जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा (Jai Ganesh Jai Ganesh Jai Ganesh Deva ) - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind


"जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा" (जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा) भगवान गणेश को एक लोकप्रिय हिंदू मंत्र समर्पित किया गया है, जो व्यापक रूप से वस्तुओं को दूर करने वाले और ज्ञान के देवता के रूप में प्रतिष्ठित हैं। ।। यहाँ हिंदी लिपी में मंत्र है:

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा

अंग्रेजी लिप्यन्तरण में, उच्चारण इस प्रकार किया जाता है:

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा

गणेश जी के आशीर्वाद और दिशा-निर्देश प्राप्त करने के मंत्र के लिए विभिन्न अनुष्ठानों, प्रार्थनाओं और शुभ अवसरों की शुरुआत में इस का जाप किया जाता है

"जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा" (जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा) एक लोकप्रिय हिंदू मंत्र है जो बच्चों के स्वास्थ्य कर्ता और ज्ञान के देवता भगवान गणेश को समर्पित है। यहाँ हिंदी लिपी में मंत्र है:

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा

और रोमनकृत रूप में:

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा

गणेश जी का आशीर्वाद पाने के लिए और विभिन्न भगवानों की चाहत को दूर करने के लिए इस मंत्र का जाप बार-बार किया जाता है।

"जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा" (जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा) भगवान गणेश को समर्पित एक लोकप्रिय मंत्र है, जो बाधाओं को दूर करने वाले और ज्ञान के देवता के रूप में पूजनीय हैं। यहाँ हिंदी में मंत्र है:


जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।

एक दन्त दयावन्त, चार भुजधारी

सिन्दूर पे सिन्दूर सोहे, मूस की सवारी।

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।


एक सफल और बाधा-मुक्त प्रयास के लिए भगवान गणेश का आशीर्वाद पाने के लिए अनुष्ठानों, प्रार्थनाओं और अन्य शुभ अवसरों की शुरुआत में अक्सर इस मंत्र का पाठ किया जाता है।

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा (Jai Ganesh Jai Ganesh Jai Ganesh Deva ) - Bhaktilok


भक्ति स्तोत्र का परिचय( bhakti stotra ka parichay):-

भक्ति स्तोत्र विभिन्न भक्ति मार्गों में भक्तों द्वारा भगवान की पूजा और स्तुति के लिए रचे जाने वाले गीतों और श्लोकों का समृद्धि से संग्रह है। इनमें भक्त अपनी भक्ति, प्रेम और श्रद्धा का अभिव्यक्ति करते हैं और भगवान की महिमा की स्तुति करते हैं। भक्ति स्तोत्रों का पाठ भक्ति मार्ग के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण भाग है जो भगवान के साथ अध्यात्मिक संबंध को मजबूत करने का प्रयास करते हैं।


ये स्तोत्र विभिन्न भक्ति देवी-देवताओं, गुरुओं या अन्य आध्यात्मिक उत्कृष्ट पुरुषों को समर्पित होते हैं। कुछ प्रमुख भक्ति स्तोत्रों का उल्लेख निम्नलिखित है:

विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र: इस स्तोत्र में विष्णु भगवान के 1000 नामों की स्तुति है और यह विभिन्न श्लोकों का समृद्धि से समृद्धि है।

श्री ललिता सहस्त्रनाम स्तोत्र: इस स्तोत्र में माता ललिता के 1000 नामों की स्तुति है और यह भक्ति मार्ग के अनुयायियों के लिए प्रिय है।


हनुमान चालीसा: यह भक्ति स्तोत्र हनुमान जी को समर्पित है और उनकी शक्ति और प्रेम की स्तुति करता है।

गुरु स्तोत्र: इसमें गुरु की महिमा और गुरु भक्ति का गान है, जो आध्यात्मिक सफलता की प्राप्ति में सहायक होता है।

