श्री राम कौशल्या संवाद (shree raam kaushalya sanvaad Lyric in Hindi) - kaushalya raam sanvaad - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind


श्री राम कौशल्या संवाद (shree raam kaushalya sanvaad Lyric in Hindi ) - 


( श्री राम कौशल्या संवाद  )


* अति बिषाद बस लोग लोगाईं। गए मातु पहिं रामु गोसाईं॥

मुख प्रसन्न चित चौगुन चाऊ। मिटा सोचु जनि राखै राऊ॥4॥


भावार्थ: -सभी पुरुष और स्त्रियाँ अत्यंत विषाद के वश हो रहे हैं। स्वामी श्री रामचंद्रजी माता कौसल्या के पास गए। उनका मुख प्रसन्न है और चित्त में चौगुना चाव (उत्साह) है। यह सोच मिट गया है कि राजा कहीं रख न लें। (श्री रामजी को राजतिलक की बात सुनकर विषाद हुआ था कि सब भाइयों को छोड़कर बड़े भाई मुझको ही राजतिलक क्यों होता है। अब माता कैकेयी की आज्ञा और पिता की मौन सम्मति पाकर वह सोच मिट गया।)॥4॥


दोहा :

* नव गयंदु रघुबीर मनु राजु अलान समान।

छूट जानि बन गवनु सुनि उर अनंदु अधिकान॥51॥


भावार्थ: -श्री रामचंद्रजी का मन नए पकड़े हुए हाथी के समान और राजतिलक उस हाथी के बाँधने की काँटेदार लोहे की बेड़ी के समान है। 'वन जाना है' यह सुनकर अपने को बंधन से छूटा जानकर उनके हृदय में आनंद बढ़ गया है॥51॥


चौपाई :

* रघुकुलतिलक जोरि दोउ हाथा। मुदित मातु पद नायउ माथा॥

दीन्हि असीस लाइ उर लीन्हे। भूषन बसन निछावरि कीन्हे॥1॥


भावार्थ: -रघुकुल तिलक श्री रामचंद्रजी ने दोनों हाथ जोड़कर आनंद के साथ माता के चरणों में सिर नवाया। माता ने आशीर्वाद दिया अपने हृदय से लगा लिया और उन पर गहने तथा कपड़े निछावर किए॥1॥


* बार-बार मुख चुंबति माता। नयन नेह जलु पुलकित गाता॥

गोद राखि पुनि हृदयँ लगाए। स्रवत प्रेमरस पयद सुहाए॥2॥


भावार्थ: -माता बार-बार श्री रामचंद्रजी का मुख चूम रही हैं। नेत्रों में प्रेम का जल भर आया है और सब अंग पुलकित हो गए हैं। श्री राम को अपनी गोद में बैठाकर फिर हृदय से लगा लिया। सुंदर स्तन प्रेमरस (दूध) बहाने लगे॥2॥


* प्रेमु प्रमोदु न कछु कहि जाई। रंक धनद पदबी जनु पाई॥

सादर सुंदर बदनु निहारी। बोली मधुर बचन महतारी॥3॥


भावार्थ: -उनका प्रेम और महान् आनंद कुछ कहा नहीं जाता। मानो कंगाल ने कुबेर का पद पा लिया हो। बड़े आदर के साथ सुंदर मुख देखकर माता मधुर वचन बोलीं-॥3॥


* कहहु तात जननी बलिहारी। कबहिं लगन मुद मंगलकारी॥

सुकृत सील सुख सीवँ सुहाई। जनम लाभ कइ अवधि अघाई॥4॥


भावार्थ: -हे तात! माता बलिहारी जाती है कहो वह आनंद- मंगलकारी लग्न कब है जो मेरे पुण्य शील और सुख की सुंदर सीमा है और जन्म लेने के लाभ की पूर्णतम अवधि है॥4॥


दोहा :

* जेहि चाहत नर नारि सब अति आरत एहि भाँति।

जिमि चातक चातकि तृषित बृष्टि सरद रितु स्वाति॥52॥


भावार्थ: -तथा जिस (लग्न) को सभी स्त्री-पुरुष अत्यंत व्याकुलता से इस प्रकार चाहते हैं जिस प्रकार प्यास से चातक और चातकी शरद् ऋतु के स्वाति नक्षत्र की वर्षा को चाहते हैं॥52॥


चौपाई :

* तात जाउँ बलि बेगि नाहाहू। जो मन भाव मधुर कछु खाहू॥

पितु समीप तब जाएहु भैआ। भइ बड़ि बार जाइ बलि मैआ॥1॥


भावार्थ: -हे तात! मैं बलैया लेती हूँ तुम जल्दी नहा लो और जो मन भावे कुछ मिठाई खा लो। भैया! तब पिता के पास जाना। बहुत देर हो गई है माता बलिहारी जाती है॥1॥


* मातु बचन सुनि अति अनुकूला। जनु सनेह सुरतरु के फूला॥

सुख मकरंद भरे श्रियमूला। निरखि राम मनु भवँरु न भूला॥2


भावार्थ: -माता के अत्यंत अनुकूल वचन सुनकर- जो मानो स्नेह रूपी कल्पवृक्ष के फूल थे जो सुख रूपी मकरन्द (पुष्परस) से भरे थे और श्री (राजलक्ष्मी) के मूल थे- ऐसे वचन रूपी फूलों को देकर श्री रामचंद्रजी का मन रूपी भौंरा उन पर नहीं भूला॥2॥


* धरम धुरीन धरम गति जानी। कहेउ मातु सन अति मृदु बानी॥

पिताँ दीन्ह मोहि कानन राजू। जहँ सब भाँति मोर बड़ काजू॥3॥


भावार्थ: -धर्मधुरीण श्री रामचंद्रजी ने धर्म की गति को जानकर माता से अत्यंत कोमल वाणी से कहा- हे माता! पिताजी ने मुझको वन का राज्य दिया है जहाँ सब प्रकार से मेरा बड़ा काम बनने वाला है॥3॥ 


