सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) | Bhagwat Katha -
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सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - प्रथमो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ प्रथमो अध्यायः) स्वायम्भुव मनु की कन्याओं के वंश का वर्णन (Svaymbhuv Manu Ki Kanyaao Ke Vansh Ka Varnan in Hindi):-
स्वायंभू मनु के दो पुत्र उत्तानपाद और प्रियव्रत के अलावा तीन पुत्रियां भी थी देवहूति, आकूति और प्रसूति | आकूति रुचि प्रजापति को पुत्रिका धर्म के अनुसार ब्याह दी जिससे यज्ञ नारायण भगवान का जन्म हुआ दक्षिणा देवी से इनको बारह पुत्र हुये |
तीसरी कन्या प्रसूति दक्ष प्रजापति को ब्याह दी जिससे शोलह पुत्रियां हुई, जिनमें तेरह धर्म को, एक अग्नि को, एक पितृ गणों को और एक शिव जी को ब्याह दी | धर्म की पत्नी मूर्ति से नर नारायण का अवतार हुआ, अग्नि के पर्व, पवमान आदि अग्नि पैदा हुए, पितृगण से धारण और यमुना दो पुत्रियां हुई |
इति प्रथमो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - द्वितीयो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ द्वितीयो अध्यायः) भगवान शिव और दक्ष प्रजापति का मनोमालिन्य(Bhagawan Shiv Aur Daksh Prajapati Ka Manomaliny in Hindi):-
एक बार प्रजापतियों के यज्ञ में बड़े-बड़े देवता ऋषि देवता आदि आए, उसी समय प्रजापति दक्ष ने सभा में प्रवेश किया उन्हें आया देख ब्रह्मा जी और शिव जी के अलावा सब ने उठकर उनका सम्मान किया |
दक्ष ने ब्रह्मा जी को प्रणाम कर आसन ग्रहण किया , किंतु शिवजी को बैठा देख वह क्रोधित हो उठा और कहने लगा देवता महर्षियों मेरी बात सुनो मैं कोई ईर्ष्या वश नहीं कह रहा हूं , यह निर्लज्ज महादेव समस्त लोकपालों की कीर्ति को धूमिल कर रहा है |
इस बंदर जैसे मुंह वाले को मैंने ब्रह्मा जी के कहने पर मेरी कन्या दे दी थी, इस तरह यह मेरे पुत्र के समान है इसने मेरा कोई सम्मान नहीं किया , अस्थि चर्म धारण करने वाला , श्मशान वासी को मैं श्राप देता हूं आज से इसका यज्ञ में भाग बंद हो जाए |
यह सुन शिवजी के जो गण थे , नंदी ने भी दक्ष को श्राप दे दिया इसका मुंह बकरे का हो जाए, साथ ही उन ब्राह्मणों को भी श्राप दिया जिन्होंने दक्ष का समर्थन किया था , कि वे पेट पालने के लिए ही वेद आदि पड़े | इस प्रकार जब भृगु जी ने सुना तो उन्होंने भी श्राप दे दिया कि शिव के अनुयाई शास्त्र विरुद्ध पाखंडी हों यह सुन शिवजी उठकर चल दिए |
इति द्वितीयो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - तृतीयो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ तृतीयो अध्यायः)सती का पिता के यहां यज्ञोउत्सव में जाने के लिए आग्रह करना (Sati Ka Pita Ke Yanha Yaghoutsav Me Jaane Ke Liye Aagrah Karana in Hindi):-
ब्रह्मा जी ने दक्ष को प्रजापतियों का अधिपति बना दिया, तब तो दक्ष और गर्व से भर गए और उन्होंने शिव जी का यज्ञ भाग बंद करने के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया, बड़े-बड़े ऋषि देवता उसमें आने लगे, किंतु शिव जी को निमंत्रण नहीं था अतः वे नहीं गए |
जब सती ने देखा कि उसके पिता के यहां यज्ञ है जिसमें सब जा रहे हैं, तो शिवजी से उन्होंने भी जाने का आग्रह किया | सती जानती थी कि उनके यहां निमंत्रण नहीं है फिर भी पिता के यहां बिना बुलाए भी जाने का दोष नहीं है, ऐसा कह कर आग्रह करने लगी , शिव जी ने सती को समझाया कि आपस में द्वेष होने की स्थिति में ऐसा जाना उचित नहीं है, क्योंकि तुम्हारा वहां अपमान होगा उसे तुम सहन नहीं कर सकोगी |
इति तृतीयो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - चतुर्थो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ चतुर्थो अध्यायः) सती का अग्नि में प्रवेश (Sati Ka Agni Me Prvesh in Hindi):-
शिवजी के इस प्रकार मना कर देने के बाद भी वह कभी बाहर कभी भीतर आने जाने लगी, और अंत में शिव जी की आज्ञा ना मान पिता के यज्ञ की ओर प्रस्थान किया | जब शिवजी ने देखा कि सती उनकी आज्ञा की अनदेखी करके जा रही हैं, होनी समझ नंदी के सहित कुछ गण उनके साथ कर दिए, सती नंदी पर सवार होकर गणों के साथ दक्ष के यहां पहुंची |