शिव ताण्डव स्तोत्र: इस स्तोत्र में भगवान शिव की महाकाव्य नृत्य स्वरूप और महिमा की स्तुति है।

ये स्तोत्र भक्ति और आध्यात्मिक उन्नति की कड़ी में सहायक होते हैं और भक्तों को भगवान के साथ अध्यात्मिक संबंध को मजबूत करने में मदद करते हैं।


'जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा' का महत्व(jay ganesh jay ganesh jay ganesh deva ka mahatv):-

"जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा" एक प्रसिद्ध हिन्दी आराधना भजन है जो भगवान गणेश की महिमा और पूजा के लिए गाया जाता है। गणेश देव हिन्दू धर्म में विघ्नहर्ता और शुभ प्रारंभ के देवता के रूप में पूजे जाते हैं। "जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा" भजन का महत्व निम्नलिखित है:

विघ्नहर्ता की पूजा: गणेश देव को विघ्नहर्ता कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि वह सभी विघ्नों को दूर करने वाले हैं। "जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा" के बोल भक्तों को गणेश देव की कृपा की प्राप्ति के लिए आग्रह करते हैं।


शुभ प्रारंभ का आह्वान: इस भजन के रेफ्रेन में "जय गणेश देवा" का उपयोग शुभ प्रारंभ की ओर संकेत करता है। गणेश देव की कृपा से कोई भी कार्य सुरक्षित रूप से आरंभ होता है।

भक्ति और समर्पण: भजन में गायक या भक्त गणेश देव के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण को व्यक्त करता है। इसके माध्यम से भक्ति की भावना और गणेश देव के प्रति समर्पण का एक अभिव्यक्ति होती है।


सामाजिक और धार्मिक समारोहों में प्रयोग: "जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा" भजन को विभिन्न सामाजिक और धार्मिक समारोहों में प्रयोग किया जाता है, जैसे कि गणेश चतुर्थी, विवाह, यात्राएँ आदि।

इस भजन के माध्यम से भक्तों का मन गणेश देव के प्रति श्रद्धा और भक्ति से भरा जाता है और वे आपके जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता की कामना करते हैं।


भजन का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संदर्भ ( bhajan ka etihasik and sanskritik sandarbh):-


भजन, जो आध्यात्मिक भावना और भक्ति का अभिव्यक्ति का एक रूप है, एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परंपरा का हिस्सा है। भजन का परंपरागत और सांस्कृतिक संदर्भ विविधता से भरा हुआ है, और यह भारतीय साहित्य, संगीत, और धार्मिक परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा है।


ऐतिहासिक संदर्भ:


वेदिक काल: भजन का प्रारंभ वेदों के काल से होता है, जब लोग देवता और परमात्मा की पूजा के लिए गाने गाते थे। वेदों में कई स्तोत्र और मंत्र हैं जो आध्यात्मिक उत्कृष्टता की स्तुति के रूप में गाए जाते थे।

भक्ति संप्रदायों का उत्थान: भक्ति संप्रदायों के उत्थान के साथ, भजनों का लोकप्रिय होना शुरू हुआ। भक्ति योगी और संतों ने अपनी भावनाओं को भजनों के माध्यम से व्यक्त किया और लोगों को आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में प्रेरित किया।


सांस्कृतिक संदर्भ:


शास्त्रीय संगीत में स्थान: भजन भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं। भक्ति रस को संगीत के माध्यम से अभिव्यक्त करने के लिए विभिन्न रागों और तालों का उपयोग किया जाता है।

भजन संस्कृती में: भजन संस्कृती का महत्वपूर्ण हिस्सा है और ये विभिन्न समुदायों और क्षेत्रों में विभिन्न रूपों में प्रस्तुत होते हैं। विभिन्न भक्ति संप्रदायों के अनुसार अलग-अलग भजन और कीर्तनों की परंपरा है।


