सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - षष्ठः स्कन्ध ( Bhagawat Mahapuran Six Skandh) :-
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - षष्ठः स्कन्ध - अथ प्रथमो अध्याय (Full Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ प्रथमो अध्यायः ) अजामिल उपाख्यान (Ajamil Upakhyan in Hindi):-
श्री सुखदेव जी बोले राजन बड़े-बड़े पापों का प्रायश्चित एकमात्र भगवान की भक्ति है इस विषय में महात्मा लोग एक प्राचीन इतिहास कहा करते हैं ! कान्यकुब्ज नगर में एक दासी पति ब्राह्मण रहता था उसका नाम अजामिल था वह ब्राह्मण कर्म से भ्रष्ट अखाद्य वस्तुओं का सेवन करने वाला पराए धन को छल कर लूटने वाला बड़ा अधर्मी था |
एक बार कुछ महात्मा उस पर कृपा करने को आए उसकी पत्नी गर्भवती थी महात्माओं ने ब्राह्मण से कहा अब जो पुत्र हो उसका नाम नारायण रख देना |
अजामिल ने अपने छोटे पुत्र का नाम नारायण रख दिया वह नारायण को बहुत प्यार करता था उसे बार-बार नारायण नाम लेकर बुलाता था , एक दिन उसे लेने के लिए यमदूत आ गए वे बडे भयंकर थे उन्हें देख घबराकर अजामिल ने नारायण को पुकारा भगवान के पार्षदों ने देखा यह अन्त समय में हमारे स्वामी भगवान का नाम ले रहा है वे भी वहां पहुंचे और यमदूतों को मार कर हटा दिया | और उनसे पूंछा तुम कौन हो इस पर यमराज के दूत बोले हम धर्मराज के दूत हैं, नारायण पार्षद बोले क्या तुम धर्म को जानते हो ? यमराज के दूत बोले जो वेदों में वर्णित है वही धर्म है , उससे जो विपरीत है वह अधर्म है |
हे देवताओं आप तो जानते हैं यह कितना पापी है, अपनी विवाहिता पत्नी को छोड़कर वैश्या के साथ रहता है, यह ब्राह्मण धर्म को छोड़ अखाद्य वस्तुओं का सेवन करता है, इसे हम धर्मराज के पास ले जाएंगे इसे दंड मिलेगा तब यह शुद्ध होगा |
इति प्रथमो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - षष्ठः स्कन्ध - अथ द्वितीयो अध्यायः (Full Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ द्वितीयो अध्यायः ) विष्णु दूतों द्वारा भागवत धर्म निरूपण और अजामिल का परमधाम गमन (Vishnu Duto Dwara Bhagawat Dhram Nirupan Aur Ajamil Ka Paramdham Gaman in Hindi): -
दूत बोले यमदूतो तुम नहीं जानते हो कि शास्त्रों में पापों के कई चंद्रायण व्रत आदि प्रायश्चित बताए हैं, फिर अंत समय में जो भगवान नारायण का नाम ले लेता है उससे बड़ा तो कोई प्रायश्चित है ही नहीं | इसलिए तुम अजामिल को छोड़ जाओ और जाकर अपने स्वामी से पूछो, इतना सुनकर यमदूत वहां से चले गए और भगवान के पार्षद भी अंतर्ध्यान हो गए तब अब अजामिल को ज्ञान हुआ यह क्या सपना था वह यमदूत कहां चले गए और भगवान के पार्षद भी कहां चले गए , उसे ज्ञान हो गया और वह घर छोड़कर हरिद्वार चला गया और भगवान का भजन करके भगवान को प्राप्त कर लिया |
इति द्वितीयो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - षष्ठः स्कन्ध - अथ तृतीयो अध्यायः (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ तृतीयो अध्यायः ) यम और यमदूतों का संवाद(Yam Aur YamDuton Ka Sanvad in Hindi)-
