मंगलवार व्रत कथा (Mangalwar Vrat Katha Lyrics in Hindi) - श्री हनुमान व्रत कथा - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind

 

मंगलवार व्रत कथा (Mangalwar Vrat Katha Lyrics in Hindi) - श्री हनुमान व्रत कथा - Bhaktilok


मंगलवार व्रत कथा (Mangalwar Vrat Katha Lyrics in Hindi) - 


एक समय की बात है एक ब्राह्मण दंपत्ति की कोई संतान नहीं थी, जिस कारण वह बेहद दुःखी थे। एक समय ब्राह्मण वन में हनुमान जी की पूजा के लिए गया। वहाँ उसने पूजा के साथ महावीर जी से एक पुत्र की कामना की।

घर पर उसकी स्त्री भी पुत्र की प्राप्ति के लिए मंगलवार का व्रत करती थी। वह मंगलवार के दिन व्रत के अंत में हनुमान जी को भोग लगाकर ही भोजन करती थी।

एक बार व्रत के दिन ब्राह्मणी ना भोजन बना पाई और ना ही हनुमान जी को भोग लगा सकी। उसने प्रण किया कि वह अगले मंगलवार को हनुमान जी को भोग लगाकर ही भोजन करेगी।

वह भूखी प्यासी छह दिन तक पड़ी रही। मंगलवार के दिन वह बेहोश हो गई। हनुमान जी उसकी निष्ठा और लगन को देखकर प्रसन्न हुए। उन्होंने आशीर्वाद स्वरूप ब्राह्मणी को एक पुत्र दिया और कहा कि यह तुम्हारी बहुत सेवा करेगा।

बालक को पाकर ब्राह्मणी अति प्रसन्न हुई। उसने बालक का नाम मंगल रखा। कुछ समय उपरांत जब ब्राह्मण घर आया, तो बालक को देख पूछा कि वह कौन है?

पत्नी बोली कि मंगलवार व्रत से प्रसन्न होकर हनुमान जी ने उसे यह बालक दिया है। ब्राह्मण को अपनी पत्नी की बात पर विश्वास नहीं हुआ। एक दिन मौका देख ब्राह्मण ने बालक को कुएं में गिरा दिया।

घर पर लौटने पर ब्राह्मणी ने पूछा कि, मंगल कहां है? तभी पीछे से मंगल मुस्कुरा कर आ गया। उसे वापस देखकर ब्राह्मण आश्चर्यचकित रह गया। रात को हनुमानजी ने उसे सपने में दर्शन दिए और बताया कि यह पुत्र उसे उन्होंने ही दिया है।

ब्राह्मण सत्य जानकर बहुत खुश हुआ। इसके बाद ब्राह्मण दंपत्ति प्रत्येक मंगलवार को व्रत रखने लगे।

जो मनुष्य मंगलवार व्रत कथा को पढ़ता या सुनता है,और नियम से व्रत रखता है उसे हनुमान जी की कृपा से सब कष्ट दूर होकर सर्व सुख प्राप्त होता है, और हनुमान जी की दया के पात्र बनते हैं।


◉ श्री हनुमंत लाल की पूजा आराधना में हनुमान चालीसा, बजरंग बाण और संकटमोचन अष्टक का पाठ बहुत ही प्रमुख माने जाते हैं।


हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa Lyrics in Hindi) -


॥ दोहा॥

श्रीगुरु चरन सरोज रज

निज मनु मुकुरु सुधारि ।

बरनउँ रघुबर बिमल जसु

जो दायकु फल चारि ॥


बुद्धिहीन तनु जानिके

सुमिरौं पवन-कुमार ।

बल बुधि बिद्या देहु मोहिं

हरहु कलेस बिकार ॥


॥ चौपाई ॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।

जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥


राम दूत अतुलित बल धामा ।

अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥


महाबीर बिक्रम बजरंगी ।

कुमति निवार सुमति के संगी ॥


कंचन बरन बिराज सुबेसा ।

कानन कुण्डल कुँचित केसा ॥४


हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै ।

काँधे मूँज जनेउ साजै ॥


शंकर स्वयं/सुवन केसरी नंदन ।

तेज प्रताप महा जगवंदन ॥


बिद्यावान गुनी अति चातुर ।

राम काज करिबे को आतुर ॥


प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।

राम लखन सीता मन बसिया ॥८


सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।

बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥


भीम रूप धरि असुर सँहारे ।

रामचन्द्र के काज सँवारे ॥


लाय सजीवन लखन जियाए ।

श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥


रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२


सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।

अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥


सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।

नारद सारद सहित अहीसा ॥


जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।

कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥


तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।

राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६


Hanuman Chalisa by Gulsan kumar


तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना ।

लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥


जुग सहस्त्र जोजन पर भानु ।

लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥


प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।

जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥


दुर्गम काज जगत के जेते ।

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥२०


राम दुआरे तुम रखवारे ।

होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥


सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।

तुम रक्षक काहू को डरना ॥


आपन तेज सम्हारो आपै ।

तीनों लोक हाँक तै काँपै ॥


भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।

महावीर जब नाम सुनावै ॥२४


नासै रोग हरै सब पीरा ।

जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥


संकट तै हनुमान छुडावै ।

मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥


सब पर राम तपस्वी राजा ।

तिनके काज सकल तुम साजा ॥


और मनोरथ जो कोई लावै ।

सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८


चारों जुग परताप तुम्हारा ।

है परसिद्ध जगत उजियारा ॥


साधु सन्त के तुम रखवारे ।

असुर निकंदन राम दुलारे ॥


अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।

अस बर दीन जानकी माता ॥


राम रसायन तुम्हरे पासा ।

सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२


तुम्हरे भजन राम को पावै ।

जनम जनम के दुख बिसरावै ॥


अंतकाल रघुवरपुर जाई ।

जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥


और देवता चित्त ना धरई ।

हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥


संकट कटै मिटै सब पीरा ।

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६


Hanuman Chalisa by Gulsan kumar


जै जै जै हनुमान गोसाईं ।

कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥


जो सत बार पाठ कर कोई ।

छूटहि बंदि महा सुख होई ॥


जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।

होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥


तुलसीदास सदा हरि चेरा ।

कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥४०


॥ दोहा ॥

पवन तनय संकट हरन,

मंगल मूरति रूप ।

राम लखन सीता सहित,

हृदय बसहु सुर भूप ॥



बजरंग बाण (Bajarang Baan Lyrics in Hindi) - 


" दोहा "

"निश्चय प्रेम प्रतीति ते 
बिनय करैं सनमान।"
"तेहि के कारज सकल 
शुभ सिद्ध करैं हनुमान॥"

"चौपाई"

जय हनुमन्त सन्त हितकारी। 
सुन लीजै प्रभु अरज हमारी।।

जन के काज विलम्ब न कीजै। 
आतुर दौरि महासुख दीजै।।

जैसे कूदि सिन्धु महि पारा।
 सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।

आगे जाई लंकिनी रोका। 
मारेहु लात गई सुर लोका।।

जाय विभीषण को सुख दीन्हा। 
सीता निरखि परमपद लीन्हा।।

बाग़ उजारि सिन्धु महँ बोरा। 
अति आतुर जमकातर तोरा।।

अक्षयकुमार को मारि संहारा। 
लूम लपेट लंक को जारा।।

लाह समान लंक जरि गई। 
जय जय धुनि सुरपुर में भई।।

अब विलम्ब केहि कारण स्वामी।
 कृपा करहु उर अन्तर्यामी।।

जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। 
आतुर होय दुख हरहु निपाता।।

जै गिरिधर जै जै सुखसागर। 
सुर समूह समरथ भटनागर।।

ॐ हनु हनु हनुमंत हठीले। 
बैरिहिंं मारु बज्र की कीले।।

गदा बज्र लै बैरिहिं मारो। 
महाराज प्रभु दास उबारो।।

ऊँकार हुंकार प्रभु धावो। 
बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो।।

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। 
ऊँ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा।।

