संध्या वंदन करने की सही विधि मंत्र सहित(Sandhya Vandan Mantra Lyrics) - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind


संध्या वंदन करने की सही विधि मंत्र सहित(Sandhya Vandan Mantra Lyrics):- 


संध्या वंदन करने की सही विधि मंत्र सहित(Sandhya Vandan Mantra Lyrics) - Bhaktilok


संध्या वंदन करने की सही विधि मंत्र सहित(Sandhya Vandan Karane Ki sahi Vidhi Mantra Sahit in Hindi and Sanskrit):- 


सन्ध्या येन न विज्ञाता सन्ध्या येनानुपासिता । 

जीवमानो भवेच्छूद्रो मृतश्च श्वाऽभिजायते ।।


(मरीचिः) :- 


उत्तमा तारकोपेता मध्यमा लुप्ततारका । 

अधमा सूर्यसहिता प्रातः सन्ध्या त्रिधा स्मृता ।।

उत्तमा सूर्यसहिता मध्यमा लुप्तभास्करा | 

अधमा तारकोपेता सायं सन्ध्या त्रिधा मता ।।


(आचारमयूखे):-


  1. अग्नितीर्थ - दाहिनी हथेली के मध्य भाग में ।
  2. ब्रह्मतीर्थ - अंगूठे के मूल भाग में । 
  3. देवतीर्थ - अंगुलियों के अग्रभाग
  4. कायतीर्थ - कनिष्ठा के मूल भाग में ।
  5. पितृतीर्थ - तर्जनी के मूल भाग में ।


रुद्राक्ष-माहात्म्यम् :- 


रुद्राक्षा यस्य गात्रेषु ललाटे च त्रिपुण्डकम् । 

स चाण्डालोऽपि सम्पूज्यः सर्ववोत्तमो भवेत् ।। 

अभक्तो वा विमक्तो वा नीचो नीचतरोऽपि वा । 

रुद्राक्षं धारयेद्यस्तु मुच्यते सर्वपातकैः ।।


सन्ध्या प्रयोग :- 

यथोक्त स्नान करने के पश्चात् श्वेत विना सिला हुआ, जो धोबी का धोया हुआ न हो, उस वस्त्र को पहन कर उपवस्त्र लेकर कुशा आदि विहित आसन पर पूर्व दिशा की ओर अपना मुखकर बैठ जाँय । हाथ में कुश अथवा सुवर्ण तथा चाँदी की अंगूठी धारण कर सन्ध्या करें ।


सर्व-प्रथम यज्ञीय भस्म को वाँयें हाथ में लेकर जल मिलाते हुए अधोलिखित मंत्र से अभिमन्त्रित करें-

ॐ अग्निरिति भस्म । ॐ वायुरिति भस्म । ॐ जलमिति भस्म । ॐ स्थलमिति भस्म । ॐ व्योमेति भस्म । ॐ सर्व हवा इदं भस्म । ॐ मन एतांसि चक्षूपि भस्मानीति ।




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