
भिक्षा में हमको सब बाबा से।।
प्रतितिम्बित हो उठे जगत में
हम साईं की आज्ञा से।।
बाबा ने सम्मान दिया है
मान दिया इस जीवन में।।
इसका सम्बल ले मैं
हँसता जाऊँगा जीवन में।।
साई की लीला का मेरे
मन पर ऐसा असर हुआ।।
लगता जगती के कण-कण में
जैसे हो वह भरा हुआ।।
काशीराम बाबा का भक्त
इस शिर्डी में रहता था।।
मैं साईं का साईं मेरा
वह दुनिया से कहता था।।
सिलकर स्वयं वस्त्र बेचता
ग्राम-नगर बाजारों में।।
झंकृति उसकी हृदय तन्त्री थी
साईं की झंकारों में।।
स्तब्ध निशा थी थे सोये
रजनी अंचल में चाँद सितारे।।
नहीं सूझता रहा हाथ को हाथ
तिमिरि के मारे।।
वस्त्र बेचकर लौट रहा था
हाय।। हाट से काशी।।
विचित्र बड़ा संयोग कि उस दिन
आता था वह एकाकी।।
घेर राह में खड़े हो गए
उसे कुटिल अन्यायी।।
मारो काटो लूट लो इसको
इसकी ही ध्वनि पड़ी सुनाई।।
लूट पीटकर उसे वहाँ से
कुटिल गये चम्पत हो।।
आघातों से मर्माहत हो
उसने दी थी संज्ञा खो।।
बहुत देर तक पड़ा रहा वह
वहीं उसी हालत में।।
जाने कब कुछ हो उठा
उसको किसी पलक में।।
अनजाने ही उसके मुँह से
निकल पड़ा था साईं।।
जिसकी प्रतिध्वनि शिर्डी में
बाबा को पड़ी सुनाई।।
क्षुब्ध हो उठा मानस उनका
बाबा गए विकल हो।।
लगता जैसे घटना सारी
घटी उन्हीं के सन्मुख हो।।
उन्मादी से इधर उधर तब
बाबा लगे भटकने।।
सन्मुख चीजें जो भी
आई उनको लगे पटकने।।
और धधकते अंगारों में
बाबा ने कर डाला।।
हुए सशंकित सभी वहाँ
लख ताण्डव नृत्य निराला।।
समझ गये सब लोग कि कोई
भक्त पड़ा संकट में।।
क्षुभित खड़े थे सभी वहाँ पर
पड़े हुए विस्मय में।।
उसे बचाने की ही खातिर
बाबा आज विकल हैं।।
उसकी ही पीड़ा से पीडित
उनका अन्तस्तल है।।
इतने में ही विधि ने
अपनी विचित्रता दिखलाई।।
लख कर जिसको जनता की
श्रद्धा सरिता लहराई।।
लेकर संज्ञाहीन भक्ता को
गाड़ी एक वहाँ आई।।
सन्मुख अपने देखा भक्त को
साईं की आँखें भर आई।।
शान्त धीर गंभीर सिन्धु सा
बाबा का अन्तस्तल।।
आज न जाने क्यों रह-रह
हो जाता था चंचल।।
आज दया की मूर्ति स्वयं था
बना हुआ उपचारी।।
और भक्त के लिए आज था
देव बना प्रतिहारी।।
आज भक्ति की विषम परीक्षा में
सफल हुआ था काशी।।
उसके ही दर्शन की खातिर
थे उमड़े नगर-निवासी।।
जब भी और जहाँ भी कोई
भक्त पड़े संकट में।।
उसकी रक्षा करने बाबा
जाते हैं पलभर में।।
युग-युग का है सत्य यह
नहीं कोई नई कहानी।।
आपदग्रस्त से जब होता
जाते खुद अन्तर्यामी।।
भेद-भावपरे पुजारी
मानवता के थे साईं।।
जितने प्यारे हिन्दू – मुस्लिम
उतने ही थे सिख ईसाई।।
भेद-भाव मन्दिर-मस्जिद का
तोड़ फोड़ बाबा ने डाला।।
राम रहीम सभी उनके थे
कृष्ण करीम अल्लाताला।।
घण्टे की प्रतिध्वनि से गूंजा
मस्जिद का कोना-कोना।।
मिले परस्पर हिन्दू-मुस्लिम
प्यार बढ़ा दिन-दिन दूना।।
चमत्कार था कितना सुन्दर
परिचय इस काया ने दी।।
और नीम कड़वाहट में भी
मिठास बाबा ने भर दी।।
सच को स्नेह दिया साईं ने
सबको अतुल प्यार किया।।
जो कुछ जिसने भी चाहा
बाबा ने उसको वही दिया।।
ऐसे स्नेह शील भाजन का
