सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - सप्तमः स्कन्ध (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) | Bhagwat Katha - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - सप्तमः स्कन्ध (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) | Bhagwat Katha:- 


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - सप्तमः स्कन्ध (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) | Bhagwat Katha -  Bhaktilok


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सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - सप्तमः स्कन्ध - प्रथमो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -  

सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - सप्तमः स्कन्ध (Full Bhagwat Katha in Hindi) | Saptam Skandh-  Bhaktilok

(अथ प्रथमो अध्यायः ) नारद युधिष्ठिर संवाद और जय विजय की कथा (Narad Yudhishthir Sanvad Aur Jay vijay Ki Katha in Hindi): -


 परीक्षित बोले- भगवन भगवान की दृष्टि में तो सारा संसार एक है, फिर भी लगता है कि वे देवताओं का पक्ष लेते हैं और राक्षसों को दबाते हैं ऐसा क्यों ? शुकदेव जी बोले राजन यही प्रश्न युधिष्ठिर ने नारदजी से किया था शिशुपाल राक्षस भगवान को गाली देने वाला अंत में भगवान में कैसे लीन हो गया | इस पर नारद जी ने कहा जो उसे तुम ध्यान से सुनो नारद जी बोले भगवान को चाहे कोई भक्ति से याद करें या फिर बैर से भगवान तो सबका उद्धार ही करते हैं |  

फिर शिशुपाल तो भगवान के पार्षद थे, सनकादिक के श्राप से ये राक्षस हुए थे इस पर परीक्षित ने इस कथा को विस्तार से सुनाने की प्रार्थना की तो शुकदेवजी सुनाने लगे | एक समय सनकादि ऋषि बैकुंठ गए उन्हें जय विजय ने रोक दिया जिससे नाराज होकर उन्हें श्राप दिया कि जाओ तुम असुर हो जाओ | जय विजय पहले जन्म में हिरण्याक्ष,हिरण्यकशिपु दूसरे में रावण कुंभकर्ण और तीसरे जन्म में दन्त्रवक्र और शिशुपाल हुए |

इति प्रथमो अध्यायः


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - सप्तमः स्कन्ध - द्वितीयो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -  


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - सप्तमः स्कन्ध (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) | Bhagwat Katha -  Bhaktilok


( अथ द्वितीयो अध्यायः ) हिरण्याक्ष के बध पर हिरण्यकश्यपु का अपनी माता को समझाना(Hirnyaksh Ke Vadh Par Hirnyakashyap Ka Apani Mata Ko Samajhana in Hindi):- 

श्री शुकदेव जी बोले परीक्षित ! हिरण्याक्ष को जब भगवान ने मार दिया तब उसकी माता दिति रोने लगी तो उसे सांत्वना देते हुए हिरण्यकशिपु बोला माता मैं मेरे भाई के शत्रु को अवश्य मारूंगा, आप शोक ना करें क्योंकि संसार में जो आता है वह अवश्य जाता है | अनेक उदाहरण देकर उन सब को शांत किया |

इति द्वितीयो अध्यायः


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - सप्तमः स्कन्ध - तृतीयो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -  


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( अथ तृतीयो अध्यायः ) हिरण्यकशिपु की तपस्या और वर प्राप्ति(Hiranyakashipu Ki Tapashya Aur Var Prapti in Hindi): - 

अपने  भाई के शत्रु पर विजय पाने के लिए हिरण्यकशिपु ने वन में जाकर ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की उसके शरीर के मांस को चीटियां चाट गई मात्र हड्डियों के ढांचे में प्राण थे उसकी तपस्या से त्रिलोकी जलने लगी, इंद्रादि देवता भयभीत हो ब्रह्मा जी की शरण में गए और कहा प्रभु हिरण्यकशिपु की तपस्या से हम जल रहे हैं |

 ब्रह्मा जी ने हंस पर सवार होकर हिरण्यकशिपु को दर्शन दिए और उसके शरीर पर जल छिड़क कर उसे हष्ट पुष्ट कर दिया और उससे वर मांगने को कहा हिरण्यकशिपु ने ब्रह्मा जी की स्तुति की और कहा प्रभु यदि आप वरदान देना चाहते हैं तो आप की सृष्टि का कोई जीव मुझे ना मारे, भीतर बाहर, दिन में रात्रि में किसी अस्त्र-शस्त्र से पृथ्वी आकाश में मेरी मृत्यु ना हो |

इति तृतीयो अध्यायः


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - सप्तमः स्कन्ध - चतुर्थो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -  


