श्री बाँकेबिहारी चालीसा (Shree Banke Bihari Chalisa Lyrics) - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind

 

श्री बाँकेबिहारी चालीसा 


दोहा


बांकी चितवन कटि लचक, बांके चरन रसाल,

स्वामी श्री हरिदास के बांके बिहारी लाल ॥


।। चौपाई ।।


जै जै जै श्री बाँकेबिहारी ।

हम आये हैं शरण तिहारी ॥

स्वामी श्री हरिदास के प्यारे ।

भक्तजनन के नित रखवारे ॥


श्याम स्वरूप मधुर मुसिकाते ।

बड़े-बड़े नैन नेह बरसाते ॥

पटका पाग पीताम्बर शोभा ।

सिर सिरपेच देख मन लोभा ॥


तिरछी पाग मोती लर बाँकी ।

सीस टिपारे सुन्दर झाँकी ॥

मोर पाँख की लटक निराली ।

कानन कुण्डल लट घुँघराली ॥


नथ बुलाक पै तन-मन वारी ।

मंद हसन लागै अति प्यारी ॥

तिरछी ग्रीव कण्ठ मनि माला ।

उर पै गुंजा हार रसाला ॥


काँधे साजे सुन्दर पटका ।

गोटा किरन मोतिन के लटका ॥

भुज में पहिर अँगरखा झीनौ ।

कटि काछनी अंग ढक लीनौ ॥


कमर-बांध की लटकन न्यारी ।

चरन छुपाये श्री बाँकेबिहारी ॥

इकलाई पीछे ते आई ।

दूनी शोभा दई बढाई ॥


गद्दी सेवा पास बिराजै ।

श्री हरिदास छवी अतिराजै ॥

घंटी बाजे बजत न आगै ।

झाँकी परदा पुनि-पुनि लागै ॥


सोने-चाँदी के सिंहासन ।

छत्र लगी मोती की लटकन ।।

बांके तिरछे सुधर पुजारी ।

तिनकी हू छवि लागे प्यारी ।।


अतर फुलेल लगाय सिहावैं ।

गुलाब जल केशर बरसावै ।।

दूध-भात नित भोग लगावैं ।

छप्पन-भोग भोग में आवैं ।।


मगसिर सुदी पंचमी आई ।

सो बिहार पंचमी कहाई ।।

आई बिहार पंचमी जबते ।

आनन्द उत्सव होवैं तबते ।।


बसन्त पाँचे साज बसन्ती ।

लगै गुलाल पोशाक बसन्ती ।।

होली उत्सव रंग बरसावै ।

उड़त गुलाल कुमकुमा लावैं ।।


फूल डोल बैठे पिय प्यारी ।

कुंज विहारिन कुंज बिहारी ॥

जुगल सरूप एक मूरत में ।

लखौ बिहारी जी मूरत में ॥


श्याम सरूप हैं बाँकेबिहारी ।

अंग चमक श्री राधा प्यारी ॥

डोल-एकादशी डोल सजावैं ।

फूल फल छवी चमकावैं ॥


अखैतीज पै चरन दिखावैं ।

दूर-दूर के प्रेमी आवैं ॥

गर्मिन भर फूलन के बँगला ।

पटका हार फुलन के झँगला ॥


शीतल भोग , फुहारें चलते ।

गोटा के पंखा नित झूलते ॥

हरियाली तीजन का झूला ।

बड़ी भीड़ प्रेमी मन फूला ॥


जन्माष्टमी मंगला आरती ।

सखी मुदित निज तन-मन वारति ॥

नन्द महोत्सव भीड़ अटूट ।

सवा प्रहार कंचन की लूट ॥


ललिता छठ उत्सव सुखकारी ।

राधा अष्टमी की चाव सवारी ॥

शरद चाँदनी मुकट धरावैं ।

मुरलीधर के दर्शन पावैं ॥


दीप दीवारी हटरी दर्शन ।

निरखत सुख पावै प्रेमी मन ॥

मन्दिर होते उत्सव नित-नित ।

जीवन सफल करें प्रेमी चित ॥


जो कोई तुम्हें प्रेम ते ध्यावें।

सोई सुख वांछित फल पावैं ॥

तुम हो दिनबन्धु ब्रज-नायक ।

मैं हूँ दीन सुनो सुखदायक ॥


मैं आया तेरे द्वार भिखारी ।

कृपा करो श्री बाँकेबिहारी ॥

दिन दुःखी संकट हरते ।

भक्तन पै अनुकम्पा करते ॥


मैं हूँ सेवक नाथ तुम्हारो ।

बालक के अपराध बिसारो ॥

मोकूँ जग संकट ने घेरौ ।

तुम बिन कौन हरै दुख मेरौ ॥


विपदा ते प्रभु आप बचाऔ ।

कृपा करो मोकूँ अपनाऔ ॥

श्री अज्ञान मंद-मति भारि ।

दया करो श्रीबाँकेबिहारी ॥


बाँकेबिहारी विनय पचासा ।

नित्य पढ़ै पावे निज आसा ॥

पढ़ै भाव ते नित प्रति गावैं ।

दुख दरिद्रता निकट नही आवैं ॥


धन परिवार बढैं व्यापारा ।

सहज होय भव सागर पारा ॥

कलयुग के ठाकुर रंग राते ।

दूर-दूर के प्रेमी आते ॥


दर्शन कर निज हृदय सिहाते ।

अष्ट-सिध्दि नव निधि सुख पाते ॥

मेरे सब दुख हरो दयाला ।

दूर करो माया जंजाल ॥


दया करो मोकूँ अपनाऔ ।

कृपा बिन्दु मन में बरसाऔ ॥


दोहा


ऐसी मन कर देउ मैं ,

निरखूँ श्याम-श्याम ।

प्रेम बिन्दु दृग ते झरें,

वृन्दावन विश्राम ॥


जय श्री बाँकेबिहारी जी महाराज की

जय श्रीराधिका रानी महारानी की जय

जय श्री हरिदास जी महाराज की जय



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