सम्पूर्ण कबीर दास के दोहे और उनके अर्थ (Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) :-
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गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥
kabir das ke dohe
गुरु गोविंद दोउ खड़े दोहे का अर्थ (Guru Govind Dou Khade Dohe Ka Arth in Hindi) :-
कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि अगर हमारे सामने गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो आप किसके चरण स्पर्श करेंगे? गुरु ने अपने ज्ञान से ही हमें भगवान से मिलने का रास्ता बताया है इसलिए गुरु की महिमा भगवान से भी ऊपर है और हमें गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए।
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ।
यह तन विष की बेलरी दोहे का अर्थ(Yah Tan Vish Ki Belari Dohe Ka Arth in Hindi):- कबीर दास जी कहते हैं कि यह जो शरीर है वो विष जहर से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान हैं। अगर अपना शीशसर देने के बदले में आपको कोई सच्चा गुरु मिले तो ये सौदा भी बहुत सस्ता है।
सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज ।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ।
kabir ke dohe in hindi
सब धरती काजग करू दोहे का अर्थ (Sab Dharati Kagaj Karu Dohe Ka Arth in Hindi): अगर मैं इस पूरी धरती के बराबर बड़ा कागज बनाऊं और दुनियां के सभी वृक्षों की कलम बना लूँ और सातों समुद्रों के बराबर स्याही बना लूँ तो भी गुरु के गुणों को लिखना संभव नहीं है।
ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये ।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।
ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये दोहे का अर्थ(Aesi Vani Boliye Man Ka Aapa Khoy Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे। ऐसी भाषा दूसरे लोगों को तो सुख पहुँचाती ही है, इसके साथ खुद को भी बड़े आनंद का अनुभव होता है।
बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर ।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।
kabir ke dohe
बड़ा भया तो क्या भया दोहे का अर्थ (Bada Bhaya To Kya Bhaya Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि खजूर का पेड़ बेशक बहुत बड़ा होता है लेकिन ना तो वो किसी को छाया देता है और फल भी बहुत दूरऊँचाई पे लगता है। इसी तरह अगर आप किसी का भला नहीं कर पा रहे तो ऐसे बड़े होने से भी कोई फायदा नहीं है।
निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें ।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए ।
निंदक नियेरे राखिये दोहे का अर्थ(Nindak Niyare Rakhiye Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि निंदकहमेशा दूसरों की बुराइयां करने वाले लोगों को हमेशा अपने पास रखना चाहिए, क्यूंकि ऐसे लोग अगर आपके पास रहेंगे तो आपकी बुराइयाँ आपको बताते रहेंगे और आप आसानी से अपनी गलतियां सुधार सकते हैं। इसीलिए कबीर जी ने कहा है कि निंदक लोग इंसान का स्वभाव शीतल बना देते हैं।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।
जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय ।
kabir das ji ke dohe
बुरा जो देखन मैं चला दोहे का अर्थ(Bura Jo Dekhan Mai Chala Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि मैं सारा जीवन दूसरों की बुराइयां देखने में लगा रहा लेकिन जब मैंने खुद अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई इंसान नहीं है। मैं ही सबसे स्वार्थी और बुरा हूँ भावार्थात हम लोग दूसरों की बुराइयां बहुत देखते हैं लेकिन अगर आप खुद के अंदर झाँक कर देखें तो पाएंगे कि हमसे बुरा कोई इंसान नहीं है।
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ।
दुःख में सुमिरन सब करे दोहे का अर्थ(Dukh Me Sumiran Sab Kare Dohe Ka Arth in Hindi):-
दुःख में हर इंसान ईश्वर को याद करता है लेकिन सुख में सब ईश्वर को भूल जाते हैं। अगर सुख में भी ईश्वर को याद करो तो दुःख कभी आएगा ही नहीं।
माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोहे ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।
kabir ke dohe in hindi
माटी कहे कुम्हार से दोहे का अर्थ(Mati Kahe Kumhar Se Dohe Ka Arth in Hindi ):-
जब कुम्हार बर्तन बनाने के लिए मिटटी को रौंद रहा था, तो मिटटी कुम्हार से कहती है – तू मुझे रौंद रहा है, एक दिन ऐसा आएगा जब तू इसी मिटटी में विलीन हो जायेगा और मैं तुझे रौंदूंगी।
पानी तेरा बुदबुदा, अस मानस की जात ।
देखत ही छुप जाएगा है, ज्यों सारा परभात ।
पानी तेरा बुदबुदा दोहे का अर्थ(Pani Tera BudBuda Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान की इच्छाएं एक पानी के बुलबुले के समान हैं जो पल भर में बनती हैं और पल भर में खत्म। जिस दिन आपको सच्चे गुरु के दर्शन होंगे उस दिन ये सब मोह माया और सारा अंधकार छिप जायेगा।
चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये ।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए ।
kabir dohe
चलती चक्की देख के दोहे का अर्थ(Chalati Chakki Dekh Ke Dohe Ka Arth in Hindi):-
चलती चक्की को देखकर कबीर दास जी के आँसू निकल आते हैं और वो कहते हैं कि चक्की के पाटों के बीच में कुछ साबुत नहीं बचता।
मलिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार ।
फूले फूले चुन लिए, कलि हमारी बार ।
मलिन आवत देख के दोहे का अर्थ(Malin Aawat Dekh Ke Dohe Ka Arth in Hindi):-
मालिन को आते देखकर बगीचे की कलियाँ आपस में बातें करती हैं कि आज मालिन ने फूलों को तोड़ लिया और कल हमारी बारी आ जाएगी। भावार्थात आज आप जवान हैं कल आप भी बूढ़े हो जायेंगे और एक दिन मिटटी में मिल जाओगे। आज की कली, कल फूल बनेगी।
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ।
kabir das ji ke dohe
काल करे सो आज कर दोहे का अर्थ(Kal Kare So Aaj Kar Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि हमारे पास समय बहुत कम है, जो काम कल करना है वो आज करो, और जो आज करना है वो अभी करो, क्यूंकि पलभर में प्रलय जो जाएगी फिर आप अपने काम कब करेंगे।
ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग ।
तेरा साईं तुझ ही में है, जाग सके तो जाग ।
ज्यों तिल माहि तेल है दोहे का अर्थ (Jyo Til Maahi Tel Hai Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं जैसे तिल के अंदर तेल होता है, और आग के अंदर रौशनी होती है ठीक वैसे ही हमारा ईश्वर हमारे अंदर ही विद्धमान है, अगर ढूंढ सको तो ढूढ लो।
जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप ।
जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप ।
kabir ji ke dohe
जहाँ दया तहा धर्म है दोहे का अर्थ (Jahan Daya Taha Dharm Hai DOhe Ka Arth in Hindi) :-
कबीर दास जी कहते हैं कि जहाँ दया है वहीँ धर्म है और जहाँ लोभ है वहां पाप है, और जहाँ क्रोध है वहां सर्वनाश है और जहाँ क्षमा है वहाँ ईश्वर का वास होता है।
जो घट प्रेम न संचारे, जो घट जान सामान ।
जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बिनु प्राण ।
जो घट प्रेम न संचारे दोहे का अर्थ (Jo Ghat Prem Na Sanchare Dohe Ka Arth in Hindi):-
जिस इंसान अंदर दूसरों के प्रति प्रेम की भावना नहीं है वो इंसान पशु के समान है।
जल में बसे कमोदनी, चंदा बसे आकाश ।
जो है जा को भावना सो ताहि के पास ।
जल में बसे कमोदनी चंदा बसे आकाश दोहे का अर्थ (Jal Me Base Kamodani Chanda Base Aakash Dohe Ka Arth in Hindi):-
कमल जल में खिलता है और चन्द्रमा आकाश में रहता है। लेकिन चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब जब जल में चमकता है तो कबीर दास जी कहते हैं कि कमल और चन्द्रमा में इतनी दूरी होने के बावजूद भी दोनों कितने पास है। जल में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब ऐसा लगता है जैसे चन्द्रमा खुद कमल के पास आ गया हो। वैसे ही जब कोई इंसान ईश्वर से प्रेम करता है वो ईश्वर स्वयं चलकर उसके पास आते हैं।
जाती न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान ।
kabir das dohe
जाती न पूछो साधू की दोहे का अर्थ (Jati Na Puchho Sadhu ki Dohe Ka Arth in Hindi):-
साधु से उसकी जाति मत पूछो बल्कि उनसे ज्ञान की बातें करिये, उनसे ज्ञान लीजिए। मोल करना है तो तलवार का करो म्यान को पड़ी रहने दो।