सत्य होहु हरि शपथ पाय के। 
रामदूत धरु मारु जाय के।।

जय जय जय हनुमन्त अगाधा। 
दुःख पावत जन केहि अपराधा।।

पूजा जप तप नेम अचारा। 
नहिं जानत हौं दास तुम्हारा।।

वन उपवन मग गिरिगृह माहीं। 
तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।

पांय परों कर ज़ोरि मनावौं। 
यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।

जय अंजनिकुमार बलवन्ता। 
शंकरसुवन वीर हनुमन्ता।।

बदन कराल काल कुल घालक। 
राम सहाय सदा प्रतिपालक।।

भूत प्रेत पिशाच निशाचर। 
अग्नि बेताल काल मारी मर।।

इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की। 
राखु नाथ मरजाद नाम की।।

जनकसुता हरिदास कहावौ। 
ताकी शपथ विलम्ब न लावो।।

जय जय जय धुनि होत अकाशा। 
सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा।।

चरण शरण कर ज़ोरि मनावौ। 
यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।

उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई। 
पांय परों कर ज़ोरि मनाई।।

ॐ चं चं चं चं चपत चलंता। 
ऊँ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता।।

ऊँ हँ हँ हांक देत कपि चंचल। 
ऊँ सं सं सहमि पराने खल दल।।

अपने जन को तुरत उबारो। 
सुमिरत होय आनन्द हमारो।।

यह बजरंग बाण जेहि मारै। 
ताहि कहो फिर कौन उबारै।।

पाठ करै बजरंग बाण की। 
हनुमत रक्षा करै प्राण की।।

यह बजरंग बाण जो जापै। 
ताते भूत प्रेत सब काँपै।।

धूप देय अरु जपै हमेशा। 
ताके तन नहिं रहै कलेशा।।

"दोहा"

" प्रेम प्रतीतहि कपि भजै 
सदा धरैं उर ध्यान। "
" तेहि के कारज सकल 
शुभ सिद्घ करैं हनुमान।। "

 

संकटमोचन अष्टक (Hanuman Ashtak Lyrics in Hindi) - 


॥ हनुमानाष्टक ॥

बाल समय रवि भक्षी लियो तब

तीनहुं लोक भयो अंधियारों 

ताहि सों त्रास भयो जग को

यह संकट काहु सों जात न टारो 

देवन आनि करी बिनती तब

छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो 

को नहीं जानत है जग में कपि

संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥


बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि

जात महाप्रभु पंथ निहारो 

चौंकि महामुनि साप दियो तब

चाहिए कौन बिचार बिचारो 

कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु

सो तुम दास के सोक निवारो ॥ २ ॥


अंगद के संग लेन गए सिय

खोज कपीस यह बैन उचारो 

जीवत ना बचिहौ हम सो जु

बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो 

हेरी थके तट सिन्धु सबै तब

लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥ ३ ॥


रावण त्रास दई सिय को सब

राक्षसी सों कही सोक निवारो 

ताहि समय हनुमान महाप्रभु

जाए महा रजनीचर मारो 

चाहत सीय असोक सों आगि सु

दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ ४ ॥


बान लग्यो उर लछिमन के तब

प्राण तजे सुत रावन मारो 

लै गृह बैद्य सुषेन समेत

तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो 

आनि सजीवन हाथ दई तब

लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ ५ ॥


रावन युद्ध अजान कियो तब

नाग कि फाँस सबै सिर डारो 

श्रीरघुनाथ समेत सबै दल

मोह भयो यह संकट भारो 

आनि खगेस तबै हनुमान जु

बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ ६ ॥


बंधु समेत जबै अहिरावन

लै रघुनाथ पताल सिधारो 

देबिहिं पूजि भलि विधि सों बलि

देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो 

जाय सहाय भयो तब ही

अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ ७ ॥


काज किये बड़ देवन के तुम

बीर महाप्रभु देखि बिचारो 

कौन सो संकट मोर गरीब को

जो तुमसे नहिं जात है टारो 

बेगि हरो हनुमान महाप्रभु

जो कछु संकट होय हमारो ॥ ८ ॥


॥ दोहा ॥

लाल देह लाली लसे

अरु धरि लाल लंगूर 

वज्र देह दानव दलन

जय जय जय कपि सूर ॥ 


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