वेदसार शिव स्तोत्रम् (Vedsar Shiv Stotram lyrics in Hindi) - Adi Shankaracharya Stotras by Madhvi Madhukar Jha - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind

 

वेदसार शिव स्तोत्रम् (Vedsar Shiv Stotram lyrics in Hindi) - 


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पशूनां पतिं पापनाशं परेशं 

गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।

जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं 

महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।1।


महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं 

विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।

विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं 

सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।2।


गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं 

गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।

भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं 

भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।3।


शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले 

महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।

त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: 

प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।4।


परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं 

निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।

यतो जायते पाल्यते येन विश्वं 

तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।5।


न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न 

चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।

न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न 

यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।6।


अजं शाश्वतं कारणं कारणानां 

शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।

तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं 

प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।7।


नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते 

नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।

नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य 

नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।8।


प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ 

महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।

शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे 

त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।9।


शंभो महेश करुणामय शूलपाणे 

गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।

काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि 

पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।10।


त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे 

त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।

त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश 

लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।11।


॥ इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितो 

वेदसारशिवस्तवः संपूर्णः ॥

वेदसार शिव स्तोत्रम् का अर्थ हिंदी में (Vedsar Shiv Stotram ka Arth in Hindi) - 


1. अर्थ - जो सम्पूर्ण प्राणियोंके रक्षक हैं, पापका ध्वंस करनेवाले हैं, परमेश्वर हैं, गजराजका चर्म पहने हुए हैं तथा श्रेष्ठ हैं और जिनके जटाजूटमें श्रीगंगाजी खेल रही हैं, उन एकमात्र कामारि श्रीमहादेवजीका मैं स्मरण करता हूँ। ॐ नमः शिवाय


2. अर्थ - चन्द्र, सूर्य और अग्नि – तीनों जिनके नेत्र हैं, उन विरूपनयन महेश्वर, देवेश्वर, देवदुःखदलन, विभु, विश्वनाथ, विभूतिभूषण, नित्यानन्दस्वरूप, पंचमुख भगवान् महादेवकी मैं स्तुति करता हूँ। ॐ नमः शिवाय


3. अर्थ - जो कैलासनाथ हैं, गणनाथ हैं, नीलकण्ठ हैं, बैलपर चढ़े हुए हैं, अगणित रूपवाले हैं, संसारके आदिकारण हैं, प्रकाशस्वरूप हैं, शरीरमें भस्म लगाये हुए हैं और श्रीपार्वतीजी जिनकी अर्द्धांगिनी हैं, उन पंचमुख महादेवजीको मैं भजता हूँ। ॐ नमः शिवाय


4. अर्थ - हे पार्वतीवल्लभ महादेव! हे चन्द्रशेखर! हे महेश्वर! हे त्रिशूलिन्! हे जटाजूटधारिन्! हे विश्वरूप! एकमात्र आप ही जगत्में व्यापक हैं। हे पूर्णरूप प्रभो! प्रसन्न होइये, प्रसन्न होइये। ॐ नमः शिवाय


5. अर्थ - जो परमात्मा हैं, एक हैं, जगत्के आदिकारण हैं, इच्छारहित हैं, निराकार हैं और प्रणवद्वारा जाननेयोग्य हैं तथा जिनसे सम्पूर्ण विश्वकी उत्पत्ति और पालन होता है और फिर जिनमें उसका लय हो जाता है उन प्रभुको मैं भजता हूँ। ॐ नमः शिवाय


6. अर्थ - जो न पृथ्वी हैं, न जल हैं, न अग्नि हैं, न वायु हैं और न आकाश हैं; न तन्द्रा हैं, न निद्रा हैं, न ग्रीष्म हैं और न शीत हैं तथा जिनका न कोई देश है, न वेष है, उन मूर्तिहीन त्रिमूर्तिकी मैं स्तुति करता हूँ। ॐ नमः शिवाय


7. अर्थ - जो अजन्मा हैं, नित्य हैं, कारणके भी कारण हैं, कल्याणस्वरूप हैं, एक हैं, प्रकाशकोंके भी प्रकाशक हैं, अवस्थात्रयसे विलक्षण हैं, अज्ञानसे परे हैं, अनादि और अनन्त हैं, उन परमपावन अद्वैतस्वरूपको मैं प्रणाम करता हूँ । ॐ नमः शिवाय


8. अर्थ - हे विश्वमूर्ते! हे विभो! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। हे चिदानन्दमूर्ते! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। हे तप तथा योगसे प्राप्तव्य प्रभो! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। हे वेदवेद्य भगवन्! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। ॐ नमः शिवाय


9. अर्थ - हे प्रभो! हे त्रिशूलपाणे! हे विभो! हे विश्वनाथ! हे महादेव! हे शम्भो! हे महेश्वर! हे त्रिनेत्र! हे पार्वतीप्राणवल्लभ! हे शान्त! हे कामारे! हे त्रिपुरारे! तुम्हारे अतिरिक्त न कोई श्रेष्ठ है, न माननीय है और न गणनीय है। ॐ नमः शिवाय


10.  अर्थ - हे शम्भो! हे महेश्वर! हे करुणामय! हे त्रिशूलिन्! हे गौरीपते! पशुपते! हे पशुबन्धमोचन! हे काशीश्वर! एक तुम्हीं करुणावश इस जगत्की उत्पत्ति, पालन और संहार करते हो; प्रभो! तुम ही इसके एकमात्र स्वामी हो। ॐ नमः शिवाय


11. अर्थ - हे देव! हे शंकर! हे कन्दर्पदलन! हे शिव! हे विश्वनाथ! हे ईश्वर! हे हर! हे चराचरजगद्रूप प्रभो! यह लिंगस्वरूप समस्त जगत् तुम्हींसे उत्पन्न होता है, तुम्हींमें स्थित रहता है और तुम्हींमें लय हो जाता है। ॐ नमः शिवाय


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