यमदूतों ने जाकर यमराज से पूछा स्वामी क्या आप से भी बड़ा कोई दंडाधिकारी है ? धर्मराज बोले हां भगवान नारायण सबके स्वामी हैं, उनके भक्तों के पास नहीं जाना चाहिए वह कितने भी पापी हो मेरे जैसे कई दंडाधिकारी उनके चरणों में नतमस्तक हैं |
इति तृतीयो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - षष्ठः स्कन्ध - अथ चतुर्थो अध्यायः (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ चतुर्थो अध्यायः ) दक्ष के द्वारा भगवान की स्तुति और भगवान का प्रादुर्भाव (Daksh Ke Dwara Bhagawan Ki Stuti Aur Bhagawan Ka Pradurbhav in Hindi):-
श्री शुकदेव जी बोले परीक्षित जब प्रचेताओं ने वृक्षों की कन्या मारीषा से विवाह किया उससे उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम हुआ दक्ष था, प्रजा के सृष्टि के लिए उसने अघमर्षण तीर्थ में जाकर तपस्या की, हंसगुह्य नामक स्तोत्र से भगवान की स्तुति की जिससे प्रसन्न होकर भगवान उसके सामने प्रकट हो गए और बोले दक्ष मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूँ, यह पंचजन्य प्रजापति की कन्या अस्क्नि है तुम इसे पत्नी के रूप में स्वीकार करो जिससे तुम बहुत सी प्रजा उत्पन्न कर सकोगे , इतना कह भगवान अंतर्धान हो गए |
इति चतुर्थो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - षष्ठः स्कन्ध - अथ पंचमो अध्यायः (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ पंचमो अध्यायः ) नारद जी के द्वारा दक्ष पुत्रों की विभक्ति तथा नारदजी को दक्ष का श्राप (Narad Ji Ke Dwara Daksh putro Ki Vibhakti Tatha Naradji Ko Daksh Ka Shrap in Hindi): -
श्री शुकदेव जी बोले दक्ष ने असिक्नि के गर्भ से दस हजार पुत्र पैदा किए, यह सब हर्यश्व कहलाए ये सब नारायणसर नामक तीर्थ में जाकर तपस्या करने लगे तो नारद जी आए और बोले हर्यश्वो तुम सृष्टि रचना के लिए तप कर रहे हो, क्या तुमने पृथ्वी का अंत देखा है, क्या तुम जानते हो एक ऐसा देश है जिसमें एक ही पुरुष है, एक ऐसा बिल है जिससे निकलने का रास्ता नहीं है, एक ऐसी स्त्री है जो बहूरूपड़ी है, एक ऐसा पुरुष है जो व्यभिचारिणी का पति है, एक ऐसी नदी है जो दोनों ओर बहती है , ऐसा घर है जो पच्चीस चीजों से बना है, एक ऐसा हंस है जिसकी कहानी बड़ी विचित्र है, एक ऐसा चक्र है जो छूरे और वज्र से बना है जो घूमता रहता है इन सब को जब तक देख ना लोगे कैसे सृष्टि करोगे ? हर्यश्व नारद जी की पहेली को समझ गए कि उपासना के योग्य तो केवल एक नारायण ही है वह उस परमात्मा की उपासना कर परम पद को प्राप्त हो गए |
दक्ष को मालूम हुआ तो उसे बड़ा दुख हुआ उसने एक हजार पुत्रों को जन्म दिया और वह भी तपस्या करने गए नारद जी के उपदेश से उन्होंने भी बड़े भाइयों का अनुसरण किया, तब दक्ष को बड़ा क्रोध आया उसने नारद जी को श्राप दे दिया तुम कहीं भी एक जगह पर नहीं टिक सकोगे, संसार में घूमते रहोगे | इससे नारद जी बड़े प्रसन्न हुए |
इति पंचमो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - षष्ठः स्कन्ध - अथ षष्ठो अध्यायः (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ षष्ठो अध्यायः ) दक्ष की साठ कन्याओं का वंश वर्णन (Daksh ki Sath Kanyaon Ka Vansh Ka Varanan in Hindi): -