साहित्यिक और कला में प्रभाव: भजनों का साहित्यिक और कला में भी महत्व है। कविता, गीत, और संगीत के माध्यम से भक्ति के भावनात्मक पहलुओं को व्यक्त करने का प्रयास किया जाता है।

इस प्रकार, भजन ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ में विवादी है, और इसका अध्ययन भारतीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक इतिहास के अध्ययन में महत्वपूर्ण है।


श्लोक के बोल और अर्थ( shlok ke bol and arth):-


श्लोक एक ऐसा संवाद है जो सामान्यत: संस्कृत भाषा में रचा गया है और धार्मिक या दार्शनिक सिद्धांतों को व्यक्त करने के लिए उपयोग होता है। यहां एक प्रसिद्ध श्लोक है जिसे भगवद गीता में मिलता है:

श्लोक:

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।

अनुवाद:

तुम्हारा अधिकार केवल कर्म में है, परन्तु तुम्हें कभी भी फलों का आस्वाद नहीं करना चाहिए।

तुम्हें कर्मफल के लिए हेतु बनने में कभी रूचि नहीं रखनी चाहिए, और तुम्हें कर्म में आसक्ति नहीं होनी चाहिए।

अर्थ:

यह श्लोक भगवद गीता के द्वितीय अध्याय, सप्तम कण्ड में है और इसमें भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्मयोग के सिद्धांतों का उपदेश दे रहे हैं। यहां उन्होंने अर्जुन से कहा है कि वह केवल कर्म में ही अधिकारी हैं, फलों में नहीं। कर्मयोग का सिद्धांत यह है कि हमें केवल कर्म करना चाहिए, फलों का आस्वाद नहीं करना चाहिए, और हमें कर्म में आसक्ति नहीं रखनी चाहिए। इससे हम निष्काम कर्म करके मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं।


संगीत रचना और माधुर्य ( sangeet rachana and madhury):-



संगीत रचना और माधुर्य, दोनों ही संगीत में महत्वपूर्ण और सुंदर आँशिकाएं हैं जो संगीत को अद्वितीय बनाती हैं।

संगीत रचना:
संगीत कला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा: संगीत रचना उन सृष्टिकर्ताओं द्वारा की जाती है जो संगीत कला के माध्यम से अपनी भावनाओं, विचारों, और आत्मा को व्यक्त करना चाहते हैं।

राग-ताल समर्थन: संगीत रचना में राग, ताल, और लय के साथ विभिन्न संगीतकारों द्वारा समर्थन किया जाता है। यह संगीत रचना को भव्य और संरचित बनाता है।

अनुभूति और साहित्य समर्थन: संगीत रचना में साहित्य और अनुभूति को सहारा मिलता है, जो श्रोता या दर्शक को संगीत में रस का आनंद लेने में सहायक होता है।

माधुर्य:
ध्वनि का सुंदरता: माधुर्य से तात्कालिक आवाजशास्त्र में संबंधित है, और इसमें ध्वनि की सुंदरता और मिठास को सही से व्यक्त करने की कला है।

भावनात्मक अभिव्यक्ति: माधुर्य से संगीतकार अपनी भावनाएं और विचारों को सुन्दरता से व्यक्त करता है, जिससे श्रोता या दर्शक में संगीत के माध्यम से एक गहरा संबंध बनता है।

भक्ति और भावना का संबंध: माधुर्य संगीत में भक्ति और भावना के साथ एक सुंदर रूप है। यह श्रोता को आदर्श रूप से ध्यान में रखने में सहायक होता है और उसे संगीत का अद्वितीय सुंदरता का अनुभव कराता है।

संगीत रचना और माधुर्य, दोनों ही एक सुन्दर और अद्वितीय संगीत अनुभव को बढ़ाने में मदद करते हैं और इसे एक अद्वितीय आर्टफ़ॉर्म बनाए रखते हैं।

