नीति श्लोक और उसके अर्थ हिंदी में(Niti Shlok Aur Usake Arth Hindi Me) - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind


नीति श्लोक और उसके अर्थ हिंदी में(Niti Shlok Aur Usake Arth Hindi Me) - 


नीति श्लोक और उसके अर्थ हिंदी में(Niti Shlok Aur Usake Arth Hindi Me) - Bhaktilok

नीति श्लोक और उसके अर्थ हिंदी में(Niti Shlok Aur Usake Arth Hindi Me) - 


विद्वत्त्वञ्च नृपत्वञ्च नैव तुल्यं कदाचन।

स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते॥


श्लोक अर्थ:-  विद्वत्ता और राजपद-इन दोनोंकी तुलना कदापि नहीं हो सकती; राजा अपने ही देशमें आदर पाता है, किन्तु विद्वान् सब जगह आदर पाता है॥ 



पण्डिते च गुणाः गुणाः सर्वे मूर्खे दोषा हि केवलम्। 

तस्मान्मूर्खसहस्त्रेभ्यः प्राज्ञ एको विशिष्यते॥


श्लोक अर्थ:-  पण्डितों में सब गुण ही रहते हैं और मूों में केवल दोष ही; इसलिये एक पण्डित हजार मूल्से भी उत्तम है॥



परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम्।

वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भ पयोमुखम्॥


श्लोक अर्थ:-  जो आँखके ओट होनेपर काम बिगाड़े और सम्मुख होनेपर मीठीमीठी बात बनाकर कहे, ऐसे मित्रको मुखपर दूध तथा भीतर विषसे भरे घड़ेके समान त्याग देना चाहिये॥



रूपयौवनसम्पन्ना विशाल कुलसम्भवाः।

विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः॥


श्लोक अर्थ:-  जो विद्याहीन हैं, वे यदि रूप और यौवनसे सम्पन्न हों तथा उच्च कुलमें उत्पन्न हुए हों तो भी गन्धहीन टेसूके फूलकी तरह शोभा नहीं पाते ॥



ताराणां भूषणं चन्द्रो नारीणां भूषणं पतिः।

पृथिव्या भूषणं राजा विद्या सर्वस्य भूषणम्॥


श्लोक अर्थ:-  ताराओंका भूषण चन्द्रमा, स्त्रीका भूषण पति और पृथ्वीका भूषण राजा है, किन्तु विद्या सभीका भूषण है ॥





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