गायत्रीमन्त्रजपादौ चतुर्विंशतिमुद्राप्रदर्शनम् मन्त्र(Gayatri Mantrjapado Mantra Sanskrit Me) - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind


गायत्रीमन्त्रजपादौ चतुर्विंशतिमुद्राप्रदर्शनम् मन्त्र(Gayatri Mantrjapado Mantra Sanskrit Me) - 



गायत्रीमन्त्रजपादौ चतुर्विंशतिमुद्राप्रदर्शनम् मन्त्र(Gayatri Mantrjapado Mantra Sanskrit Me) - Bhaktilok


गायत्रीमन्त्रजपादौ चतुर्विंशतिमुद्राप्रदर्शनम् मन्त्र(Gayatri Mantrjapado Mantra Sanskrit Me) - 


सुमुखं सम्पुटं चैव विततं विस्तृतं तथा ।। 

द्विमुखं त्रिमुखं चैव चतुःपञ्चमुखं तथा ।। 

पण्मुखमधोमुखञ्चैव व्यापकाञ्जलिकं तथा । 

शकटं यमपाशञ्च-ग्रथितञ्चोन्मुखोन्मुखम् ।। 

प्रलम्बं मुष्टिकश्चैव मत्स्यः कूर्मो वराहकः । 

सिंहाक्रान्तं महाक्रान्तं मुद्गरं पल्लवं तथा ।

एता मुद्रा न जानाति गायत्री निष्फलाभवेत् ।। 



(१) सुमुखम् - दोनों हाथों की अंगुलियों को मोड़कर परस्पर मिलायें ।

(२) सम्पुटम् - दोनों हाथों को फैलाकर मिलायें ।

(३) विततम् - दोनों हाथों की हथेलियाँ परस्पर सामने करें । 

 (४) विस्तृतम् - दोनों हाथों की अंगुलियाँ खोलकर कुछ  अधिक अलग करें ।

(५) द्विमुखम् - दोनों हाथों की कनिष्ठा से कनिष्ठा तथा

अनामिका से अनामिका को दिमादम मिलायें।

(६) त्रिमुखम् - दोनों मध्यमाओं को भी मिलायें ।

 (७) चतुर्मुखम् - दोनों तर्जनी को लाकर मिलायें ।

(८) पञ्चमुखम् - दोनों अंगूठों को भी मिलावें ।

(९) पप्ठमुखम् - उसी प्रकार रखते हुए हाथों की कनिष्ठाओं को खोलें।

(१०) अधोमुखम् - उलटे हाथों की अंगुलियों को मोड़ें तथा मिलाकर नीचे की ओर करें ।

(११) व्यापकाञ्जलि - उसी प्रकार मिले हुए हाथों को शरीर की ओर घुमाकर सीधा करें।

(१२) शकटम् - दोनों हाथों को उलटा करके अंगूठे को मिलाकर तर्जनियों को सीधा रखते हुए मुट्ठी बाँधे ।

(१३) यमपाशम् - तर्जनी से तर्जनी को बाँधकर दोनों मुट्ठियों को वाँधे ।

(१४) ग्रन्थितम - दोनों हाथों की अंगुलियों को परस्पर गूंथे ।

(१५) उन्मुखोन्मुखम् - हाथों की पाँचों अंगुलियों को मिलाकर प्रथम बायें पर दाहिना फिर दाहिने पर बांया हाथ रखें।

.(१६) प्रलम्बन् - अंगुलियों को कुछ मोड़कर दोनों हाथों को उलटा कर नीचे की ओर करें ।

(१७) मुष्टिकम् - दोनों अंगूठों को ऊपर करके दोनों मुट्ठियाँ बाँधकर मिलावें ।

(१८) मत्स्यः - दाहिने हाथ की पीठ पर बाँया हाथ उलटा रखकर दोनों अंगूठों को हिलावें ।

(१९) कूर्मः - सीधे बांये हाथ की मध्यमा अनामिका तथा कनिष्ठा को मोड़कर उलटे दाहिने हाथे की मध्यमा अनामिका को उन तीनो अंगलियों के नीचे रख कर तर्जनी पर दाहिनी कनिष्ठा और बांये अंगठे पर दाहिनी तर्जनी को रखें।

(२०) वराहकम् - दाहिनी तर्जनी को बांये अंगूठे से मिलाकर दोनों हाथों की अंगुलियों को परस्पर बांधे ।

(२१) सिंहाक्रान्तम् - दोनों हाथों को कानों के पास में करें ।

 (२२) महाक्रान्तम्- दोनों हाथों की अंगुलियों को कानों के समीप में करें

 (२३) मुद्गरम् - मुट्ठी बाँदकर दाहिनी केहुनी को वांयी हथेली पर । रखें।

 (२४) पल्लवम् - दाहिने हाथ की अंगुलियों को मुख के समीप हिलावें ।





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