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होए ।
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोए ।
जग में बैरी कोई नहीं जो मन शीतल होए दोहे का अर्थ (Jag Me Bairi Koi Nahi Jo Man Sheetal Hoye Dohe Ka Arth in Hindi):-
अगर आपका मन शीतल है तो दुनियां में कोई आपका दुश्मन नहीं बन सकता
ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग ।
प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत ।
kabir das ke dohe in hindi
ते दिन गए अकारथ ही संगत भई न संग दोहे का अर्थ (Te Din Gaye Akarath Hi Sangat Bhai Na Sang Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि अब तक जो समय गुजारा है वो व्यर्थ गया, ना कभी सज्जनों की संगति की और ना ही कोई अच्छा काम किया। प्रेम और भक्ति के बिना इंसान पशु के समान है और भक्ति करने वाला इंसान के ह्रदय में भगवान का वास होता है।
तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार ।
सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार ।
तीरथ गए से एक फल संत मिले फल चार दोहे का अर्थ(Tirath Gaye Se Ek Phal Sant Mile Phal Char Dohe Ka Arth in Hindi):-
तीर्थ करने से एक पुण्य मिलता है, लेकिन संतो की संगति से पुण्य मिलते हैं। और सच्चे गुरु के पा लेने से जीवन में अनेक पुण्य मिल जाते हैं।
तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय ।
सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए ।
sant kabir ke dohe
तन को जोगी सब करे मन को विरला कोय दोहे का अर्थ(Tan Ko Jogi Sab Kare Man Ko Virala Koy Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि लोग रोजाना अपने शरीर को साफ़ करते हैं लेकिन मन को कोई साफ़ नहीं करता। जो इंसान अपने मन को भी साफ़ करता है वही सच्चा इंसान कहलाने लायक है।
प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए ।
राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए ।
प्रेम न बारी उपजे प्रेम न हाट बिकाए दोहे का अर्थ (Prem Na Baari Upaje Prem Na Haat Bikaye Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि प्रेम कहीं खेतों में नहीं उगता और नाही प्रेम कहीं बाजार में बिकता है। जिसको प्रेम चाहिए उसे अपना शीशक्रोध, काम, इच्छा, भय त्यागना होगा।
जिन घर साधू न पुजिये, घर की सेवा नाही ।
ते घर मरघट जानिए, भुत बसे तिन माही ।
जिन घर साधू न पुजिये घर की सेवा नाही दोहे का अर्थ (Jin Ghar Sadhu Na Pujiye Ghar Ki Sewa Naahi Dohe Ka Arth In Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि जिस घर में साधु और सत्य की पूजा नहीं होती, उस घर में पाप बसता है। ऐसा घर तो मरघट के समान है जहाँ दिन में ही भूत प्रेत बसते हैं।
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय।
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय दोहे का अर्थ (Sadhu Aesa Chahiye Jaisha Sup Subhay Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि एक सज्जन पुरुष में सूप जैसा गुण होना चाहिए। जैसे सूप में अनाज के दानों को अलग कर दिया जाता है वैसे ही सज्जन पुरुष को अनावश्यक चीज़ों को छोड़कर केवल अच्छी बातें ही ग्रहण करनी चाहिए।
पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत ।
अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ।
kabir ke dohe with meaning
पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत दोहे का अर्थ (Paache Din Paache Gaye Hari Se Kiya na Het Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि बीता समय निकल गया, आपने ना ही कोई परोपकार किया और नाही ईश्वर का ध्यान किया। अब पछताने से क्या होता है, जब चिड़िया चुग गयी खेत।
जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही ।
सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ।
जब मैं था तब हरी नहीं अब हरी है मैं नाही दोहे का अर्थ(Jab Mai Tha Tab Hari Nahi Ab Hari Hai Mai Nahi Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि जब मेरे अंदर अहंकारमैं था, तब मेरे ह्रदय में हरीईश्वर का वास नहीं था। और अब मेरे ह्रदय में हरीईश्वर का वास है तो मैंअहंकार नहीं है। जब से मैंने गुरु रूपी दीपक को पाया है तब से मेरे अंदर का अंधकार खत्म हो गया है।
नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए ।
मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए ।
kabir ke dohe hindi
नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए दोहे का अर्थ (Nahaye Dhoye Kya Hua Jo Man Mail Na Jaaye Dohe Ka Arth in Hindi) :-
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि आप कितना भी नहा धो लीजिए, लेकिन अगर मन साफ़ नहीं हुआ तो उसे नहाने का क्या फायदा, जैसे मछली हमेशा पानी में रहती है लेकिन फिर भी वो साफ़ नहीं होती, मछली में तेज बदबू आती है।
प्रेम पियाला जो पिए, सिस दक्षिणा देय ।
लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय ।
प्रेम पियाला जो पिए सिस दक्षिणा देय दोहे का अर्थ (Prem Piyala Jo Piye Sis Dakshina Deh Dohe Ka Arth in Hindi):-
जिसको ईश्वर प्रेम और भक्ति का प्रेम पाना है उसे अपना शीशकाम, क्रोध, भय, इच्छा को त्यागना होगा। लालची इंसान अपना शीशकाम, क्रोध, भय, इच्छा तो त्याग नहीं सकता लेकिन प्रेम पाने की उम्मीद रखता है।
कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर ।
जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर ।
kabir dohe hindi
कबीरा सोई पीर है जो जाने पर पीर दोहे का अर्थ (Kabira Soi Peer Hai Jo Jane Par Peer Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि जो इंसान दूसरे की पीड़ा और दुःख को समझता है वही सज्जन पुरुष है और जो दूसरे की पीड़ा ही ना समझ सके ऐसे इंसान होने से क्या फायदा।
कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ।
kabirdas ke dohe
कबीरा ते नर अँध है गुरु को कहते और दोहे का अर्थ (Kabira Te Nar Andh Hai Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि वे लोग अंधे और मूर्ख हैं जो गुरु की महिमा को नहीं समझ पाते। अगर ईश्वर आपसे रूठ गया तो गुरु का सहारा है लेकिन अगर गुरु आपसे रूठ गया तो दुनियां में कहीं आपका सहारा नहीं है।
कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी ।
एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ।
कबीर सुता क्या करे जागी न जपे मुरारी दोहे का अर्थ(Kabir Suta Kya Kare Jaagi Na Jape Murari Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि तू क्यों हमेशा सोया रहता है, जाग कर ईश्वर की भक्ति कर, नहीं तो एक दिन तू लम्बे पैर पसार कर हमेशा के लिए सो जायेगा।
नहीं शीतल है चंद्रमा, हिम नहीं शीतल होय ।
कबीर शीतल संत जन, नाम सनेही होय ।
dohas of kabir
नहीं शीतल है चंद्रमा हिम नहीं शीतल होय दोहे का अर्थ(Nahi Sheetal Hai Chandrama Him Nahi SHeetal Hoye Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि चन्द्रमा भी उतना शीतल नहीं है और हिमबर्फ भी उतना शीतल नहीं होती जितना शीतल सज्जन पुरुष हैं। सज्जन पुरुष मन से शीतल और सभी से स्नेह करने वाले होते हैं।
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय ।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय दोहे का अर्थ(Pothi Padh Padh Jag Muaa Pandit Bhaya Na Koy Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि लोग बड़ी से बड़ी पढाई करते हैं लेकिन कोई पढ़कर पंडित या विद्वान नहीं बन पाता। जो इंसान प्रेम का ढाई अक्षर पढ़ लेता है वही सबसे विद्वान् है।
राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय ।
जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय ।
sant kabir das ke dohe
राम बुलावा भेजिया दिया कबीरा रोय दोहे का अर्थ(Ram Bulawa Bhejiya Diya Kabira Roy Dohe Ka Arth in Hindi):-
जब मृत्यु का समय नजदीक आया और राम के दूतों का बुलावा आया तो कबीर दास जी रो पड़े क्यूंकि जो आनंद संत और सज्जनों की संगति में है उतना आनंद तो स्वर्ग में भी नहीं होगा।
शीलवंत सबसे बड़ा सब रतनन की खान ।
तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन ।
शीलवंत सबसे बड़ा सब रतनन की खान दोहे का अर्थ(Sheelvant Sabase Bada Sab Ratanan Ki Khan Dohe Ka Arth in Hindi):-
शांत और शीलता सबसे बड़ा गुण है और ये दुनिया के सभी रत्नों से महंगा रत्न है। जिसके पास शीलता है उसके पास मानों तीनों लोकों की संपत्ति है।
साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाये ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाए ।
kabir das ke dohe
साईं इतना दीजिये जामे कुटुंब समाये दोहे का अर्थ(Sai Itana Dijiye Jame Kutumb Samay Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि हे प्रभु मुझे ज्यादा धन और संपत्ति नहीं चाहिए, मुझे केवल इतना चाहिए जिसमें मेरा परिवार अच्छे से खा सके। मैं भी भूखा ना रहूं और मेरे घर से कोई भूखा ना जाये।
माखी गुड में गडी रहे, पंख रहे लिपटाए ।
हाथ मेल और सर धुनें, लालच बुरी बलाय ।
माखी गुड में गडी रहे पंख रहे लिपटाए दोहे का अर्थ(Makhi Gud Me Gadi Rahe Pankh Rahe Lipataye Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि मक्खी पहले तो गुड़ से लिपटी रहती है। अपने सारे पंख और मुंह गुड़ से चिपका लेती है लेकिन जब उड़ने प्रयास करती है तो उड़ नहीं पाती तब उसे अफ़सोस होता है। ठीक वैसे ही इंसान भी सांसारिक सुखों में लिपटा रहता है और अंत समय में अफ़सोस होता है।
ज्ञान रतन का जतन कर, माटी का संसार ।
हाय कबीरा फिर गया, फीका है संसार ।
kabir ke dohe with meaning in hindi
ज्ञान रतन का जतन कर माटी का संसार दोहे का अर्थ(Gyan Ratan Ka Jatan Kar Mati Ka Sansar Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि ये संसार तो माटी का है, आपको ज्ञान पाने की कोशिश करनी चाहिए नहीं तो मृत्यु के बाद जीवन और फिर जीवन के बाद मृत्यु यही क्रम चलता रहेगा।
कुटिल वचन सबसे बुरा, जा से होत न चार ।
साधू वचन जल रूप है, बरसे अमृत धार ।
कुटिल वचन सबसे बुरा जा से होत न चार दोहे का अर्थ(Kutil Vachan Sabase Bura Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि कड़वे बोल बोलना सबसे बुरा काम है, कड़वे बोल से किसी बात का समाधान नहीं होता। वहीँ सज्जन विचार और बोल अमृत के समान हैं।
आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर ।
इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर ।
kabir ji ke dohe in hindi
आये है तो जायेंगे राजा रंक फ़कीर दोहे का अर्थ(Aaye Hai To Jayenge Raja Rank Phakir Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि जो इस दुनियां में आया है उसे एक दिन जरूर जाना है। चाहे राजा हो या फ़क़ीर, अंत समय यमदूत सबको एक ही जंजीर में बांध कर ले जायेंगे।ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँची न होय ।
सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय ।
ऊँचे कुल का जनमिया करनी ऊँची न होय दोहे का अर्थ(Unche Kul Ka Janamaiya Karani Unchi Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि ऊँचे कुल में जन्म तो ले लिया लेकिन अगर कर्म ऊँचे नहीं है तो ये तो वही बात हुई जैसे सोने के लोटे में जहर भरा हो, इसकी चारों ओर निंदा ही होती है।
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ।
kabir das ke dohe with meaning
रात गंवाई सोय के दिवस गंवाया खाय दोहे का अर्थ(Raat Ganwai Soy Ke Divas Gavaya Khay Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि रात को सोते हुए गँवा दिया और दिन खाते खाते गँवा दिया। आपको जो ये अनमोल जीवन मिला है वो कोड़ियों में बदला जा रहा है।
कामी क्रोधी लालची, इनसे भक्ति न होय ।
भक्ति करे कोई सुरमा, जाती बरन कुल खोए ।
कामी क्रोधी लालची इनसे भक्ति न होय दोहे का अर्थ(Kami Krodhi Lalachi inase Bhakti Na Hoy Dohe Ka Arthnin Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि कामी, क्रोधी और लालची, ऐसे व्यक्तियों से भक्ति नहीं हो पाती। भक्ति तो कोई सूरमा ही कर सकता है जो अपनी जाति, कुल, अहंकार सबका त्याग कर देता है।
कागा का को धन हरे, कोयल का को देय ।
मीठे वचन सुना के, जग अपना कर लेय ।
dohe of kabir
कागा का को धन हरे कोयल का को देय दोहे का अर्थ(Kaga Ka Ko Dhan Hare Koyal Ka Ko Deh Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि कौआ किसी का धन नहीं चुराता लेकिन फिर भी कौआ लोगों को पसंद नहीं होता। वहीँ कोयल किसी को धन नहीं देती लेकिन सबको अच्छी लगती है। ये फर्क है बोली का – कोयल मीठी बोली से सबके मन को हर लेती है।
लुट सके तो लुट ले, हरी नाम की लुट ।
अंत समय पछतायेगा, जब प्राण जायेगे छुट ।
लुट सके तो लुट ले हरी नाम की लुट दोहे का अर्थ(Lut Sake To Lut Le Hari Nam Ki Lut Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि ये संसार ज्ञान से भरा पड़ा है, हर जगह राम बसे हैं। अभी समय है राम की भक्ति करो, नहीं तो जब अंत समय आएगा तो पछताना पड़ेगा।
तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ।
kabir ke dohe ka arth
तिनका कबहुँ ना निंदये जो पाँव तले होय दोहे का अर्थ(Tinaka Kabahu Na Nindaye Jo Panv Tale Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि तिनके को पाँव के नीचे देखकर उसकी निंदा मत करिये क्यूंकि अगर हवा से उड़के तिनका आँखों में चला गया तो बहुत दर्द करता है। वैसे ही किसी कमजोर या गरीब व्यक्ति की निंदा नहीं करनी चाहिए।
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ।
धीरे-धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय दोहे का अर्थ(Dhire Dhire Re Mana Dhire Sab Kuchh Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी मन को समझाते हुए कहते हैं कि हे मन! दुनिया का हर काम धीरे धीरे ही होता है। इसलिए सब्र करो। जैसे माली चाहे कितने भी पानी से बगीचे को सींच ले लेकिन वसंत ऋतू आने पर ही फूल खिलते हैं।
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ।
kabir das ki sakhi
माया मरी न मन मरा मर-मर गए शरीर दोहे का अर्थ(Maya Mari Na Man Mara Mar Mar Gaye Sharir Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि मायाधन और इंसान का मन कभी नहीं मरा, इंसान मरता है शरीर बदलता है लेकिन इंसान की इच्छा और ईर्ष्या कभी नहीं मरती।
मांगन मरण समान है, मत मांगो कोई भीख,
मांगन से मरना भला, ये सतगुरु की सीख
मांगन मरण समान है मत मांगो कोई भीख दोहे का अर्थ(Mangan Maran Saman Hai Mat Mango Koi Bhikh Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि मांगना तो मृत्यु के समान है, कभी किसी से भीख मत मांगो। मांगने से भला तो मरना है।
ज्यों नैनन में पुतली, त्यों मालिक घर माँहि।
मूरख लोग न जानिए , बाहर ढूँढत जाहिं
ज्यों नैनन में पुतली त्यों मालिक घर माँहि दोहे का अर्थ(Jyo Nainan Me Putali Tyo Maalik Ghar Mahi Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि जैसे आँख के अंदर पुतली है, ठीक वैसे ही ईश्वर हमारे अंदर बसा है। मूर्ख लोग नहीं जानते और बाहर ही ईश्वर को तलाशते रहते हैं।
कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये,
ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये
kabir das ji ke dohe in hindi
कबीरा जब हम पैदा हुए जग हँसे हम रोये दोहे का अर्थ(Kabira Jab Ham Paida Huye Jag Hase Ham Roye Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर दास जी कहते हैं कि जब हम पैदा हुए थे उस समय सारी दुनिया खुश थी और हम रो रहे थे। जीवन में कुछ ऐसा काम करके जाओ कि जब हम मरें तो दुनियां रोये और हम हँसे।
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिये ज्ञान दोहे का अर्थ(Jaati Na Puchho Sadhu Ki Puchh Lijiye Gyan Dohe Ka Arth in Hindi):-
किसी विद्वान् व्यक्ति से उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए बल्कि ज्ञान की बात करनी चाहिए। असली मोल तो तलवार का होता है म्यान का नहीं।
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ
kabir das dohe with meaning
जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ दोहे का अर्थ(Jin Khoja Tin Paiya Gahare Paani Paith Dohe Ka Arth in Hindi):-
जो लोग लगातार प्रयत्न करते हैं, मेहनत करते हैं वह कुछ ना कुछ पाने में जरूर सफल हो जाते हैं। जैसे कोई गोताखोर जब गहरे पानी में डुबकी लगाता है तो कुछ ना कुछ लेकर जरूर आता है लेकिन जो लोग डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रहे हैं उनको जीवन पर्यन्त कुछ नहीं मिलता।दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत
दोस पराए देखि करि चला हसन्त हसन्त दोहे का अर्थ(Dos Paraye Dekhi Kari Chala Hasant Hasant Dohe Ka Arth in Hindi):-