वहां उससे माता तो प्रेम से मिली किंतु पिता ने कोई सम्मान नहीं किया, फिर यज्ञ मंडप में जाकर देखा कि यहां शिवजी का कोई स्थान नहीं है, सती ने योगाग्नि से अपने शरीर को जलाकर भस्म कर दिया | शिव के गण यज्ञ विध्वंस करने लगे तो भृगु जी ने यज्ञ की रक्षा की और शिव गणों को भगा दिया |
इति चतुर्थो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - पंचमो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ पंचमो अध्यायः) वीरभद्र कृत दक्ष यज्ञ विध्वंस और दक्ष वध (Veerbhadra Krit DakshYagh Vidhvansh Aur Daksh Vadh in Hindi):-
जब शिवजी को ज्ञात हुआ कि सती ने अपने प्राण त्याग दिए और उनके भेजे हुए गणों को भी मार कर भगा दिएं, तब उन्होंने क्रोधित होकर वीरभद्र को भेजा |
लंबी चौड़ी आकृति वाला वीरभद्र क्रोधित होकर अन्य गणों के साथ दक्ष यज्ञ में पहुंचकर यज्ञ विध्वंस करने लगे | मणिमान ने भृगु जी को बांध लिया, वीरभद्र ने दक्ष को कैद कर लिया, चंडीश ने पूषा को पकड़ लिया , नंदी ने भग देवता को पकड़ लिया |
दक्ष का सिर काट दिया और उसे यज्ञ कुंड में हवन कर दिया , भृगु की दाढ़ी मूछ उखाड़ ली, पूषा के दात तोड़ दिए यज्ञ में हाहाकार मच गया सब देवता यज्ञ छोड़कर भाग गए वीरभद्र कैलाश को लौट आए |
इति पंचमो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - षष्ठो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ षष्ठो अध्यायः) ब्रह्मादिक देवताओं का कैलाश जाकर श्री महादेव को मनाना(Bramhadik Devtaao Ka Kailash Jaakar Shri Mahadev Ko Manana in Hindi):-
जब देवताओं ने देखा कि शिवजी के गणों ने सारे यज्ञ को विध्वंस कर दिया वह ब्रह्मा जी के पास गए और जाकर सारा समाचार सुनाया , ब्रह्मा जी और विष्णु भगवान यह सब जानते थे इसलिए वे यज्ञ में नहीं आए थे |
ब्रह्माजी बोले देवताओं शिव जी का यज्ञ भाग बंद कर तुमने ठीक नहीं किया अब यदि तुम यज्ञ पूर्ण करना चाहते हो तो शिवजी से क्षमा मांग कर उन्हें मनावे , ऐसा कहकर ब्रह्माजी सब देवताओं को साथ लेकर कैलाश पर पहुंचे, जहां शिवजी शांत मुद्रा में बैठे थे |
ब्रह्मा जी को देखकर वे उठकर खड़े हो गए और ब्रह्मा जी को प्रणाम किया ब्रह्मा जी ने शिव जी से कहा देव बड़े लोग छोटों की गलती पर ध्यान नहीं देते , अतः चलकर दक्ष के यज्ञ को पूर्ण करें , दक्ष को जीवनदान दें, भृगु जी की दाढ़ी मूंछ, भग को नेत्र, पूषा को दांत प्रदान करें , यज्ञ के बाद जो शेष रहे आपका भाग हो |
इति षष्ठो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - सप्तमो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ सप्तमो अध्यायः) दक्ष यज्ञ की पूर्ति (Daksh Yagy Ki Purti in Hindi):-
ब्रह्मा जी के कहने पर शिवजी दक्ष यज्ञ में पहुंचे और बोले भग देवता मित्र देवता के नेत्रों से अपना यज्ञ भाग देखें, पूषा देवता यजमान के दातों से खाएं, दक्ष का सिर जल गया है अतः उसे बकरे का सिर लगा दिया जाए |
ऐसा करते ही दक्ष उठ कर खड़ा हो गया, उसे सती के मरण से बड़ा दुख हुआ उसने शिवजी की स्तुति की , यज्ञ प्रारंभ हुआ जो ही भगवान नारायण के नाम से आहुति दी वहां भगवान नारायण प्रगट हो गए | जिन्हें देख सब देवता खड़े हो गए और सब ने भगवान की अलग-अलग स्तुति की |
मैत्रेय जी बोले विदुर जी शिव जी का यह चरित्र बड़ा ही पावन है |
इति सप्तमो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - अष्टमो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ अष्टमो अध्यायः) ध्रुव का वन गमन (Dhruv Ka Van Gaman in Hindi):-
स्वयंभू मनु की तीन पुत्रियों की कथा आप सुन चुके हैं , उनके दो पुत्र हैं उत्तानपाद और प्रियव्रत ! उत्तानपाद के दो रानियां हैं सुरुचि और सुनीति , राजा को सुरुचि अधिक प्रिय है जिनका पुत्र है उत्तम |
