कबीर नाव जर्जरी कूड़े खेवनहार दोहे का अर्थ(Kabir Nav Jarjari Kude Khevanhar Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर नाव जर्जरी कूड़े खेवनहार ।
हलके हलके तिरि गए बूड़े तिनि सर भार !।
कबीर नाव जर्जरी कूड़े खेवनहार दोहे का अर्थ(Kabir Nav Jarjari Kude Khevanhar Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर कहते हैं कि जीवन की नौका टूटी फूटी है जर्जर है उसे खेने वाले मूर्ख हैं जिनके सर पर विषय वासनाओं का बोझ है वे तो संसार सागर में डूब जाते हैं – संसारी हो कर रह जाते हैं दुनिया के धंधों से उबर नहीं पाते – उसी में उलझ कर रह जाते हैं पर जो इनसे मुक्त हैं – हलके हैं वे तर जाते हैं पार लग जाते हैं भव सागर में डूबने से बच जाते हैं।
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