रामचरितमानसरुपी आकाश में कृतिका नक्षत्ररुपी अहल्याकृत श्रीराम-स्तुति -
यह अहल्याकृत स्तुति कृतिका नक्षत्र है । इसमें छः क्रियाएँ हैं : १. प्रभु का दर्शन किया। २. शरण आई। ३. शाप को अनुग्रह माना। ४. वरदान माँगा। ५. कृतकृत्य हुई। ६. पतिलोक गई। ये ही छः चमकदार तारे हैं। पाप को छुरे की भाँति काटा। इसलिए छुरे का आकार माना। इसका फल है : "सद्गुरु ज्ञानविराग योग के । "ज्ञानगम्य जै रघुराई" कहने से ज्ञान का। "नाथ न वर मागौं आना" से विराग का। "पद कमल परागा रस अनुरागा मम मन मधुप करे पाना" से योग। यथा : "योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना। श्रद्धावान् भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः"। का गुरु कहा ।
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