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - सप्तमः स्कन्ध (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) | Bhagwat Katha - Bhaktilok


( अथ चतुर्थो अध्यायः ) हिरण्यकशिपु के अत्याचार और प्रहलाद के गुणों का वर्णन (Hiranayakshipu Ke Atyachar Aur Prahalad Ke Guno Ka Varanan in Hindi):- 

ब्रह्माजी बोले पुत्र हिरण्यकशिपु यद्यपि तुम्हारे वरदान बहुत दुर्लभ है तो भी तुम्हें दिए देता हूं | वरदान देकर ब्रह्माजी अंतर्धान हो गए और हिरण्यकशिपु अपने घर आ गया और अपनी शक्ति से समस्त देवता और दिगपालों को जीत लिया, यज्ञो में देवताओं को दी जाने वाली आहुतियां छीन लेता था , शास्त्रीय मर्यादाओं का उल्लंघन करता था, उससे घबराकर सब देवताओं ने भगवान से प्रार्थना की भगवान ने आकाशवाणी की देवताओं निर्भय हो जाओ मैं इसे मिटा दूंगा समय की प्रतीक्षा करो | हिरण्यकशिपु के चार पुत्र थे उनमें प्रहलाद जी सबसे छोटे ब्राह्मणों और संतों के बड़े भक्त थे अतः हिरण्यकशिपु शत्रुता रखने लगा |

इति चतुर्थो अध्यायः


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - सप्तमः स्कन्ध - पंचमो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -  


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - सप्तमः स्कन्ध (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) | Bhagwat Katha - Bhaktilok


( अथ पंचमो अध्यायः ) हिरण्यकशिपु के द्वारा प्रहलाद जी के वध का प्रयत्न (Hiranyakshipu Ke Dwara Prahalad Ji Ke vadh Ka Prayatn in Hindi):-

प्रहलाद जी दैत्य गुरु शुक्राचार्य के आश्रम में पढ़ते थे एक बार हिरण्यकशिपु अपने पुत्र प्रह्लाद को गोद में लेकर पूछने लगा तुम्हें कौन सी बात अच्छी लगती है |
तत्साधु मन्येसुरवर्य देहिनां सदासमुद्विग्न धियामसद्ग्रहात् |
हित्वात्मपातं गृहमन्धकूपं वनं गतो यद्धरि माश्रयेत ||
प्रहलाद जी बोले- पिता जी संसार के प्राणी मैं और मेरे मन के झूठे आग्रह में पडकर सदा ही अत्यंत उद्विग्न रहते हैं , ऐसे प्राणी के लिए मैं यही ठीक समझता हूं कि वे अपने अद्यः पतन के मूल कारण घास से ढके हुए अधेंरे कुएं के समान इस घर गृहस्ती को छोड़कर वन में चला जाए और भगवान श्री हरि की शरण ग्रहण करे |
प्रहलाद जी की ऐसी बातें सुनकर हिरण्यकशिपु जोर से हंसा और कहा गुरुकुल में कोई मेरे शत्रु का पक्षपाती रहता दिखता है | शुक्राचार्य जी से कहा इसका पूरा ध्यान रखा जाए गुरुकुल में प्रहलाद जी को समझाया जाबे और कुछ दिन बाद हिरण्यकशिपु ने फिर प्रहलाद जी से पूछा तो प्रह्लाद जी ने कहा--
श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् |
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ||
पिताजी भगवान की कथाओं को श्रवण करना, उनके नाम का कीर्तन करना, हृदय में उनका स्मरण करना, उनके चरणों की सेवा करना, उनकी अर्चना, उनकी वंदना, दास्य और सखा भाव से पूजा करना और अंत में पूर्ण रूप रूप समर्पण हो जाना यह नव प्रकार की भक्ति की  जाए, यह सुन हिरण्यकशिपु क्रोध से आग बबूला हो गया और प्रहलाद को गोद से उठाकर जमीन पर पटक दिया और कहा ले जाओ इसे मार डालो | शण्डामर्क उसे पुनः आश्रम ले गए और शक्ति के साथ उसे समझाने लगे|

इति पंचमो अध्यायः


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - सप्तमः स्कन्ध - षष्ठो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -  

 
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( अथ षष्ठो अध्यायः ) प्रहलाद जी का असुर बालकों को उपदेश (Prahalad Ji Ka Asur Balako Ko Upadesh in Hindi):-
 