सुनीति के पुत्र का नाम ध्रुव है , एक समय राजा सुरुचि के पुत्र उत्तम को गोद में लेकर राज सिंहासन पर बैठे थे कि ध्रुव खेलते खेलते कहीं से आ गए राजा ने उन्हें भी उठाकर राज सिंहासन पर बैठा लिया, यह देख सुरुचि ने उसे सिंहासन से खींच कर नीचे डाल दिया और कहा तुम राज सिंहासन के अधिकारी नहीं हो , यदि तुम राज सिंहासन पर बैठना चाहते हो तो वन में जाकर नारायण की उपासना करो और मेरे गर्भ में आकर जन्म लो, तब तुम सिंहासन पर बैठ सकते हो |
चोट खाए हुए सांप की तरह बालक ,वह रोता हुआ बालक ध्रुव अपनी माता के पास आया रोते-रोते सारी बात माता को बता दी, माता ने बालक को कहा बेटा विमाता ने जो कुछ कहा वह सत्य है, एकमात्र नारायण ही सब की मनोकामना पूर्ण करते हैं |
माता के ऐसे वचन सुनकर वह वन को चल दिए, रास्ते में नारद जी मिले ,नारद जी ध्रुव से बोले बेटा अभी तो तेरे खेलने के दिन हैं, भजन तो चौथे पन में किया जाता है फिर वन में हिंसक पशु रहते हैं वह तुम्हें खा जाएंगे | ध्रुव बोले चौथापन नहीं आया तो भजन कब करेंगे और जब भगवान रक्षक हैं तो हिंसक पशु कैसे खा जाएंगे |
ध्रुव का अटल विश्वास देख नारद जी ने ध्रुव को द्वादशाक्षर मंत्र दिया और कहा यमुना तट पर मधुबन में जाकर इसका जाप करें , वह मधुवन में पहुंचकर उपासना में लीन हो गए |
तीन-तीन दिन में केवल कैथ और बैल खाकर भजन करने लगे , दूसरे महीने में छः छः दिन में केवल सूखे पत्ते खाकर भजन किया, तीसरे महीने में नव नव दिन में केवल जल पीकर भजन किया, चौथे महीने में बारह बारह दिन में वायु पीकर भजन किया।
पांचवे महीने में ध्रुव ने स्वास को जीतकर भगवान की आराधना शुरू की, जिससे संसार की प्राणवायु रुक गई , सब लोग संकट में पड़ गए तो भगवान की शरण में गए और भगवान से बोले हमारा श्वास रुक गया है हमारी रक्षा करें | भगवान बोले देवताओं यह उत्तानपाद पुत्र ध्रुव की तपस्या का प्रभाव है, मैं अभी जाकर उसे तपस्या से निवृत्त करता हूं |
इति अष्टमो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - नवमो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ नवमो अध्यायः) ध्रुव का वर पाकर घर लौटना (Dhruv Ka Var paakar Ghar Lautana in Hindi):-
मैत्रेय जी बोले विदुर जी जिस समय ध्रुव जी भगवान का हृदय में ध्यान कर रहे थे भगवान उनके सामने आकर खड़े हो गए किंतु ध्रुव जी की समाधि नहीं खुली तो भगवान ने अपना स्वरूप हृदय से खींच लिया, व्याकुल होकर उनकी समाधि खुल गई सामने भगवान को देख वे दंड की तरह भगवान के चरणों में गिर गए |
भगवान ने उन्हें उठाकर अपने हृदय से लगा लिया ध्रुव जी कुछ स्तुति करना चाहते थे , पर वे जानते नहीं कि कैसे करें तभी भगवान ने अपना शंख ध्रुव जी के कपोल से छू दिया वे स्तुति करने लगे----
योन्तः प्रविश्य मम वाचमिमां प्रसुप्तां
संजीव यत्यखिल शक्ति धरः स्वधाम्ना |
अन्यांश्च हस्त चरण श्रवणत्वगादीन्
प्राणान्नमो भगवते पुरुषाय तुभ्यम् ||
ध्रुव बोले हे प्रभो आपने मेरे हृदय में प्रवेश कर मेरे सोती हुई वाणी को जगा दिया , आप हाथ पैर कान और त्वचा आदि इंद्रियों एवं प्राणों को चेतना देते हैं | मैं आपको प्रणाम करता हूं |
ध्रुव के इस प्रकार स्तुति सुनी तो भगवान बोले भद्र तेजो मय अविनाशी लोक जिसे अब तक किसी ने प्राप्त नहीं किया, जिसके ग्रह नक्षत्र और तारागण, रूप ज्योति चक्र उसी प्रकार चक्कर काटता रहता है |
जिस प्रकार मेंढी के चारों और देवरी के बैल घूमते रहते हैं , एक कल्प तक रहने वाले लोकों का नाश हो जाने पर भी स्थिर रहता है, तथा तारा गणों के शहीद धर्म अग्नि कश्यप और शुक्र आदि नक्षत्र एवं सप्त ऋषि गण जिसकी प्रदक्षिणा करते हैं |
वह ध्रुव लोक तुम्हें देता हूं, किंतु अभी तुम अपने पिता के सिंहासन पर बैठ कर 36000 वर्ष तक राज्य करो उसके पश्चात तुम मेरे लोक को आओगे जहां से कोई लौटता नहीं ,यह कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए | ध्रुव सोचने लगे अरे मैं कैसा अभागा हूं परमात्मा के दर्शन के बाद भी मैंने राज्य की ही कामना की |
( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )भागवत कथा सीखने के लिए अभी आवेदन करें-ध्रुव जी ने अपने नगर की ओर प्रस्थान किया राजा उत्तानपाद को नारद जी के द्वारा जब यह मालूम हुआ कि उनका पुत्र ध्रुव लौटकर आ रहा है |