* आयसु देहि मुदित मन माता। जेहिं मुद मंगल कानन जाता॥

जनि सनेह बस डरपसि भोरें। आनँदु अंब अनुग्रह तोरें॥4॥


भावार्थ: -हे माता! तू प्रसन्न मन से मुझे आज्ञा दे जिससे मेरी वन यात्रा में आनंद-मंगल हो। मेरे स्नेहवश भूलकर भी डरना नहीं। हे माता! तेरी कृपा से आनंद ही होगा॥4॥


दोहा :

* बरष चारिदस बिपिन बसि करि पितु बचन प्रमान।

आइ पाय पुनि देखिहउँ मनु जनि करसि मलान॥53॥


भावार्थ: -चौदह वर्ष वन में रहकर पिताजी के वचन को प्रमाणित (सत्य) कर फिर लौटकर तेरे चरणों का दर्शन करूँगा तू मन को म्लान (दुःखी) न कर॥53॥


चौपाई :

* बचन बिनीत मधुर रघुबर के। सर सम लगे मातु उर करके॥

सहमि सूखि सुनि सीतलि बानी। जिमि जवास परें पावस पानी॥1॥


भावार्थ: -रघुकुल में श्रेष्ठ श्री रामजी के ये बहुत ही नम्र और मीठे वचन माता के हृदय में बाण के समान लगे और कसकने लगे। उस शीतल वाणी को सुनकर कौसल्या वैसे ही सहमकर सूख गईं जैसे बरसात का पानी पड़ने से जवासा सूख जाता है॥1॥ 


* कहि न जाइ कछु हृदय बिषादू। मनहुँ मृगी सुनि केहरि नादू॥

नयन सजल तन थर थर काँपी। माजहि खाइ मीन जनु मापी॥2॥


भावार्थ: -हृदय का विषाद कुछ कहा नहीं जाता। मानो सिंह की गर्जना सुनकर हिरनी विकल हो गई हो। नेत्रों में जल भर आया शरीर थर-थर काँपने लगा। मानो मछली माँजा (पहली वर्षा का फेन) खाकर बदहवास हो गई हो!॥2॥


* धरि धीरजु सुत बदनु निहारी। गदगद बचन कहति महतारी॥

तात पितहि तुम्ह प्रानपिआरे। देखि मुदित नित चरित तुम्हारे॥3॥


भावार्थ: -धीरज धरकर पुत्र का मुख देखकर माता गदगद वचन कहने लगीं- हे तात! तुम तो पिता को प्राणों के समान प्रिय हो। तुम्हारे चरित्रों को देखकर वे नित्य प्रसन्न होते थे॥3॥


* राजु देन कहुँ सुभ दिन साधा। कहेउ जान बन केहिं अपराधा॥

तात सुनावहु मोहि निदानू। को दिनकर कुल भयउ कृसानू॥4॥


भावार्थ: -राज्य देने के लिए उन्होंने ही शुभ दिन शोधवाया था। फिर अब किस अपराध से वन जाने को कहा? हे तात! मुझे इसका कारण सुनाओ! सूर्यवंश (रूपी वन) को जलाने के लिए अग्नि कौन हो गया?॥4॥


दोहा :

* निरखि राम रुख सचिवसुत कारनु कहेउ बुझाइ।

सुनि प्रसंगु रहि मूक जिमि दसा बरनि नहिं जाइ॥54॥


भावार्थ: - तब श्री रामचन्द्रजी का रुख देखकर मन्त्री के पुत्र ने सब कारण समझाकर कहा। उस प्रसंग को सुनकर वे गूँगी जैसी (चुप) रह गईं उनकी दशा का वर्णन नहीं किया जा सकता॥54॥

चौपाई :

* राखि न सकइ न कहि सक जाहू। दुहूँ भाँति उर दारुन दाहू॥

लिखत सुधाकर गा लिखि राहू। बिधि गति बाम सदा सब काहू॥1॥


भावार्थ: -न रख ही सकती हैं न यह कह सकती हैं कि वन चले जाओ। दोनों ही प्रकार से हृदय में बड़ा भारी संताप हो रहा है। (मन में सोचती हैं कि देखो-) विधाता की चाल सदा सबके लिए टेढ़ी होती है। लिखने लगे चन्द्रमा और लिखा गया राहु॥1॥


* धरम सनेह उभयँ मति घेरी। भइ गति साँप छुछुंदरि केरी॥

राखउँ सुतहि करउँ अनुरोधू। धरमु जाइ अरु बंधु बिरोधू॥2॥


भावार्थ: -धर्म और स्नेह दोनों ने कौसल्याजी की बुद्धि को घेर लिया। उनकी दशा साँप-छछूँदर की सी हो गई। वे सोचने लगीं कि यदि मैं अनुरोध (हठ) करके पुत्र को रख लेती हूँ तो धर्म जाता है और भाइयों में विरोध होता है॥2॥


* कहउँ जान बन तौ बड़ि हानी। संकट सोच बिबस भइ रानी॥

बहुरि समुझि तिय धरमु सयानी। रामु भरतु दोउ सुत सम जानी॥3॥


भावार्थ: -और यदि वन जाने को कहती हूँ तो बड़ी हानि होती है। इस प्रकार के धर्मसंकट में पड़कर रानी विशेष रूप से सोच के वश हो गईं। फिर बुद्धिमती कौसल्याजी स्त्री धर्म (पातिव्रत धर्म) को समझकर और राम तथा भरत दोनों पुत्रों को समान जानकर-॥3॥


* सरल सुभाउ राम महतारी। बोली बचन धीर धरि भारी॥

तात जाउँ बलि कीन्हेहु नीका। पितु आयसु सब धरमक टीका॥4॥


भावार्थ: -सरल स्वभाव वाली श्री रामचन्द्रजी की माता बड़ा धीरज धरकर वचन बोलीं- हे तात! मैं बलिहारी जाती हूँ तुमने अच्छा किया। पिता की आज्ञा का पालन करना ही सब धर्मों का शिरोमणि धर्म है॥4॥


