सकट चौथ व्रत कथा (Sakat Chauth Pauranik Vrat Katha - Ek Sahukar Aur Ek Sahukarni Lyrics in Hindi) - एक साहूकार और साहूकारनी - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind


सकट चौथ व्रत कथा (Sakat Chauth Pauranik Vrat Katha - Ek Sahukar Aur Ek Sahukarni Lyrics in Hindi) - 


एक साहूकार और एक साहूकारनी थे। वह धर्म पुण्य को नहीं मानते थे। इसके कारण उनके कोई बच्चा नहीं था। एक दिन साहूकारनी पडोसी के घर गयी। उस दिन सकट चौथ था वहाँ पड़ोसन सकट चौथ की पूजा करके कहानी सुना रही थी।


साहूकारनी ने पड़ोसन से पूछा: तुम क्या कर रही हो?

तब पड़ोसन बोली कि आज चौथ का व्रत है इसलिए कहानी सुना रही हूँ।

तब साहूकारनी बोली: चौथ के व्रत करने से क्या होता है?

तब पड़ोसन बोली: इसे करने से अन्न धन सुहाग पुत्र सब मिलता है।

तब साहूकारनी ने कहा: यदि मेरा गर्भ रह जाये तो में सवा सेर तिलकुट करुँगी और चौथ का व्रत करुँगी।


श्री गणेश भगवान की कृपया से साहूकारनी के गर्भ रह गया। तो वह बोली कि मेरे लड़का हो जाये तो में ढाई सेर तिलकुट करुँगी। कुछ दिन बाद उसके लड़का हो गया तो वह बोली कि हे चौथ भगवान! मेरे बेटे का विवाह हो जायेगा तो सवा पांच सेर का तिलकुट करुँगी।


कुछ वर्षो बाद उसके बेटे का विवाह तय हो गया और उसका बेटा विवाह करने चला गया। लेकिन उस साहूकारनी ने तिलकुट नहीं किया। इस कारण से चौथ देव क्रोधित हो गये और उन्होंने फेरो से उसके बेटे को उठाकर पीपल के पेड़ पर बिठा दिया। सभी वर को खोजने लगे पर वो नहीं मिला हतास होकर सारे लोग अपने-अपने घर को लौट गए। इधर जिस लड़की से साहूकारनी के लड़के का विवाह होने वाला था वह अपनी सहेलियों के साथ गणगौर पूजने के लिए जंगल में दूब लेने गयी।


तभी रास्ते में पीपल के पेड़ से आवाज आई: ओ मेरी अर्धब्यहि!

यह बात सुनकर जब लड़की घर आयी उसके बाद वह धीरे-धीरे सूख कर काँटा होने लगी।


एक दिन लड़की की माँ ने कहा: मैं तुम्हें अच्छा खिलाती हूँ अच्छा पहनाती हूँ फिर भी तू सूखती जा रही है? ऐसा क्यों?

तब लड़की अपनी माँ से बोली कि वह जब भी दूब लेने जंगल जाती है तो पीपल के पेड़ से एक आदमी बोलता है कि ओ मेरी अर्धब्यहि।


उसने मेहँदी लगा राखी है और सेहरा भी बांध रखा है। तब उसकी माँ ने पीपल के पेड़ के पास जा कर देखा यह तो उसका जमाई ही है।

तब उसकी माँ ने जमाई से कहा: यहाँ क्यों बैठे हैं? मेरी बेटी तो अर्धब्यहि कर दी और अब क्या लोगे?

साहूकारनी का बेटा बोला: मेरी माँ ने चौथ का तिलकुट बोला था लेकिन नहीं किया इस लिए चौथ माता ने नाराज हो कर यहाँ बैठा दिया।


यह सुनकर उस लड़की की माँ साहूकारनी के घर गई और उससे पूछा कि तुमने सकट चौथ का कुछ बोला है क्या?

तब साहूकारनी बोली: तिलकुट बोला था। उसके बाद साहूकारनी बोली मेरा बेटा घर आजाये तो ढाई मन का तिलकुट करुँगी।


इससे श्री गणेश भगवन प्रसंन हो गए और उसके बेटे को फेरों में लाकर बैठा दिया। बेटे का विवाह धूम-धाम से हो गया। जब साहूकारनी के बेटा एवं बहू घर आगए तब साहूकारनी ने ढाई मन तिलकुट किया और बोली हे चौथ देव! आप के आशीर्वाद से मेरे बेटा-बहू घर आये हैं जिससे में हमेसा तिलकुट करके व्रत करुँगी। इसके बाद सारे नगर वासियों ने तिलकुट के साथ सकट व्रत करना प्रारम्भ कर दिया।


हे सकट चौथ! जिस तरह साहूकारनी को बेटे-बहू से मिलवाया वैसे ही हम सब को मिलवाना। इस कथा को कहने सुनने वालों का भला करना।

बोलो सकट चौथ की जय। श्री गणेश देव की जय।


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