माँ पार्वती चालीसा लिरिक्स (Maa Parvati Chalisa Lyrics in Hindi) - Parvati Chalisa Shiv Bhajan Maha Shivratri - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind


माँ पार्वती चालीसा लिरिक्स (Maa Parvati Chalisa Lyrics in Hindi) - Parvati Chalisa Shiv Bhajan Maha Shivratri -

माँ पार्वती चालीसा लिरिक्स (Maa Parvati Chalisa Lyrics in Hindi) -


 ।। दोहा।।


जय गिरि तनये दक्षजे शंभु प्रिय गुणखानि |

गणपति जननी पार्वती अम्बे शक्ति भवानी ||


।। चौपाई ।।


ब्रह्म भेद न तुम्हारे पावे |

पंच बदन नित तुमको ध्यावे ||



शत्रुमुख कही न सकट यश तेरो |

सहसबदन श्रम करत घनेरो ||


तेरो पार न पावत माता |

स्थित रक्ष ले हित सजता ||


अधर प्रवाल सदरीश अरुणारे |

अति कामनिया नयन कजरारे ||


ललित ललित विलेपित केशर |

कुमकुम अक्षत शोभा मनोहर ||


कनक बसन कंचुकी सजये |

कटि मेखला दिव्य लहरये ||


कंठ मदार हार की शोभा |

जाहि देखी सहजहि मन लोभा ||


बलरुण अनंत वहवि धारी |

आभूषण की शोभा प्यारी ||


नाना रत्न जदित सिंहासन |

तापर राजित हरि चतुरानन ||


इन्द्रादिक परिवार पूजित |

जग मृग नाग यक्ष रव कुजित ||


गीर कैलाश निवासिनी जय जय |

कोटिकप्रभा विकासिनी जय जय ||


त्रिभुवन सकल कुटुंब तिहारी |

अनु अनु मह तुम्हारी उजियारी ||


है महेश प्राणेश तुम्हारे |

त्रिभुवन के जो नित रखवारे ||


उनसो पति तुम प्राप्त कीन्हा जब |

सुकृत पुराण उदित भये तब ||


बुड्ढा बैल सावरी जिन्की |

महिमा का दिया कोउ टिंकी ||


सदा शमशान विहारी शंकर |

आभूषण है भुजंग भयंकर ||


कंठ हलाहल को छवि छाया |

नीलकंठ की पड़वी पाई ||


देव मगन के हिट अस कीन्हो |

विष लाई आप तिनही अमी दिनो ||


ताकी तुम पत्नी छवि धारिणी |

दुरित विदारिणी मंगल करिणी ||


देखी परम सौंदर्य तिहारो |

त्रिभुवन चाकित बनवन हारो ||


भै भीता सो माता गंगा |

लज्जा मई है सलिल तरंगा ||


सौत समन शंभु पहायी |

विष्णु पदबज छोरी सो धायी ||


तहिको कमल बदन मुरझायो |

लखी सत्वर शिव शीश चढ़ायो ||


नित्यानंद करि वरदायिनी |

अभय भक्त कर नित अनपायिनी ||


अखिल पाप त्रयताप निकंदनी |

माहेश्वरी हिमालय नंदिनी ||


काशी पुरी सदा मन भाई |

सिद्ध पीठ तेही आपु बनायाई ||


भगवती प्रतिदिन भिक्षा दात्री |

कृपा प्रमोद सनेह विधात्री ||


रिपुक्षय कारिणी जय जय अम्बे |

वाचा सिद्ध करि अवलाम्बे ||


गौरी उमा शंकरी काली |

अन्नपूर्णा जग प्रतिपाली ||


सब जन की ईश्वरी भगवती |

पटप्राणा परमेश्वरी सती ||


तुम्ने कथिन तपस्य किनि |

नारद सो जब शिक्षा लिनी ||


अन्न न नीर न वायु आहार |

अस्थि मत्रतन भयौ तुम्हारा ||


पत्र घास को खड़ा न भयौ |

उमा नाम तब तुम पायौ ||


तप बिलोकि ऋषि सात पधारे |

लगे दिगावन डिगी ना हरे ||


तव तव जय जय जय उच्चारेयु |

सप्तऋषि निज गेह सिद्धारेयु ||


सुर विधि विष्णु पास तब आए |

वर देने के वचन सुनाए ||


मांगे उमा वर पति तुम तीनो |

चाहत जग त्रिभुवन निधि जिनसो ||


अवमस्तु कही ते दोउ गए |

सुफल मनोरथ तुम लेये ||


करि विवाह शिव सो हे भामा |

पुन: कहा हर की बमा ||


जो पढ़िहे जन यह चालीसा |

धन जनसुख देइहे तही ईशा ||


।। दोहा।।


कुत चंद्रिका सुभाग शिर जयति सुख खानी |

पार्वती निज भक्त हित रहहु सदा वरदानी ||


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