दोहा :

* राजु देन कहिदीन्ह बनु मोहि न सो दुख लेसु।

तुम्ह बिनु भरतहि भूपतिहि प्रजहि प्रचंड कलेसु॥55॥


भावार्थ: -राज्य देने को कहकर वन दे दिया उसका मुझे लेशमात्र भी दुःख नहीं है। (दुःख तो इस बात का है कि) तुम्हारे बिना भरत को महाराज को और प्रजा को बड़ा भारी क्लेश होगा॥55॥

चौपाई :

* जौं केवल पितु आयसु ताता। तौ जनि जाहु जानि बड़ि माता॥

जौं पितु मातु कहेउ बन जाना। तौ कानन सत अवध समाना॥1॥


भावार्थ: -हे तात! यदि केवल पिताजी की ही आज्ञा हो तो माता को (पिता से) बड़ी जानकर वन को मत जाओ किन्तु यदि पिता-माता दोनों ने वन जाने को कहा हो तो वन तुम्हारे लिए सैकड़ों अयोध्या के समान है॥1॥


* पितु बनदेव मातु बनदेवी। खग मृग चरन सरोरुह सेवी॥

अंतहुँ उचित नृपहि बनबासू। बय बिलोकि हियँ होइ हराँसू॥2॥


भावार्थ: -वन के देवता तुम्हारे पिता होंगे और वनदेवियाँ माता होंगी। वहाँ के पशु-पक्षी तुम्हारे चरणकमलों के सेवक होंगे। राजा के लिए अंत में तो वनवास करना उचित ही है। केवल तुम्हारी (सुकुमार) अवस्था देखकर हृदय में दुःख होता है॥2॥


* बड़भागी बनु अवध अभागी। जो रघुबंसतिलक तुम्ह त्यागी॥

जौं सुत कहौं संग मोहि लेहू। तुम्हरे हृदयँ होइ संदेहू॥3॥


भावार्थ: -हे रघुवंश के तिलक! वन बड़ा भाग्यवान है और यह अवध अभागा है जिसे तुमने त्याग दिया। हे पुत्र! यदि मैं कहूँ कि मुझे भी साथ ले चलो तो तुम्हारे हृदय में संदेह होगा (कि माता इसी बहाने मुझे रोकना चाहती हैं)॥3॥


* पूत परम प्रिय तुम्ह सबही के। प्रान प्रान के जीवन जी के॥

ते तुम्ह कहहु मातु बन जाऊँ। मैं सुनि बचन बैठि पछिताऊँ॥4॥


भावार्थ: -हे पुत्र! तुम सभी के परम प्रिय हो। प्राणों के प्राण और हृदय के जीवन हो। वही (प्राणाधार) तुम कहते हो कि माता! मैं वन को जाऊँ और मैं तुम्हारे वचनों को सुनकर बैठी पछताती हूँ!॥4॥


दोहा :

* यह बिचारि नहिं करउँ हठ झूठ सनेहु बढ़ाइ।

मानि मातु कर नात बलि सुरति बिसरि जनि जाइ॥56॥


भावार्थ: -यह सोचकर झूठा स्नेह बढ़ाकर मैं हठ नहीं करती! बेटा! मैं बलैया लेती हूँ माता का नाता मानकर मेरी सुध भूल न जाना॥56॥

चौपाई :

* देव पितर सब तुम्हहि गोसाईं। राखहुँ पलक नयन की नाईं॥

अवधि अंबु प्रिय परिजन मीना। तुम्ह करुनाकर धरम धुरीना॥1॥


भावार्थ: -हे गोसाईं! सब देव और पितर तुम्हारी वैसी ही रक्षा करें जैसे पलकें आँखों की रक्षा करती हैं। तुम्हारे वनवास की अवधि (चौदह वर्ष) जल है प्रियजन और कुटुम्बी मछली हैं। तुम दया की खान और धर्म की धुरी को धारण करने वाले हो॥1॥


* अस बिचारि सोइ करहु उपाई। सबहि जिअत जेहिं भेंटहु आई॥

जाहु सुखेन बनहि बलि जाऊँ। करि अनाथ जन परिजन गाऊँ॥2॥


भावार्थ: -ऐसा विचारकर वही उपाय करना जिसमें सबके जीते जी तुम आ मिलो। मैं बलिहारी जाती हूँ तुम सेवकों परिवार वालों और नगर भर को अनाथ करके सुखपूर्वक वन को जाओ॥2॥


* सब कर आजु सुकृत फल बीता। भयउ कराल कालु बिपरीता॥

बहुबिधि बिलपि चरन लपटानी। परम अभागिनि आपुहि जानी॥3॥


भावार्थ: -आज सबके पुण्यों का फल पूरा हो गया। कठिन काल हमारे विपरीत हो गया। (इस प्रकार) बहुत विलाप करके और अपने को परम अभागिनी जानकर माता श्री रामचन्द्रजी के चरणों में लिपट गईं॥3॥


* दारुन दुसह दाहु उर ब्यापा। बरनि न जाहिं बिलाप कलापा॥

राम उठाइ मातु उर लाई। कहि मृदु बचन बहुरि समुझाई॥4॥


भावार्थ: - हृदय में भयानक दुःसह संताप छा गया। उस समय के बहुविध विलाप का वर्णन नहीं किया जा सकता। श्री रामचन्द्रजी ने माता को उठाकर हृदय से लगा लिया और फिर कोमल वचन कहकर उन्हें समझाया॥4॥

दोहा :

* समाचार तेहि समय सुनि सीय उठी अकुलाइ।

जाइ सासु पद कमल जुग बंदि बैठि सिरु नाइ॥57॥


भावार्थ: -उसी समय यह समाचार सुनकर सीताजी अकुला उठीं और सास के पास जाकर उनके दोनों चरणकमलों की वंदना कर सिर नीचा करके बैठ गईं॥57॥

चौपाई :

* दीन्हि असीस सासु मृदु बानी। अति सुकुमारि देखि अकुलानी॥

बैठि नमित मुख सोचति सीता। रूप रासि पति प्रेम पुनीता॥1॥


भावार्थ: -सास ने कोमल वाणी से आशीर्वाद दिया। वे सीताजी को अत्यन्त सुकुमारी देखकर व्याकुल हो उठीं। रूप की राशि और पति के साथ पवित्र प्रेम करने वाली सीताजी नीचा मुख किए बैठी सोच रही हैं॥1॥


* चलन चहत बन जीवननाथू। केहि सुकृती सन होइहि साथू॥

की तनु प्रान कि केवल प्राना। बिधि करतबु कछु जाइ न जाना॥2॥


भावार्थ: -जीवननाथ (प्राणनाथ) वन को चलना चाहते हैं। देखें किस पुण्यवान से उनका साथ होगा- शरीर और प्राण दोनों साथ जाएँगे या केवल प्राण ही से इनका साथ होगा? विधाता की करनी कुछ जानी नहीं जाती॥2॥


* चारु चरन नख लेखति धरनी। नूपुर मुखर मधुर कबि बरनी॥

मनहुँ प्रेम बस बिनती करहीं। हमहि सीय पद जनि परिहरहीं॥3॥


भावार्थ: -सीताजी अपने सुंदर चरणों के नखों से धरती कुरेद रही हैं। ऐसा करते समय नूपुरों का जो मधुर शब्द हो रहा है कवि उसका इस प्रकार वर्णन करते हैं कि मानो प्रेम के वश होकर नूपुर यह विनती कर रहे हैं कि सीताजी के चरण कभी हमारा त्याग न करें॥3॥


* मंजु बिलोचन मोचति बारी। बोली देखि राम महतारी॥

तात सुनहु सिय अति सुकुमारी। सास ससुर परिजनहि पिआरी॥4॥


भावार्थ: -सीताजी सुंदर नेत्रों से जल बहा रही हैं। उनकी यह दशा देखकर श्री रामजी की माता कौसल्याजी बोलीं- हे तात! सुनो सीता अत्यन्त ही सुकुमारी हैं तथा सास ससुर और कुटुम्बी सभी को प्यारी हैं॥4॥


दोहा :

* पिता जनक भूपाल मनि ससुर भानुकुल भानु।

पति रबिकुल कैरव बिपिन बिधु गुन रूप निधानु॥58॥


भावार्थ: -इनके पिता जनकजी राजाओं के शिरोमणि हैं ससुर सूर्यकुल के सूर्य हैं और पति सूर्यकुल रूपी कुमुदवन को खिलाने वाले चन्द्रमा तथा गुण और रूप के भंडार हैं॥58॥


* मैं पुनि पुत्रबधू प्रिय पाई। रूप रासि गुन सील सुहाई॥

नयन पुतरि करि प्रीति बढ़ाई। राखेउँ प्रान जानकिहिं लाई॥1॥


भावार्थ: -फिर मैंने रूप की राशि सुंदर गुण और शीलवाली प्यारी पुत्रवधू पाई है। मैंने इन (जानकी) को आँखों की पुतली बनाकर इनसे प्रेम बढ़ाया है और अपने प्राण इनमें लगा रखे हैं॥1॥


* कलपबेलि जिमि बहुबिधि लाली। सींचि सनेह सलिल प्रतिपाली॥

फूलत फलत भयउ बिधि बामा। जानि न जाइ काह परिनामा॥2॥


भावार्थ: -इन्हें कल्पलता के समान मैंने बहुत तरह से बड़े लाड़-चाव के साथ स्नेह रूपी जल से सींचकर पाला है। अब इस लता के फूलने-फलने के समय विधाता वाम हो गए। कुछ जाना नहीं जाता कि इसका क्या परिणाम होगा॥2॥


* पलँग पीठ तजि गोद हिंडोरा। सियँ न दीन्ह पगु अवनि कठोरा॥

जिअनमूरि जिमि जोगवत रहउँ। दीप बाति नहिं टारन कहऊँ॥3॥


भावार्थ: -सीता ने पर्यंकपृष्ठ (पलंग के ऊपर) गोद और हिंडोले को छोड़कर कठोर पृथ्वी पर कभी पैर नहीं रखा। मैं सदा संजीवनी जड़ी के समान (सावधानी से) इनकी रखवाली करती रही हूँ। कभी दीपक की बत्ती हटाने को भी नहीं कहती॥3॥


* सोइ सिय चलन चहति बन साथा। आयसु काह होइ रघुनाथा॥

चंद किरन रस रसिक चकोरी। रबि रुखनयन सकइ किमि जोरी॥4॥


भावार्थ: -वही सीता अब तुम्हारे साथ वन चलना चाहती है। हे रघुनाथ! उसे क्या आज्ञा होती है? चन्द्रमा की किरणों का रस (अमृत) चाहने वाली चकोरी सूर्य की ओर आँख किस तरह मिला सकती है॥4॥


दोहा :

* करि केहरि निसिचर चरहिं दुष्ट जंतु बन भूरि।

बिष बाटिकाँ कि सोह सुत सुभग सजीवनि मूरि॥59॥


भावार्थ: -हाथी सिंह राक्षस आदि अनेक दुष्ट जीव-जन्तु वन में विचरते रहते हैं। हे पुत्र! क्या विष की वाटिका में सुंदर संजीवनी बूटी शोभा पा सकती है?॥59॥


चौपाई :

* बन हित कोल किरात किसोरी। रचीं बिरंचि बिषय सुख भोरी॥

पाहन कृमि जिमि कठिन सुभाऊ। तिन्हहि कलेसु न कानन काऊ॥1॥


भावार्थ: -वन के लिए तो ब्रह्माजी ने विषय सुख को न जानने वाली कोल और भीलों की लड़कियों को रचा है जिनका पत्थर के कीड़े जैसा कठोर स्वभाव है। उन्हें वन में कभी क्लेश नहीं होता॥1॥


