मंगलाचरण के श्लोक संस्कृत में (Bhagwat Manglacharan Shlok Saskrit Me) - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind


मंगलाचरण के श्लोक संस्कृत में (Bhagwat Manglacharan Shlok Saskrit Me) - 


मंगलाचरण के श्लोक संस्कृत में (Bhagwat Manglacharan Shlok Saskrit Me) - Bhaktilok


मंगलाचरण के श्लोक संस्कृत में (Bhagwat Manglacharan Shlok Saskrit Me):- 


अस्मद  गुरुभ्यो नमः , 

अस्मत परम गुरुभ्यो नमः, 

अस्मत सर्व गुरुभ्यो नमः , 

श्री राधा कृष्णाभ्याम्  नमः,

श्रीमते रामानुजाय नमः


लम्बोदरं परम सुन्दर एकदन्तं,

पीताम्बरं त्रिनयनं परमंपवित्रम् । 


उद्यद्धिवाकर निभोज्ज्वल कान्ति कान्तं, 

विध्नेश्वरं सकल विघ्नहरं नमामि।।


शरीरं स्वरूपं ततो कलत्रं 

यशश्चारु चित्रं धनं मेरु तुल्यं।


मनश्चै न लग्नं श्री गुरु रङ्घ्रिपद्मे 

ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्  ।।


नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् । 

देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ।।१


जयतु जयतु देवो देवकीनन्दनोऽयं

जयतु जयतु कृष्णो वृष्णिवंशप्रदीपः ।

जयतु जयतु मेघश्यामलः कोमलाङ्गः

जयतु जयतु पृथ्वीभारनाशो मुकुन्दः ॥


कृष्ण त्वदीयपदपङ्कजपञ्जरान्तं

अद्यैव मे विशतु मानसराजहंसः ।

प्राणप्रयाणसमये कफवातपित्तैः

कण्ठावरोधनविधौ स्मरणं कुतस्ते ॥


बर्हापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकारं

बिभ्रद् वासः कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम् |

रन्ध्रान् वेणोरधरसुधया पूरयन गोपवृन्दैः

वृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद् गीतकीर्तिः ||


करारविन्देन पदारविन्दं, मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम्।

वटय पत्रस्य पुटेशयानं, बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि।।


रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे

रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नम:।


अंजना नंदनं वीरं जानकी शोक नाशनं! 

कपीश मक्ष हंतारं – वंदे लंका भयंकरं!! 


मूकं करोति वाचालं पङ्गुं लङ्घयते गिरिं ।

यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम् ॥


भक्त भक्ति भगवंत गुरु चतुर नाम बपु एक। 

इनके पद वंदन कीएँ नासत विध्न अनेक ।।


 मंगलाचरण के श्लोक का अर्थ हिंदी में (Bhagwat Manglacharan Shlok Ka Arth Hindi Me):- 


"अस्मद गुरुभ्यो नमः" - मैं अपने गुरुओं को नमस्कार करता हूँ।

"अस्मत परम गुरुभ्यो नमः" - मुझे अपने परम गुरुओं का भी नमस्कार है।

"अस्मत सर्व गुरुभ्यो नमः" - मैं सभी गुरुओं को भी नमस्कार करता हूँ।

"श्री राधा कृष्णाभ्याम् नमः" - मैं श्री राधा और कृष्ण को नमस्कार करता हूँ।

"श्रीमते रामानुजाय नमः" - मैं श्रीमत रामानुजाचार्य को नमस्कार करता हूँ।

"लम्बोदरं परम सुन्दर एकदन्तं" - विघ्नहर श्री गणेश को नमस्कार है, जो एकदंत है और परम सुंदर है।

"पीताम्बरं त्रिनयनं परमंपवित्रम्" - जिनका वस्त्र पीताम्बर है, तीन आंखें हैं, और जो परम पवित्र है।

"उद्यद्धिवाकर निभोज्ज्वल कान्ति कान्तं" - जिनकी कान्ति सूर्य की तरह चमकती है, उसको नमस्कार है।

"विध्नेश्वरं सकल विघ्नहरं नमामि" - सभी विघ्नों को हरने वाले गणेश को मैं नमस्कार करता हूँ।

"शरीरं स्वरूपं ततो कलत्रं" - शरीर, यश, धन, और सुंदरता, इनका आदर करता हूँ।

"मनश्चै न लग्नं श्री गुरु रङ्घ्रिपद्मे" - मेरा मन श्री गुरु के पादरज में ही लगा हुआ है।

"ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्" - इसके बाद और क्या कहूँ, कौन कहे, इससे बड़ा क्या है?

"नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्" - नारायण को नमस्कार करके मैं उत्तम पुरुष को नमस्कार करता हूँ।

"देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्" - मैं सरस्वती देवी, व्यास जी, और जय उदीरयेत (विजयी हो) को नमस्कार करता हूँ।

"जयतु जयतु देवो देवकीनन्दनोऽयं" - हे देवकीपुत्र, तुम्हारी जय हो!

