मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi Lurics in Hindi) -
( मोहिनी एकादशी की महिमा )
शास्त्रों में मोहिनी एकादशी का व्रत शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए बहुत उत्तम बताया गया है। इस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर असुरों का वध किया था। मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पाप दूर हो जाते हैं और व्यक्ति अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है। इतना ही नहीं एकादशी का व्रत करने से घर परिवार में सुख शांति बनी रहती है और व्यक्ति को धन बुद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। पदमपुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को मोहिनी एकादशी का महत्व समझाते हुए कहते हैं कि महाराज !त्रेता युग में महर्षि वशिष्ठ के कहने से परम प्रतापी श्री राम ने इस व्रत को किया। यह व्रत सब प्रकार के दुखों का निवारण करने वाला सब पापों को हरने वाला व्रतों में उत्तम व्रत है।इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य मोहजाल तथा पातक समूह से छुटकारा पाकर विष्णुलोक को जाते हैं।
( पूजाविधि )
एकादशी सब पापों को हरने वाली उत्तम तिथि है। चराचर प्राणियों सहित समस्त त्रिलोक में इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है। इस दिन समस्त कामनाओं तथा सिद्धियों के दाता भगवान श्री विष्णुजी की उपासना करनी चाहिए।रोलीमोलीपीले चन्दनअक्षतपीले पुष्पऋतुफलमिष्ठान आदि अर्पित कर धूप-दीप से श्री हरि की आरती उतारकर दीप दान करना चाहिए।इस दिन 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ' का जप एवं विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना बहुत फलदायी है।
( व्रत के नियम )
इस दिन भक्तों को परनिंदाछल-कपटलालचद्धेष की भावनाओं से दूर रहकरश्री नारायण को ध्यान में रखते हुए भक्तिभाव से उनका भजन करना चाहिए ।द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें।मोहिनी एकादशी व्रत के दिन पशु-पक्षियों को खाना और पानी देना चाहिए।
( पौराणिक मान्यता )
शास्त्रों के अनुसार मोहिनी भगवान विष्णु का अवतार रूप थी। समुद्र मंथन के समय जब समुद्र से अमृत कलश निकला तो इस बात को लेकर विवाद हुआ कि राक्षसों और देवताओं के बीच अमृत का कलश कौन लेगा। सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। अमृत के कलश से राक्षसों का ध्यान भटकाने के लिए मोहिनी नामक एक सुंदर स्त्री के रूप में विष्णु भगवान प्रकट हुए। इस प्रकार सभी देवताओं ने भगवान विष्णु की सहायता से अमृत का सेवन किया।यह शुभ दिन वैशाख शुक्ल एकादशी का था इसीलिए इस दिन को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। यह वही व्रत है जिसे राजा युधिष्ठिर और भगवान श्रीराम ने रखा था।
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