* कै तापस तिय कानन जोगू। जिन्ह तप हेतु तजा सब भोगू॥

सिय बन बसिहि तात केहि भाँती। चित्रलिखित कपि देखि डेराती॥2॥


भावार्थ: -अथवा तपस्वियों की स्त्रियाँ वन में रहने योग्य हैं जिन्होंने तपस्या के लिए सब भोग तज दिए हैं। हे पुत्र! जो तसवीर के बंदर को देखकर डर जाती हैं वे सीता वन में किस तरह रह सकेंगी?॥2॥


* सुरसर सुभग बनज बन चारी। डाबर जोगु कि हंसकुमारी॥

अस बिचारि जस आयसु होई। मैं सिख देउँ जानकिहि सोई॥3॥


भावार्थ: -देवसरोवर के कमल वन में विचरण करने वाली हंसिनी क्या गड़ैयों (तलैयों) में रहने के योग्य है? ऐसा विचार कर जैसी तुम्हारी आज्ञा हो मैं जानकी को वैसी ही शिक्षा दूँ॥3॥


* जौं सिय भवन रहै कह अंबा। मोहि कहँ होइ बहुत अवलंबा॥

सुनि रघुबीर मातु प्रिय बानी। सील सनेह सुधाँ जनु सानी॥4॥


भावार्थ: -माता कहती हैं- यदि सीता घर में रहें तो मुझको बहुत सहारा हो जाए। श्री रामचन्द्रजी ने माता की प्रिय वाणी सुनकर जो मानो शील और स्नेह रूपी अमृत से सनी हुई थी॥4॥


दोहा :

* कहि प्रिय बचन बिबेकमय कीन्हि मातु परितोष।

लगे प्रबोधन जानकिहि प्रगटि बिपिन गुन दोष॥60॥

भावार्थ: -विवेकमय प्रिय वचन कहकर माता को संतुष्ट किया। फिर वन के गुण-दोष प्रकट करके वे जानकीजी को समझाने लगे॥60॥


श्री राम कौशल्या संवाद (shree raam kaushalya sanvaad Lyric in English) - 


|| shree raam-kaushalya sanvaad ||


* ati bishaad bas logaeen. gae maatu pahin raamu gosaeen.

chaugunee chaugunee. vinaash sochu jani raakhai raoo.4.


bhaavaarth: - sabhee purush aur striyaan atyant vishaad ke vash ho rahe hain. svaamee shree raamachandrajee maata kausalya ke paas gae. unaka mukh hai aur chitt mein chauguna chaav (utsaah) hai. yah soch samajh kar kahee gaee hai ki raaja kaheen bhee na len. (shree raamajee ko raajatilak kee baat sunakar vishad hua tha ki sabhee bhaiyon ko chhodakar bhaee mujhako hee raajatilak kyon hota hai. ab maata kaikeyee kee aagya aur pita kee maun sammati paakar soch mit gaee.).4.


doha :

* nav gayandu raghubeer manu raaju alaan samaan.

chhoot jaani ban gavanu suni ur anandu adhikaan.51.


bhaavaarth: - shree raamachandrajee ka man nae pakade gae haathee ke samaan aur raajatilak us haathee ke pakadaane kee kaantedaar aayaran kee bedee ke samaan hai. van ho gaya hai yah sunane ko unake bandhan se chhoot unake hrday mein jaanakar aanand badh gaya hai.51.


chaupaya :

* raghukulatilak joridou haatha. mudit maatu pad naayu maatha.

deenhees as lai ur linhe. bhooshan basan nichhaavaree keenhe.1.


bhaavaarth: -raghukul tilak shree raamachandrajee ne donon haath jodakar aanand ke saath maata ke staij mein sir navaaya. maataajee ne aasheervaad diya apane dil se liya aur un par gahane aur kapade nichhaavar kie.1.


* baar-baar mukh chumbati maata. nayan neh jalupulakit gaata.

dor raakhi puni hrdayaans lagata hai. sarvavat premaras paayad suhae.2.


bhaavaarth: -maata baar-baar shree raamachandrajee ka mukh choom rahee hain. aankhon mein prem ka jal bhar aaya hai aur sab ang pulakit ho gae hain. shree raam ko apanee god mein baithekar phir hrday se laga liya. sundarachitt premaras (doodh) math lage.2.


* premu pramodu na kachhu kahi jaee. rank dhanad padabee janu paee.

sadar sundar badanu nihaaree. bolee madhur bachat mahataaree.3.


bhaavaarth: -unaka prem aur mahaan aanand kuchh kaha nahin jaata. maano kangal ne kuber ka pad pa liya ho. bade aadar ke saath sundar mukh dekhakar maata madhur vachan boleen-.3.

* kahahu taat jananee balihaaree. kabahin lagan mud mangalakaaree.

sukrt seel hee seevaan suhela. janam laabh kee avadhi aghaee.4.


bhaavaarth: -he taat! maata balihaaree kahatee hain ki vah aanand- mangalakaaree lagn kab hai jo mere puny sheel aur sukh kee sundar seema hai aur janm lene ke laabh kee poornatam avadhi hai.4.


doha :

* jehi chaahat nar naari sab ati aarat ehi bhaanati.

jimi chaatak chaataki trshit brshti sarad ritu svaati.52.


bhaavaarth: -tatha jis (lagn) ko sabhee stree-purush atyant vyaakulata se is prakaar chaahate hain jis prakaar prshth se chaatak aur chaatakee sharad rtu ke svaati nakshatr kee varsha ko chaahate hain.52.


chaupaya :

* taat jaun bali begee naahoo. jo man bhaav madhur kachhu khaahoo.

pitu tab nikat jaanehu bhaee. bhaee badee baar jay bali maia.1.


bhaavaarth: -he taat! main balaiya leta hoon tum jaldee naha lo aur jo man bhaave kuchh mithaee kha lo. bhaiya! tab pita ke paas gaya. bahut der ho gaee hai maata balihaaree jaatee hai.1.