प्रहलाद जी को आश्रम में लाकर संडा मर्क उन्हें पढ़ाने लगे , एक दिन शण्डामर्क के कहीं चले जाने पर प्रहलाद जी दैत्य बालकों को पढ़ाने लगे |
पढ़ो रे भाई राम मुकुंद मुरारी
चरण कमल मुख सम्मुख राखो कबहु ना आवे हारी
कहे प्रहलाद सुनो रे बालक लीजिए जन्म सुधारी
को है हिरण्यकशिपु अभिमानी तुमहिं सके जो मारी
जनि डरपो जडमति काहू सो भक्ति करो इस सारी
राखनहार तो है कोई और श्याम धरे भुजचारी
सूरदास प्रभु सब में व्यापक ज्यों धरणि में वारी |
प्रहलाद जी की शिक्षा सुन दैत्य बालक उनसे बोले प्रहलाद जी हम लोगों ने गुरु पुत्रों के अलावा किसी दूसरे गुरु को नहीं देखा फिर यह सब बातें आप कहां पढे हैं ? हमने तो आपको अन्यत्र कहीं जाते हुए भी नहीं देखा, ना कहीं पढ़ते ! कृपया हमारा संदेह दूर करें |

इति षष्ठो अध्यायः


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - सप्तमः स्कन्ध - सप्तमो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -  

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( अथ सप्तमो अध्यायः ) प्रहलाद जी द्वारा माता के गर्भ में प्राप्त हुए नारद जी के उपदेश का वर्णन (Prahalad Ji Dwara Mata KE Garbh Me Prapti Huye Naarad Ji Ke Upadesh Ka avaranan in Hindi):-  

शुकदेव बोले राजन दैत्य बालकों  के इस प्रकार पूंछने पर पहलाद जी बोले- मेरे पिताजी जिस समय तपस्या करने गए थे तब मौका देख इंद्र ने दैत्यों पर चढ़ाई कर दी और सब राक्षसों को मार कर भगा दिया साथ ही मेरी माता को बंदी बना लिया | जब इंद्र उसे पकड़ कर ले जा रहा था वह विलाप कर रही थी, रास्ते में नारद जी उसे मिले इंद्र से बोले महाभाग इसे कहां ले जा रहे हो यह निरपराध है इसे छोड़ दो , इंद्र बोला इसके गर्भ में देवताओं का शत्रु है इसके जन्म के बाद बालक को मार देंगे और इसे छोड़ देंगे , इस पर नारद जी बोले इसके गर्भ में परमात्मा का भक्त है इसे श्री तत्काल छोड़ दो इस पर इंद्र ने उसे छोड़ दिया नारद जी उसे अपने आश्रम मे ले गए और जब तक वहां रही जब तक मेरे पिता तपस्या कर नहीं आ गए ,नारद जी ने उन्हें भागवत धर्म की शिक्षा दी जिसे मैंने गर्भ में ही सुना , वही ज्ञान मैंने तुम्हें सुनाया है |

इति सप्तमो अध्यायः


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - सप्तमः स्कन्ध - अष्टमो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -  

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( अथ अष्टमो अध्यायः ) नरसिंह भगवान का प्रादुर्भाव हिरण्यकश्यप का वध ब्रह्मादिक देवताओं द्वारा भगवान की स्तुति (Narsingh Bhagawan Ka Pradurbhav Hirnyakashyap Ka Vadh Bramhaik Devatao Dwara Bhagawan Ki Stuti in Hindi):- 

प्रहलाद जी की बात सुन सब दैत्य बालक भगवान के भक्त बन गए और गुरु जी की शिक्षा का सब ने बहिष्कार कर दिया तब तो गुरु पुत्र घबराए और जाकर हिरण्यकशिपु को सब कुछ बता दिया , हिरण्य कश्यप ने प्रहलाद जी को मरवाने के अनेक उपाय किए हाथी के पैरों से कुचल वाया पहाड़ से गिराया काले सांपों से डसवाया अग्नि में जलाया किंतु प्रहलादजी को कुछ भी नहीं हुआ अन्त में हाथ में तलवार ले कहने लगा मूर्ख अब बता तेरा राम कहाँ है प्रह्लादजी बोले मेरा राम आप में मेरे में आपकी तलवार में सर्वत्र है। हिरण्य कशिपु बोले क्या इस खंभे मे तेरा राम है तो प्रह्लादजी ने कहा अवश्य है इस पर दैत्य ने खंभे पर जोर से प्रहार किया तो एक भयंकर शब्द हुआ खंभे को फाड़कर नृसिंह भगवान प्रकट हो गए आधा शरीर सिंह का आधा मानव का हिरण्य कशिपु को पकड़ लिया महल के द्वार पर बैठकर उसे अपने पैरों पर लिटा लिया और कहने लगे बोल मैं श्रृष्टि का जीव हूँ मेरे पास कोई अस्त्र-शस्त्र है दिन है अथवा रात तुम आकाश में हो या धरती पर हिरण्य कशिपु ने भगवान को आत्म समर्पण कर दिया उसके पेट को फाड़कर उसे समाप्त कर दिया किन्तु भगवान का क्रोध शान्त नहीं हुआ क्रोध शान्त करने के लिए उनके सामने जाने की किसी की हिम्मत नही हो रही थी ब्रह्मादिक देवताओं ने उनकी दूर से ही प्रार्थना की।

