हम वन के वासी भजन इन हिंदी लिरिक्स
वन वन डोले कुछ ना बोले सीता जनक दुलारी |
फूल से कोमल मन पर सहती दुख पर्वत से भारी |
धर्म नगर के वासी कैसे हो गये अत्याचारी |
राज धर्म के कारण लुट गयी एक सती सम नारी |
हम वन के वासी | नगर जगाने आए |
सीता को उसका खोया |
माता को उसका खोया सम्मान दिलाने आए |
हम वन के वासी नगर जगाने आए
जनक नंदिनी राम प्रिया वो रघुकुल की महारानी |
तुम्हरे अपवादों के कारण छोड़ गई रजधानी |
महासती भगवती सिया तुमसे ना गई पहचानी |
तुमने ममता की आँखों में भर दिया पीर का पानी |
भर दिया पीर का पानी |
उस दुखियां के आसूं लेकर आग लगाने आए |
हम वन के वासी नगर जगाने आए
सीता को ही नहीं राम को भी दारुण दुख दीने |
निराधार बातों पर तुमने हृदयो के सुख छीने |
पतिव्रत धरम निभाने में सीता का नहीं उदाहरण |
क्यों निर्दोष को दोष दिया
वनवास हुआ किस कारण |
न्यायशील राजा से उसका न्याय कराने आए |
हम वन के वासी | नगर जगाने आए |
हम वन के वासी | नगर जगाने आए |
सीता को उसका खोया माता को उसका खोया |
सम्मान दिलाने आए |
हम वन के वासी | नगर जगाने आए !!
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