अपने ग्यारह हजार पुत्रों के विरक्त हो जाने पर दक्ष ने अपनी भार्या से साठ कन्याएं पैदा की इनको उन्होंने दस धर्म को, तेरह कश्यप को, सत्ताइस चंद्रमा को, दो भूतों को, दो अंगिरा को, दो कृश्वास को, शेष तार्कक्ष्य नाम धारी कश्यप को ही ब्याह दी इनकी संतानों से सृष्टि का बहुत विस्तार हुआ |
इति षष्ठो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - षष्ठः स्कन्ध - अथ सप्तमो अध्यायः (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ सप्तमो अध्यायः ) बृहस्पति जी के द्वारा देवताओं का त्याग और विश्वरूप को देवगुरु के रूप में वरण (Brihaspati ji Ke Dwara Devatao Ka Tyag Aur visvrup Ko Devguru Ke Rup Me varan in hindi)-
श्री शुकदेव जी बोले परीक्षित त्रिलोकी का ऐश्वर्य पाकर देवराज इंद्र को घमंड हो गया था, इसलिए वे मर्यादाओं का उल्लंघन करने लगे |
एक समय की बात है जब देवराज इंद्र अपनी सभा में ऊंचे सिंहासन पर अपनी पत्नी सची देवी के साथ बैठे थे तभी गुरु बृहस्पति वहां आ गए उन्हें देख इन्द्र ना तो खड़ा हुआ ना ही उनका कोई सम्मान किया, यह देख बृहस्पति जी वहां से चुपचाप चल दिए कुछ देर बाद इंद्र को चेत हुआ, उन्होंने बृहस्पति को ढुड़ावाया पर वह कहीं नहीं मिले, इस पर इंद्र को बड़ा दुख हुआ इस बात का पता राक्षसों को लग गया उन्होंने देवताओं पर चढ़ाई कर दी और उन्हें भगा दिया |
सब देवता ब्रह्मा जी की शरण में गए ब्रह्मा जी ने पहले तो उनसे बहुत बुरा भला कहा और फिर कहा जाओ शीघ्र ही त्वष्टा के पुत्र विश्वरूप को अपना गुरु बनाओ, सभी देवता विश्वरूप के पास पहुंचे और उन्हें अपना पुरोहित बना लिया, विश्वरूप ने ब्रम्हविद्या के द्वारा देवताओं का स्वर्ग उन्हें दिला दिया |
इति सप्तमो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - षष्ठः स्कन्ध - अथ अष्टमो अध्यायः (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ अष्टमो अध्यायः ) नारायण कवच का उपदेश (Narayan Kavach Ka Upadesh in Hindi): -
विष्णु गायत्री में भगवान के तीन नाम प्रधान हैं -
नारायण विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु प्रचोदयात ||
नारायण वासुदेव और विष्णु इन तीनों के तीन मंत्र ओम नमो नारायणाय अष्टाक्षक मंत्र, ओम नमो भगवते वासुदेवाय द्वादश अक्षर मंत्र , तीसरा ॐ विष्णवे नमः षडाक्षर मंत्र इन तीनों मंत्रों के एक-एक अक्षर का अपने अंगों में न्यास करें फिर अन्य नाम जो कवच में है उन नामों को अपने अंगों में रक्षा के लिए प्रतिष्ठित करें यह भगवान के नामों का बड़ा उत्तम कवच है |
इति अष्टमो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - षष्ठः स्कन्ध - अथ नवमों अध्यायः (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ नवमों अध्यायः ) विश्वरूप का वध वृत्रासुर द्वारा देवताओं की हार भगवान की प्रेरणा से देवताओं का दधीचि ऋषि के पास जाना (VishRup Ka Vadh Vritrasur Dwara Devtao Ki Haar in hindi, Bhagavan Ki Prerana Se Devatao Ka Dadhichi Rishi Ke Paas Jaana in Hindi): -
श्री शुकदेव जी बोले विश्वरूप के तीन सिर थे एक से देवताओं का सोम रसपान करते, दूसरे से सुरा पान करते, तीसरे से अन्न खाते थे | वे यज्ञ के समय उच्च स्वर से देवताओं को आहूति देते और चुपके से राक्षसों को भी आहुति देते क्योंकि उनकी माता राक्षस कुल की थी |.