इंसान की फितरत कुछ ऐसी है कि दूसरों के अंदर की बुराइयों को देखकर उनके दोषों पर हँसता है, व्यंग करता है लेकिन अपने दोषों पर कभी नजर नहीं जाती जिसका ना कोई आदि है न अंत।
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय
kabir das ke das dohe
तिनका कबहुँ ना निन्दिये जो पाँवन तर होय दोहे का अर्थ(TInaka Kabahu Na Nindaye Jo Pawan Tar Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीरदास जी इस दोहे में बताते हैं कि छोटी से छोटी चीज़ की भी कभी निंदा नहीं करनी चाहिए क्यूंकि वक्त आने पर छोटी चीज़ें भी बड़े काम कर सकती हैं। ठीक वैसे ही जैसे एक छोटा सा तिनका पैरों तले कुचल जाता है लेकिन आंधी चलने पर अगर वही तिनका आँखों में पड़ जाये तो बड़ी तकलीफ देता है।
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप
अति का भला न बोलना अति की भली न चूप दोहे का अर्थ (Ati Ka Bhala Na Bolana Ati Ki Bhali Na Chup Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीरदास जी कहते हैं कि ज्यादा बोलना अच्छा नहीं है और ना ही ज्यादा चुप रहना भी अच्छा है जैसे ज्यादा बारिश अच्छी नहीं होती लेकिन बहुत ज्यादा धूप भी अच्छी नहीं है।
कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन,
कही कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन
sant kabir dohe in hindi
कहत सुनत सब दिन गए उरझि न सुरझ्या मन दोहे का अर्थ(Kahat Sunat Sab Din Gaye urajhi Na Surjhya Man Dohe Ka Arth in Hindi):-
केवल कहने और सुनने में ही सब दिन चले गये लेकिन यह मन उलझा ही है अब तक सुलझा नहीं है। कबीर दास जी कहते हैं कि यह मन आजतक चेता नहीं है यह आज भी पहले जैसा ही है।
दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार
दुर्लभ मानुष जन्म है देह न बारम्बार दोहे का अर्थ(Durlabh Manush Janm Hai Deh na Barambar Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य का जन्म मिलना बहुत दुर्लभ है यह शरीर बार बार नहीं मिलता जैसे पेड़ से झड़ा हुआ पत्ता वापस पेड़ पर नहीं लग सकता।
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि
kabir das ke dohe with meaning in hindi
बोली एक अनमोल है जो कोई बोलै जानि दोहे का अर्थ(Boli Ek Anamol Hai Jo Koi Bole Haani Dohe Ka Arth in Hindi):-
जो व्यक्ति अच्छी वाणी बोलता है वही जानता है कि वाणी अनमोल रत्न है। इसके लिए हृदय रूपी तराजू में शब्दों को तोलकर ही मुख से बाहर आने दें।
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना
kabir ke dohe hindi mein
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा तुर्क कहें रहमाना दोहे का अर्थ(Hindu Kahe Mohi Ram Piyara Turk Kahe Rahmana Dohe Ka Arth in Hindi):-
हिन्दूयों के लिए राम प्यारा है और मुस्लिमों के लिए अल्लाह रहमान प्यारा है। दोनों राम रहीम के चक्कर में आपस में लड़ मिटते हैं लेकिन कोई सत्य को नहीं जान पाया।
संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत ।
चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत ।
संत ना छाडै संतई जो कोटिक मिले असंत दोहे का अर्थ(Sant Na Chaade Jo Kotik Mile Asant Dohe Ka Arth in Hindi):-
सज्जन पुरुष किसी भी परिस्थिति में अपनी सज्जनता नहीं छोड़ते चाहे कितने भी दुष्ट पुरुषों से क्यों ना घिरे हों। ठीक वैसे ही जैसे चन्दन के वृक्ष से हजारों सर्प लिपटे रहते हैं लेकिन वह कभी अपनी शीतलता नहीं छोड़ता।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय दोहे का अर्थ(Bura Jo Dekhan Mai Chala Bura Na Miliya Koy Dohe Ka Arth in Hindi):-
जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
kabir dohe with meaning in hindi
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय दोहे का अर्थ(Pothi Padhi Padhi Jag Muaa Pandit Bhaya Na Koy Dohe Ka Arth in Hindi):-
बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, भावार्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय दोहे का अर्थ(Sadhu Aisha Chahiye Jaisha Sup Subhay Dohe Ka Arth in Hindi):-
इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है। जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे।
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।
sant kabir das ji ke dohe
तिनका कबहुँ ना निन्दिये जो पाँवन तर होय दोहे का अर्थ(Tinaka Kabahu Na Nindiye Jo Pawan Tar Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर कहते हैं कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है। यदि कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है !
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
sant kabir ke dohe in hindi
धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय दोहे का अर्थ(Dhire Dhire Re Mana Dhire Sab Kuchh Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-
मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है। अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा !
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
माला फेरत जुग भया फिरा न मन का फेर दोहे का अर्थ(Maala Pherat Jug Bhaya Phira Na Man Ka Pher Dohe Ka Arth in Hindi):-
कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है, पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती। कबीर की ऐसे व्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलो या फेरो।
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिये ज्ञान दोहे का अर्थ(Jati Na Puchho Sadhu Ki Puchh Lijiye Gyan Dohe Ka Arth in Hindi):-
सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए। तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का – उसे ढकने वाले खोल का।
दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।
sant kabir ke dohe in hindi
दोस पराए देखि करि चला हसन्त हसन्त दोहे का अर्थ(Dos Paraye Dekhi Kari Chala Hasant Hasant Dohe Ka Arth in Hindi):-
यह मनुष्य का स्वभाव है कि जब वह दूसरों के दोष देख कर हंसता है, तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत।
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।
जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ दोहे का अर्थ(Jin Khoja Tin Paiya Gahare Paani Paith Dohe Ka Arth in Hindi):-
जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है। लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते।
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।
dohe kabir
बोली एक अनमोल है जो कोई बोलै जानि दोहे का अर्थ(Boli Ek Anamol Hai Jo Koi Bole Haani Dohe Ka Arth in Hindi):-
यदि कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो उसे पता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है। इसलिए वह ह्रदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है।
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।
अति का भला न बोलना अति की भली न चूप दोहे का अर्थ(Ati Ka Bhala Na Bolana Ati Ki Bhali Na Chup Dohe Ka Arth in Hindi):-
न तो अधिक बोलना अच्छा है, न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है। जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है।
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
kabir das ke dohe in hindi with meaning
निंदक नियरे राखिए ऑंगन कुटी छवाय दोहे का अर्थ(Nindak Niyare Rakhiye Angan Kuti Chhavay Dohe Ka Arth in Hindi):-
जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए। वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ़ करता है।
दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।
दुर्लभ मानुष जन्म है देह न बारम्बार दोहे का अर्थ(Durlabh Manush Janm Hai Deh Na Barambaar Dohe Ka Arth in Hindi):-
इस संसार में मनुष्य का जन्म मुश्किल से मिलता है। यह मानव शरीर उसी तरह बार-बार नहीं मिलता जैसे वृक्ष से पत्ता झड़ जाए तो दोबारा डाल पर नहीं लगता।
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।
कबीरा खड़ा बाज़ार में मांगे सबकी खैर दोहे का अर्थ(Kabira Khada Bazar Me Sabki Mange Khair Dohe Ka Arth in Hindi):-
इस संसार में आकर कबीर अपने जीवन में बस यही चाहते हैं कि सबका भला हो और संसार में यदि किसी से दोस्ती नहीं तो दुश्मनी भी न हो !
