नवरात्रि | Navratri | चैत्र नवरात्रि | Chaitra Navratri - Bhaktilok
नवरात्रि, भारतीय हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है जो नौ रातों तक मनाया जाता है। यह पर्व आमतौर पर चैत्र और अश्विन मास में मनाया जाता है, लेकिन अधिकतर स्थानों पर अश्विन मास की नवरात्रि सबसे प्रसिद्ध है।
नवरात्रि का मुख्य उद्देश्य मां दुर्गा की पूजा और उनकी महिमा का गान करना है। हर नवरात्रि के दौरान नौ अलग-अलग रूपों वाली मां दुर्गा की पूजा की जाती है, जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है। यह पर्व धार्मिकता, उत्साह और सामाजिक समृद्धि का प्रतीक है।
नवरात्रि के दौरान लोग व्रत रखते हैं, मंदिरों में भजन-कीर्तन होता है, रात्रि में धूप, दीप, और ध्यान कर देवी की पूजा की जाती है। विभिन्न स्थानों पर नृत्य, संगीत, और कला का आयोजन भी किया जाता है।
नवरात्रि का पर्व धर्म, संस्कृति, और त्योहार के रूप में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और लोग इसे बड़े ही उत्साह और भक्ति से मनाते हैं।
प्रतिपदा: माँ शैलपुत्री (Maa Shailputri) -
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
प्रतिपदा, नवरात्रि का पहला दिन है और इस दिन माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है। माँ शैलपुत्री को नवदुर्गा का प्रथम रूप माना जाता है। वह भगवान शैलपुत्री के नाम से भी जानी जाती हैं, जो कि उनके पिता की शैलराज नामक राजा की पुत्री थीं।
माँ शैलपुत्री का ध्यान किया जाता है, जिन्हें एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का फूल धारण किया दिखाया जाता है। उनकी पूजा से शुभ कार्यों में सफलता मिलती है और भक्तों को आशीर्वाद प्राप्त होता है।
प्रतिपदा के दिन भक्तों द्वारा माँ शैलपुत्री की आराधना, आरती, और भजनों का गाया जाता है, जिससे उनकी प्रसन्नता होती है। यह दिन भक्तों के लिए आशीर्वाद और खुशियों का संदेश लेकर आता है।
द्वितीय: माँ ब्रह्मचारिणी (Maa Bramhcharaniy) -
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
द्वितीया, नवरात्रि का दूसरा दिन है और इस दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। माँ ब्रह्मचारिणी नवदुर्गा का दूसरा रूप माना जाता है। उन्हें "ब्रह्मचारिणी" के नाम से जाना जाता है, जो ब्रह्मचर्य का पालन करने वाली देवी को दर्शाता है।
माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान किया जाता है, जो एक पाथिव्रता और साध्वी रूप में प्रतिष्ठित हैं। उनके हाथ में कमंडलु और माला होती है, और वे काँची सिल्क के वस्त्र धारण करती हैं।
इस दिन भक्तों द्वारा माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा और आराधना की जाती है। वे माँ की कृपा और आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करते हैं ताकि उनके जीवन में ब्रह्मचर्य, ध्यान और तप की शक्ति आए। यह दिन भक्तों को ज्ञान और साधना की दिशा में आगे बढ़ने का प्रेरणा संदेश देता है।
तृतीया: माँ चंद्रघंटा (Maa Chandraghanta) -
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
तृतीया, नवरात्रि का तीसरा दिन है और इस दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। माँ चंद्रघंटा नवदुर्गा का तीसरा रूप माना जाता है। उन्हें "चंद्रघंटा" के नाम से भी जाना जाता है, जो चांद के आकार की त्रिशूल को धारण करती हैं।
माँ चंद्रघंटा का ध्यान किया जाता है, जो दिव्य और प्रकाशमयी स्वरूप में होती हैं। उनके ध्यान से शरीर, मन, और आत्मा में शुद्धता और आत्मा का प्रकाश प्राप्त होता है।
तृतीया के दिन भक्तों द्वारा माँ चंद्रघंटा की पूजा, आराधना, और स्तोत्र गान किया जाता है। इस दिन भक्तों को स्वास्थ्य, सौभाग्य, और धन संपन्नता के लिए प्रार्थना करने का अवसर मिलता है। माँ चंद्रघंटा की कृपा से उनके जीवन में शांति, समृद्धि, और सम्पूर्ण सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
चतुर्थी: माँ कूष्माण्डा (Maa Kushmada) -
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
चतुर्थी, नवरात्रि का चौथा दिन है और इस दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा की जाती है। माँ कूष्माण्डा नवदुर्गा का चौथा रूप माना जाता है। उन्हें "कूष्माण्डा" के नाम से भी जाना जाता है, जो खूबसूरत रूप में ध्यान किए जाते हैं।