* maatu bachan suni ati anukool. janu sanehasurataru ke phoola.

sukh amaanad shriyam. nirakhi raam manu bhanru na bhoola.2.


bhaavaarth: -maata ke atyant anukool vachan sunana- jo maano sneh roopee kalpavrksh ke phool the jo sukh roopee makarand (pushparas) se baura the aur shree (raajalakshmee) ke mool the- aise vachan ke roop mein phoolon ko dene vaale shree raamachandrajee ka man roopee barnara. par nahin bhoola.2.

* dharam dhurin dharam gati jaanee. kaho maatu san ati mrdu baanee.

pita deenh mohi kaanan raajoo. jahaan sab bhaanti mor bad kaajoo.3.


bhaavaarth: -dharmadhureen shree raamachandrajee ne dharm kee gati ko jaanakar maata se atyant komal vaanee se kaha- he maata! kukhyaat ne mujhako van ka raajy diya hai jahaan sab prakaar se mera bada kaam banane vaala hai.3.


* aayasu dehi mudit man maata. jehin mud mangal kaanan.

jaanee saneh bas darapasi bhoren. aanand amb anugrah toren.4.


bhaavaarth: - he maata! too man se mujhe aagya de jisase meree van yaatra mein aanand-mangal ho. mere snehavash bhoolakar bhee darana nahin. he maata! tera krpa se aanand hee hoga.4.


doha :

* barash chaaridas bipin basi kari pitu bachan pramaan.

aai paay puni dekhihoon manu jaanee karasi malaan.53.


bhaavaarth: -chaudah varsh van mein praapt praaptakarta ke vachan ko pramaanit (saty) kar phir lautakar tere charanon ka darshan dekhate hue man komlaan (duhkhee) na kar.53.

chaupaya :

* bachan bineet madhur raghubar ke. sar sam lage maatu ur karake.

sahami sukhi suni seetaali baanee. jimi javaas paren paavas paanee.1.


bhaavaarth: -raghukul mein shreshth shree raamajee ke ye bahut hee nambar aur chune hue vachan maata ke hrday mein baan ke gun dene aur kasane lage. us sheetal vaanee ko sunakar kausalya vaise hee sahamakar sukh jaise barasaat ka paanee se javaasa sukh jaata hai.1.

*kaha na jai kachhu hrday bishaadoo. manahun mrgee suni kehari naadoo.

nayan sajal tan thur kaanpee. maajahi khai meen jaanoo pairee.2.


bhaavaarth: -hrday ka vishaad kuchh nahin kaha jaata. maano sinh kee garjana sunakar hiranee vik ho gae. aankhon mein paanee bhar aaya shareer thar-thar kaampane laga. maano machhalee maanja (pahalee baarish ka phen) khaakar badahavaas ho gaee ho!.2.

* dhari dharu sut badanu nihaaree. gadagad bachaana kahati mahataaree.

taat pitahi tumh praanapiaare. dekhi mudit nit charit.3.


bhaavaarth: -dheeraj dharakar putr ka mukh dekhakar maata gadagad vachan kahane lageen- he taat! tum to pita ko praanon ke samaan priy ho. tumhaare charitron ko dekhakar ve nity prasann hote hain.3.

* raaju dena kahun subh din sada. kaho jaan ban kehin aparaadha.

taat sunaav mohi nidaan. ko dinakar kul bhayu krsaanoo.4.


bhaavaarth: - raajy dene ke lie unhonne hee shubh din khoja tha. phir ab kis aparaadh se van jaane ko kaha? he taat! mujhe isaka kaaran sunao! sooryavansh (roopee van) ko jalaane ke lie agni kaun ho gaee?.4.


doha :

* nirakhi raam rukh sachivasut kaaranu kahou bujhaee.

suni prasangu rahi gatik jimi dasa barani nahin jai.54.


bhaavaarth: - tab shree raamachandrajee ka rukh dekhakar mantree ke putron ne sab kaaran samajhaakar kaha. us prasang ko sunakar ve goongee jaise (chup) rah gae unakee dasha ka varnan nahin kiya ja sakata.54.

chaupaya :

* raakhi na sake na kahi saka jaahoo. duhoon bhaanti ur daarun daahoo.

lekhan sudhaakar ga lekhani raahoo. bidhi gati baam sada sab kaahoo.1.


bhaavaarth: -na rakh sakate hain na yah kah sakate hain ki van chalate hain. donon hee prakaar se hrday mein bada bhaaree santaap ho raha hai. (man mein sochatee hain ki dekhen-) vidhaata kee chaal sada sabake lie tedhee hotee hai. rait lage chandrama aur likha raahu.1.


* dharam saneh ubhayan mati ghoraghota. bhee gati saamp chhundari keree.

raakhun sutahee karun anurodh. dharmu jai arubandhu birodhoo.2.


bhaavaarth: -dharm aur sneh donon ne kausalyaajee kee buddhi ko ghinauna liya. unaka dasha sarp-chhachhandar kee see ho gaee. ve sochate hain ki yadi main nivedan (hath) karake putr ko rakhata hoon to dharm aur bhaiyon mein virodh hota hai.2.


* kahun jaan ban tau badee haanee. sankat mauka bibas bhaee raanee.

bahuri samujhi tiy dharmu sayaanee. raamu bharatudou sut sam gyaatee.3.


bhaavaarth: - aur yadi van jaane ko kaha jaata hai to badee haani hotee hai. is prakaar ke dharmasankat mein padakar raanee vishesh roop se soch ke vash ho gaee. phir buddhimatee kausalyaajee stree dharm ko samajhakar aur raam tatha bharat donon putron ko samaan jaanakar-.3.


