जिही जिवरी से जाग बँधा तु जनी बँधे कबीर दोहे का अर्थ(Jihi Jivari Se Jaag Bandha Tu Jani Bandhe Kabir Dohe Ka Arth in Hindi):-
जिही जिवरी से जाग बँधा, तु जनी बँधे कबीर।जासी आटा लौन ज्यों, सों समान शरीर।
जिही जिवरी से जाग बँधा तु जनी बँधे कबीर दोहे का अर्थ(Jihi Jivari Se Jaag Bandha Tu Jani Bandhe Kabir Dohe Ka Arth in Hindi):-
जिस भ्रम तथा मोह की रस्सी से जगत के जीव बंधे है। हे कल्याण इच्छुक ! तू उसमें मत बंध। नमक के बिना जैसे आटा फीका हो जाता है। वैसे सोने के समान तुम्हारा उत्तम नर – शरीर भजन बिना व्यर्थ जा रहा हैं।
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