नाम सदा जो जपा करे।।
पर्वत जैसा दुःख क्यों न हो
पलभर में वह दूर टरे।।
साईं जैसा दाता
अरे कभी नहीं देखा कोई।।
जिसके केवल दर्शन से ही
सारी विपदा दूर गई।।
तन में साईं मन में साईं
साईं-साईं भजा करो।।
अपने तन की सुधि बुधि खोकर
सुधि उसकी तुम किया करो।।
जब तू अपनी सुधियाँ तजकर
बाबा की सुधि किया करेगा।।
और रात-दिन बाबा बाबा
बाबा ही तू रटा करेगा।।
तो बाबा को अरे।। विवश हो
सुधि तेरी लेनी ही होगी।।
तेरी हर इच्छा बाबा को
पूरी ही करनी होगी।।
जंगल जंगल भटक न पागल
और ढुँढ़ने बाबा को।।
एक जगह केवल शिरडी में
तू पायेगा बाबा को।।
धन्य जगत में प्राणी है वह
जिसने बाबा को पाया।।
दुःख में सुख में प्रहर आठ हो
साई का हो गुण गाया।।
गिरें संकटों के पर्वत चाहे
या बिजनी ही टूट पड़े।।
साईं का ले नाम सदा तुम
सन्मुख सब के रहो अड़े।।
इस बूढ़े की सुन करामात
तुम हो जावोगे हैरान।।
दंग रह गए सुन कर जिसको
जाने कितने चतुर सुजान।।
एक बार शिर्डी में साधु
ढोंगी था कोई आया।।
भोली-भाली नगर-निवासी
जनका को था भरमाया।।
जड़ी-बूटियाँ उन्हें दिखा कर
करने लगा वहाँ भाषण।।
कहने लगा सुनो श्रोतागण
घर मेरा है वृन्दावन।।
औषधि मेरे पास एक है
और अजब इसमें शक्ति।।
इसके सेवन करने से ही
हो जाती दुख से मुक्ति।।
अगर मुक्त होना चाहो तुम
संकट से बीमारी से।।
तो है मेरा नम्र निवेदन
हर नर से हर नारी से।।
लो खरीद तुम इसको
इसकी सेवन विधियाँ हैं न्यारी।।
यद्यपि तुच्छ वस्तु है यह
गुण उसके हैं अतिशय भारी।।
जो है संततिहीन यहाँ यदि
मेरी औषधि को खाये।।
पुत्र-रत्न हो प्राप्त अरे और
वह मुँह माँगा फल पाये।।
औषध मेरी जो न खरीदे
जीवन भर पछतायेगा।।
मुझ जैसा प्राणी शायद ही
अरे यहाँ आ पायेगा।।
दुनिया दो दिन का मेला है
मौज शौक तुम भी कर लो।।
गर इससे मिलता है
सब कुछ तुम भी इसको ले लो।।
हैरानी बढ़ती जनता की
लख इसकी कारस्तानी।।
प्रमुदित वह भी मन ही मन था
लख लोगों की नादानी।।
खबर सुनाने बाबा को यह
गया दौड़कर सेवक एक।।
सुनकर भृकुटी तनी और
विस्मरण हो गया सभी विवेक।।
हुक्म दिया सेवक को
सत्वर पकड़ दुष्ट का लाओ।।
या शिर्डी की सीमा से
कपटी को दूर भगाओ।।
मेरे रहते भोली-भाली
शिर्डी की जनता को।।
कौन नीच ऐसा जो
साहस करता है छलने को।।
पलभर में ही ऐसे ढोंगी
कपटी नीच लुटेरे को।।
महानाश के महागर्त में
पहुँचा दूँ जीवन भर को।।
तनिक मिला आभास मदारी
क्रूर कुटिल अन्यायी को।।
काल नाचता है अब सिर पर
गुस्सा आया साई को।।
पलभर में सब खेल बन्द कर
भागा सिर पर रख कर पैर।।
सोच रहा था मन ही मन
भगवान नहीं है क्या अब खैर।।
सच है साईं जैसा दानी
मिल न सकेगा जग में।।
अंश ईश का साईं बाबा
उन्हें न कुछ भी मुश्किल जग में।।
स्नेह शील सौजन्य आदि का
आभूषण धारण कर।।
बढ़ता इस दुनिया में जो भी
मानव-सेवा के पथ पर।।
वही जीत लेता है जगती के
जन जन का अन्तस्तल।।
उसकी एक उदासी ही जग को
कर देती है विह्वल।।
जब-जब जग में भार पाप का
बढ़-बढ़ हो जाता है।।
उसे मिटाने की ही खातिर
अवतारी हो जाता है।।