आश्चर्य और प्रसन्नता हुई और एक पालकी लेकर स्वयं रथ में बैठकर ध्रुव जी अगवानी के लिए चले रास्ते में आते हुए राजा को ध्रुव जी मिले, राजा ने उन्हें अपने अंक में भर लिया ध्रुव जी ने दोनों माताओं को प्रणाम किया और पालकी में बैठकर नगर में प्रवेश किया राजा ने उन्हें राज्य सिंहासन पर अभिषिक्त कर स्वयं भजन करने चल दिए |
इति नवमो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - दशमो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ दशमो अध्यायः)उत्तम का मारा जाना और ध्रुव का यक्षों के साथ युद्ध (Uttam Ka Maara Jaana Aur Dhruv Ka Yaksho Ke Sath yudhy in Hindi):-
ध्रुव जी ने शिशुमार की पुत्री भ्रमी से विवाह किया जिससे उनके कल्प और वत्सर नाम के दो पुत्र हुए | दूसरी स्त्री वायुमती से उत्कल नामक पुत्र हुआ, छोटे भाई का अभी विवाह भी नहीं हुआ था कि एक यक्ष द्वारा मारा गया, भाई के मारे जाने की खबर सुनकर ध्रुव ने यक्षों पर चढ़ाई कर दी और यक्षों का संघार करने लगे |
इति दशमो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - एकादशो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ एकादशो अध्यायः) स्वायंभू मनु का ध्रुव को युद्ध बंद करने के लिए समझाना (Svayambhu Manu Ka Dhruv Ko Yudhd Band Karane Ke Liye Samajhana in Hindi):-
अत्यंत निर्दयता पूर्वक यक्षों का संहार करते देख ध्रुव जी के दादा, स्वयंभू मनु उनके पास आए और उन्हें समझाया कि बेटा तुम्हारे भाई को किसी एक यक्ष ने मारा फिर बदले में यह हजारों यक्षों का संघार क्यों कर रहे हो ?
तुम अभी अभी भगवान की तपस्या करके आए हो तुम्हारे लिए यह बात उचित नहीं है | अतः शीघ्र ही यह युद्ध बंद कर दो ध्रुव जी ने दादा की बात मानकर युद्ध बंद कर दिया |
इति एकादशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - द्वादशो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ द्वादशो अध्यायः) ध्रुव जी को कुबेर का वरदान और विष्णु लोक की प्राप्ति(Dhruv ji ko Kuber Ka Varadaan Aur Vishnu Lok ki Prapti in Hindi):-
मैत्रेय जी बोले ही विदुर जी ध्रुव जी का क्रोध शांत हो जाने पर कुबेर जी वहां आए कुबेर बोले अपने दादा की बात मानकर आपने युद्ध बंद कर दिया इसलिए मैं बहुत प्रसन्न हूं, आप वरदान मांगे , ध्रुव जी बोले भगवान के चरणों में मेरी मति बनी रहे यही वरदान दीजिए |
कुबेर जी ने एवमस्तु कहा, वर पाकर ध्रुव घर आ गए और भगवान को ह्रदय में रखकर 36000 बरस तक राज किया और अंत में अपने पुत्र उत्कल को राज्य देकर वन में भगवान का भजन करने के लिए चले गए |
वहां उन्होंने भगवान की उत्कट भक्ति की , नेत्रों में अश्रुपात ढर रहे हैं , भगवान से मिलने की तीव्र उत्कंठा में छटपटा रहे हैं तभी आकाश मार्ग से एक सुंदर विमान धरती पर उतरा उसमें से चार भुजा वाले दो पार्षद निकले , ध्रुव जी ने उन्हें प्रणाम किया |
सुदुर्जयं विष्णुपदं जितंत्वया यत्सूरयो अप्राप्य विचक्षते परम् |
आतिष्ठ तच्चंद्र दिवाकरादयो ग्रहर्क्ष ताराः परियन्ति दक्षिणम् ||
नंद सुनंद बोले हे ध्रुव आपने अपनी भक्ति के प्रभाव से विष्णु लोक का अधिकार प्राप्त कर लिया है जो औरों के लिए बड़ा दुर्लभ है , सप्त ऋषि, सूर्य, चंद्र, नक्षत्र जिसकी परिक्रमा किया करते हैं ,आप उसी विष्णु लोक में निवास करें।
पार्षदों की बात सुन ध्रुव जी उस विमान पर चढ़ने लगे तो काल देवता मूर्तिमान होकर हाथ जोड़कर उनके सामने खड़े हो गए, तब ध्रुव जी मृत्यु के सिर पर पैर रखकर विमान में जा बैठे | तभी उन्हें अपनी माता की याद आई , पार्षदों ने बताया कि देखो आपकी माता आपसे आगे विमान में बैठकर जा रही हैं, ध्रुव जी परमात्मा के लोक को चले गए |
इति द्वादशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - त्रयोदशो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ त्रयोदशो अध्यायः) ध्रुव वंश का वर्णन (Dhruv Vansh Ka Varanan in Hindi):-
यद्यपि ध्रुव जी अपने बड़े पुत्र उत्कल को राज्य देकर गए थे फिर भी परमात्मा की भक्ति में लीन होने के कारण वह राज्य नहीं लिया और अपने छोटे भाई वत्सर को राजा बना दिया |
