शिव तांडव की ध्वनि (shiv taandav kee dhvani lyrics in hindi) - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind


शिव तांडव की ध्वनि (shiv taandav kee dhvani lyrics in hindi) 


यहाँ "शिव तांडव स्तोत्र" के संपूर्ण श्लोक हिंदी में प्रस्तुत किए गए हैं। यह भगवान शिव की स्तुति में रावण द्वारा रचित एक प्रसिद्ध स्तोत्र है।


( शिव तांडव स्तोत्र )


जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले।

गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्॥

डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं।

चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥ 1॥


जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी।

विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि॥

धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके।

किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम॥ 2॥


धराधरेंद्र नंदिनी विलास बंधुबंधुर।

स्फुरद्दिगंत संतति प्रमोद मानमानसे॥

कृपाकटाक्ष धारिणी निरुद्ध दुर्धरापदि।

क्वचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥ 3॥


जटा भुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा।

कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्त दिग्वधूमुखे॥

मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीय मेदुरे।

मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥ 4॥


सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर।

प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः॥

भुजंगराज मालया निबद्ध जाटजूटकः।

श्रियै चिराय जायतां चकोरबंधुशेखरः॥ 5॥


ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिंगभा।

निपीतपंचसायकं नमन्निलिंपनायकम्॥

सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं।

महाकपालिसंपदेशिरोजटालमस्तु नः॥ 6॥


करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल।

द्धनंजयाहुतीकृतप्रचंडपंचसायके॥

धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक।

प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम॥ 7॥


नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्।

कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः॥

निलिंपनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः।

कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः॥ 8॥


प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा।

वलम्बिकण्ठकंधली रुचिप्रबद्धकंधरम्॥

स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं।

गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे॥ 9॥


अखर्वसर्वमंगलाकलाकदम्बमंजरी।

रसप्रवाहमाधुरी विजृंभणामधुव्रतम्॥

स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं।

गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे॥ 10॥


जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमश्वस।

द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्॥

धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदंगतुंगमंगल।

ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः॥ 11॥


दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकस्रजोर्।

गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः॥

तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः।

समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे॥ 12॥


कदा निलिंपनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन्।

विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन्॥

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः।

शिवेति मंत्रमुच्चरन् सदा सुखी भवाम्यहम्॥ 13॥


इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं।

पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम्॥

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिम्।

विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम्॥ 14॥

 

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