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।
kabir ke dohe in hindi
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा तुर्क कहें रहमाना दोहे का अर्थ(Hindu Kahe Mohi Ram Piyara Turk Kahe Rahamana Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर कहते हैं कि हिन्दू राम के भक्त हैं और तुर्क मुस्लिम को रहमान प्यारा है। इसी बात पर दोनों लड़-लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे, तब भी दोनों में से कोई सच को न जान पाया।
कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन।
कही कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन।
कहत सुनत सब दिन गए उरझि न सुरझ्या मन दोहे का अर्थ(Kahat Sunat Sab Din Gaye Urajhi Na Surjhya Man Dohe Ka Arth in Hindi):-
कहते सुनते सब दिन निकल गए, पर यह मन उलझ कर न सुलझ पाया। कबीर कहते हैं कि अब भी यह मन होश में नहीं आता। आज भी इसकी अवस्था पहले दिन के समान ही है।
कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई।
बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई।
kabir ji dohe
कबीर लहरि समंद की मोती बिखरे आई दोहे का अर्थ(Kabir Lahari Samand ki Moti Bikhare Aai Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर कहते हैं कि समुद्र की लहर में मोती आकर बिखर गए। बगुला उनका भेद नहीं जानता, परन्तु हंस उन्हें चुन-चुन कर खा रहा है। इसका भावार्थ यह है कि किसी भी वस्तु का महत्व जानकार ही जानता है।
जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई।
जब गुण को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई।
जब गुण को गाहक मिले तब गुण लाख बिकाई दोहे का अर्थ(Jab Gun ko Gahak Mile Tab Gud Lakh Bikai Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर कहते हैं कि जब गुण को परखने वाला गाहक मिल जाता है तो गुण की कीमत होती है। पर जब ऐसा गाहक नहीं मिलता, तब गुण कौड़ी के भाव चला जाता है।
कबीर कहा गरबियो, काल गहे कर केस।
ना जाने कहाँ मारिसी, कै घर कै परदेस।
कबीर कहा गरबियो काल गहे कर केस दोहे का अर्थ(Kabir Kaha Garabiyo Kaal Gahe Kar Kes Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर कहते हैं कि हे मानव ! तू क्या गर्व करता है? काल अपने हाथों में तेरे केश पकड़े हुए है। मालूम नहीं, वह घर या परदेश में, कहाँ पर तुझे मार डाले।
पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात।
एक दिना छिप जाएगा,ज्यों तारा परभात।
पानी केरा बुदबुदा अस मानुस की जात दोहे का अर्थ(Paani tera Budbudaa As Manas Ki Jaat Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर का कथन है कि जैसे पानी के बुलबुले, इसी प्रकार मनुष्य का शरीर क्षणभंगुर है।जैसे प्रभात होते ही तारे छिप जाते हैं, वैसे ही ये देह भी एक दिन नष्ट हो जाएगी।
हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास।
सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास।
dohe of kabir das in hindi
हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी केस जलै ज्यूं घास दोहे का अर्थ(Haad Jale Jyu Laakadi Kes Jalai Jyu Ghas Dohe Ka Arth in Hindi):-
यह नश्वर मानव देह अंत समय में लकड़ी की तरह जलती है और केश घास की तरह जल उठते हैं। सम्पूर्ण शरीर को इस तरह जलता देख, इस अंत पर कबीर का मन उदासी से भर जाता है।
जो उग्या सो अन्तबै, फूल्या सो कुमलाहीं।
जो चिनिया सो ढही पड़े, जो आया सो जाहीं।
जो उग्या सो अन्तबै फूल्या सो कुमलाहीं दोहे का अर्थ(Jo Ugya So Antabai Phulya So kumlahi Dohe Ka Arth in Hindi):-
इस संसार का नियम यही है कि जो उदय हुआ है,वह अस्त होगा। जो विकसित हुआ है वह मुरझा जाएगा। जो चिना गया है वह गिर पड़ेगा और जो आया है वह जाएगा।
झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद।
खलक चबैना काल का, कुछ मुंह में कुछ गोद।
झूठे सुख को सुख कहे मानत है मन मोद दोहे का अर्थ(Jhuthe Sukh Ko Sukh Kahe Manat Hai Man Mod Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर कहते हैं कि अरे जीव ! तू झूठे सुख को सुख कहता है और मन में प्रसन्न होता है? देख यह सारा संसार मृत्यु के लिए उस भोजन के समान है, जो कुछ तो उसके मुंह में है और कुछ गोद में खाने के लिए रखा है।
ऐसा कोई ना मिले, हमको दे उपदेस।
भौ सागर में डूबता, कर गहि काढै केस।
ऐसा कोई ना मिले हमको दे उपदेस दोहे का अर्थ(Aesa Koi Na Mile Hamako De Upadesh Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर संसारी जनों के लिए दुखित होते हुए कहते हैं कि इन्हें कोई ऐसा पथप्रदर्शक न मिला जो उपदेश देता और संसार सागर में डूबते हुए इन प्राणियों को अपने हाथों से केश पकड़ कर निकाल लेता।
संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत
चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत।
dohas of kabir das
संत ना छाडै संतई जो कोटिक मिले असंत दोहे का अर्थ(Sant Na Chhadai Santai Jo Kotik Mile Asant Dohe Ka Arth in Hindi):-
सज्जन को चाहे करोड़ों दुष्ट पुरुष मिलें फिर भी वह अपने भले स्वभाव को नहीं छोड़ता। चन्दन के पेड़ से सांप लिपटे रहते हैं, पर वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता।
कबीर तन पंछी भया, जहां मन तहां उडी जाइ।
जो जैसी संगती कर, सो तैसा ही फल पाइ।
कबीर तन पंछी भया जहां मन तहां उडी जाइ दोहे का अर्थ(Kabir Tan Panchhi Bhaya Janha Man Tanha Udi Jaye Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर कहते हैं कि संसारी व्यक्ति का शरीर पक्षी बन गया है और जहां उसका मन होता है, शरीर उड़कर वहीं पहुँच जाता है। सच है कि जो जैसा साथ करता है, वह वैसा ही फल पाता है।
तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई।
सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ।
तन को जोगी सब करें मन को बिरला कोई दोहे का अर्थ(Tan Ko Jogi Sab Kare Man Ko Birala Koi Dohe Ka Arth in Hindi):-
शरीर में भगवे वस्त्र धारण करना सरल है, पर मन को योगी बनाना बिरले ही व्यक्तियों का काम है य़दि मन योगी हो जाए तो सारी सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं।
कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय।
सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय।
कबीर सो धन संचे जो आगे को होय दोहे का अर्थ(Kabir So Dhan Sanche Jo Aage Ko Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में काम आए। सर पर धन की गठरी बाँध कर ले जाते तो किसी को नहीं देखा।
माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर।
आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर ।
कबीर दास के दोहे भक्ति
माया मुई न मन मुआ मरी मरी गया सरीर दोहे का अर्थ(Maya Mari Na Man Muaa Mari Mari Gaya Sharir Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर कहते हैं कि संसार में रहते हुए न माया मरती है न मन। शरीर न जाने कितनी बार मर चुका पर मनुष्य की आशा और तृष्णा कभी नहीं मरती, कबीर ऐसा कई बार कह चुके हैं।
मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई।
पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई।
मन हीं मनोरथ छांड़ी दे तेरा किया न होई दोहे का अर्थ(Man Hi Manorath Chhandi De Tera Kiya Na Hoi Dohe Ka Arth in Hindi):-
मनुष्य मात्र को समझाते हुए कबीर कहते हैं कि मन की इच्छाएं छोड़ दो , उन्हें तुम अपने बूते पर पूर्ण नहीं कर सकते। यदि पानी से घी निकल आए, तो रूखी रोटी कोई न खाएगा।जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही ।
सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ।
जब मैं था तब हरी नहीं अब हरी है मैं नाही दोहे का अर्थ(Jab Mai Tab Hari Nahi Ab Hari Hai Mai Nahi Dohe Ka Arth in Hindi):-
जब मैं अपने अहंकार में डूबा था – तब प्रभु को न देख पाता था – लेकिन जब गुरु ने ज्ञान का दीपक मेरे भीतर प्रकाशित किया तब अज्ञान का सब अन्धकार मिट गया – ज्ञान की ज्योति से अहंकार जाता रहा और ज्ञान के आलोक में प्रभु को पाया।
कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी ।
एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ।