जब इंद्र को इस बात का पता चला उन्होंने वज्र से विश्वरूप के तीनों सिर काट दिए जिससे उन्हें ब्रहम हत्या का दोष लगा | उसे उन्होंने चार हिस्सों में एक जल को दूसरा पृथ्वी को तीसरा वृक्षों को चौथा स्त्रियों को बांट दिया |
जब विश्वरूप के पिता को मालूम हुआ तो उन्होंने एक तामसिक यज्ञ किया है, इंद्र शत्रु तुम्हारी अभिवृद्धि हो और शीघ्र ही तुम अपने शत्रु को मार डालो यज्ञ के बाद अग्नि से एक भयंकर दैत्य पैदा हुआ उसका नाम था वृत्तासुर उसने त्रिलोकी को अपने वश में कर लिया, उससे घबराकर सब देवता भगवान की शरण में गए , भगवान बताये तुम दधीचि के पास जाओ और उनसे उनकी हड्डियों की याचना करो उसी से वज्र बनाकर वृत्त्तासुर से युद्ध करो, तब वह राक्षस मारा जाएगा |
इति नवमो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - षष्ठः स्कन्ध - अथ दशमो अध्यायः (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ दशमो अध्यायः ) देवताओं द्वारा दधीचि ऋषि की अस्थियों से वज्र निर्माण और वृत्तासुर की सेना पर आक्रमण (Devatao Dwara Dadhichi Rishi Ki Asthiyon Se Vraj Nirman Aur Vritasur Ki Sena Par Akarman in hindi): -
भगवान की ऐसी आज्ञा सुन देवता दधीचि ऋषि के पास पहुंचे और उनसे उनकी अस्थियों की याचना की, ऋषि ने भगवान की आज्ञा जान योगाग्नि से अपना शरीर दग्ध कर अपनी अस्थियां देवताओं को दे दी | देवताओं ने उससे अनेक शस्त्रों का निर्माण किया और वृत्रासुर पर टूट पड़े |
शत्रुओं ने भी खूब बांण बरसाए पर वे देवताओं को छू भी नहीं सके तो राक्षस सेना तितर-बितर होने लगी तो वृत्रासुर अपने सैनिकों को कहने लगा सैनिकों जिसने संसार में जन्म लिया है अवश्यंभावी है कि वह मरेगा फिर ऐसा मौका क्यों खोते हो वीरगति को प्राप्त होकर स्वर्ग प्राप्त करोगे |
इति दशमो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - षष्ठः स्कन्ध - अथ एकादशो अध्यायः (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ एकादशो अध्यायः ) वृत्रासुर की वीर वाणी और भगवत प्राप्ति (Vritasur Ki veer vaani Aur Bhagawat Prapti in Hindi): -
बृत्रासुर ने देखा कि उसकी सेना रोकने पर भी नहीं रुक रही है, उसने अकेले ही देवसेना का मुकाबला किया एक हुंकार ऐसी लगाई जिससे सारी देवसेना भयभीत होकर गिर गई और उसे रौदनें लगा, इंद्र ने उसे रोका तो एरावत को गिरा दिया और स्वयं भगवान की प्रार्थना करने लगा-
अहं हरेतव पादेक मूल दासानुदासो भवितास्मि भूयः |
मनः स्मरेतासुपते र्गुणास्ते गृणीत वाक् कर्म करोतु कायः ||
हे प्रभु आप मुझ पर ऐसी कृपा करें अनन्य भाव से आपके चरण कमलों के आश्रित सेवकों की सेवा करने का मुझे मौका अगले जन्म में प्राप्त हो , मेरा मन आपके मंगलमय गुणों का स्मरण करता रहे और मेरी वाणी उन्हीं का गान करे | शरीर आपकी सेवा में लग जाए |
इति एकादशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - षष्ठः स्कन्ध - अथ द्वादशो अध्यायः (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ द्वादशो अध्यायः ) वृत्रासुर का वध (Vritasur Ka Vadh in Hindi): -
वृत्रासुर बड़ा वीर है और भगवान का भक्त भी वह भगवान की प्रार्थना कर युद्ध में वीरगति को प्राप्त होना चाहता था ताकि वह भगवान को प्राप्त हो सके , युद्ध में उसने इंद्र को निशस्त्र कर दिया पर उसे मारा नहीं इंद्र वज्र उठाकर अपने शत्रु को मार डालो इन्द्र ने गदा उठाकर बृत्रासुर पर प्रहार किया और बृत्रासुर का वध कर दिया |
इति द्वादशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - षष्ठः स्कन्ध - अथ त्रयोदशो अध्यायः (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ त्रयोदशो अध्यायः ) इंद्र पर ब्रहम हत्या का आक्रमण (Indra Par Bramh Hatya Ka aakrman in Hindi): -