* saral subhau raam mahataaree. bolee bachan dheer dhari bhaaree.

taat jaun bali keenhehu neeka. pitu aayasu sab dhaarmik teeka.4.


bhaavaarth: -saral svabhaav vaalee shree raamachandrajee kee maata bade dhairy dharakar vachan boleen- he taat! main balihaaree hoon achchha kiya. pita kee aagya ka paalan karana hee sab dharmon ka shiromani dharm hai.4.

doha :

* raaju dena kahidinh banu mohi na so dukh lesu.

tumh binu bharatahi bhoopatihi prajahi prachand kalesu.55.


bhaavaarth: -raajy pradaan ko desho van de diya usaka mujhe leshamaatr bhee duhkh nahin hai. (duhkh to is baat ka hai ki) tumhaare bina bharat ko mahaaraaj ko aur praja ko bada bhaaree klesh hoga.55.

chaupaya :

* jaun keval pitu aayasu taata. tau jaanee jaahu jaani badee maata.

jaun pitu maatu sauu ban jaana. tau kaanan av saadh samaana.1.


bhaavaarth: -he taat! yadi keval aparaadh kee hee aagya ho to maata-pita ko (pita se) badee jaanakar van ko mat jao yadi pita-maata donon ne van jaane ko kaha ho to van tumhaare lie saikadon ayodhya ke samaan hai.1.

* pitu banadev maatu banadevee. khag mrg charan saroruh sevee.

antahun uchit nrpahi banabaasoo. bay biloki hiyan hoi haraansoo.2.


bhaavaarth: -van ke devata aapake pita honge aur vanadeviyaan maata hongee. vahaan ke pashu-pakshee aapake charanakamale ke sevak honge. raaja ke lie ant mein to vanavaas karana uchit hee hai. keval tumhaara (sukumaar) raajy dekhakar hrday mein duhkh hota hai.2.


* badeebhaagee banu avadh abhaagee. jo raghubansatilak tumh tyaagee.

jaun sut kahaun sang mohi lehoo. tumhare hrdayaan hoi sanshay.3.


bhaavaarth: -he raghuvansh ke tilak! van bada bhaagyavaan hai aur yah avadh abhaaga hai jo kar kar tyaag diya. he bete! yadi main kahoon ki mujhe bhee saath le chalo to tumhaare hrday mein sanshay hoga (ki maata aisa main chaahata hoon).3.


* poot param priy tumh sab ke. praan praan ke jeevan jee ke.

te tumh kahahu maatu ban jaoon. main suni bachan basi pachhitaoon.4.


bhaavaarth: -he putron! tum sab ke param priy ho. praanon ke praan aur hrday ke jeevan ho. vahee (praanaadhaar) tum kaho ho ki maata! main van ko jaoon aur main tumhaare vachanon ko sunakar baithee pachhataatee hoon!.4.

doha :

* yah bichaari nahin karun hath jhooth sanehu badheei.

mani maatu kar naat balisurati bisari jaanee jai.56.


bhaavaarth: -yah ghoota ghoos badha main hath nahin karata! beta! main balaiya hoon maata ka naataar maanak meree sudh bhool na jaana.56.

chaupaya :

* dev pitar sab tumhahi gosaeen. raakhahun palak nayan kee naayan.

avadhi ambu priy parijan meena. tumh karunaakar dharam dhurena.1.


bhaavaarth: -he gosaeen! sab dev aur pitar aap vaisee hee raksha karate hain jaisee palaken aankhon kee raksha karatee hain. aapake vanavaas kee avadhi (chaudah varsh) jal hai premee aur kutumbee machhalee hain. daya tum kee khaan aur dharm kee dhuree ko dhaaran karane vaale ho.1.


* as bichaari soi karahu upaee. sabahi jiat jehin penshanarahu aaee.

jaahu sukhen banhi bali jaoon. kari anaath jan parijan gaoon.2.


bhaavaarth: -aisa vichaarakar vahee upaay karana jisamen sabake jeete jee tum aa milo. main balihaaree jaatee hoon tum sevakon parivaar aur nagar ko anaath karake sukhapoorvak van ko jao.2.


* sab kar aaju sukrt phal beeta. bhayu karaal kaalu biparita.

bahubidhi bilapi charan lapataanee. param abhaaginee aapahi jaanee.3.


bhaavaarth: - aaj pratyek puny ka phal poora ho gaya. kathin kaal hamaare vipareet ho gae. (is prakaar) bahut vilaap karake aur apane ko param abhaaginee jaanakar maata shree raamachandrajee ke charanon mein lipat gae.3.


* daarun dusah daahu ur byaapa. barani na jaahin bilaap kalaapa.

raam uthaee maatu ur laee. kahi mrdu bachan bahuri samujhaee.4.


bhaavaarth: -hrday mein bhayaanak duhsah santaap chha gaya. us samay ke bahuvidh vilaap ka varnan nahin kiya ja sakata. shree raamachandrajee ne maata ko jodakar hrday se liya aur phir komal vachan desh unhen samana.4.

doha :

* samaachaar tehi samay suni seey uthee akulaee.

jai saasu pad kamal jug bandi baithi siru nai.57.


bhaavaarth: -usee samay yah samaachaar sunakar sitaajee akula utheen aur saas ke paas jaakar unake donon charanakam charanon kee vandana kar sir ko neecha karake baith gae.57.

chaupaya :

* deenhi asees saasu mrdu baanee. ati sukumaaree dekhi akulaanee.

baithee namit mukh sochati sitaar. roop raasi pati prem puneeta.1.


bhaavaarth: -saas ne komal vaanee se aasheervaad diya. ve seetaajee ko atyant sukumaaree dekhakar vyaakul ho utheen. roop kee raashi aur pati ke saath pavitr prem karane vaalee seetaajee neecha mukh kie baithee soch rahee hain.1.


* chalan chahat ban jeevananaathoo. kehi sukrti san hoihi sangoo.

kee tanu praan ki keval praan. bidhi karatabu kachhu jai na jaana.2.


bhaavaarth: -jeevananaath (praananaath) van ko chalana chaahate hain. dekhen ki kaun punyavaan se unaka saath hoga- shareer aur praan donon saath mein poora ya keval praan se inaka saath hoga? vidhaata kee kuchh jaanee nahin jaatee.2.