कबीर सुता क्या करे जागी न जपे मुरारी दोहे का अर्थ(KAbir Suta Kya Kare Jaagi Na Jape Murari Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर कहते हैं – अज्ञान की नींद में सोए क्यों रहते हो? ज्ञान की जागृति को हासिल कर प्रभु का नाम लो।सजग होकर प्रभु का ध्यान करो।वह दिन दूर नहीं जब तुम्हें गहन निद्रा में सो ही जाना है – जब तक जाग सकते हो जागते क्यों नहीं? प्रभु का नाम स्मरण क्यों नहीं करते ?आछे / पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत ।
अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ।
कबीर दास के 10 दोहे हिंदी में
आछे पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत दोहे का अर्थ(Aachhe Pachhe Din Paache Gaye Hari Se Kiya Na Het Dohe Ka Arth in HIndi):-
देखते ही देखते सब भले दिन – अच्छा समय बीतता चला गया – तुमने प्रभु से लौ नहीं लगाई – प्यार नहीं किया समय बीत जाने पर पछताने से क्या मिलेगा? पहले जागरूक न थे – ठीक उसी तरह जैसे कोई किसान अपने खेत की रखवाली ही न करे और देखते ही देखते पंछी उसकी फसल बर्बाद कर जाएं।
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ।
रात गंवाई सोय के दिवस गंवाया खाय दोहे का अर्थ(Raat Ganvayi Soy Ke Divas Ganvaya Khay Dohe Ka Arth in Hindi):-
रात नींद में नष्ट कर दी – सोते रहे – दिन में भोजन से फुर्सत नहीं मिली यह मनुष्य जन्म हीरे के सामान बहुमूल्य था जिसे तुमने व्यर्थ कर दिया – कुछ सार्थक किया नहीं तो जीवन का क्या मूल्य बचा ? एक कौड़ी
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर दोहे का अर्थ(Bada Huaa To Kya Huaa Jaishe Ped Khajur Dohe Ka Arth in Hindi):-
खजूर के पेड़ के समान बड़ा होने का क्या लाभ, जो ना ठीक से किसी को छाँव दे पाता है और न ही उसके फल सुलभ होते हैं।
हरिया जांणे रूखड़ा, उस पाणी का नेह।
सूका काठ न जानई, कबहूँ बरसा मेंह।
हरिया जांणे रूखड़ा उस पाणी का नेह दोहे का अर्थ(Harina Jane Rukhana Us Pani Ka Neh Dohe Ka Arth in Hindi):-
पानी के स्नेह को हरा वृक्ष ही जानता है।सूखा काठ – लकड़ी क्या जाने कि कब पानी बरसा? भावार्थात सहृदय ही प्रेम भाव को समझता है।
झिरमिर- झिरमिर बरसिया, पाहन ऊपर मेंह।
माटी गलि सैजल भई, पांहन बोही तेह।
झिरमिर झिरमिर बरसिया पाहन ऊपर मेंह दोहे का अर्थ(Jhirmir Jhirmir Barasiya Pahan Upar Menh Dohe Ka Arth in Hindi):-
बादल पत्थर के ऊपर झिरमिर करके बरसने लगे। इससे मिट्टी तो भीग कर सजल हो गई किन्तु पत्थर वैसा का वैसा बना रहा।
कहत सुनत सब दिन गए, उरझी न सुरझ्या मन।
कहि कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन।
कबीर के दोहे हिंदी में
कहत सुनत सब दिन गए उरझी न सुरझ्या मन दोहे का अर्थ(Kahat Sunat Sab Din Gaye Urajhi Na Surjhya Man Kahi Dohe Ka Arth in Hindi):-
कहते सुनते सब दिन बीत गए, पर यह मन उलझ कर न सुलझ पाया ! कबीर कहते हैं कि यह मन अभी भी होश में नहीं आता। आज भी इसकी अवस्था पहले दिन के ही समान है।
कबीर थोड़ा जीवना, मांड़े बहुत मंड़ाण।
कबीर थोड़ा जीवना, मांड़े बहुत मंड़ाण।
कबीर थोड़ा जीवना मांड़े बहुत मंड़ाण दोहे का अर्थ(Kabir Thoda Jivana Made Bahut Mandan Dohe Ka Arth in HIndi):-
बादल पत्थर के ऊपर झिरमिर करके बरसने लगे। इससे मिट्टी तो भीग कर सजल हो गई किन्तु पत्थर वैसा का वैसा बना रहा।
झिरमिर- झिरमिर बरसिया, पाहन ऊपर मेंह।
माटी गलि सैजल भई, पांहन बोही तेह।
झिरमिर झिरमिर बरसिया पाहन ऊपर मेंह दोहे का अर्थ(Jhirmir Jhirmir Barsiya Pahan Upar Meh Dohe Ka Arth in Hindi):-
थोड़ा सा जीवन है, उसके लिए मनुष्य अनेक प्रकार के प्रबंध करता है। चाहे राजा हो या निर्धन चाहे बादशाह – सब खड़े खड़े ही नष्ट हो गए।
इक दिन ऐसा होइगा, सब सूं पड़े बिछोह।
राजा राणा छत्रपति, सावधान किन होय।
इक दिन ऐसा होइगा सब सूं पड़े बिछोह दोहे का अर्थ(Ek Din Aesa Hoiga Sab Su Pade Bichhoy Dohe Ka Arth in Hindi):-
एक दिन ऐसा जरूर आएगा जब सबसे बिछुड़ना पडेगा। हे राजाओं ! हे छत्रपतियों ! तुम अभी से सावधान क्यों नहीं हो जाते!
कबीर प्रेम न चक्खिया,चक्खि न लिया साव।
सूने घर का पाहुना, ज्यूं आया त्यूं जाव।
कबीर दास जी के मशहूर दोहे
कबीर प्रेम न चक्खिया चक्खि न लिया साव दोहे का अर्थ(Kabir Prem Na Chakkhiya Chakkhi Na Liya Sav Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर कहते हैं कि जिस व्यक्ति ने प्रेम को चखा नहीं, और चख कर स्वाद नहीं लिया, वह उसअतिथि के समान है जो सूने, निर्जन घर में जैसा आता है, वैसा ही चला भी जाता है, कुछ प्राप्त नहीं कर पाता।
मान, महातम, प्रेम रस, गरवा तण गुण नेह।
ए सबही अहला गया, जबहीं कह्या कुछ देह।
मान महातम प्रेम रस गरवा तण गुण नेह दोहे का अर्थ(Maan Maharat Prem Ras Garawa Tan Hun Neh Dohe Ka Arth in Hindi):-
मान, महत्त्व, प्रेम रस, गौरव गुण तथा स्नेह – सब बाढ़ में बह जाते हैं जब किसी मनुष्य से कुछ देने के लिए कहा जाता है।
जाता है सो जाण दे, तेरी दसा न जाइ।
खेवटिया की नांव ज्यूं, घने मिलेंगे आइ।
जाता है सो जाण दे तेरी दसा न जाइ दोहे का अर्थ(Jaata Hai So Jaan De Teri Dasa Na Jaai Dohe Ka Arth in Hindi):-
जो जाता है उसे जाने दो। तुम अपनी स्थिति को, दशा को न जाने दो। यदि तुम अपने स्वरूप में बने रहे तो केवट की नाव की तरह अनेक व्यक्ति आकर तुमसे मिलेंगे।
मानुष जन्म दुलभ है, देह न बारम्बार।
तरवर थे फल झड़ी पड्या,बहुरि न लागे डारि।
मानुष जन्म दुलभ है देह न बारम्बार दोहे का अर्थ(Manush Janm Durlabh Hai Deh Na Barambar Dohe Ka Arth in Hindi):-
मानव जन्म पाना कठिन है। यह शरीर बार-बार नहीं मिलता। जो फल वृक्ष से नीचे गिर पड़ता है वह पुन: उसकी डाल पर नहीं लगता ।
यह तन काचा कुम्भ है,लिया फिरे था साथ।
ढबका लागा फूटिगा, कछू न आया हाथ।
यह तन काचा कुम्भ है लिया फिरे था साथ दोहे का अर्थ(Yah Tan Kacha Kumbh Hai Liya Phire Tha Sath Dohe Ka Arth in Hindi):-
यह शरीर कच्चा घड़ा है जिसे तू साथ लिए घूमता फिरता था।जरा-सी चोट लगते ही यह फूट गया। कुछ भी हाथ नहीं आया।
मैं मैं बड़ी बलाय है, सकै तो निकसी भागि।
कब लग राखौं हे सखी, रूई लपेटी आगि।
मैं मैं बड़ी बलाय है सकै तो निकसी भागि दोहे का अर्थ(Mai Mai Badi Balay Hai Sakai To Nikasi Bhagi Dohe Ka Arth in Hindi):-
अहंकार बहुत बुरी वस्तु है। हो सके तो इससे निकल कर भाग जाओ। मित्र, रूई में लिपटी इस अग्नि – अहंकार – को मैं कब तक अपने पास रखूँ?
कबीर बादल प्रेम का, हम पर बरसा आई ।
अंतरि भीगी आतमा, हरी भई बनराई ।
कबीर दास जी के 15 दोहे
कबीर बादल प्रेम का हम पर बरसा आई दोहे का अर्थ(Kabir Badal Prem Ka Ham Par Barasa Aai Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर कहते हैं – प्रेम का बादल मेरे ऊपर आकर बरस पडा – जिससे अंतरात्मा तक भीग गई, आस पास पूरा परिवेश हरा-भरा हो गया – खुश हाल हो गया – यह प्रेम का अपूर्व प्रभाव है ! हम इसी प्रेम में क्यों नहीं जीते !
जिहि घट प्रेम न प्रीति रस, पुनि रसना नहीं नाम।
ते नर या संसार में , उपजी भए बेकाम ।
जिहि घट प्रेम न प्रीति रस पुनि रसना नहीं नाम दोहे का अर्थ(Jihi Ghat Prem Na Priti Ras Puni Rasana Nahi Naam Dohe Ka Arth in Hindi):-
जिनके ह्रदय में न तो प्रीति है और न प्रेम का स्वाद, जिनकी जिह्वा पर राम का नाम नहीं रहता – वे मनुष्य इस संसार में उत्पन्न हो कर भी व्यर्थ हैं। प्रेम जीवन की सार्थकता है। प्रेम रस में डूबे रहना जीवन का सार है।
लंबा मारग दूरि घर, बिकट पंथ बहु मार।
कहौ संतों क्यूं पाइए, दुर्लभ हरि दीदार।
लंबा मारग दूरि घर बिकट पंथ बहु मार दोहे का अर्थ(Lamba Marag Duri Ghar Bikat Panth Bahu Maar Dohe Ka Arth in Hindi):-
घर दूर है मार्ग लंबा है रास्ता भयंकर है और उसमें अनेक पातक चोर ठग हैं। हे सज्जनों ! कहो , भगवान् का दुर्लभ दर्शन कैसे प्राप्त हो?संसार में जीवन कठिन है – अनेक बाधाएं हैं विपत्तियां हैं – उनमें पड़कर हम भरमाए रहते हैं – बहुत से आकर्षण हमें अपनी ओर खींचते रहते हैं – हम अपना लक्ष्य भूलते रहते हैं – अपनी पूंजी गंवाते रहते हैं।
इस तन का दीवा करों, बाती मेल्यूं जीव।
लोही सींचौं तेल ज्यूं, कब मुख देखों पीव।
इस तन का दीवा करों बाती मेल्यूं जीव दोहे का अर्थ(Is Tan Ka Diva Karo Baati Melyun Jiv Dohe Ka Arth in Hindi):-
इस शरीर को दीपक बना लूं, उसमें प्राणों की बत्ती डालूँ और रक्त से तेल की तरह सींचूं – इस तरह दीपक जला कर मैं अपने प्रिय के मुख का दर्शन कब कर पाऊंगा? ईश्वर से लौ लगाना उसे पाने की चाह करना उसकी भक्ति में तन-मन को लगाना एक साधना है तपस्या है – जिसे कोई कोई विरला ही कर पाता है !