ब्रह्महत्या के भय से इंद्र वृत्रासुर को मारना नहीं चाहता था किंतु ऋषियों ने जब कहा कि इंद्र ब्रहम हत्या से मत डरो हम अश्वमेघ यज्ञ कराकर तुम्हें उससे मुक्त करा देंगे तब इंद्र ने वृत्रासुर को मारा था, जब ब्रह्महत्या इंद्र के सामने आई तो ऋषियों ने उसे अश्वमेघ यज्ञ के द्वारा मुक्त कराया |
इति त्रयोदशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - षष्ठः स्कन्ध - अथ चतुर्दशो अध्यायः (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ चतुर्दशो अध्यायः ) वृत्रासुर का पूर्व चरित्र- (Vritasur Ka Purv Charitra in Hindi): -
राजा परीक्षित बोले भगवन बृत्रासुर तो बड़ा तामसिक था उसकी भगवान के चरणों में ऐसी बुद्धि कैसे हुई ? शुकदेव जी बोले मैं तुम्हें एक प्राचीन इतिहास सुनाता हूं सूरसेन देश में एक चक्रवर्ती सम्राट चित्रकेतु राज्य करते थे उनके एक करोड़ पत्नियां थी परंतु किसी के भी संतान नहीं थी एक बार अंगिरा ऋषि उनके यहां आए राजा ने उनकी पूजा की ऋषि ने राजा की कुशल पूछी तो चित्रकेतु ने कहा प्रभु आप त्रिकालग्य हैं सब जानते हैं, कि सब कुछ होते हुए भी मेरे कोई संतान नहीं है , कृपया आप मुझे संतान प्रदान करें | इस पर ऋषि त्वष्टा ने देवता का यजन करवाया जिससे उसकी छोटी रानी कृतद्युति को एक पुत्र की प्राप्ति हुई , जिसे सुनकर प्रजा में खुशी की लहर दौड़ गई |
रानियों को इससे ईर्ष्या हो गई और उन्होंने समय पाकर बालक को जहर दे दिया पालने में सोते हुए बालक को जब दासी ने देखा वह जोर-जोर रोने लगी उसने उसके रोने की आवाज सुनी कृतद्युति वहां आई और जब देखा कि पुत्र मर गया तो रोने लगी, जब राजा को मालूम हुआ वह भी रोने लगा | तब अंगिरा ऋषि नारद जी के साथ वहां आए |
इति चतुर्दशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - षष्ठः स्कन्ध - अथ पंचदशो अध्यायः (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ पंचदशो अध्यायः ) चित्रकेतु को अंगिरा और नारद जी का उपदेश (ChitrKetu Ko Angira Aur Narad ji Ka Updesh in Hindi):-
राजा चित्रकेतु को यों विलाप करते देख दोनों ऋषि उन्हें समझाने लगे राजन इस संसार में जो आता है वह जाता भी अवश्य है, फिर किसी जीव के साथ हमारा कोई संबंध नहीं है, किसी जन्म में कोई बाप बन जाता है कोई बेटा, दूसरे जन्म में वही बेटा बाप और बाप बेटा बन जाता है |इसीलिए शोक छोड़ कर मैं जो मंत्र देता हूं उसे सुनो इससे सात रात में तुम्हें संकर्षण देव के दर्शन होंगे उनके दर्शन से तुम्हें परम पद प्राप्त होगा |
इति पंचदशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - षष्ठः स्कन्ध - अथ शोडषो अध्यायः (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ शोडषो अध्यायः ) चित्रकेतु को वैराग्य और संकर्षण देव के दर्शन (ChitrKetu Ko Vairgya Aur Sankarshan Dev ke Darshan in Hindi): -
शुकदेव बोले राजन ! तदन्तर नारद जी ने मृत शरीर में उस जीव को बुलाया और कहा जीवात्मन देखो तुम्हारे लिए यह तुम्हारे माता-पिता दुखी हो रहे हैं, तुम इस शरीर में रहो और उन्हें सुख पहुंचाओ और तुम भी राजा बनकर सुख भोगो | इस पर जीव बोलने लगा--
कस्मिन् जन्मन्यमी मह्यम पितरं मातरोभवन् |
कर्मभि भ्राम्यमाणस्य देवतिर्यन्नृयोनिषु ||
जीव बोला देवर्षि मैं अपने कर्मों के अनुसार देवता, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि योनियों में भटकता रहा हूं यह मेरे किस जन्म के माता-पिता है प्रत्येक जन्मों में रिश्ते बदलते रहते हैं | ऐसा कह कर चला गया चित्रकेतु को ज्ञान हो गया वह नारद जी के दिए हुए मंत्र का जप करने लगा उसे संकर्षण देव के दर्शन हुए राजा ने उनकी स्तुति की | भगवान बोले-- राजन् नारद जी के इस ज्ञान को हमेशा धारण करें कल्याण होगा |