इसी के वंश में राजा अंग हुए अंग के कोई पुत्र नहीं था, तब उन्होंने पुत्र कामेष्टि यज्ञ किया जिससे उनके यहां बेन नाम का पुत्र हुआ | वह मृत्यु की पुत्री सुनीथा का पुत्र था वह पुत्र बड़ा दुष्ट स्वभाव का था , क्योंकि नाना के गुण उसमें आ गए थे , वह खेलते हुए बालकों को मार देता था पुत्र दुख से दुखी होकर अंग वन में भजन करने चला गये |
इति त्रयोदशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - चतुर्दशो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ चतुर्दशो अध्यायः) राजा बेन की कथा (Raja Ben Ki Katha in Hindi):-
पिता के वन चले जाने पर मुनियों ने बेन को राजा बना दिया तो वह और उन्मत्त हो गया, प्रजा को कष्ट देने लगा धर्म-कर्म यज्ञ आदि बंद करवा दिया, इस पर ऋषियों नें उसे समझाया तो कहने लगा-
बालिशावत यूयं वा अधर्मे धर्म मानिनः |
ये वृत्तिदं पतिं हित्वा जारं पति मुपासते ||
बेन बोला तुम बड़े मूर्ख हो अधर्म को ही धर्म मानते हो, तभी तो जीविका देने वाले पति को छोड़कर जारपति की उपासना करते हो सारे देवता राजा के शरीर में निवास करते हैं |
ऋषियों का इस प्रकार अपमान करने पर उन्होंने उसे हुंकार से समाप्त कर दिया | किंतु दूसरा कोई राजा ना होने पर उसके शरीर का मंथन किया उससे निषाद की उत्पत्ति हुई |
इति चतुर्दशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - पंचदशो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ पंचदशो अध्यायः) महाराज पृथु का आविर्भाव और राज्याभिषेक(Maharaj Prithu Ka Aavirbhav Aur Raajybhishek in Hindi):-
मैत्रेय जी बोले विदुर जी निषाद की उत्पत्ति के बाद बेन की भुजाओं का मंथन किया गया जिनमें से एक स्त्री पुरुष का जोड़ा उत्पन्न हुआ | ऋषियों ने कहा यह साक्षात लक्ष्मी नारायण हैं, अतः उनका राज्याभिषेक कर दिया गया बंदी जनों ने उनकी स्तुति कि इस पर पृथु जी बोले-
हे सूत मागध अभी तो हमारे कोई गुण प्रकट भी नहीं हुए हैं, फिर यह गुण किसके गाए जा रहे हो, गुण केवल भगवान के गाए जाते हैं अतः उन्हें के गुण गाओ |
इति पंचदशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - षोडषो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ षोडषो अध्यायः) बन्दी जन द्वारा महाराज पृथु की स्तुति (Bandi Jan Dwara Maharaj Prithu Ki Stuti in Hindi):-
मैत्रेय जी बोले हे विदुर जी ऋषियों की प्रेरणा से बदींजन फिर इस प्रकार स्तुति करने लगे- हे प्रभु आपने कहा कि स्तुति तो भगवान की करनी चाहिए |
आप साक्षात नारायण ही तो हैं हम तो आपकी स्तुति करने से असमर्थ हैं, इस सृष्टि के रचयिता पालन करता और संहार करता आप ही हैं , हम आपको नमस्कार करते हैं |
इति षोडशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - सप्तदशो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ सप्तदशो अध्यायः) महाराजा पृथु का पृथ्वी पर कुपित होना और पृथ्वी के द्वारा उनकी स्तुति करना (Maharaj Prithu Ka Prithvi Par Kupit Hona Aur Prithvi Ke Dwara Unaki Stuti Karana in Hindi ):-
मैत्रेय जी बोले हे विदुर जब ब्राह्मणों ने पृथु जी को राजा बनाया था तब उस समय पृथ्वी अन्नहीन हो गई थी |
अतः प्रजाजन भूख से व्याकुल थे वे प्रभु जी से बोले प्रभु हम प्रजा जन भूख से व्याकुल आप की शरण में आए हैं आप हमारी रक्षा करें , प्रथु जी ने विचार किया कि इस पृथ्वी ने सारे अन्न को छुपा लिया है | अतः उसे मारने के लिए धनुष पर बांण चढ़ा लिया पृथ्वी उनकी शरण में आ गई और बोली -
नम: परस्मै पुरुषाय मायया विन्यस्त नानातनवे गुणात्मने |
नमः स्वरूपानुभवेन निर्धुत द्रव्य क्रियाकारक विभ्रमोर्मये ||
आप साक्षात परम पुरुष एवं आप अपनी माया से अनेक रूप धारण करते हैं, आप अध्यात्म अद्भुत आदिदेव हैं मैं आपको बार-बार नमस्कार करती हूं |
इति सप्तदशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - अष्टादशो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ अष्टादशो अध्यायः) पृथ्वी दोहन (Prithvi Dohan in Hindi):-
पृथ्वी बोली ब्रह्मा जी के द्वारा बनाए अन्मादि को दुष्ट लोग नष्ट कर रहे थे अतः मैंने उनको अपने उदर में रखा है, अब आप योग्य बछड़ा और दोहन पात्र बनाकर उन्हें दुह लें।