नैना अंतर आव तू, ज्यूं हौं नैन झंपेउ।
ना हौं देखूं और को न तुझ देखन देऊँ।
कबीर दोहे कौन है
नैना अंतर आव तू ज्यूं हौं नैन झंपेउ दोहे का अर्थ(Naina Antar Aaw Tu jyun ho Nain jhnpeu Dohe Ka Arth in Hindi):-
हे प्रिय ! प्रभु तुम इन दो नेत्रों की राह से मेरे भीतर आ जाओ और फिर मैं अपने इन नेत्रों को बंद कर लूं ! फिर न तो मैं किसी दूसरे को देखूं और न ही किसी और को तुम्हें देखने दूं !
कबीर रेख सिन्दूर की काजल दिया न जाई।
नैनूं रमैया रमि रहा दूजा कहाँ समाई ।
कबीर रेख सिन्दूर की काजल दिया न जाई दोहे का अर्थ(Kabir Rekh Sindur Ki kajal Diya Na Jaai Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर कहते हैं कि जहां सिन्दूर की रेखा है – वहां काजल नहीं दिया जा सकता। जब नेत्रों में राम विराज रहे हैं तो वहां कोई अन्य कैसे निवास कर सकता है ?
कबीर सीप समंद की, रटे पियास पियास ।
समुदहि तिनका करि गिने, स्वाति बूँद की आस ।
कबीर सीप समंद की रटे पियास पियास दोहे का अर्थ(Kabir Sip Samand ki Rate Piyas Piyas Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर कहते हैं कि समुद्र की सीपी प्यास प्यास रटती रहती है। स्वाति नक्षत्र की बूँद की आशा लिए हुए समुद्र की अपार जलराशि को तिनके के बराबर समझती है। हमारे मन में जो पाने की ललक है जिसे पाने की लगन है, उसके बिना सब निस्सार है।
सातों सबद जू बाजते घरि घरि होते राग ।
ते मंदिर खाली परे बैसन लागे काग ।
सातों सबद जू बाजते घरि घरि होते राग दोहे का अर्थ(Sato Sabad Ju Bajate Ghari Ghari Hote Raag Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर कहते हैं कि जिन घरों में सप्त स्वर गूंजते थे, पल पल उत्सव मनाए जाते थे, वे घर भी अब खाली पड़े हैं – उनपर कौए बैठने लगे हैं। हमेशा एक सा समय तो नहीं रहता ! जहां खुशियाँ थी वहां गम छा जाता है जहां हर्ष था वहां विषाद डेरा डाल सकता है – यह इस संसार में होता है !।
कबीर कहा गरबियौ, ऊंचे देखि अवास ।
काल्हि परयौ भू लेटना ऊपरि जामे घास।
kabir ke dohe in hindi
कबीर कहा गरबियौ ऊंचे देखि अवास दोहे का अर्थ(Kabir Kaha Garabiyo Unche Dekhi Aawas Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर कहते है कि ऊंचे भवनों को देख कर क्या गर्व करते हो ? कल या परसों ये ऊंचाइयां और आप भी धरती पर लेट जाएंगे ध्वस्त हो जाएंगे और ऊपर से घास उगने लगेगी ! वीरान सुनसान हो जाएगा जो अभी हंसता खिलखिलाता घर आँगन है ! इसलिए कभी गर्व न करना चाहिए ।
जांमण मरण बिचारि करि कूड़े काम निबारि ।
जिनि पंथूं तुझ चालणा सोई पंथ संवारि ।
जांमण मरण बिचारि करि कूड़े काम निबारि दोहे का अर्थ(Jaman Maran Bichari Karri Kude Kaam Nibaari Dohe Ka Arth in Hindi):-
जन्म और मरण का विचार करके , बुरे कर्मों को छोड़ दे। जिस मार्ग पर तुझे चलना है उसी मार्ग का स्मरण कर – उसे ही याद रख – उसे ही संवार सुन्दर बना।
बिन रखवाले बाहिरा चिड़िये खाया खेत ।
आधा परधा ऊबरै, चेती सकै तो चेत ।
बिन रखवाले बाहिरा चिड़िये खाया खेत दोहे का अर्थ(Bin Rakhwale Bahira Chidiye Khaya Khet Dohe Ka Arth in Hindi):-
रखवाले के बिना बाहर से चिड़ियों ने खेत खा लिया। कुछ खेत अब भी बचा है – यदि सावधान हो सकते हो तो हो जाओ – उसे बचा लो ! जीवन में असावधानी के कारण इंसान बहुत कुछ गँवा देता है – उसे खबर भी नहीं लगती – नुक्सान हो चुका होता है – यदि हम सावधानी बरतें तो कितने नुक्सान से बच सकते हैं ! इसलिए जागरूक होना है हर इंसान को - जैसे पराली जलाने की सावधानी बरतते तो दिल्ली में भयंकर वायु प्रदूषण से बचते पर – अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत !
कबीर देवल ढहि पड्या ईंट भई सेंवार ।
करी चिजारा सौं प्रीतड़ी ज्यूं ढहे न दूजी बार ।
कबीर देवल ढहि पड्या ईंट भई सेंवार दोहे का अर्थ(Kabir Deval Dhahi Pandaya Et Bhai Senvar Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर कहते हैं शरीर रूपी देवालय नष्ट हो गया – उसकी ईंट ईंट – अर्थात शरीर का अंग अंग - शैवाल अर्थात काई में बदल गई। इस देवालय को बनाने वाले प्रभु से प्रेम कर जिससे यह देवालय दूसरी बार नष्ट न हो।
कबीर मंदिर लाख का, जडियां हीरे लालि ।
दिवस चारि का पेषणा, बिनस जाएगा कालि ।
kabir ke dohe in hindi
कबीर मंदिर लाख का जडियां हीरे लालि दोहे का अर्थ(Kabir Mandir Lakh Ka Jadiya Hire Lali Dohe Ka Arth in Hindi):-
यह शरीर लाख का बना मंदिर है जिसमें हीरे और लाल जड़े हुए हैं।यह चार दिन का खिलौना है कल ही नष्ट हो जाएगा। शरीर नश्वर है – जतन करके मेहनत करके उसे सजाते हैं तब उसकी क्षण भंगुरता को भूल जाते हैं किन्तु सत्य तो इतना ही है कि देह किसी कच्चे खिलौने की तरह टूट फूट जाती है – अचानक ऐसे कि हम जान भी नहीं पाते !
कबीर यह तनु जात है सकै तो लेहू बहोरि ।
नंगे हाथूं ते गए जिनके लाख करोडि।
कबीर यह तनु जात है सकै तो लेहू बहोरि दोहे का अर्थ(Kabir Yah Tanu Jaat Hai Sakai To Lehu Bahori Dohe Ka Arth in Hindi):-
यह शरीर नष्ट होने वाला है हो सके तो अब भी संभल जाओ – इसे संभाल लो ! जिनके पास लाखों करोड़ों की संपत्ति थी वे भी यहाँ से खाली हाथ ही गए हैं – इसलिए जीते जी धन संपत्ति जोड़ने में ही न लगे रहो – कुछ सार्थक भी कर लो ! जीवन को कोई दिशा दे लो – कुछ भले काम कर लो !