भजन से जुड़े रीति-रिवाज और परंपराएँ(bhajan se jude ritee rivaj and paranparae):-

भजन संगीत और भक्ति की भावना को संवर्धित करने वाला एक महत्वपूर्ण रूप है जो भारतीय सांस्कृतिक समृद्धि का अभिन्न हिस्सा है। भजनों के साथ जुड़े रीति-रिवाज और परंपराएँ विभिन्न सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाती हैं:

1. भक्ति संप्रदाय:

  1. साधु-संत संप्रदाय: भजन गायन में भक्ति संप्रदायों का महत्वपूर्ण स्थान है। साधु-संत समुदाय विभिन्न भजनों की परंपराएं बनाते हैं और अपने भक्तों को उनके आध्यात्मिक सफलता की दिशा में प्रेरित करते हैं।

  2. भक्ति साहित्य: भजन साहित्य में भक्ति साहित्य का विकास होता है जो सांस्कृतिक और आध्यात्मिक सिद्धांतों को सुन्दरता के साथ व्यक्त करता है।

2. संगीत रीति-रिवाज:

  1. राग-ताल संबंध: भजन गायन में राग-ताल का विशेष महत्व है। भजनों में विभिन्न रागों का उपयोग होता है, जो भक्तों को आध्यात्मिक अनुभव में ले जाते हैं।

  2. लोकप्रिय भजन संप्रदाय: विभिन्न क्षेत्रों में विशेष रीतियों के साथ लोकप्रिय भजन संप्रदाय हैं। उत्तर भारतीय संप्रदायों में काव्यरूपी रीति, दक्षिण भारतीय संप्रदायों में कर्णाटक राग-ताल संप्रदाय और सुफी भक्ति संप्रदाय में कव्वाली की रीति हैं।

3. भजनों के विभिन्न परंपराएँ:

  1. मीराबाई की भजने: मीराबाई की भजने राजपूत भूमि में पॉप्युलर हैं जो भगवान कृष्ण की प्रेम भक्ति को अद्वितीयता के साथ व्यक्त करती हैं।

  2. काबीर के दोहे: संत कबीर के दोहे और भजन उत्तर भारतीय संप्रदायों में प्रसिद्ध हैं जो सांस्कृतिक एकता का प्रतीक हैं।

  3. तुलसीदास के रामचरितमानस से उत्सर्ग गाने: रामचरितमानस के श्लोक और दोहे भजन गायन के लिए अद्वितीय साहित्य प्रदान करते हैं और भक्तों को आदर्श जीवन की शिक्षा देते हैं।

इन परंपराओं और रीतियों के माध्यम से भजन संगीत ने भारतीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विचारधारा को संजीवनी दी है और भक्तों को आत्मिक समृद्धि की दिशा में मार्गदर्शन किया है।


भक्तों के अनुभव और प्रशंसापत्र(bhakto ke anubhav and prashansapantr):-


भक्तों के अनुभव और प्रशंसापत्र वे व्यक्तिगत अनुभव हैं जो उन्होंने अपनी भक्ति और आध्यात्मिकता की ऊँचाइयों तक पहुंचने के दौरान महसूस किए हैं। इन पत्रों में वे अपने भगवान या गुरु के प्रति अपनी प्रेम और श्रद्धाभाव को व्यक्त करते हैं और दूसरों के साथ अपने अनुभवों को साझा करते हैं।

प्रशंसापत्र का आम रूप:
भगवान के प्रति प्रशंसा: भक्तों के पत्र में आकर्षक रूप से व्यक्त होता है कि वह किस प्रकार से अपने भगवान को प्रशंसा और स्तुति देना चाहते हैं। वे अपने अनुभवों के माध्यम से बताते हैं कि कैसे भगवान के साथ उनका संबंध है और कैसे उनकी श्रद्धा उनके जीवन को परिवर्तित कर रही है।

