एक डाल दो पंछी बैठा कौन गुरु कौन चेला भजन लिरिक्स (Ek Dal Do Panchi Baitha Koun Guru Koun Chela Lyrics in Hindi) - Kabir Bhajan Master Rana - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind

एक डाल दो पंछी बैठा कौन गुरु कौन चेला भजन लिरिक्स (Ek Dal Do Panchi Baitha Koun Guru Koun Chela Lyrics in Hindi) - 



एक डाल दो पंछी बैठाकौन गुरु कौन चेला
गुरु की करनी गुरु भरेगा
चेला की करनी चेला रे साधुभाई
उड़ जा हंस अकेला |


माटी चुन-चुन महल बनाया
लोग कहे घर मेरा
ना घर तेराना घर मेरा
चिड़िया रैन-बसेरा रे साधुभाई
उड़ जा हंस अकेला |


कौड़ी कौड़ी माया जोड़ी
जोड़ भरेला थैला
कहत कबीर सुनो भाई साधो
संग चले ना ढेला रे साधुभाई
उड़ जा हंस अकेला |


मात कहे ये पुत्र हमारा
बहन कहे ये वीरा
भाई कहे ये भुजा हमारी
नारी कहे नर मेरा रे साधुभाई
उड़ जा हंस अकेला |


देह पकड़ के माता रोये
बांह पकड़ के भाई
लपट-झपट के तिरिया रोये
हंस अकेला जाई रे साधुभाई
उड़ जा हंस अकेला |


जब तक जीवेमाता रोये
बहन रोये दस मासा
बारह दिन तक तिरिये रोये
फेर करे घर वासा रे साधुभाई
उड़ जा हंस अकेला |


चार गज़ी चादर मंगवाई
चढ़ा काठ की घोड़ी
चारों कोने आग लगाई
फूँक दियो जस होरी रे साधुभाई
उड़ जा हंस अकेला |


हाड़ जले हो जैसे लाकड़ी
केश जले जस धागा
सोना जैसी काया जल गयी
कोई ना आया पैसा रे साधुभाई
उड़ जा हंस अकेला |


घर की तिरिया ढूंढन लागि
ढूंढ फिरि चहुँ देसा
कहत कबीर सुनो भाई साधो
छोड़ो जग की आशा रे साधुभाई
उड़ जा हंस अकेला |


पान-पान में बाँध लगाया
बाद लगाया केला
कच्चे पक्के की मर्म ना जाने
तोड़ा फूल कंदेला रे साधुभाई
उड़ जा हंस अकेला |


ना कोई आताना कोई जाता
झूठा जगत का नाता
ना काहू की बहन भांजी
ना काहू की माता रे साधुभाई
उड़ जा हंस अकेला |


डोढी तक तेरी तिरिया जाए
खोली तक तेरी माता
मरघट तक सब जाए बाराती
हंस अकेला जाता रे साधुभाई
उड़ जा हंस अकेला |


इक तई ओढ़ेदो तई ओढ़े
ओढ़े मल-मल धागा
शाला-दुशाला कितनी ओढ़े
अंत सांस मिल जासा रे साधुभाई
उड़ जा हंस अकेला |


कौड़ी-कौड़ी माया जोड़ी
जोड़े लाख-पचासा
कहत कबीर सुनो भाई साधो
संग चले ना मासा रे साधुभाई
उड़ जा हंस अकेला |


कौड़ी-कौड़ी माया जोड़ी
जोड़ जोड़ भाई ढेला
नंगा आया हैपंगा जाएगा
संग ना जाए ढेला रे साधुभाई
उड़ जा हंस अकेला |


माटी से आया रे मानव
फिर माटी मिलेला
किस-किस साबन तन को धोया
मन को कर दिया मैला रे साधुभाई
उड़ जा हंस अकेला |


माटी का एक नाग बना कर 
पूजे लोग-लुगाया
जिन्दा नाग जब घर में निकले
ले लाठी धमकाया रे साधुभाई
उड़ जा हंस अकेला |


जिन्दे बाप को कोई ना पूजे
मरे बाप पुजवाया
मुट्ठी भर चावल लेकर के 
कौवे को बाप बनाया रे साधुभाई
उड़ जा हंस अकेला |


बेचारे इंसान ओ देखो
अजब हुआ रे हाल
जीवन भर नंग रहा रे भाई
मरे उढ़ाई शाल रे साधुभाई
उड़ जा हंस अकेला |


प्रेम-प्यार से बनते रिश्ते
अपने होय पराये
अपने सगे तुम उनको जानो
काम वक़्त पे आये रे साधुभाई
उड़ जा हंस अकेला |


ये संसार कागज़ की पुड़िया
बूँद पड़े गल जाना
ये संसार कांटो की बाड़ी
उलझ-उलझ मर जाना रे साधुभाई
उड़ जा हंस अकेला |


जीवन धारा बह रही है
बहरों का है रेला
बूँद पड़े तनवा गल जाए
जो माटी का ढेला रे साधुभाई
उड़ जा हंस अकेला |


जिसको दुनिया सब कहे
वो है दर्शन-मेला
इक दिन ऐसा आये
छूटे सब ही झमेला रे साधुभाई
उड़ जा हंस अकेला |












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