पृथ्वी के वचन सुनकर प्रभु जी ने मनु को बछड़ा बनाकर सारे धान्य को दुह लिया अन्य लोगों ने भी योग्य बछड़ा और दोहन पात्र लेकर अभिष्ट वस्तु दुह ली और उसके पश्चात पृथु जी ने अपने धनुष नोक से उसे समतल बना दिया |
इति अष्टादशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - एकोनविंशो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ एकोनविंशो अध्यायः) महाराज पृथु के सौ अश्वमेघ यज्ञ(Maharaj Prithu Ke Sau Ashvmegh Yagh in Hindi):-
मैत्रेय जी बोले विदुर जी , सरस्वती नदी के किनारे पर पृथु ने सौ अश्वमेध यज्ञ किए इससे इंद्र को बड़ी ईर्ष्या हुई, अतः यज्ञ के घोड़े का हरण कर लिया प्रथु जी के पुत्र ने इंद्र का पीछा किया, बचने के लिए इंद्र ने साधु का भेष बना लिया |
कुमार उस पर शस्त्र नहीं चलाया इस पर पृथु को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने इंद्र को मारने के लिए धनुष पर बांण उठा लिया, किंतु ऋत्यजों ने उन्हें ऐसा करने को मना कर दिया | तब ऋत्विजों ने इंद्र को भस्म करने के लिए आवाहन किया तब ब्रह्माजी ने उन्हें रोक दिया |
इति एकोनविंशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - विंशो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ विंशो अध्यायः) महाराज पृथु की यज्ञशाला में भगवान विष्णु का प्रादुर्भाव(Maharaj Prithu Ki yaghshaala Me Bhagawan Vishnu Ka Pradurbhav in Hindi):-
ब्रह्मा जी के कहने पर पृथु की यज्ञशाला में इंद्र को लेकर भगवान विष्णु प्रकट हो गए , महाराज पृथु ने उन्हें प्रणाम किया |
भगवान ने इंद्र के अपराध क्षमा करवाए पृथु ने भगवान की प्रार्थना की और उनसे वरदान में हजार कान मागे, और कहा प्रभु आप की महिमा सुनने के लिए दो कान कम पड़ते हैं |भगवान उन्हें आशीर्वाद देकर अपने लोग चले गए |
इति विंशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - एकविशों अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ एकविशों अध्यायः) महाराजा पृथु का अपनी प्रजा को उपदेश (Maharaj Prithu Ka Apani Praja Ko Updesh in Hindi):-
महाराज पृथु ने अपनी प्रजा को उपदेश दिया कि चारों वर्णों को अपने अपने कर्तव्यों का पालन यथोचित करना चाहिए परमात्मा को कभी ना भूलें, साधु संतों का सम्मान करना चाहिए अपने राजा के उपदेश से प्रजाजन बड़े प्रसन्न हुए और उनके उपदेशों को शिरोधार्य किया |
इति एकविंशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - द्वाविशों अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ द्वाविशों अध्यायः)महाराजा पृथु को सनकादिक का उपदेश (Maharaj Prithu Ko Sankadik Ka updesh in Hindi):-
अपनी प्रजा को उपदेस देने के बाद महाराज पृथु के यहां सनकादि ऋषि पधारे राजा ने उनका बड़ा सम्मान किया उनकी पूजा की सनकादि ऋषियों ने राजा को परमात्मा को तत्व का ज्ञान दिया | महाराज पृथु के पांच पुत्र हुए- विजिताश्व धूम्र केश हर्यक्ष द्रविण और बृक ये सभी पराक्रमी हुए |
इति द्वाविंशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - त्रयोविंशो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ त्रयोविंशो अध्यायः) राजा पृथु की तपस्या और परलोक गमन(Raja Prithu Ki Tapasya Aur Parlok Gaman in Hindi):-
चौथेपन में राजा पृथु ने समस्त पृथ्वी का भार अपने पुत्रों को सौंपकर वन के लिए प्रस्थान किया और वहां परमात्मा का भजन करते हुए अपने धाम को पधार गए |
इति त्रयोविंशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - चतुर्विंशो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ चतुर्विंशो अध्यायः) पृथु की वंश परंपरा और प्रचेताओं को भगवान रुद्र का उपदेश (Prithu Ki Vansh Parampara Aur Prachetaao ko Bhagawan Rudra Ka Updesh):-
मैत्रेय जी कहते हैं कि हे विदुर जी पृथु जी के पुत्र विजितास्व तथा उनके पुत्र हविर्धान के बर्हिषद नामक पुत्र हुआ, जिसका दूसरा नाम प्राचीनबर्हि था उनके प्रचेता नाम के 10 पुत्र हुए |