गुरु के प्रति आदर: भक्तों के पत्रों में वे अपने गुरु या आध्यात्मिक प्रेरणास्रोत के प्रति अपनी गहरी आदर भावना को व्यक्त करते हैं। वे गुरु के मार्गदर्शन में कैसे आगे बढ़ रहे हैं और गुरु के आदर्शों से कैसे प्रेरित हो रहे हैं, यह सभी अनुभवों को साझा करते हैं।

आत्मिक सफलता का बातचीत: भक्तों के पत्र में वे अपने आत्मिक सफलताओं, उन्हें मिलने वाली आध्यात्मिक उन्नति के लक्षण और अपनी भक्ति यात्रा के दौरान के अहम उपलब्धियों के बारे में बताते हैं।

भक्तों के अनुभव के उदाहरण:
भगत सिंह का पत्र: भगत सिंह जैसे वीर भक्तों ने अपने उदाहरण में अपने धर्मिक आत्मिक उत्साह को बड़े ही उत्कृष्ट ढंग से व्यक्त किया। उनके पत्रों में उन्होंने अपने आत्मिक संघर्ष और विश्वास को साझा किया।

मीराबाई की भक्तिपत्रे: मीराबाई ने अपने पति राणा बहादुर सिंह को लिखे गए पत्रों में अपनी भक्ति और प्रेम भावना को व्यक्त किया। उनके पत्रों में वे अपने आत्मिक साहस को दिखा रही हैं।

भक्तों के इस तरह के पत्र और अनुभव साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा बनते हैं, जो उनकी आत्मिक यात्रा को साझा करने में मदद करते हैं और उन्हें दूसरों के साथ अपने धार्मिक और आध्यात्मिक अनुभवों का साझा करने का अवसर प्रदान करते हैं।

हिंदू पूजा और त्योहारों पर प्रभाव(hindu puja and tyoharo par prabhav):-

हिंदू पूजा और त्योहारों का महत्व बहुत गहरा है और इनका सीधा प्रभाव हिंदू समाज, उसके सदस्यों, और सामाजिक संबंधों पर पड़ता है। ये पूजाएं और त्योहार सामाजिक एकता, आध्यात्मिकता, और सांस्कृतिक सामरस्य को बढ़ावा देते हैं।

पूजा का प्रभाव:
आध्यात्मिक उन्नति: पूजा के द्वारा व्यक्ति अपने ईश्वर के साथ एकाग्रचित्त होता है और अपनी आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग में कदम से कदम मिलाता है।

वैश्विक प्रभाव और अनुकूलन( vaishvik prabhav and anukulan  ):-


हिंदू पूजा और त्योहारों का वैश्विक प्रभाव बड़ा है और यह सार्वजनिक रूप से अनुकूलन को प्रोत्साहित करता है। इसका प्रभाव विशेषकर निम्नलिखित क्षेत्रों में होता है:

1. सांस्कृतिक एकता:
विभिन्न संस्कृतियों का मिलन: हिंदू पूजा और त्योहारों के माध्यम से विभिन्न संस्कृतियों के लोग मिलते हैं और एक दूसरे की सांस्कृतिक विशेषताओं को समझते हैं। इससे सांस्कृतिक एकता में सुधार होता है।

सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण: हिंदू पर्वों और त्योहारों के माध्यम से सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखा जाता है और यह विश्व सांस्कृतिक समृद्धि में योगदान करता है।

2. आध्यात्मिक जागरूकता:
आत्मिक उन्नति की प्रोत्साहना: हिंदू पूजा और त्योहारें आत्मिक उन्नति की प्रोत्साहना करती हैं और विश्वभर में लोग अपने आत्मिक स्वास्थ्य को सुधारने के लिए उत्सुक हो जाते हैं।

विश्वास की समझ: हिंदू पूजा और त्योहारें विश्वभर में लोगों को धार्मिक विविधता के साथ विश्वास की समझ देती हैं और सामंजस्य बनाए रखने में मदद करती हैं।