पाप और अन्याय सभी कुछ
इस जगती का हर के।।
दूर भगा देता दुनिया
के दानव को क्षण भर में।।
स्नेह सुधा की धार बरसने
लगती है दुनिया में।।
गले परस्पर मिलने लगते
जन-जन हैं आपस में।।
ऐसे ही अवतारी साईं
मृत्युलोक में आकर।।
समता का यह पाठ पढ़ाया
सबको अपना आप मिटाकर।।
नाम द्वारका मस्जिद का
रक्खा शिर्डी में साईं ने।।
पाप ताप सन्ताप मिटाया
जो कुछ पाया साईं ने।।
सदा याद में मस्त राम की
बैठे रहते थे साईं।।
पहर आठ ही राम नाम का
भजते रहते थे साईं।।
सूखी-रूखी ताजी बासी
चाहे या होवे पकवान।।
सदा प्यार के भूखे साई
की खातिर थे सभी समान।।
स्नेह और श्रद्धा से अपनी
जन जो कुछ दे जाते थे।।
बड़े चाव से उस भोजन को
बाबा पावन करते थे।।
कभी-कभी मन बहलाने को
बाबा बाग में जाते थे।।
प्रमुदित मन में निरख प्रकृति
छटा को वे होते थे।।
रंग-बिरंगे पुष्प बाग के
मन्द-मन्द हिल-डुल करके।।
बीहड़ वीराने मन में भी
स्नेह सलिल भर जाते थे।।
ऐसी सुमधुर बेला में भी
दुःख आपद विपदा के मारे।।
अपने मन की व्यथा सुनाने
जन रहते बाबा को घेरे।।
सुनकर जिनकी करुण कथा को
नयन कमल भर आते थे।।
दे विभूति हर व्यथा
शान्ति उनके उर में भर देते थे।।
जाने क्या अद्भुत शक्ति
उस विभूति में होती थी।।
जो धारण करते मस्तक पर
दुःख सारा हर लेती थी।।
धन्य मनुज वे साक्षात दर्शन
जो बाबा साई के पाये।।
धन्य कमल कर उनके जिनसे
चरण-कमल वे परसाये।।
काश निर्भय तुमको भी
साक्षात साईं मिल जाता।।
बरसों से उजड़ा चमन अपना
फिर से आज खिल जाता।।
गर पकड़ता मैं चरण श्रीके
नहीं छोड़ता उम्र भर।।
मना लेता मैं जरूर उनको
गर रूठते साईं मुझ पर।।
शिरडी साईं बाबा चालीसा (Shirdi Sai Baba Chalisa Lyrics in English) -
pahale sāīṃ ke caraṇoṃ meṃ
apanā śīśa navāū~ maiṃ।।
kaise śirḍī sāīṃ āe
sārā hāla sunāū~ maiṃ।।
kauna haiṃmātā pitā kauna haiṃ
yaha na kisī ne bhī jānā।।
kahā~ janama sāīṃ ne dhārā
praśna pahalī sā rahā banā।।
koī kahe ayodhyā ke
ye rāmacandra bhagavāna haiṃ।।
koī kahatā sāīṃ bābā
pavana-putra hanumāna haiṃ।।
koī kahatā hai maṃgala mūrti
śrī gajānana haiṃ sāī।।
koī kahatā gokula
mohana devakī nandana haiṃ sāīṃ।।
śaṃkara samajhe bhakta kaī to
bābā ko bhajate rahate।।
koī kahe avatāra datta kā
pūjā sāīṃ kī karate।।
kucha bhī māno unako tuma
para sāīṃ haiṃ sacce bhagavāna।।
baḍa़e dayālu dīnabandhu
kitanoṃ ko diyā jīvana dāna।।
kaī varṣa pahale kī ghaṭanā
tumheṃ sunāū~gā maiṃ bāta।।
kisī bhāgyaśālī kī
śirḍī meṃ āī thī bārāta।।
āyā sātha usī ke thā
bālaka eka bahuta sundara।।
āyā ākara vahīṃ basa gayā
pāvana śirḍī kiyā nagara।।
kaī dinoṃ taka rahā bhaṭakatā
bhikṣā mā~gī usane dara-dara।।
aura dikhāyī aisī līlā
jaga meṃ jo ho gaī amara।।
jaise jaise umara baḍha़ī
baḍha़tī gaī vaise hī śāna।।
ghara-ghara hone lagā nagara meṃ
sāīṃ bābā kā guṇagāna।।
dina diganta meṃ lagā gūṃjane
