विन्ध्येश्वरी चालीसा लिरिक्स (Vindhyeshvari Chalisa Lyrics in Hindi) - Rahul pathak Maa Vindeshwari Chalisa - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind


विन्ध्येश्वरी चालीसा लिरिक्स (Vindhyeshvari Chalisa Lyrics in Hindi) - 


॥ दोहा ॥

नमो नमो विन्ध्येश्वरी,

नमो नमो जगदम्ब ।

सन्तजनों के काज में,

करती नहीं विलम्ब ॥


|| चौपाई ||

जय जय जय विन्ध्याचल रानी।

आदिशक्ति जगविदित भवानी ॥ 1


सिंहवाहिनी जै जगमाता ।

जै जै जै त्रिभुवन सुखदाता ॥ 2


कष्ट निवारण जै जगदेवी ।

जै जै सन्त असुर सुर सेवी ॥ 3


महिमा अमित अपार तुम्हारी ।

शेष सहस मुख वर्णत हारी ॥ 4


दीनन को दु:ख हरत भवानी ।

नहिं देखो तुम सम कोउ दानी ॥ 5


सब कर मनसा पुरवत माता ।

महिमा अमित जगत विख्याता ॥ 6


जो जन ध्यान तुम्हारो लावै ।

सो तुरतहि वांछित फल पावै ॥ 7


तुम्हीं वैष्णवी तुम्हीं रुद्रानी ।

तुम्हीं शारदा अरु ब्रह्मानी ॥ 8


रमा राधिका श्यामा काली ।

तुम्हीं मातु सन्तन प्रतिपाली ॥ 9


उमा माध्वी चण्डी ज्वाला ।

वेगि मोहि पर होहु दयाला ॥ 10


तुम्हीं हिंगलाज महारानी ।

तुम्हीं शीतला अरु विज्ञानी ॥ 11


दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता ।

तुम्हीं लक्ष्मी जग सुख दाता ॥ 12


तुम्हीं जाह्नवी अरु रुद्रानी ।

हे मावती अम्ब निर्वानी ॥ 13


अष्टभुजी वाराहिनि देवा ।

करत विष्णु शिव जाकर सेवा ॥ 14


चौंसट्ठी देवी कल्यानी ।

गौरि मंगला सब गुनखानी ॥ 15


पाटन मुम्बादन्त कुमारी ।

भाद्रिकालि सुनि विनय हमारी ॥ 16


बज्रधारिणी शोक नाशिनी ।

आयु रक्षिनी विन्ध्यवासिनी ॥ 17


जया और विजया वैताली ।

मातु सुगन्धा अरु विकराली ॥ 18


नाम अनन्त तुम्हारि भवानी ।

वरनै किमि मानुष अज्ञानी ॥ 19


जापर कृपा मातु तब होई ।

जो वह करै चाहे मन जोई ॥ 20


कृपा करहु मोपर महारानी ।

सिद्ध करहु अम्बे मम बानी ॥ 21


जो नर धरै मातु कर ध्याना ।

ताकर सदा होय कल्याना ॥ 22


विपति ताहि सपनेहु नाहिं आवै ।

जो देवीकर जाप करावै ॥ 23


जो नर कहँ ऋण होय अपारा ।

सो नर पाठ करै शत बारा ॥ 24


निश्चय ऋण मोचन होई जाई ।

जो नर पाठ करै चित लाई ॥ 25


अस्तुति जो नर पढ़े पढ़अवे ।

या जग में सो बहु सुख पावे ॥ 26


जाको व्याधि सतावे भाई ।

जाप करत सब दूर पराई ॥ 27


जो नर अति बन्दी महँ होई ।

बार हजार पाठ करि सोई ॥ 28


निश्चय बन्दी ते छुट जाई ।

सत्य वचन मम मानहु भाई ॥ 29


जापर जो कछु संकट होई ।

निश्चय देविहिं सुमिरै सोई ॥ 30


जा कहँ पुत्र होय नहिं भाई ।

सो नर या विधि करे उपाई ॥ 31


पाँच वर्ष जो पाठ करावै ।

नौरातन महँ विप्र जिमावै ॥ 32 


निश्चय होहिं प्रसन्न भवानी ।

पुत्र देहिं ता कहँ गुणखानी ॥ 33


ध्वजा नारियल आन चढ़ावै ।

विधि समेत पूजन करवावै ॥ 34


नित प्रति पाठ करै मन लाई ।

प्रेम सहित नहिं आन उपाई ॥ 35


यह श्री विन्ध्याचल चालीसा ।

रंक पढ़त होवे अवनीसा ॥ 36


यह जन अचरज मानहु भाई ।

कृपा दृश्टि जापर होइ जाई ॥ 37


जै जै जै जग मातु भवानी ।

कृपा करहु मोहि निज जन जानी ॥ 38


।। इति श्री विंधेश्वरी चालीसा समाप्त ।।


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