हे नाथ जानी अजान बालक
विश्वनाथ महेश्वरम्
करिके कृपा दीजो दर्श
अविनाशि शंकर सुन्दरम् ।
आया शरण हूँ आपकी
इतनी अनुग्रह कीजिये
जय चन्द्रमौलि कृपालु
अब तुम दर्श मोको दीजिये ।
ले रामनाम निशंकर की
न्हीं है गरल आहार तुम
भव-सिंधु से नैया मेरी कर
देना भोला पार तुम ।
मनसा वाचा कर्मणों से
पाप- अति हमने कियो
आयो शरण शरणागति की
सुध नहीं अब तक लियो ।
अब तो तुम्हारे हाथ है
गिरजापती मेरी गती
जय पशुपती जय पशुपती
जय पशुपती जय पशुपती।
जय जयति योगेश्वर तुम्ही
बल-बुद्धि के प्रकाश तुम
मन-मन्द बीच निवास करिये
जान जन सुखराशि तुम ।
लज्जा हमारी रखना
शिव आपके ही हाथ है
तुमसा ना कोई दयालु
भक्त कृपालु दीनानाथ है।
त्रय-ताप मोचन जय
त्रिलोचन पूर्ण पारावार
जयकैलाशवासी सिद्धकाशी
दया के आगार जय ।
शिव दया के सिन्धु हो
जन है शरण जन फेरिये
करिके कृपा की कोर
शंकर दीन जैन दिशि हेरिये।
शुभ वेल के कुछ पत्र है
कुछ पुष्प है मन्दार के
फल है धतूरे के घरे
कछु संग अछत धारि के ।
सेवा हमारी तुच्छ है
फल कामना मन में बड़ी
पर आशा भोलानाथ से
रहती हृदय में हर घड़ी।
हे विश्वनाथ महेश अपनी
भक्ति कृपया दीजिये
निर्भर निडर निशक करिये
शक्ति अपनी दीजिये।
हों सत्य-ब्रतधारी हृदय में
भावना ऐसी भरे
बम बम हरे बम बम हरे
बम बम हरे बम बम हरे ।
मण्डित जटा में गंग धारा
ताप लोको के हरे
शशिभाल तब यश चन्द्रिका
सबके हृदय शीतल करें।
वर दे वरद वरदानियों
धन-धान्य से धरती भरे
जय शिव हरे जयशिव हरे
जयशिव हरे जय शिव हरे ।
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