श्री सूर्य अष्टकम(Surya Ashtakam Arth Sahit) - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind

श्री सूर्य अष्टकम(Surya Ashtakam Arth Sahit):- 


श्री सूर्य अष्टकम(Surya Ashtakam Arth Sahit) - Bhaktilok


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श्री सूर्य अष्टकम(Surya Ashtakam Arth Sahit):-


आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर ।

दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोSस्तु ते ॥1॥


सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् ।

श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥2॥


लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम् ।

महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥3॥


त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरम् ।

महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥4॥


बृंहितं तेज:पु़ञ्जं च वायुमाकाशमेव च ।

प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥5॥


बन्धूकपुष्पसंकाशं हारकुण्डलभूषितम् ।

एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥6॥


तं सूर्यं जगत्कर्तारं महातेज:प्रदीपनम् ।

महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥7॥


तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम् ।

महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥8॥


इति श्रीशिवप्रोक्तं सूर्याष्टकं सम्पूर्णम् ।


सूर्याष्टकं पठेन्नित्यं ग्रहपीडा प्रणाशनम् ।

अपुत्रो लभते पुत्रं दारिद्रो धनवान् भवेत् ॥


अमिषं मधुपानं च यः करोति रवेर्दिने ।

सप्तजन्मभवेत् रोगि जन्मजन्म दरिद्रता ॥


स्त्री-तैल-मधु-मांसानि ये त्यजन्ति रवेर्दिने ।

न व्याधि शोक दारिद्र्यं सूर्य लोकं च गच्छति ॥


श्री सूर्य अष्टकम का अर्थ हिंदी में (Surya Ashtakam Arth Hindi Me):- 


श्री सूर्य अष्टकम का अर्थ हिंदी में (Surya Ashtakam Arth Hindi Me):-

श्री सूर्य अष्टकम का अर्थ हिंदी में (Surya Ashtakam Arth Hindi Me):- 


  • हे आदिदेव भास्कर!(सूर्य का एक नाम भास्कर भी है) आपको प्रणाम है, आप मुझ पर प्रसन्न हों, हे दिवाकर! आपको नमस्कार है, हे प्रभाकर! आपको प्रणाम है।
  • सात घोड़ों वाले रथ पर आरुढ़, हाथ में श्वेत कमल धारण किये हुए, प्रचण्ड तेजस्वी कश्यपकुमार सूर्य को मैं प्रणाम करता/करती हूँ।
  • लोहितवर्ण रथारुढ़ सर्वलोकपितामह महापापहारी सूर्य देव को मैं प्रणाम करता/करती हूँ।
  • जो त्रिगुणमय ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप हैं, उन महापापहारी महान वीर सूर्यदेव को मैं नमस्कार करता/करती हूँ।
  • जो बढ़े हुए तेज के पुंज हैं और वायु तथा आकाशस्वरुप हैं, उन समस्त लोकों के अधिपति सूर्य को मैं प्रणाम करता/करती हूँ।
  • जो बन्धूक (दुपहरिया) के पुष्प समान रक्तवर्ण और हार तथा कुण्डलों से विभूषित हैं, उन एक चक्रधारी सूर्यदेव को मैं प्रणाम करता/करती हूँ।
  • महान तेज के प्रकाशक, जगत के कर्ता, महापापहारी उन सूर्य भगवान को मैं नमस्कार करता/करती हूँ।
  • उन सूर्यदेव को, जो जगत के नायक हैं, ज्ञान, विज्ञान तथा मोक्ष को भी देते हैं, साथ ही जो बड़े-बड़े पापों को भी हर लेते हैं, मैं प्रणाम करता/करती हूँ।





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