पिता की आज्ञा से सृष्टि रचना हेतु तपस्या करने के लिए समुद्र में गए रास्ते में उन्हें शिवजी मिले उन्हें प्रणाम किया शिव जी ने प्रसन्न होकर उन्हें नारायण उपासना का ज्ञान दिया उसका भी अनुसंधान करने लगे |
इति चतुर्विंशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - पंचविंशति अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ पंचविंशति अध्यायः) पुरंजन उपाख्यान का प्रारंभ(Puranjan Upakhyan Ka Prarambh in Hindi) :-
शिवजी से नारायण स्तोत्र प्राप्त कर प्रचेता समुद्र में उसका जप करने लगे ! उन्हीं दिनों राजा प्राचीनबर्हि कर्मकांड में रम गए थे नारद जी ने उन्हें उपदेश दिया, नारदजी बोले राजा इन यज्ञो में जो निर्दयता पूर्वक जिन पशुओं की कि तुमने बलि दी है उन्हें आकाश में देखो यह सब तुम्हें खाने को तैयार हैं |
अब तुम एक उपाख्यान सुनो प्राचीन काल में एक पुरंजन नाम का एक राजा था उसके अभिज्ञात नाम का एक मित्र था, हिमालय के दक्षिण भारत वर्ष में नव द्वार का नगर देखा उसने उस में प्रवेश किया वहां उसने एक सुंदरी को आते हुए देखा उसके साथ दस सेवक हैं, जो सौ सौ नायिकाओं के पति थे , एक पांच फन वाला सांप उनका द्वारपाल था, पुरंजन ने उस सुंदरी से पूछा देवी आप कौन हैं ?
उसने बताया कि मेरा नाम पुरंजनी है तब तो पुरंजन बड़ा प्रसन्न हुआ और बोला देवी मेरा नाम भी पुरंजन है आप भी अविवाहिता हैं और मैं भी , क्यों ना हम एक हो लें विवाह करके दोनों विवाह सूत्र बंंध गए और सौ वर्ष तक रहकर उस पूरी में उन्होंने भोग भोगा।
नव द्वार कि उस पूरी से राजा पुरंजन अलग-अलग द्वारों से अलग-अलग देशों के लिए भ्रमण करता था और पुरंजनी के कहने के अनुसार चलता था | वह कहती थी बैठ जाओ तो बैठ जाता था, कहती थी उठ जाओ तो उठ जाता था इस प्रकार पुरंजन पुरंजनी के द्वारा ठगा गया |
इति पंचविंशोअध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - षड्विंशो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ षड्विंशो अध्यायः) राजा पुरंजन का शिकार खेलने वन में जाना और रानी का कुपित होना(Raja Puranajan Ka shikar Khelane Van Me Jaana Aur Raani Ka Pupit Hona in Hindi):-
एक दिन राजा पुरंजन के मन में शिकार खेलने की इच्छा हुई, यद्यपि वह अपनी पत्नी को एक पल भी नहीं छोड़ता था पर आज वह बिना पत्नी को पूंछे शिकार के लिए चला गया |
वहां वन में निर्दयता पूर्वक जंगली जीवो का शिकार किया अंत में जब थक कर भूख प्यास लगी तो वह घर को लौट आया वहां उसने स्नान भोजन कर विश्राम करना चाहा उसे अपने पत्नी की याद आई वह उसे ढूंढने लगा नहीं मिलने पर उसने दासियों से पूछा , दासियों बताओ तुम्हारी स्वामिनी कहां हैं, दासिया बोली स्वामी आज ना जाने क्यों वह बिना बिछौने कोप भवन पर धरती पर पड़ी है |
पुरंजन समझ गया कि आज मैं बिना पूछे शिकार को चला गया यही कारण है , वह उसके पास गया क्षमा याचना की खुशामद की हाथ जोड़े पैर छुए और अंत में अपनी प्रिया को मना लिया |
इति षड्विंशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - सप्तविंशों अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ सप्तविंशों अध्यायः) पुरंजन पुरी पर चंडवेग की चढ़ाई तथा काल कन्या का चरित्र (Puranjan Puri par Chandveg Ki Chadhai Tatha Kal Kanya Ka Charitra in Hindi):-
अपनी प्रिया को इस तरह मना कर वह उसके मोंह फांस में ऐसा बंध गया कि उसे समय का कुछ भान ही नहीं रहा उसके ग्यारह सौ पुत्र एक सौ दस कन्याएं हुई |
इन सब का विवाह कर दिया और उनके भी प्रत्येक के सौ सौ पुत्र हुए उसका वंश खूब फैल गया , अंत में वृद्ध हो गया चण्डवेग नाम के गंधर्व राज ने तीन सौ साठ गंधर्व और इतनी ही गंधर्वियां के साथ पुरंजन पुर पर चढ़ाई कर दी वह पांच फन का सर्प अकेले ही उन शत्रुओं का सामना करते रहा | अंत में उसे बल हीन देख पुरंजन को बड़ी चिंता हुई |
नारद जी बोले हे प्राचीनबर्हि राजा, एक समय काल की कन्या जरा घूमते घूमते हुए मुझे मिली वह मुझसे विवाह करना चाहती थी कि मेरे मना करने पर मेरी प्रेरणा से वह यवनराज भय के पास गई, यवन राज भय ने उससे एक बात कही मेरी सेना को साथ लेकर तुम बल पूर्वक लोगों को भोगो |