phira to sāīṃjī kā nāma।।
dīna-dukhī kī rakṣā karanā
yahī rahā bābā kā kāma।।
bābā ke caraṇoṃ meṃ jākara
jo kahatā maiṃ hū~ nirdhana।।
dayā usī para hotī unakī
khula jāte duḥkha ke bandhana।।
kabhī kisī ne mā~gī bhikṣā
do bābā mujhako santāna।।
evamastu taba kahakara sāīṃ
dete the usako varadāna ।।
svayaṃ duḥkhī bābā ho jāte
dīna-dukhī jana kā lakha hāla।।
antaḥkarana śrī sāīṃ kā
sāgara jaisā rahā viśāla।।
bhakta eka madrāsī āyā
ghara kā bahuta baḍa़ā dhanavāna।।
māla khajānā behada usakā
kevala nahīṃ rahī santāna।।
lagā manāne sāīṃ nātha ko
bābā mujha para dayā karo।।
jhaṃjhā se jhaṃkṛta naiyā ko
tumahīṃ merī pāra karo।।
kuladīpaka ke binā aṃdherā
chāyā huā hai ghara meṃ mere।।
isalie āyā hū~ bābā
hokara śaraṇāgata tere।।
kuladīpaka ke hī abhāva meṃ
vyartha hai daulata kī māyā।।
āja bhikhārī banakara bābā
śaraṇa tumhārī maiṃ āyā।।
de-do mujhako putra-dāna
maiṃ ṛṇī rahū~gā jīvana bhara।।
aura kisī kī āśā na mujhako
sirpha bharosā hai tuma para।।
anunaya-vinaya bahuta kī usane
caraṇoṃ meṃ dharakara ke śīśa।।
taba prasanna hokara bābā ne
diyā bhakta ko yaha āśīṣa।।
allā bhalā karegā terā
putra janma ho tere ghara।।
kṛpā rahegī tujha para usakī
aura tere usa bālaka para।।
aba taka nahīṃ kisī ne pāyā
sāīṃ kī kṛpā kā pāra।।
putra ratna de madrāsī ko
dhanya kiyā usakā saṃsāra।।
tana-mana se jo bhaje usī kā
jaga meṃ hotā hai uddhāra।।
sā~ca ko ā~ca nahīṃ hai koī
sadā jhūṭha kī hotī hāra।।
maiṃ hū~ sadā sahāre usake
sadā rahū~gā usakā dāsa।।
sāīṃ jaisā prabhu milā hai
itanī hī kama hai kyā āsa।।
merā bhī dina thā ika aisā
milatī nahīṃ mujhe thī roṭī।।
tana para kapaḍa़ā dūra rahā thā
śeṣa rahī nanhī sī laṃgoṭī।।
saritā sanmukha hone para bhī
maiṃ pyāsā thā।।
durdina merā mere ūpara
dāvāgna barasātā thā।।
dharatī ke atirikta jagata meṃ
merā kucha avalamba na thā।।
banā bhikhārī maiṃ duniyā meṃ
dara-dara ṭhokara khātā thā।।
aise meṃ ika mitra milā jo
parama bhakta sāīṃ kā thā।।
jaṃjāloṃ se mukta magara
jagatī meṃ vaha bhī mujha sā thā।।
bābā ke darśanoṃ kī khātira
mila donoṃ ke kiyā vicāra।।
sāīṃ jaise dayā mūrti ke
darśana ko ho gae taiyāra।।
pāvana śiḍī nagara meṃ jākara
dekhī matavālī mūrati।।
dhanya janama ho gayā ki hamane
jaba dekhī sāīṃ kī mūrati।।
jaba se kie haiṃ darśana hamane
duḥkha sārā kāphūra ho gayā।।
saṃkaṭa sāre miṭe aura
vipadāoṃ kā ho anta gayā।।
māna aura sammāna milā
bhikṣā meṃ hamako saba bābā se।।
pratitimbita ho uṭhe jagata meṃ
hama sāīṃ kī ājñā se।।
bābā ne sammāna diyā hai
māna diyā isa jīvana meṃ।।
isakā sambala le maiṃ
ha~satā jāū~gā jīvana meṃ।।
