संगम तट पर साधु विराजें (sangam tat par saadhu viraajen lyrics in hindi)
(राग: भक्ति रस)
संगम तट पर साधु विराजें,
ज्ञान की गंगा बहा रहे।
ध्यान लगाए, मंत्र सुनाएँ,
सत्य का दीप जला रहे।
गंगा-यमुना की धारा प्यारी,
सरस्वती की छवि न्यारी।
तीनों का यह संगम पावन,
भक्ति का सागर हिलोर मारे।
ऋषि-मुनि का यह तपोभूमि,
आत्मा को शांति दे डाले।
संगम तट पर साधु विराजें,
ज्ञान की गंगा बहा रहे।
हाथ में माला, माथे पर तिलक,
साधु गाते हरि का भजन।
भक्तों की टोली झूमे गाकर,
हरि नाम से मन हो उज्जवल।
शंखनाद और घंटा बजे,
हर दिशा में आशीर्वाद बहे।
संगम तट पर साधु विराजें,
ज्ञान की गंगा बहा रहे।
यज्ञ की अग्नि धधक रही है,
सुरभि से धरती महक रही है।
धूप-दीप की सुगंध निराली,
मन में भर दे प्रेम की लाली।
भक्त चरणों में शीश झुकाएँ,
हरि की महिमा गुनगुनाएँ।
संगम तट पर साधु विराजें,
ज्ञान की गंगा बहा रहे।
दूर-दूर से आए भक्तजन,
लेकर मन में श्रद्धा का धन।
डुबकी लगाकर पाए मोक्ष,
हरि चरणों में मिले विश्राम।
अमृत की यह अद्भुत धारा,
जीवन का है सच्चा सहारा।
संगम तट पर साधु विराजें,
ज्ञान की गंगा बहा रहे।
सूरज की किरणें झिलमिल करें,
गंगा की लहरें चाँदी बनें।
हर दिल में हो प्रेम का वास,
द्वेष मिटे, सबका हो उद्धार।
महाकुंभ का यह पावन मेला,
हर मन को देता दिव्य अलबेला।
संगम तट पर साधु विराजें,
ज्ञान की गंगा बहा रहे।
गंगा मैया की जय बोलें,
हरि नाम से सब दुःख खो लें।
भक्ति का यह अद्भुत नजारा,
जीवन को बनाए सुंदर सहारा।
सब मिलकर गाएँ भक्ति के गीत,
हर मन में भरें प्रेम और प्रीत।
संगम तट पर साधु विराजें,
ज्ञान की गंगा बहा रहे।
यह गीत महाकुंभ के दिव्य वातावरण और संगम तट की पवित्रता का वर्णन करता है। इसे भक्ति और श्रद्धा के साथ गाने पर मन को शांति और आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है।
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