3. सामाजिक समरसता:
पर्वों के समय विशेषज्ञता का प्रमोशन: हिंदू पर्वों के समय लोग अपने क्षेत्रों में विशेषज्ञता का प्रमोशन करने का अवसर पाते हैं, जो सामाजिक समरसता को बढ़ावा देता है।

सेवा और समर्पण: त्योहारों के दौरान लोग अपने समय, धन, और संसाधनों का समर्पित करने के लिए उत्सुक होते हैं, जिससे सामाजिक सेवा और समर्पण में वृद्धि होती है।

4. वैश्विक साहित्य और कला:
कला और साहित्य में प्रेरणा: हिंदू पर्वों की कला, साहित्य, और संगीत विश्व साहित्य और कला में प्रेरणा का स्रोत बनते हैं और वैश्विक साहित्य में रूपांतर होते हैं।

विश्व साहित्य और संगीत में साझा रस: हिंदू पूजा और त्योहारों से उत्पन्न होने वाली संगीत, नृत्य, और कला का साझा रस विश्व भर में लोकप्रिय हो रहा है।

भजन की समसामयिक प्रासंगिकता(bhajan ki samasamayik prasangikata):-


भजन आध्यात्मिकता, भक्ति, और संगीत के माध्यम से मानव अनुभूति को साझा करने का एक अद्वितीय और सांस्कृतिक रूप है। भजनों की समसामयिक प्रासंगिकता विभिन्न संदर्भों में देखी जा सकती है:

1. मानवीय और सामाजिक समस्याएं:
शांति और सामर्थ्य: आध्यात्मिक भजनें शांति और सामर्थ्य की भावना को प्रोत्साहित करती हैं, विशेषकर मानवीय और सामाजिक समस्याओं के समय।

सामाजिक न्याय और इंसानियत: भजनों में सामाजिक न्याय, इंसानियत, और समर्पण की बातें होती हैं, जो समाज में बदलाव की प्रेरणा देती हैं।

2. आत्मनिर्भरता और प्रेरणा:
स्वास्थ्य और सुरक्षा: विभिन्न भजनों में स्वास्थ्य और सुरक्षा के महत्वपूर्ण विषयों पर ध्यान केंद्रित होता है, जो लोगों को सावधान करता है।

स्वावलंबन और समृद्धि: कई भजन आत्मनिर्भरता, स्वावलंबन, और समृद्धि के मार्ग को सुझाते हैं, इसके माध्यम से लोग सकारात्मक दिशा में बढ़ सकते हैं।

3. प्राकृतिक संरक्षण:
प्राकृतिक संरक्षण और सांस्कृतिक उत्सव: कुछ भजन प्राकृतिक संरक्षण और पर्यावरणीय सुरक्षा के महत्वपूर्ण विषयों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो आधुनिक समाज की चुनौतियों का सामना करने के लिए एक प्रेरणास्रोत प्रदान कर सकते हैं।

जल संरक्षण और वन्यजीवन: कुछ भजन जल संरक्षण, वन्यजीवन, और प्राकृतिक संतुलन के बारे में जागरूकता फैलाते हैं, जो प्राकृतिक संसाधनों की महत्वपूर्णता को साझा करते हैं।

4. सांस्कृतिक समरसता:
धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक समरसता: कई भजन धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक समरसता की महत्वपूर्णता पर बल देते हैं, जो एक सजीव समाज की आधारशिला है।

विभिन्न धर्मों के मेलजोल और एकता: कुछ भजन विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के बीच मेलजोल और एकता की बातें करते हैं, जो एक सजीव और सांस्कृतिक समरसता की भावना को बढ़ावा देते हैं।

इन समसामयिक विषयों पर आधारित भजनें मानव जीवन को एक सकारात्मक दिशा में प्रेरित कर सकती हैं और समाज को सामाजिक, आध्यात्मिक, और प्राकृतिक मामलों के साथ अधिक संरचित बना सकती हैं।






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