sāī kī līlā kā mere
mana para aisā asara huā।।
lagatā jagatī ke kaṇa-kaṇa meṃ
jaise ho vaha bharā huā।।
kāśīrāma bābā kā bhakta
isa śirḍī meṃ rahatā thā।।
maiṃ sāīṃ kā sāīṃ merā
vaha duniyā se kahatā thā।।
silakara svayaṃ vastra becatā
grāma-nagara bājāroṃ meṃ।।
jhaṃkṛti usakī hṛdaya tantrī thī
sāīṃ kī jhaṃkāroṃ meṃ।।
stabdha niśā thī the soye
rajanī aṃcala meṃ cā~da sitāre।।
nahīṃ sūjhatā rahā hātha ko hātha
timiri ke māre।।
vastra becakara lauṭa rahā thā
hāya।। hāṭa se kāśī।।
vicitra baḍa़ā saṃyoga ki usa dina
ātā thā vaha ekākī।।
ghera rāha meṃ khaḍa़e ho gae
use kuṭila anyāyī।।
māro kāṭo lūṭa lo isako
isakī hī dhvani paḍa़ī sunāī।।
lūṭa pīṭakara use vahā~ se
kuṭila gaye campata ho।।
āghātoṃ se marmāhata ho
usane dī thī saṃjñā kho।।
bahuta dera taka paḍa़ā rahā vaha
vahīṃ usī hālata meṃ।।
jāne kaba kucha ho uṭhā
usako kisī palaka meṃ।।
anajāne hī usake mu~ha se
nikala paḍa़ā thā sāīṃ।।
jisakī pratidhvani śirḍī meṃ
bābā ko paḍa़ī sunāī।।
kṣubdha ho uṭhā mānasa unakā
bābā gae vikala ho।।
lagatā jaise ghaṭanā sārī
ghaṭī unhīṃ ke sanmukha ho।।
unmādī se idhara udhara taba
bābā lage bhaṭakane।।
sanmukha cījeṃ jo bhī
āī unako lage paṭakane।।
aura dhadhakate aṃgāroṃ meṃ
bābā ne kara ḍālā।।
hue saśaṃkita sabhī vahā~
lakha tāṇḍava nṛtya nirālā।।
samajha gaye saba loga ki koī
bhakta paḍa़ā saṃkaṭa meṃ।।
kṣubhita khaḍa़e the sabhī vahā~ para
paḍa़e hue vismaya meṃ।।
use bacāne kī hī khātira
bābā āja vikala haiṃ।।
usakī hī pīḍa़ā se pīḍita
unakā antastala hai।।
itane meṃ hī vidhi ne
apanī vicitratā dikhalāī।।
lakha kara jisako janatā kī
śraddhā saritā laharāī।।
lekara saṃjñāhīna bhaktā ko
gāḍa़ī eka vahā~ āī।।
sanmukha apane dekhā bhakta ko
sāīṃ kī ā~kheṃ bhara āī।।
śānta dhīra gaṃbhīra sindhu sā
bābā kā antastala।।
āja na jāne kyoṃ raha-raha
ho jātā thā caṃcala।।
āja dayā kī mūrti svayaṃ thā
banā huā upacārī।।
aura bhakta ke lie āja thā
deva banā pratihārī।।
āja bhakti kī viṣama parīkṣā meṃ
saphala huā thā kāśī।।
usake hī darśana kī khātira
the umaḍa़e nagara-nivāsī।।
jaba bhī aura jahā~ bhī koī
bhakta paḍa़e saṃkaṭa meṃ।।
usakī rakṣā karane bābā
jāte haiṃ palabhara meṃ।।
yuga-yuga kā hai satya yaha
nahīṃ koī naī kahānī।।
āpadagrasta se jaba hotā
jāte khuda antaryāmī।।
bheda-bhāvapare pujārī
mānavatā ke the sāīṃ।।
jitane pyāre hindū – muslima
utane hī the sikha īsāī।।
bheda-bhāva mandira-masjida kā
toḍa़ phoḍa़ bābā ne ḍālā।।
rāma rahīma sabhī unake the
kṛṣṇa karīma allātālā।।
ghaṇṭe kī pratidhvani se gūṃjā
masjida kā konā-konā।।
mile paraspara hindū-muslima
