नवरात्रि दुर्गा मंत्र हिंदी में (Navratri Lyrics in Hindi) | Navaratri Durga Mantra - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind

 


नवरात्रि दुर्गा मंत्र हिंदी में (Navratri Lyrics in Hindi) | Navaratri Durga Mantra  - Bhaktilok

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नवरात्रि दुर्गा मंत्र हिंदी में (Navratri Lyrics in Hindi) | Navaratri Durga Mantra - 


[ प्रतिपदा: माँ शैलपुत्री ]


(मन्त्र )

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

(अर्थ ) 

इन्हें हेमावती तथा पार्वती के नाम से भी जाना जाता है।


तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल प्रतिपदा

सवारी: वृष सवारी वृष होने के कारण इनको वृषारूढ़ा भी कहा जाता है।

अत्र-शस्त्र: दो हाथ- दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल धारण किए हुए हैं।

मुद्रा: माँ का यह रूप सुखद मुस्कान और आनंदित दिखाई पड़ता है।

ग्रह: चंद्रमा - माँ का यह देवी शैलपुत्री रूप सभी भाग्य का प्रदाता है चंद्रमा के पड़ने वाले किसी भी बुरे प्रभाव को नियंत्रित करती हैं।

शुभ रंग: चैत्र - स्लेटी / अश्विन - सफ़ेद


[ द्वितीय: माँ ब्रह्मचारिणी ]


(मन्त्र )

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

(अर्थ ) 

माता ने इस रूप में फल-फूल के आहार से 1000 साल व्यतीत किए और धरती पर सोते समय पत्तेदार सब्जियों के आहार में अगले 100 साल और बिताए। जब माँ ने भगवान शिव की उपासना की तब उन्होने 3000 वर्षों तक केवल बिल्व के पत्तों का आहार किया। अपनी तपस्या को और कठिन करते हुए माँ ने बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया और बिना किसी भोजन और जल के अपनी तपस्या जारी रखी माता के इस रूप को अपर्णा के नाम से जाना गया।


तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल द्वितीया

अन्य नाम: देवी अपर्णा

सवारी: नंगे पैर चलते हुए।

अत्र-शस्त्र: दो हाथ- माँ दाहिने हाथ में जप माला और बाएं हाथ में कमंडल धारण किए हुए हैं।

ग्रह: मंगल - सभी भाग्य का प्रदाता मंगल ग्रह।

शुभ रंग: चैत्र - नारंगी /अश्विन - लाल


[ तृतीया: माँ चंद्रघंटा ]


(मन्त्र )

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

(अर्थ ) 

यह देवी पार्वती का विवाहित रूप है। भगवान शिव से शादी करने के बाद देवी महागौरी ने अर्ध चंद्र से अपने माथे को सजाना प्रारंभ कर दिया और जिसके कारण देवी पार्वती को देवी चंद्रघंटा के रूप में जाना जाता है। वह अपने माथे पर अर्ध-गोलाकार चंद्रमा धारण किए हुए हैं। उनके माथे पर यह अर्ध चाँद घंटा के समान प्रतीत होता है अतः माता के इस रूप को माता चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है।


तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल तृतीया

सवारी: बाघिन

अत्र-शस्त्र: दस हाथ - चार दाहिने हाथों में त्रिशूल गदा तलवार और कमंडल तथा वरण मुद्रा में पाँचवां दाहिना हाथ। चार बाएं हाथों में कमल का फूल तीर धनुष और जप माला तथा पांचवें बाएं हाथ अभय मुद्रा में।

मुद्रा: शांतिपूर्ण और अपने भक्तों के कल्याण हेतु।

ग्रह: शुक्र

शुभ रंग: चैत्र - सफेद /अश्विन - गहरा नीला


[ चतुर्थी: माँ कूष्माण्डा ]


( मन्त्र )

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

(अर्थ ) 

कु का अर्थ है कुछ ऊष्मा का अर्थ है ताप और अंडा का अर्थ यहां ब्रह्मांड अथवा सृष्टि जिसकी ऊष्मा के अंश से यह सृष्टि उत्पन्न हुई वे देवी कूष्माण्डा हैं। देवी कूष्माण्डा सूर्य के अंदर रहने की शक्ति और क्षमता रखती हैं। उसके शरीर की चमक सूर्य के समान चमकदार है। माँ के इस रूप को अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है।


तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल चतुर्थी

अन्य नाम: अष्टभुजा देवी

सवारी: शेरनी

अत्र-शस्त्र: आठ हाथ - उसके दाहिने हाथों में कमंडल धनुष बाड़ा और कमल है और बाएं हाथों में अमृत कलश जप माला गदा और चक्र है।

मुद्रा: कम मुस्कुराहट के साथ।

ग्रह: सूर्य - सूर्य को दिशा और ऊर्जा प्रदाता।

शुभ रंग: चैत्र - लाल / अश्विन - पीला


[ पञ्चमी: माँ स्कन्दमाता ]


( मन्त्र )

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

(अर्थ ) 

जब देवी पार्वती भगवान स्कंद की माता बनीं तब माता पार्वती को देवी स्कंदमाता के रूप में जाना गया। वह कमल के फूल पर विराजमान हैं और इसी वजह से स्कंदमाता को देवी पद्मासना के नाम से भी जाना जाता है। देवी स्कंदमाता का रंग शुभ्र है जो उनके श्वेत रंग का वर्णन करता है। जो भक्त देवी के इस रूप की पूजा करते हैं उन्हें भगवान कार्तिकेय की पूजा करने का लाभ भी मिलता है। भगवान स्कंद को कार्तिकेय के नाम से भी जाना जाता है।


तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल पञ्चमी

अन्य नाम: देवी पद्मासना

सवारी: उग्र शेर

अत्र-शस्त्र: चार हाथ - माँ अपने ऊपरी दो हाथों में कमल के फूल रखती हैं है। वह अपने एक दाहिने हाथ में बाल मुरुगन को और अभय मुद्रा में है। भगवान मुरुगन को कार्तिकेय और भगवान गणेश के भाई के रूप में भी जाना जाता है।

मुद्रा: मातृत्व रूप

ग्रह: बुद्ध

शुभ रंग: चैत्र - गहरा नीला / अश्विन - हरा


[ षष्ठी: माँ कात्यायनी ]


( मन्त्र )

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

(अर्थ ) 

माँ पार्वती ने राक्षस महिषासुर का वध करने के लिए देवी कात्यायनी का रूप धारण किया। यह देवी पार्वती का सबसे हिंसक रूप है इस रूप में देवी पार्वती को योद्धा देवी के रूप में भी जाना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवी पार्वती का जन्म ऋषि कात्या के घर पर हुआ था और जिसके कारण देवी पार्वती के इस रूप को कात्यायनी के नाम से जाना जाता है।


तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल षष्ठी

सवारी: शोभायमान शेर

अत्र-शस्त्र: चार हाथ - बाएं हाथों में कमल का फूल और तलवार धारण किए हुए है और अपने दाहिने हाथ को अभय और वरद मुद्रा में रखती है।

मुद्रा: सबसे हिंसक रूप

ग्रह: गुरु

शुभ रंग: चैत्र - पीला /अश्विन - स्लेटी


[ सप्तमी: माँ कालरात्रि ]


( मन्त्र )

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

(अर्थ ) 

जब देवी पार्वती ने शुंभ और निशुंभ नाम के राक्षसों का वध लिए तब माता ने अपनी बाहरी सुनहरी त्वचा को हटा कर देवी कालरात्रि का रूप धारण किया। कालरात्रि देवी पार्वती का उग्र और अति-उग्र रूप है। देवी कालरात्रि का रंग गहरा काला है। अपने क्रूर रूप में शुभ या मंगलकारी शक्ति के कारण देवी कालरात्रि को देवी शुभंकरी के रूप में भी जाना जाता है।


तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल सप्तमी

अन्य नाम: देवी शुभंकरी

सवारी: गधा

अत्र-शस्त्र: चार हाथ - दाहिने हाथ अभय और वरद मुद्रा में हैं और बाएं हाथों में तलवार और घातक लोहे का हुक धारण किए हैं।

मुद्रा: देवी पार्वती का सबसे क्रूर रूप

ग्रह: शनि

शुभ रंग: चैत्र - हरा / अश्विन - नारंगी


[ अष्टमी: माँ महागौरी ]


( मन्त्र )

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

(अर्थ ) 

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार सोलह साल की उम्र में देवी शैलपुत्री अत्यंत सुंदर थीं। अपने अत्यधिक गौर रंग के कारण देवी महागौरी की तुलना शंख चंद्रमा और कुंद के सफेद फूल से की जाती है। अपने इन गौर आभा के कारण उन्हें देवी महागौरी के नाम से जाना जाता है। माँ महागौरी केवल सफेद वस्त्र धारण करतीं है उसी के कारण उन्हें श्वेताम्बरधरा के नाम से भी जाना जाता है।


तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल अष्टमी

अन्य नाम: श्वेताम्बरधरा

सवारी: वृष

अत्र-शस्त्र: चार हाथ - माँ दाहिने हाथ में त्रिशूल और अभय मुद्रा में रखती हैं। वह एक बाएं हाथ में डमरू और वरदा मुद्रा में रखती हैं।

ग्रह: राहू

मंदिर: हरिद्वार के कनखल में माँ महागौरी को समर्पित मंदिर है।

शुभ रंग: चैत्र - मोर हरा /अश्विन - मोर वाला हरा


[ नवमी: माँ सिद्धिदात्री ]


( मन्त्र )

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

(अर्थ ) 

शक्ति की सर्वोच्च देवी माँ आदि-पराशक्ति भगवान शिव के बाएं आधे भाग से सिद्धिदात्री के रूप में प्रकट हुईं। माँ सिद्धिदात्री अपने भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करती हैं। यहां तक कि भगवान शिव ने भी देवी सिद्धिदात्री की सहयता से अपनी सभी सिद्धियां प्राप्त की थीं। माँ सिद्धिदात्री केवल मनुष्यों द्वारा ही नहीं बल्कि देव गंधर्व असुर यक्ष और सिद्धों द्वारा भी पूजी जाती हैं। जब माँ सिद्धिदात्री शिव के बाएं आधे भाग से प्रकट हुईं तब भगवान शिव को र्ध-नारीश्वर का नाम दिया गया। माँ सिद्धिदात्री कमल आसन पर विराजमान हैं।


अष्ट(8) सिद्धियां: अणिमा महिमा गरिमा लघिमा प्राप्ति प्राकाम्य ईशित्व और वशित्व।


तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल नवमी

आसन: कमल

अत्र-शस्त्र: चार हाथ - दाहिने हाथ में गदा तथा चक्र बाएं हाथ में कमल का फूल व शंख शोभायमान है।

ग्रह: केतु

शुभ रंग: चैत्र - बैंगनी / अश्विन - गुलाबी






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