माँ कूष्माण्डा का ध्यान किया जाता है, जो अपने एक हाथ में कमंडलु और दूसरे हाथ में कमल का फूल धारण करती हैं। उन्हें देखने में वे बहुत ही प्रेमवती और सुंदर लगती हैं।
चतुर्थी के दिन भक्तों द्वारा माँ कूष्माण्डा की पूजा, आराधना, और भजनों का गाया जाता है। इस दिन भक्तों को समस्त बुराईयों से मुक्ति और समृद्धि की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करने का अवसर मिलता है। माँ कूष्माण्डा की कृपा से उनके जीवन में सभी प्रकार की कठिनाइयों का समाप्ति होती है।
पञ्चमी: माँ स्कन्दमाता (Maa Skandmata) -
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
पञ्चमी, नवरात्रि का पाँचवा दिन है और इस दिन माँ स्कन्दमाता की पूजा की जाती है। माँ स्कन्दमाता नवदुर्गा का पाँचवा रूप माना जाता है। उन्हें "स्कन्दमाता" के नाम से भी जाना जाता है, जो भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की मां हैं।
माँ स्कन्दमाता का ध्यान किया जाता है, जो अपने एक हाथ में लड्डू और दूसरे हाथ में कमल का फूल धारण करती हैं। उनकी पूजा से शिव के पुत्र स्कंद की कृपा प्राप्त होती है और भक्तों को सफलता, संपत्ति और सुख की प्राप्ति होती है।
पञ्चमी के दिन भक्तों द्वारा माँ स्कन्दमाता की पूजा, आराधना, और स्तुति की जाती है। इस दिन भक्तों को स्वास्थ्य, धन, और खुशियों की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करने का अवसर मिलता है। माँ स्कन्दमाता की कृपा से उनके जीवन में समस्त विघ्नों का नाश होता है और वे सुख-शांति से जीवन व्यतीत करते हैं।
षष्ठी: माँ कात्यायनी (Maa Kaatyayani) -
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
षष्ठी, नवरात्रि का छठा दिन है और इस दिन माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है। माँ कात्यायनी नवदुर्गा का षष्ठ रूप माना जाता है। उन्हें "कात्यायनी" के नाम से भी जाना जाता है, जो महायोगिनी और तपस्विनी हैं।
माँ कात्यायनी का ध्यान किया जाता है, जो अपने एक हाथ में कमंडलु और दूसरे हाथ में कमल का फूल धारण करती हैं। उनके ध्यान से भक्तों को साधना, समर्थता, और सामर्थ्य की प्राप्ति होती है।
षष्ठी के दिन भक्तों द्वारा माँ कात्यायनी की पूजा, आराधना, और भजनों का गाया जाता है। इस दिन भक्तों को अपने जीवन में स्थायित्व और सफलता की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की जाती है। माँ कात्यायनी की कृपा से उनके जीवन में समस्त कठिनाइयाँ दूर होती हैं और उन्हें उत्तेजना और उत्साह मिलता है।
सप्तमी: माँ कालरात्रि (Maa Kalratri) -
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
अष्टमी: माँ महागौरी (Maa Mahagauri) -
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
माँ महागौरी, नवरात्रि के आठवां दिन की देवी हैं। वे नवदुर्गा के आठवें रूप के रूप में पूजित की जाती हैं। माँ महागौरी को देवी पार्वती के एक रूप माना जाता है।
माँ महागौरी का नाम "महागौरी" उनके पावन और शुद्ध स्वरूप को दर्शाता है। उनकी कांचन-सफेद वस्त्र धारण की धारणा की जाती है। माँ महागौरी का ध्यान करने से भक्तों को शुद्धता, पवित्रता, और साध्य प्राप्त होती है।
नवरात्रि के आठवां दिन भक्तों द्वारा माँ महागौरी की पूजा, आराधना, और भजनों का गाया जाता है। इस दिन भक्तों को आत्मशुद्धि, आत्मरक्षा, और सम्पूर्ण शुभकामनाएं मिलती हैं। माँ महागौरी की कृपा से उनके जीवन में समस्त कठिनाइयाँ दूर होती हैं और वे समृद्ध, सुखी, और सम्मानित जीवन जीते हैं।
नवमी: माँ सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) -
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
नवमी, नवरात्रि का नौवां और अंतिम दिन होता है और इस दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। माँ सिद्धिदात्री नवदुर्गा का नौवां और अंतिम रूप माना जाता है।
माँ सिद्धिदात्री का ध्यान किया जाता है, जो अपने एक हाथ में कमंडलु और दूसरे हाथ में वरदान देने वाले शंख का आभूषण धारण करती हैं। उन्हें देखकर भक्तों को आत्मिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