pyāra baḍha़ā dina-dina dūnā।।
camatkāra thā kitanā sundara
paricaya isa kāyā ne dī।।
aura nīma kaḍa़vāhaṭa meṃ bhī
miṭhāsa bābā ne bhara dī।।
saca ko sneha diyā sāīṃ ne
sabako atula pyāra kiyā।।
jo kucha jisane bhī cāhā
bābā ne usako vahī diyā।।
aise sneha śīla bhājana kā
nāma sadā jo japā kare।।
parvata jaisā duḥkha kyoṃ na ho
palabhara meṃ vaha dūra ṭare।।
sāīṃ jaisā dātā
are kabhī nahīṃ dekhā koī।।
jisake kevala darśana se hī
sārī vipadā dūra gaī।।
tana meṃ sāīṃ mana meṃ sāīṃ
sāīṃ-sāīṃ bhajā karo।।
apane tana kī sudhi budhi khokara
sudhi usakī tuma kiyā karo।।
jaba tū apanī sudhiyā~ tajakara
bābā kī sudhi kiyā karegā।।
aura rāta-dina bābā bābā
bābā hī tū raṭā karegā।।
to bābā ko are।। vivaśa ho
sudhi terī lenī hī hogī।।
terī hara icchā bābā ko
pūrī hī karanī hogī।।
jaṃgala jaṃgala bhaṭaka na pāgala
aura ḍhu~ḍha़ne bābā ko।।
eka jagaha kevala śiraḍī meṃ
tū pāyegā bābā ko।।
dhanya jagata meṃ prāṇī hai vaha
jisane bābā ko pāyā।।
duḥkha meṃ sukha meṃ prahara āṭha ho
sāī kā ho guṇa gāyā।।
gireṃ saṃkaṭoṃ ke parvata cāhe
yā bijanī hī ṭūṭa paḍa़e।।
sāīṃ kā le nāma sadā tuma
sanmukha saba ke raho aḍa़e।।
isa būḍha़e kī suna karāmāta
tuma ho jāvoge hairāna।।
daṃga raha gae suna kara jisako
jāne kitane catura sujāna।।
eka bāra śirḍī meṃ sādhu
ḍhoṃgī thā koī āyā।।
bholī-bhālī nagara-nivāsī
janakā ko thā bharamāyā।।
jaḍa़ī-būṭiyā~ unheṃ dikhā kara
karane lagā vahā~ bhāṣaṇa।।
kahane lagā suno śrotāgaṇa
ghara merā hai vṛndāvana।।
auṣadhi mere pāsa eka hai
aura ajaba isameṃ śakti।।
isake sevana karane se hī
ho jātī dukha se mukti।।
agara mukta honā cāho tuma
saṃkaṭa se bīmārī se।।
to hai merā namra nivedana
hara nara se hara nārī se।।
lo kharīda tuma isako
isakī sevana vidhiyā~ haiṃ nyārī।।
yadyapi tuccha vastu hai yaha
guṇa usake haiṃ atiśaya bhārī।।
jo hai saṃtatihīna yahā~ yadi
merī auṣadhi ko khāye।।
putra-ratna ho prāpta are aura
vaha mu~ha mā~gā phala pāye।।
auṣadha merī jo na kharīde
jīvana bhara pachatāyegā।।
mujha jaisā prāṇī śāyada hī
are yahā~ ā pāyegā।।
duniyā do dina kā melā hai
mauja śauka tuma bhī kara lo।।
gara isase milatā hai
saba kucha tuma bhī isako le lo।।
hairānī baḍha़tī janatā kī
lakha isakī kārastānī।।
pramudita vaha bhī mana hī mana thā
lakha logoṃ kī nādānī।।
khabara sunāne bābā ko yaha
gayā dauḍa़kara sevaka eka।।
sunakara bhṛkuṭī tanī aura
vismaraṇa ho gayā sabhī viveka।।
hukma diyā sevaka ko
satvara pakaḍa़ duṣṭa kā lāo।।
yā śirḍī kī sīmā se
kapaṭī ko dūra bhagāo।।
mere rahate bholī-bhālī
śirḍī kī janatā ko।।
kauna nīca aisā jo
