ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की भजन इन हिंदी

Deepak Kumar Bind

 हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की


हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की
हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की

ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की

जम्बुद्वीपे. भरत खंडे. आर्यावर्ते, भारतवर्षे
इक नगरी है विख्यात अयोध्या नाम की
यही जन्म भूमि है परम पूज्य श्री राम की
हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की

रघुकुल के राजा धर्मात्मा. चक्रवर्ती दशरथ पुण्यात्मा
संतति हेतु यज्ञ करवाया, धर्म यज्ञ का शुभ फल पाया
नृप घर जन्मे चार कुमारा, रघुकुल दीप जगत आधारा
चारों भ्रातों के शुभ नामा. भरत, शत्रुघ्न, लक्ष्मण रामा

गुरु वशिष्ठ के गुरुकुल जाके, अल्प काल विद्या सब पाके
पूरण हुयी शिक्षा. रघुवर पूरण काम की
हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की

मृदु स्वर, कोमल भावना, रोचक प्रस्तुति ढंग
इक इक कर वर्णन करें. लव कुश राम प्रसंग
विश्वामित्र महामुनि राई, तिनके संग चले दोउ भाई
कैसे राम ताड़का मारी. कैसे नाथ अहिल्या तारी

मुनिवर विश्वामित्र तब, संग ले लक्ष्मण राम
सिया स्वयंवर देखने. पहुंचे मिथिला धाम

जनकपुर उत्सव है भारी
जनकपुर उत्सव है भारी
अपने वर का चयन करेगी सीता सुकुमारी
जनकपुर उत्सव है भारी

जनक राज का कठिन प्रण, सुनो सुनो सब कोई
जो तोडे शिव धनुष को. सो सीता पति होई

को तोरी शिव धनुष कठोर, सबकी दृष्टि राम की ओर
राम विनय गुण के अवतार. गुरुवार की आज्ञा शिरधार
सहज भाव से शिव धनु तोड़ा, जनकसुता संग नाता जोड़ा
रघुवर जैसा और न कोई. सीता की समता नही होई
दोउ करें पराजित कांति कोटि रति काम की
हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की
ये रामायण है पुण्य कथा सिया राम की

सब पर शब्द मोहिनी डारी, मन्त्र मुग्ध भये सब नर नारी
यूँ दिन रैन जात हैं बीते, लव कुश नें सबके मन जीते

वन गमन, सीता हरण, हनुमत मिलन, लंका दहन, रावण मरण, अयोध्या पुनरागमन

सविस्तार सब कथा सुनाई, राजा राम भये रघुराई
राम राज आयो सुख दाई. सुख समृद्धि श्री घर घर आई

काल चक्र नें घटना क्रम में ऐसा चक्र चलाया
राम सिया के जीवन में फिर घोर अँधेरा छाया

अवध में ऐसा, ऐसा इक दिन आया
निष्कलंक सीता पे प्रजा नें मिथ्या दोष लगाया
अवध में ऐसा. ऐसा इक दिन आया

चल दी सिया जब तोड़ कर सब नेह नाते मोह के
पाषण हृदयों में न अंगारे जगे विद्रोह के

ममतामयी माँओं के आँचल भी सिमट कर रह गए
गुरुदेव ज्ञान और नीति के सागर भी घट कर रह गए

न रघुकुल न रघुकुलनायक, कोई न सिय का हुआ सहायक

मानवता को खो बैठे जब, सभ्य नगर के वासी
तब सीता को हुआ सहायक, वन का इक सन्यासी

उन ऋषि परम उदार का वाल्मीकि शुभ नाम
सीता को आश्रय दिया ले आए निज धाम

रघुकुल में कुलदीप जलाए, राम के दो सुत सिय नें जाए

श्रोतागण जो एक राजा की पुत्री है एक राजा की पुत्रवधू है और एक चक्रवर्ती राजा की पत्नी है वही महारानी सीता वनवास के दुखों में अपने दिन कैसे काटती है अपने कुल के गौरव और स्वाभिमान के रक्षा करते हुए किसी से सहायता मांगे बिना कैसे अपना काम वो स्वयं करती है  स्वयं वन से लकड़ी काटती है स्वयं अपना धान कूटती है स्वयं अपनी चक्की पीसती है और अपनी संतान को स्वावलंबी बनने की शिक्षा कैसे देती है अब उसकी एक करुण झांकी देखिये

जनक दुलारी कुलवधू दशरथजी की
राजरानी होके दिन वन में बिताती है
रहते थे घेरे जिसे दास दासी आठों याम
दासी बनी अपनी उदासी को छिपती है
धरम प्रवीना सती. परम कुलीना
सब विधि दोष हीना जीना दुःख में सिखाती है
जगमाता हरिप्रिया लक्ष्मी स्वरूपा सिया
कूटती है धान . भोज स्वयं बनती है
कठिन कुल्हाडी लेके लकडियाँ काटती है
करम लिखे को पर काट नही पाती है
फूल भी उठाना भारी जिस सुकुमारी को था
दुःख भरे जीवन का बोझ वो उठाती है
अर्धांगिनी रघुवीर की वो धर धीर
भरती है नीर .  नीर नैन में न लाती है
जिसकी प्रजा के अपवादों के कुचक्र में वो
पीसती है चाकी स्वाभिमान को बचाती है
पालती है बच्चों को वो कर्म योगिनी की भाँती
स्वाभिमानी, स्वावलंबी , सबल बनाती है
ऐसी सीता माता की परीक्षा लेते दुःख देते
निठुर नियति को दया भी नही आती है

उस दुखिया के राज दुलारे , हम ही सुत श्री राम तिहारे
सीता मां की आँख के तारे , लव कुश हैं पितु नाम हमारे
हे पितु, भाग्य हमारे जागे , राम कथा कही राम के आगे







Post a Comment

0Comments

If you liked this post please do not forget to leave a comment. Thanks

Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !