सफला एकादशी व्रत कथा हिंदी में ( Saphala Ekadashi Vrat Katha in Hindi ) -
सफला एकादशी व्रत कथा हिंदी में ( Saphala Ekadashi Vrat Katha in Hindi ) :-
पौराणिक कथा के अनुसार चंपावती नाम का एक नगर था जहां महिष्मान नामक राजा राज करते थे। राजा के पांच बेटे थे, जिनमें उनका बड़ा ल्यूक बेटा अधर्मी और चरित्रहीन था। वो देवी-देवताओं की पूजा नहीं करता था और उनका अपमान करता रहता था। साथ ही मांस और मदिरा का सेवन करता था। उससे परेशान होकर राजा ने उसका नाम लुंभक रख दिया और उसे अपने राज्य से बाहर निकाल दिया।
लुंभक जंगल में जाकर रहने लगा। कुछ समय बीत जाने के बाद पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी की रात आई। उस रात ठंड काफी बढ़ गई थी। ठंड की वजह से लुंभक सो नहीं पा रहा था। ठंड से उसकी हालत इतनी खराब हो गई कि अगली सुबह एकादशी के दिन वह बेहोश हो गया। दोपहर में सूर्य की किरणें पड़ने के बाद उसे होश आया।
पानी पीने के बाद उसे थोड़ी ताकत मिली। उसे भूख लगी थी ऐसे में वह फल तोड़ने निकल पड़ा। वो शाम को फल लेकर आया और उसे एक पीपल के पेड़ की जड़ के पास रख दिया। वो वहां बैठकर अपनी किस्मत को कोसने लगा। उसने फल खुद न खाकर उन फलों को भगवान विष्णु को समर्पित कर कहा कि हे लक्ष्मीपति भगवान श्री हरि विष्णु! आप प्रसन्न हों। उस दिन सफला एकादशी थी।
लुंभक ने जैसे-तैसे पूरा दिन व्यतीत किया और फिर रात में सर्दी के कारण सो नहीं पाया। पूरी रात उसने भगवान विष्णु के नाम का जागरण करते हुए बिताया। इस तरह से ही बिना जाने ही उसने सफला एकादशी का व्रत पूरा कर लिया। सफला एकादशी व्रत के प्रभाव से वह धर्म के मार्ग पर चलने लगा। कुछ समय बाद राजा महिष्मान को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने अपने बेटे लुंभक को राज्य में वापस बुला लिया।
पुत्र को धर्म के मार्ग पर चलता देख राजा महिष्मान ने पुत्र लुंभक को चंपावती नगरी का राजा बना दिया और सारा राजपाट उसे सौंप दिया। राजा महिष्मान स्वयं तप करने जंगल में चले गए। कुछ समय बाद लुंभक को एक पुत्र हुआ, जिसका नाम मनोज्ञ रखा गया। जब लुंभक का पुत्र बड़ा हुआ तो उसने अपने पुत्र को सत्ता दे दी और खुद भगवान विष्णु की भक्ति में लीन हो गया। इस तरह सफला एकादशी हर कार्य को सफल बनाती है।
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