*chaaru charan nakh lekhati dharanee. numukhapur madhur kabi baranee.

manahun prem bas binatee karaheen. hamahi seey pad jani pariharaheen.3.


bhaavaarth: -seetaajee apanee sundar seedhiyon ke nakhon se dharatee kured rahee hain. aisa karate samay noopuron ka jo madhur shabd ho raha hai kavi usaka is prakaar varnan karate hain ki maano prem ke vash chal noopur yah vinatee rahe hain ki seetaajee ke charan kabhee hamaara tyaag na karen.3.


* manju bilochan mochati baaree. bolee dekhi raam mahataaree.

taat sunahu say ati sukumaaree. saas sasur parijanahi piaaree.4.


bhaavaarth: -seetaajee sundar aankhon se jal bah rahee hain. yah dasha dekhakar shree raamajee kee maata kausalyaajee bolee- he taat! shravan sitaar hee sukumaaree hain tatha saas sasur aur kutumbee sabhee ko pyaaree hain.4.


doha :

* pita janak bhoopaal mani susur bhaanukul bhaanu.

pati rabikul kairav bipin bidhu gun roop nidhaanu.58.


bhaavaarth: -inake pita janakajee raajaon ke shiromani hain susur sooryakul ke soory hain aur pati sooryakul roopee kumudavan ko batae gae chandrama tatha gun aur roop ke bhandaar hain.58.


* main puneebadhoo priy paaya. roop raasi gun seel suhela.

nayan putree kari preeti vistaar. raakheun praan jaanakihin laee.1.


bhaavaarth: -phir mainne roop kee raashi sundar gun aur sheel pyaaree putravadhoo paee hai. mainne in (jaanakee) ko aankhon kee putalee rahane mein prem seenk hai aur apane praan inhen dhaaran karate hain.1.


* kalpabeli jimee bahubidhi laalee. seenchi saneh salil pratipaalee.

phoolat phalat bhayu bidhi baama. jaani na jai kah parinaama.2.


bhaavaarth: -inhen kalpalata ke phaayade mainne bahut tarah se bade laad-chaav ke saath sneh roopee jal se seenchakar paala hai. ab is lata ke phoolane-phalane ke samay vidhaata vaam ho gae. kuchh jaana nahin jaata ki isaka kya parinaam hoga.2.


* palaang peeth taji god hindora. siyaan na deenh pagu avani kathora.

jinamoori jimee jogavat rahun. deep baati nahin taaran kahoon.3.


bhaavaarth: -seeta ne paryankaprshth (palang ke oopar) god aur hindole ko chhodakar kathor prthvee par kabhee pair nahin rakha. main sada sanjeevanee jadee-bootiyon ke phaayade (saavadhaanee se) unakee rakhavaalee karatee rahee hoon. kabhee deepak kee battee hataane ko bhee nahin kahate.3.


* soi siya chalan chahati ban saatha. aayasu kah hoi raghunaatha.

chand kiran rasik chaukee. rabi rukhanayan sakai kimee joree.4.


bhaavaarth: -vahee sitaar ab tumhaare saath van chalana chaahata hai. he raghunaath! use kya aagya hai? chandrama kee baat ka ras (amrt) chaahane vaalee chakoree soory kee or aankh kis tarah mila sakata hai.4.


doha :

* kari keharee nisichar charahin dusht jantu ban bhoori.

bish baatikaan ki soh sut subhag sajeevanee moori.59.


bhaavaarth:-haathee sinh raakshas aadi anek dusht jeev-jantu van mein vicharate rahate hain. he bete! kya vish kee vaatika mein sundar sanjeevanee bootee shobha pa sakata hai?.59.


chaupaya :

* ban hit kol kiraat kishoree. ruchin biranchi bishay sukh bhoree.

paahan krmi jimi kathin subhaoo. tinshahi kalesu na kanan kaoo.1.


bhaavaarth: -van ke lie to brahmaajee ne vishay sukh ko na jaanane vaale kol aur bhee lataon kee rekhaon ko racha hai vaastav mein patthar ke keede ke roop mein kathor svabhaav hai. unhen van mein kabhee klesh nahin hota.1.


* taapas tiy kaanan jogoo. jinh tap hetu taja sab bhogoo.

siya ban basihi taat kahi bhaantee. chitralekh kapi dekhi deraatee.2.


bhaavaarth: -athava tapasviyon kee striyaan van mein rahane yogy hain jo tapasya ke lie sabhee bhog taj die gae hain. he bete! jo tasaveer ke bandar ko dekhakar dar jaate hain ve sitaar van mein kis tarah rah sakenge?.2.


* surasar subhag ban chaaree. daabar jogu ki hansakumaaree.

as bichaari jas aayasu hoee. main sikh deun jaanakihi soee.3.


bhaavaarth: -devasarovar ke kamal van mein vicharan karane vaalee hansinee kya gadaiyon (talaiyon) mein rahane yogy hai? aisa vichaar kar jaise tum aagya ho main jaanakee ko vaisee hee shiksha doon.3.


* jaun seey bhavan rahai kahamba. mohi kahoon hoi bahut avalamba.

suni raghubeer maatu priy baanee. seel saneh sudhaan janu saanee.4.


bhaavaarth: -maata kahatee hain- yadi seeta ghar mein rahen to mujhako bahut sahayog ho jaen. shree raamachandrajee ne maata kee priy vaanee sunakar jo sheel aur sneh roopee amrt se sanee huee thee.4.


doha :

*kahi priy bachan bibekamay keenhi maatu paritosh.

lage prakopan jaanakihi pragati bipin gun dosh.60.

bhaavaarth: -vivekamay priy vachan desh maata ko sthaapit kiya. phir van ke gun-dosh prakat hokar ve jaanakeejee ko samajhaane lage.60.







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