कमल नेत्र स्तोत्रम् (Kamal Netra Stotram Lyrics in Hindi) - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind

कमल नेत्र स्तोत्रम् (Kamal Netra Stotram Lyrics in Hindi) - Bhaktilok9

कमल नेत्र स्तोत्रम् (Kamal Netra Stotram Lyrics in Hindi) - Bhaktilok

कमल नेत्र स्तोत्रम् (Kamal Netra Stotram Lyrics in Hindi) - 

 

श्री कमल नेत्र कटि पीताम्बर

अधर मुरली गिरधरम ।

मुकुट कुण्डल कर लकुटिया

सांवरे राधेवरम ॥1॥

कूल यमुना धेनु आगे

सकल गोपयन के मन हरम ।

पीत वस्त्र गरुड़ वाहन

चरण सुख नित सागरम ॥2॥


करत केल कलोल निश दिन

कुंज भवन उजागरम ।

अजर अमर अडोल निश्चल

पुरुषोत्तम अपरा परम ॥3॥


दीनानाथ दयाल गिरिधर

कंस हिरणाकुश हरणम ।

गल फूल भाल विशाल लोचन

अधिक सुन्दर केशवम ॥4॥


बंशीधर वासुदेव छइया

बलि छल्यो श्री वामनम ।

जब डूबते गज राख लीनों

लंक छेद्यो रावनम ॥5॥


सप्त दीप नवखण्ड चौदह

भवन कीनों एक पदम ।

द्रोपदी की लाज राखी

कहां लौ उपमा करम ॥6॥


दीनानाथ दयाल पूरण

करुणा मय करुणा करम ।

कवित्तदास विलास निशदिन

नाम जप नित नागरम ॥7॥


प्रथम गुरु के चरण बन्दों

यस्य ज्ञान प्रकाशितम ।

आदि विष्णु जुगादि ब्रह्मा

सेविते शिव संकरम ॥8॥


श्रीकृष्ण केशव कृष्ण केशव

कृष्ण यदुपति केशवम ।

श्रीराम रघुवर राम रघुवर

राम रघुवर राघवम ॥9॥


श्रीराम कृष्ण गोविन्द माधव

वासुदेव श्री वामनम ।

मच्छ-कच्छ वाराह नरसिंह

पाहि रघुपति पावनम ॥10॥


मथुरा में केशवराय विराजे

गोकुल बाल मुकुन्द जी ।

श्री वृन्दावन में मदन मोहन

गोपीनाथ गोविन्द जी ॥11॥


धन्य मथुरा धन्य गोकुल

जहाँ श्री पति अवतरे ।

धन्य यमुना नीर निर्मल

ग्वाल बाल सखावरे ॥12॥


नवनीत नागर करत निरन्तर

शिव विरंचि मन मोहितम ।

कालिन्दी तट करत क्रीड़ा

बाल अदभुत सुन्दरम ॥13॥


ग्वाल बाल सब सखा विराजे

संग राधे भामिनी ।

बंशी वट तट निकट यमुना

मुरली की टेर सुहावनी ॥14॥


भज राघवेश रघुवंश उत्तम

परम राजकुमार जी ।

सीता के पति भक्तन के गति

जगत प्राण आधार जी ॥15॥


जनक राजा पनक राखी

धनुष बाण चढ़ावहीं ।

सती सीता नाम जाके

श्री रामचन्द्र प्रणामहीं ॥16॥


जन्म मथुरा खेल गोकुल

नन्द के ह्रदि नन्दनम ।

बाल लीला पतित पावन

देवकी वसुदेवकम ॥17॥


श्रीकृष्ण कलिमल हरण जाके

जो भजे हरिचरण को ।

भक्ति अपनी देव माधव

भवसागर के तरण को ॥18॥


जगन्नाथ जगदीश स्वामी

श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम ।

द्वारिका के नाथ श्री पति

केशवं प्रणमाम्यहम ॥19॥


श्रीकृष्ण अष्टपदपढ़तनिशदिन

विष्णु लोक सगच्छतम ।

श्रीगुरु रामानन्द अवतार स्वामी

कविदत्त दास समाप्ततम ॥20॥

 



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