इति सप्तविंशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - अष्टाविंशो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ अष्टाविंशो अध्यायः) पुरंजन को स्त्री योनि की प्राप्ति और अविज्ञात के उपदेश से उसका मुक्त होना (Puranjan Ko Stru yoni ki Prapti Aur Avighyat ke Updesh Se Usaka Mukt Hona in Hindi) :-
काल कन्या जरा ने यमराज की सेना के साथ पुरंजन पूरी को घेर लिया, चंडवेग पहले से ही उसे लूट रहा था अंत में पुरंजन घबराया और अपनी पत्नी से लिपट कर रोने लगा और अंत में स्त्री के वियोग में अपना शरीर छोड़ दिया उसे दूसरे जन्म में स्त्री योनि में जन्म लेना पड़ा, वहां उसका एक राजा के साथ विवाह हो गया काल बस कुछ समय पश्चात उसका पति शांत हो गया वे नितांत अकेली रह गई।
शरीर कृष हो गया वह पति के लिए रोती रहती थी कि एक बार एक ब्राह्मण उसे समझाने लगे देवी तुम कौन हो किसके लिए रो रही हो मुझे पहचानती हो मैं वही पुराना तुम्हारा अभिज्ञात सखा हूं , नारद जी बोले हे प्राचीनबर्हि इस उपाख्यान से पता चलता है, एक मात्र परमात्मा का भजन ही सार है |
इति अष्टाविंशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - एकोनत्रिंशो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ एकोनत्रिंशो अध्यायः) पुरंजनोपाख्यान का तात्पर्य (Puranjanopakhyaan Ka Tatpary in Hindi) :-
नारद जी बोले हे प्राचीनबर्हि अब इस पुरंजन उपाख्यान का तात्पर्य सुनो यह जीव ही पुरंजन है, नौ द्वार वाला यह शरीर ही पुरंजन की पूरी है, बुद्धि ही पुरंजनी है, दस इंद्रियां ही दस सेवक हैं, एक एक के सौ सौ सेविकाएं इंद्रियों की वृत्तियां है, पंञ्च प्राण हि पांच फन का सांप है , ईश्वर ही अभिज्ञात सखा है |
इस शरीर पूरी को तीन सौ साठ दिन उतनी ही रात्रियां लूट रहे हैं , काल कन्या जरा बुढ़ापा है जो बलपूर्वक आता है | अंत में पुरी नष्ट होना ही मर जाना है | जिसकी याद में मरता है वहीं योनि दूसरे जन्म मे मिलती है, ईश्वर ही अंत में मुक्ति देता है |
इति एकोनत्रिंशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - त्रिंशो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ त्रिंशो अध्यायः) प्रचेताओं को भगवान विष्णु का वरदान (Prachetaao Ko Bhagawan Vishnu kA Varadaan in Hindi):-
अपने पिता की आज्ञा से प्रचेताओं ने समुद्र में दस हजार वर्ष तक शिवजी के दिए हुए स्तोत्र से भगवान नारायण की उपासना की, भगवान नारायण ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और कहा राजपुत्रो तुम्हारा कल्याण हो, तुमने पिता की आज्ञा से सृष्टि रचना करने के लिए तपस्या की है |
अतः तुम कण्व ऋषि के तप को नष्ट करने के लिए भेजी प्रम्लोचा अप्सरा से उत्पन्न कन्या, जिसे छोड़कर स्वर्ग चली गई और जिसका पालन पोषण वृक्षों ने किया तुम उससे विवाह करो, तुम्हारे एक बड़ा विख्यात पुत्र होगा जिसकी संतान से सारा विश्व भर जाएगा, अब तुम अपनी इच्छा का वरदान मांग लो |
प्रचेताओं नें भगवान की स्तुति की और कहा प्रभु जब हम एक संसार में रहें आपको नहीं भूले यही वरदान आप दीजिए, भगवान एवमस्तु कहकर अपने धाम को चले गए और प्रचेताओं ने वृक्षों की कन्या मारीषा से विवाह किया जिससे उनके दक्ष नामक एक तेजस्वी पुत्र हुआ जिन्हें ब्रह्मा जी ने प्रजापतियों का अधिपति नियुक्त किया |
इति त्रिशों अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - चतुर्थ स्कन्ध - एकत्रिंशो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -
(अथ एकत्रिंशो अध्यायः) प्रचेताओं को नारद जी का उपदेश और उनका परम पद लाभ (Prachetaao Ko Naarad Ji Ka Upadesh Aur Unaka Param Pad Laabh in Hindi) :-
एक लाख वर्ष बीत जाने पर प्रचेताओं को भगवान के भजन का ध्यान आया और वह ग्रहस्थी छोड़ वन में भगवान के भजन को चल दिए वहां उन्हें नारद जी मिले जिन्होंने प्रचेताओं को परमात्म तत्व का उपदेश दिया जिसका भजन कर प्रचेता परमधाम को चले गए और मैत्रेय जी ने भी विदुर जी को विदा कर दिया |
इति एकत्रिशों अध्यायः
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