नवमी के दिन भक्तों द्वारा माँ सिद्धिदात्री की पूजा, आराधना, और भजनों का गाया जाता है। इस दिन भक्तों को आत्मिक सिद्धियों, धन, सम्पत्ति, और सुख की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की जाती है। माँ सिद्धिदात्री की कृपा से उनके जीवन में सभी चुनौतियों का समाप्ति होता है और वे समृद्ध, सुखी, और सम्मानित जीवन जीते हैं।
शारदीय नवरात्रि (Sharadiy Navaratri) -
शारदीय नवरात्रि भारतीय हिंदू कैलेंडर के अनुसार आश्वयुज मास के शुक्ल पक्ष के प्रत्येक मास में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध पर्व है। यह पर्व नवरात्रि के रूप में भी जाना जाता है। यह नौ दिनों तक चलता है, जिसमें नौ रात्रों तक नौ दिव्य रूपों की पूजा की जाती है, जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है।
यह पर्व भगवान शक्ति की पूजा और मां दुर्गा के जन्म के अवसर के रूप में मनाया जाता है। नवरात्रि के दौरान, भक्त नौ रात्रियों तक व्रत रखते हैं, पूजा, भजन और कीर्तन करते हैं और मां दुर्गा की आराधना करते हैं। यह पर्व धर्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों के साथ-साथ समाज में आत्मिक उन्नति का भी प्रमुख संदेश देता है।
नवरात्रि के दौरान, लोगों ने खास रूप से नवरात्रि के नौ दिनों में अन्न, वस्त्र, और धन की दान करने का परंपरागत रूप से अनुसरण किया है। यह पर्व समाज में सामूहिक एकता, भाईचारा, और प्रेम को बढ़ावा देता है।
दुर्गा पूजा (Durga Puja) -
नवरात्रि में यह अवश्य करें (Navaratri Me Yah Avashy Kare) -
माँ दुर्गा की पूजा: नवरात्रि के दौरान माँ दुर्गा की पूजा करना महत्वपूर्ण है। आप प्रतिदिन नवदुर्गा के रूपों की पूजा कर सकते हैं और माँ की कृपा का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
व्रत और उपवास: बहुत से लोग नवरात्रि के दौरान व्रत और उपवास रखते हैं। इससे आत्मशुद्धि, ध्यान और साधना की भावना बढ़ती है।
ध्यान और मनन: माँ दुर्गा की महिमा को स्मरण करने और माँ के चरणों में अपने मन को समर्पित करने के लिए ध्यान और मनन करें।
सेवा और दान: नवरात्रि के दौरान गरीबों की सेवा करें और दान करें। यह आपके अधिकारिक और सामाजिक दायित्वों को पूरा करता है।
भजन और कीर्तन: माँ दुर्गा के भजन और कीर्तन करना अत्यंत शुभ होता है। इससे आपका मन प्रसन्न होता है और आप माँ की कृपा को प्राप्त करते हैं।
सत्य और न्याय का पालन: नवरात्रि के दौरान सत्य और न्याय का पालन करें। यह आपके जीवन में नये संरचनात्मक परिवर्तन ला सकता है।
नवरात्रि के इस अवसर पर आप इन गतिविधियों को अपनाकर आत्मिक और धार्मिक विकास का संचार कर सकते हैं।
नवरात्रि का महत्व (Importance of Navratri) -
नवरात्रि का इतिहास (History of Navratri) -
नवरात्रि के पर्व कैसे मनाया जाता है (How is Navratri Celebrated) -
नवरात्रि में खास प्रसाद (Special Prasad during Navratri) -
नवरात्रि के विभिन्न रूप (The Different Forms of Navratri) -
नवरात्रि के विभिन्न रूपों को "नवदुर्गा" के नौ रूपों के रूप में माना जाता है, जो भारतीय संस्कृति में माँ दुर्गा के नौ रूपों को प्रतिनिधित्व करते हैं। नवदुर्गा के नौ रूपों के नाम और उनके विवरण निम्नलिखित हैं:
मां शैलपुत्री: पहला रूप, शैलपुत्री, जिन्हें एक पर्वती और हिमवान की कन्या के रूप में पूजा जाता है।
माँ ब्रह्मचारिणी: दूसरा रूप, ब्रह्मचारिणी, जो तपस्या और साधना की प्रतिनिधित्व करती हैं।
माँ चंद्रघंटा: तीसरा रूप, चंद्रघंटा, जो शक्ति और विजय का प्रतीक हैं।
माँ कूष्माण्डा: चौथा रूप, कूष्माण्डा, जो सृष्टि का संरक्षक हैं और उन्हें पालने की क्षमता रखती हैं।
माँ स्कंदमाता: पांचवा रूप, स्कंदमाता, जो भगवान स्कंद की माँ के रूप में पूजा जाती हैं।
माँ कात्यायनी: छठा रूप, कात्यायनी, जो सती देवी के रूप में पूजा जाती हैं।
माँ कालरात्रि: सातवाँ रूप, कालरात्रि, जो अन्याय को ध्वस्त करने वाली हैं।
माँ महागौरी: आठवाँ रूप, महागौरी, जो शुद्धता और पवित्रता की प्रतिनिधित्व करती हैं।
माँ सिद्धिदात्री: नौवाँ रूप, सिद्धिदात्री, जो सिद्धि और समृद्धि की प्रतिनिधित्व करती हैं।
इन नौ रूपों की पूजा करने से नवरात्रि का पावन अवसर मनाया जाता है और माँ दुर्गा की कृपा को प्राप्त किया जाता है। नवरात्रि के इस पर्व के दौरान, लोग इन नौ रूपों की पूजा करते हैं, ध्यान करते हैं और उनका गान करते हैं।
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