"कृष्ण त्वदीयपदपङ्कजपञ्जरान्तं" - हे कृष्ण, तुम्हारे पादकमल में मेरा मनस्सरोवर हो!

"बर्हापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकारं" - मुझे नटराज शिव को नमस्कार है, जिनके कर्णाभिधारी कुण्डल में बृहद वेद हैं।

"करारविन्देन पदारविन्दं" - मैं हृषिकेश (कृष्ण) के पादकमल की धूलि हूँ।

"रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे" - मैं रामभद्र, रामचंद्र, वेधक (राम) को नमस्कार करता हूँ।

"अंजना नंदनं वीरं जानकी शोक नाशनं!" - हनुमान जी को नमस्कार है, जो अंजना के पुत्र हैं और जानकी का शोक नाशन करते हैं।

"मूकं करोति वाचालं" - मेरे मुख को बोलने में सक्षम बनाता है, जो नारायण की कृपा से है।

"भक्त भक्ति भगवंत गुरु चतुर नाम बपु एक" - चार नामों वाले भगवत्तत्त्व में निपुण गुरु को भक्ति के साथ नमस्कार हैं।


मंगलाचरण शब्द संस्कृत में है और इसका अर्थ "शुभारंभ" होता है। मंगलाचरण एक काव्य रचना का पहला भाग होता है जिसमें सारंगी रचना के प्रारंभिक श्लोक होते हैं जो विशेष रूप से ईश्वर की प्रार्थना, शुभ कार्यों की शुरुआत और काव्यरचना के उद्देश्य को सार्थकता देते हैं।


मंगलाचरण के श्लोक आमतौर पर किसी शास्त्रीय या साहित्यिक ग्रंथ की आरंभिक पृष्ठों पर पाए जा सकते हैं जो उस ग्रंथ के मुख्य विषय और उद्देश्य को स्पष्ट करने का कार्य करते हैं। इनमें साधुता, शांति, भक्ति, आत्मविकास और ईश्वर की कृपा पर बल डाला जाता है।


किसी भी मंगलाचरण के श्लोक का विशेष अर्थ उसके संदर्भ और साहित्यिक कारणों पर निर्भर करता है, और इसलिए यह विभिन्न ग्रंथों और शैलियों में अलग-अलग हो सकता है।


मंगलाचरण का शब्दिक अर्थ है "शुभारंभ" या "शुभ प्रारंभ"। यह संस्कृत शब्द है जो किसी काव्य रचना के आरंभिक भाग को संदर्भित करता है, जो आमतौर पर ईश्वर की प्रार्थना, शुभ कार्यों की शुरुआत और ग्रंथ के उद्देश्य का स्पष्टीकरण करता है।


इसमें साधुता, शांति, भक्ति, आत्मविकास, और ईश्वर की कृपा की महत्वपूर्णता होती है। मंगलाचरण के श्लोक आमतौर पर ग्रंथ के प्रमुख विषय और उद्देश्य को स्थापित करने में मदद करते हैं और पाठकों को उनके आत्मिक और सामाजिक सुधार के लिए प्रेरित करने का उद्दीपन करते हैं।


इस प्रकार, मंगलाचरण ग्रंथ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो पाठकों को शुभ और मार्गदर्शित करने का कार्य करता है और उन्हें एक सकारात्मक आदर्श की ओर प्रेरित करता है।


मंगलाचरण के श्लोक ग्रंथ की भावनाएं, सिद्धांत, और समर्थन की दृष्टि से भी योग्यता प्रदान करते हैं। ये श्लोक आमतौर पर शिक्षात्मक, साहित्यिक, या धार्मिक ग्रंथों के प्रारंभ में पाए जाते हैं, जो उन ग्रंथों की विशिष्टता और उद्देश्य को प्रतिस्थापित करते हैं।


इन श्लोकों में कवि या रचनाकार अपनी भावनाओं, आकांक्षाओं, और आदर्शों को व्यक्त करते हैं, जिससे पाठकों को एक दिशा मिलती है और वे उनकी सोच और जीवनशैली के साथ संबंधित हो सकते हैं।


मंगलाचरण के श्लोक ग्रंथ की प्रारंभिक ऊर्जा को भी उत्तेजित करते हैं और पाठकों को गहरे आत्मचिंतन और साधना की दिशा में प्रेरित करते हैं। इनमें सारंगी, स्वर्ग, धरा, नदी, और प्राकृतिक तत्वों के सांगीतिक उपमहाद्वीपों का वर्णन किया जा सकता है, जो शांति, सौंदर्य, और प्राकृतिक सादगी का प्रतीक होते हैं।


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