माँ ही मंदिर माँ ही पूजा
दोहा – सारा दुःख तूने सहा बीने सारे शूल
अपने बच्चों के लिए बिखराये तू फूल।
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा
माँ ही मंदिर माँ ही पुजा
माँ से बढ़ के कोई न दूजा
माँ ही मंदिर माँ ही पुजा
माँ ही मंदिर।।
माँ के पुण्य से जगत बना है
ईश्वर को भी माँ ने जना है
माँ ममता का एक कलश है
जीवन ज्योत है अमृत रस है
क्या अम्बर और क्या ये धरती
माँ की तुलना हो नहीं सकती
युग आते है युग जाते है
माँ की गाथा दोहराते है
माँ की गाथा दोहराते है
बड़े बड़े ग्यानी कहते है
माँ का रुतबा सबसे ऊँचा
माँ ही मंदिर माँ ही पुजा
माँ से बढ़ के कोई न दूजा
माँ ही मंदिर माँ ही पुजा
माँ ही मंदिर।।
मिट्टी हो गयी माँ की काया
भटक रहा है फिर भी साया
कड़ी धुप में सोच रही है
लाल पे अपने कर दू छाया
शूल बनी है माँ की विवशता
व्याकुल है सूझे ना रस्ता
व्याकुल है सूझे ना रस्ता
सरल बहुत है कहना सुनना
कठिन बड़ा ही हैं माँ बनना
माँ ही मंदिर माँ ही पुजा
माँ से बढ़ के कोई न दूजा
माँ ही मंदिर माँ ही पुजा
माँ ही मंदिर।।
जनम जनम की माँ दुखियारी
करके हर कोशिश ये हारी
भई बावरी उलझ गयी है
बच्चे का सुख ढूंढ रही है
भूख से मुन्ना तड़प रहा है
मन का धीरज टूट गया है
आँचल में है दूध की नदिया
और आँखों मे नीर भरा है
और आँखों मे नीर भरा है
सब को सहारा देने वाली
कौन बने अब तेरा सहारा
कौन बने अब तेरा सहारा
कौन बने अब तेरा सहारा।
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा
माँ ही मंदिर माँ ही पुजा
माँ से बढ़ के कोई न दूजा
माँ ही मंदिर माँ ही पुजा
माँ ही मंदिर।।
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