इति अष्टमोऽध्यायः


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - सप्तमः स्कन्ध - नवमो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -  


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( अथ नवमोऽध्यायः ):- 

ब्रह्मादिक देवता ओं ने देखाकि भगवान का क्रोध शान्त करने के लिए उनके पास जाने की कोई हिम्मत नहीं कर रहा है तब उन्होंने प्रह्लादजी को भगवान के पास भेजा वे सहज गति से गये और जाकर भगवान की गोद में बैठ गये भगवान अपनी जीभ से चाट ने लगे और बोले
वासनी से बांधि के अगाध नीर बोरि राखे
तीर तरवारनसों मारि मारि हारे है
गिरि ते गिराय दीनो डरपे न नेक आप
मद मतवारे भारे हाथी लार डारे हैं।
फेरे सिर आरे और अग्नि माहि डारे
पीछे मीड गातन लगाये नाग कारे हैं।
भावते के प्रेम मेमगन कछु जाने नाहि
ऐसे प्रहलाद पूरे प्रेम मतवारे है।
(2) बोले प्रभु प्यारे प्रिय कोमल तिहारे अंग
असुरनने मार्योमम नाम एक गाने में।
गिरि ते गिरायो पुनि जलमे डुबायो हाय
अग्नि में जलायो कमी राखि ना सताने में।
उरसे लगाय लिपटाय कहे बार बार
करुणा स्वरुप लगे करुणा दिखाने में।
मंजुल मुखारविन्द चूमि चूमि कहे प्रभो
क्षमा करो पुत्र मोहि देर भइ आने में।
भगवान देर से आने के लिए अपने भक्त से क्षमा मांग रहे हैं। प्रहलादजी भगवान की स्तुति करते हैं
प्रतद् यच्छ मन्युमसुरश्च हतस्त्वयाद्य
मोदेत साधुरपि वृश्चिक सर्प हत्या।।
लोकाश्च निर्वृतिमिताः प्रतियन्ति सर्वे
रूपं नृसिंह विभयाय जनाः स्मरन्ति।।
जिस दैत्य को मारने के लिए आपने क्रोध किया था वह मर चुका है। अब भक्त जन आपके शान्त स्वरुप का दर्शन करना चाहते है अत: क्रोध का शान्त करें भक्तजन भय नाश के लिये आपके इस स्वरुप का स्मर्ण करेग भगवान बोले प्रहलाद तुम्हारा कल्याण हो मैं तुम्हारे उपर बहत प्रसन्न हू अतः तुम जो चाहो वरदान माँग लो।

इति नवमोऽध्यायः


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - सप्तमः स्कन्ध - दशमो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -  


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(अथ दशमोऽध्यायः ) प्रहलादजी के राज्याभिषेक और त्रिपुरदहन की कथा (Prahalad Ji Ke Rajyabhishek Aur Tripurdahan ki Katha in Hindi):-


यदि रासीश मे कामान् वरांस्त्वं वरदर्षभ।
कामानां हृद्यसंरोहं भवतस्तु वृणे वरम् ।।
प्रहलादजी बोले यदि आप मुझे वर देना चाहते हैं तो यह दीजिए कि मेरे हृदय में कामना का कोई बीज न रहे। भगवान बोले भक्त प्रहलाद तुम्हारा कल्याण हो तुम मेरे प्रिय भक्त हो अभी संसार के ऐश्वर्य भोग कर तुम मेरे लोक को आवोगे। प्रहलादजी बोले मुझे एक वरदान और दीजिए
वरं वरय एतत् ते वरदेषान्महेश्वर
यदनिन्दत् पितामे त्वामविद्वां स्तेज ऐश्वरं।।
विद्धामर्षाशय: साक्षात् सर्वलोक गुरुं प्रभुम्
भ्रातृ हेति मृषादृष्टिस्त्वद्भक्ते मयिचाघवान्।।
तस्मात् पिता मे पूयेत दुरन्ताद् दुस्तरादधात्
पूतस्तेषांगसंदृष्टस्तदा कृपण वत्सल।।।
मेरे पिता ने आपकी बड़ी निन्दा की है उसे क्षमा कर दें एवमस्तु कह कर भगवान ने प्रहलादजी को अपने पिता की अंतेष्ठि की आज्ञा दी ओर प्रहलादजी ने पिता का अंतिम संस्कार किया प्रहलादजी को सुतल लोक का राज्य देकर भगवान अंतर ध्यान हो गए। नारदजी से युधिष्ठिरजी ने प्रश्न किया प्रभो भगवान शिव ने कैसे त्रिपुर दहन किया बतावें इस पर नारदजी बोले राजन् एक समय सब राक्षस स्वर्ग की कामना से मय दानव की शरण में गए मय ने उन्हें तीन विमान बनाकर दिए विमान क्या तीन पुर ही थे सब राक्षस उन में बैठ आकाश से अस्त्र शस्त्रों की वर्षा करने लगे घबरा कर देवता भगवान शिव की शरण गए शिवजी ने तान बाण छोड़कर तीनो पुरों का संहार कर दिया मयदानव ने सब राक्षसों को अमृत कुंड में लाकर डाल दिए और सबको जीवित कर दिया शिवजी उदास हए और भगवान नारायण को याद किया भगवान गाय का रूप धारा कर सब अमृत को पी गए और सारे राक्षस मारे गए। 

इति दशमोऽध्यायः


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - सप्तमः स्कन्ध - एकादशो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -  


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(अथ एकादशोऽध्यायः ):- 

मानवधर्म वर्णधर्म और स्त्रीधर्म का निरूपण-नारदजी बोले राजन् धर्म के तीस लक्षण बताये गए हैं सत्य दया तपस्या शौच तितिक्षा उचित विचार संयम अहिंसा ब्रह्मचर्य त्याग स्वाध्याय सरलता संतोष संत सेवा इत्यादि ये सब मानव धर्म हैं। पढ़ना-पढ़ाना यज्ञ करना कराना दान लेना दान देना ये छ: कर्म ब्राह्मण के हैं क्षत्रिय का धर्म है रक्षा करना कृषि गो रक्षा व्यवसाय ये वैश्य का धर्म है सब की सेवा करना शूद्र का धर्म हैं। पति की सेवा करना उसके अनुकूल रहना यह स्त्री धर्म है।

इति एकादशोऽध्यायः


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - सप्तमः स्कन्ध - द्वादशो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -  


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - सप्तमः स्कन्ध (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) | Bhagwat Katha - Bhaktilok


[ अथ द्वादशोऽध्यायः ] ब्रह्मचर्य और वानप्रस्थ आश्रमों के नियम (Bramhachary Aur Vaanprasth Ashramo Ke Niyam in Hindi):-

ब्रह्मचारी गुरु कुल में निवास कर इन्द्रियों का संयम करे गुरु की आज्ञा में रहे त्रिकाल संध्या करें भिक्षा से जीवन यापन करें। गृहस्थ धर्म के बाद पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त होने पर वानप्रस्थ लेना चाहिए घर से दूर किसी पवित्र स्थान में रहकर सलोन वृत्ति से जीवन यापन करते हुए भगवान का भजन करें।

इति द्वादशोऽध्यायः

सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - सप्तमः स्कन्ध - त्रयोदशो अध्यायः - (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -  

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(अथ त्रयोदशोऽध्यायः )यतिधर्म का निरुपण और अवधूत प्रहलाद संवाद (YatiDharm Ka Nirupan Aur Avadhut Prahalad Sanvad in Hindi):-

अपेक्षा न रखकर पृथ्वी पर विचरण करे एक कोपीन लगावे दण्ड आदि धर्म चिह्नों के अलावा कोई वस्तु न रखें यही सन्यास धर्म है इस संदर्भ में एक दत्तात्रेय और प्रह्लादजी का आख्यान है। एक समय प्रहलादजी कही भ्रमण कर रहे थे रास्ते में उन्हें धरती पर पड़ा एक अवधूत मिला जिसके शरीर पर केवल एक कोपीन थी न बिस्तर न तकिया प्रहलादजी ने उन्हें प्रणाम किया और उनसे उनका परिचय जानना चाहा दत्तात्रेय बोले जब भूमि सोने के लिए है हाथ का सिराना है कोई दे देता है तो खा लेता हूँ। वर्ना आनंद से भजन करता हूँ यहि संन्यास धर्म है।

इति त्रयोदशोऽध्यायः



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