sāhasa karatā hai chalane ko।।
palabhara meṃ hī aise ḍhoṃgī
kapaṭī nīca luṭere ko।।
mahānāśa ke mahāgarta meṃ
pahu~cā dū~ jīvana bhara ko।।
tanika milā ābhāsa madārī
krūra kuṭila anyāyī ko।।
kāla nācatā hai aba sira para
gussā āyā sāī ko।।
palabhara meṃ saba khela banda kara
bhāgā sira para rakha kara paira।।
soca rahā thā mana hī mana
bhagavāna nahīṃ hai kyā aba khaira।।
saca hai sāīṃ jaisā dānī
mila na sakegā jaga meṃ।।
aṃśa īśa kā sāīṃ bābā
unheṃ na kucha bhī muśkila jaga meṃ।।
sneha śīla saujanya ādi kā
ābhūṣaṇa dhāraṇa kara।।
baḍha़tā isa duniyā meṃ jo bhī
mānava-sevā ke patha para।।
vahī jīta letā hai jagatī ke
jana jana kā antastala।।
usakī eka udāsī hī jaga ko
kara detī hai vihvala।।
jaba-jaba jaga meṃ bhāra pāpa kā
baḍha़-baḍha़ ho jātā hai।।
use miṭāne kī hī khātira
avatārī ho jātā hai।।
pāpa aura anyāya sabhī kucha
isa jagatī kā hara ke।।
dūra bhagā detā duniyā
ke dānava ko kṣaṇa bhara meṃ।।
sneha sudhā kī dhāra barasane
lagatī hai duniyā meṃ।।
gale paraspara milane lagate
jana-jana haiṃ āpasa meṃ।।
aise hī avatārī sāīṃ
mṛtyuloka meṃ ākara।।
samatā kā yaha pāṭha paḍha़āyā
sabako apanā āpa miṭākara।।
nāma dvārakā masjida kā
rakkhā śirḍī meṃ sāīṃ ne।।
pāpa tāpa santāpa miṭāyā
jo kucha pāyā sāīṃ ne।।
sadā yāda meṃ masta rāma kī
baiṭhe rahate the sāīṃ।।
pahara āṭha hī rāma nāma kā
bhajate rahate the sāīṃ।।
sūkhī-rūkhī tājī bāsī
cāhe yā hove pakavāna।।
sadā pyāra ke bhūkhe sāī
kī khātira the sabhī samāna।।
sneha aura śraddhā se apanī
jana jo kucha de jāte the।।
baḍa़e cāva se usa bhojana ko
bābā pāvana karate the।।
kabhī-kabhī mana bahalāne ko
bābā bāga meṃ jāte the।।
pramudita mana meṃ nirakha prakṛti
chaṭā ko ve hote the।।
raṃga-biraṃge puṣpa bāga ke
manda-manda hila-ḍula karake।।
bīhaḍa़ vīrāne mana meṃ bhī
sneha salila bhara jāte the।।
aisī sumadhura belā meṃ bhī
duḥkha āpada vipadā ke māre।।
apane mana kī vyathā sunāne
jana rahate bābā ko ghere।।
sunakara jinakī karuṇa kathā ko
nayana kamala bhara āte the।।
de vibhūti hara vyathā
śānti unake ura meṃ bhara dete the।।
jāne kyā adbhuta śakti
usa vibhūti meṃ hotī thī।।
jo dhāraṇa karate mastaka para
duḥkha sārā hara letī thī।।
dhanya manuja ve sākṣāta darśana
jo bābā sāī ke pāye।।
dhanya kamala kara unake jinase
caraṇa-kamala ve parasāye।।
kāśa nirbhaya tumako bhī
sākṣāta sāīṃ mila jātā।।
barasoṃ se ujaḍa़ā camana apanā
phira se āja khila jātā।।
gara pakaḍa़tā maiṃ caraṇa śrīke
nahīṃ choḍa़tā umra bhara।।
manā letā maiṃ jarūra unako
gara rūṭhate sāīṃ mujha para।।
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