इति शोडषो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - षष्ठः स्कन्ध - अथ सप्तदशो अध्यायः (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ सप्तदशो अध्यायः ) चित्रकेतु को पार्वती का श्राप (ChitrKetu Ko Parwati Ka Shrap in Hindi): -
भगवान संकर्षण से अमित शक्ति प्राप्त कर चित्रकेतु आकाश मार्ग में स्वच्छंद विचरण करने लगा , एक दिन वह कैलाश पर्वत पर गया जहां बड़े-बड़े सिद्ध चारणों की सभा में शिवजी पार्वती को गोद में लेकर बैठे थे उन्हें देख चित्रकेतु जोर जोर से हंसने लगा और बोला अहो यह सारे जगत के धर्म शिक्षक भरी सभा में पत्नी को गोद में लेकर बैठे हैं | यह सुन शिवजी तो हंस दिए किंतु पार्वती से यह सहन नहीं हुआ और क्रोध कर बोली रे दुष्ट जा असुर हो जा , चित्रकेतु नें दोनों से क्षमा याचना की और आकाश मार्ग से चला गया |
इति सप्तदशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - षष्ठः स्कन्ध - अथ अष्टादशो अध्यायः (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ अष्टादशो अध्यायः ) अदिति और दिति की संतानों की तथा मरुद्गणों की उत्पत्ति का वर्णन (Aditi Aur Diti ki Santano Ki tatha MaruDuno Ki utpatti Ka Varnan in Hindi): -
श्री शुकदेव जी बोले राजन दिति के दोनों पुत्र हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यपु को भगवान की सहायता से इंद्र ने मरवा दिए तो अतिदि को इंद्र पर बड़ा क्रोध आया और उसे मरवाने की सोचने लगी, उसने सेवा कर कश्यप जी को प्रसन्न किया और उनसे इंद्र को मारने वाला पुत्र मांगा इस पर कश्यप जी ने उन्हें एक व्रत बताया जिसका नाम है पुंसवन व्रत उसके कुछ कठिन नियमों के साथ संध्या के समय जूठे मुंह बिना आचमन किए बिना पैर धोए ना सोना आदि नियम बताए |
दिति उसको करने लगी इंद्र को इसका आभास हो गया था वेश बदलकर ब्रह्मचारी का रूप बना दिति की सेवा करने लगा और यह मौका देखने लगा कि कब उसका नियम खंडित हो | एक दिन उसको यह मौका मिल गया दिति संध्या के समय बिना आचमन किये बिना पैरों को धुले सो गई |
यह देख इन्द्र उसके अंदर गर्भ मे प्रवेश किया और दिति के गर्भ के सात टुकड़े कर दिए तो अलग-अलग जीवित होकर रोने लगे, इस पर इन्द्र सात के सात-सात टुकड़े कर दिए, वह उनच्चास जीवित होकर इंद्र से बोले इंद्र हमें मत मारो हम देवता हैं, इंद्र बड़ा प्रसन्न हुआ अपने भाइयों को साथ ले दिति के गर्भ से बाहर आ गया, दिति ने देखा इंद्र के साथ उनच्चास पुत्र खड़े हैं और पेट में कोई बालक नहीं है | उसे बड़ा आश्चर्य हुआ और इंद्र से बोली बेटा सच सच बताओ यह क्या रहस्य है ? इन्द्र ने सब कुछ सही सही बता दिया और कहा माता अब ये सब देवता हो गए , दिति ने भगवान की इच्छा समझ उनको विदा कर दिया |
इति अष्टादशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - षष्ठः स्कन्ध - अथ एकोनविंशो अध्यायः (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ एकोनविंशो अध्यायः ) पुंसवन ब्रत की विधि (Punsavan vrat ki Vidhi in Hindi): -
श्री शुकदेव जी बोले हे राजन पुंसवन व्रत मार्गशीर्ष शुक्ला प्रतिपदा से प्रारंभ होता है , पहले पति की आज्ञा ले मरुद्गणों की कथा सुने फिर ब्राह्मणों की आज्ञा ले व्रत प्रारंभ करें स्नानादि कर लक्ष्मी नारायण की पूजा करें और निम्न मंत्र का जप करें--
ॐ नमो भगवते महापुरुषाय महानुभावाय महाविभूति पतये सहमहाविभूतिभिर्बलि मुपहराणि || संध्या के समय इस मंत्र से हवन करे इससे सब प्रकार की सिद्धि प्राप्त होती है |
इति एकोनविंशो अध्यायः
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