हू तन तो सब बन भया करम भए कुहांडि ।
आप आप कूँ काटि है, कहै कबीर बिचारि।
kabir das ke dohe
हू तन तो सब बन भया करम भए कुहांडि दोहे का अर्थ(Hu Tan To Sab Ban Bhaya karam Bhaye Kuhandi Dohe Ka Arth in Hindi):-
यह शरीर तो सब जंगल के समान है – हमारे कर्म ही कुल्हाड़ी के समान हैं। इस प्रकार हम खुद अपने आपको काट रहे हैं – यह बात कबीर सोच विचार कर कहते हैं।
तेरा संगी कोई नहीं सब स्वारथ बंधी लोइ ।
मन परतीति न उपजै, जीव बेसास न होइ ।
तेरा संगी कोई नहीं सब स्वारथ बंधी लोइ दोहे का अर्थ(Tera Sangi Koi Nahi Sab Swarth Badhi Loi Dohe Ka Arth in Hindi):-
तेरा साथी कोई भी नहीं है। सब मनुष्य स्वार्थ में बंधे हुए हैं, जब तक इस बात की प्रतीति – भरोसा – मन में उत्पन्न नहीं होता तब तक आत्मा के प्रति विशवास जाग्रत नहीं होता। भावार्थात वास्तविकता का ज्ञान न होने से मनुष्य संसार में रमा रहता है जब संसार के सच को जान लेता है – इस स्वार्थमय सृष्टि को समझ लेता है – तब ही अंतरात्मा की ओर उन्मुख होता है – भीतर झांकता है !
मैं मैं मेरी जिनी करै, मेरी सूल बिनास ।
मेरी पग का पैषणा मेरी गल की पास ।
मैं मैं मेरी जिनी करै मेरी सूल बिनास दोहे का अर्थ(Mai Mai Meri Jini Karai Meri Sul Binas Dohe Ka Arth in Hindi):-
ममता और अहंकार में मत फंसो और बंधो – यह मेरा है कि रट मत लगाओ – ये विनाश के मूल हैं – जड़ हैं – कारण हैं – ममता पैरों की बेडी है और गले की फांसी है।
कबीर नाव जर्जरी कूड़े खेवनहार ।
हलके हलके तिरि गए बूड़े तिनि सर भार !।
kabir ke dohe
कबीर नाव जर्जरी कूड़े खेवनहार दोहे का अर्थ(Kabir Nav Jarjari Kude Khevanhar Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर कहते हैं कि जीवन की नौका टूटी फूटी है जर्जर है उसे खेने वाले मूर्ख हैं जिनके सर पर विषय वासनाओं का बोझ है वे तो संसार सागर में डूब जाते हैं – संसारी हो कर रह जाते हैं दुनिया के धंधों से उबर नहीं पाते – उसी में उलझ कर रह जाते हैं पर जो इनसे मुक्त हैं – हलके हैं वे तर जाते हैं पार लग जाते हैं भव सागर में डूबने से बच जाते हैं।
मन जाणे सब बात जांणत ही औगुन करै ।
काहे की कुसलात कर दीपक कूंवै पड़े ।
मन जाणे सब बात जांणत ही औगुन करै दोहे का अर्थ(Man Jaane Sab Baat Janat hi Augun Karai Dohe Ka Arth in Hindi):-
मन सब बातों को जानता है जानता हुआ भी अवगुणों में फंस जाता है जो दीपक हाथ में पकडे हुए भी कुंए में गिर पड़े उसकी कुशल कैसी?
हिरदा भीतर आरसी मुख देखा नहीं जाई ।
मुख तो तौ परि देखिए जे मन की दुविधा जाई ।
kabir ji ke dohe
हिरदा भीतर आरसी मुख देखा नहीं जाई दोहे का अर्थ(Hirada Bhitar Aarasi Mukh Dekha Nahi Jaai Dohe Ka Arth in Hindi):-
ह्रदय के अंदर ही दर्पण है परन्तु – वासनाओं की मलिनता के कारण – मुख का स्वरूप दिखाई ही नहीं देता मुख या अपना चेहरा या वास्तविक स्वरूप तो तभी दिखाई पड सकता जब मन का संशय मिट जाए !
करता था तो क्यूं रहया, जब करि क्यूं पछिताय ।
बोये पेड़ बबूल का, अम्ब कहाँ ते खाय ।
करता था तो क्यूं रहया जब करि क्यूं पछिताय दोहे का अर्थ(Karata Tha To Kyu Rahaya jab Kari Kyu Pachhitay Dohe Ka Arth in Hindi):-
यदि तू अपने को कर्ता समझता था तो चुप क्यों बैठा रहा? और अब कर्म करके पश्चात्ताप क्यों करता है? पेड़ तो बबूल का लगाया है – फिर आम खाने को कहाँ से मिलें ?
मनहिं मनोरथ छांडी दे, तेरा किया न होइ ।
पाणी मैं घीव नीकसै, तो रूखा खाई न कोइ ।
kabir das ke dohe
मनहिं मनोरथ छांडी दे तेरा किया न होइ दोहे का अर्थ(Manahi Manorath Chhandi De Tera Kiya Na Hoi Dohe Ka Arth in Hindi):-
मन की इच्छा छोड़ दो।उन्हें तुम अपने बल पर पूरा नहीं कर सकते। यदि जल से घी निकल आवे, तो रूखी रोटी कोई भी न खाएगा!
माया मुई न मन मुवा, मरि मरि गया सरीर ।
आसा त्रिष्णा णा मुई यों कहि गया कबीर ।
माया मुई न मन मुवा मरि मरि गया सरीर दोहे का अर्थ(Maya Mui Na Man Muaa Mari Mari Gaya Sharir Dohe Ka Arth in Hindi):-
न माया मरती है न मन शरीर न जाने कितनी बार मर चुका। आशा, तृष्णा कभी नहीं मरती – ऐसा कबीर कई बार कह चुके हैं।
कबीर सो धन संचिए जो आगे कूं होइ।
सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्या कोइ ।
kabir dohe
कबीर सो धन संचिए जो आगे कूं होइ दोहे का अर्थ(Kabir So Dhan Sanchiye Jo aage Ku Hoi Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में काम दे। सर पर धन की गठरी बांधकर ले जाते तो किसी को नहीं देखा।
झूठे को झूठा मिले, दूंणा बंधे सनेह
झूठे को साँचा मिले तब ही टूटे नेह ।
झूठे को झूठा मिले दूंणा बंधे सनेह दोहे का अर्थ(Jhoothe Ko Jhootha Mile Duna Bandhe Sneh Dohe Ka Arth in Hindi):-
जब झूठे आदमी को दूसरा झूठा आदमी मिलता है तो दूना प्रेम बढ़ता है। पर जब झूठे को एक सच्चा आदमी मिलता है तभी प्रेम टूट जाता है।
करता केरे गुन बहुत औगुन कोई नाहिं।
जे दिल खोजों आपना, सब औगुन मुझ माहिं ।
करता केरे गुन बहुत औगुन कोई नाहिं दोहे का अर्थ(Karata Kere Gun Bahut Augun Koi Naahi Dohe Ka Arth in Hindi):-
प्रभु में गुण बहुत हैं – अवगुण कोई नहीं है।जब हम अपने ह्रदय की खोज करते हैं तब समस्त अवगुण अपने ही भीतर पाते हैं।
बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय ।
जो घर देखा आपना मुझसे बुरा णा कोय।
बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय दोहे का अर्थ(Bura Jo Dekhan Mai Chala Buraa Na Miliya Koi Dohe Ka Arth in Hindi):-
मैं इस संसार में बुरे व्यक्ति की खोज करने चला था लेकिन जब अपने घर – अपने मन में झाँक कर देखा तो खुद से बुरा कोई न पाया अर्थात हम दूसरे की बुराई पर नजर रखते हैं पर अपने आप को नहीं निहारते !
कबीर चन्दन के निडै नींव भी चन्दन होइ।
बूडा बंस बड़ाइता यों जिनी बूड़े कोइ ।
kabir das ji ke dohe
कबीर चन्दन के निडै नींव भी चन्दन होइ दोहे का अर्थ(Kabir Chandan ke Nidai Niv Bhi Chandan Hoi Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर कहते हैं कि यदि चंदन के वृक्ष के पास नीम का वृक्ष हो तो वह भी कुछ सुवास ले लेता है – चंदन का कुछ प्रभाव पा लेता है । लेकिन बांस अपनी लम्बाई – बडेपन – बड़प्पन के कारण डूब जाता है। इस तरह तो किसी को भी नहीं डूबना चाहिए। संगति का अच्छा प्रभाव ग्रहण करना चाहिए – आपने गर्व में ही न रहना चाहिए ।
क्काज्ल केरी कोठारी, मसि के कर्म कपाट।
पांहनि बोई पृथमीं,पंडित पाड़ी बात।
क्काज्ल केरी कोठारी मसि के कर्म कपाट दोहे का अर्थ(Kkaajl Keri Kothari Masi Ke Karm Kapat Dohe Ka Arth in Hindi):-
यह संसार काजल की कोठरी है, इसके कर्म रूपी कपाट कालिमा के ही बने हुए हैं। पंडितों ने पृथ्वीपर पत्थर की मूर्तियाँ स्थापित करके मार्ग का निर्माण किया है।
मूरख संग न कीजिए ,लोहा जल न तिराई।
कदली सीप भावनग मुख, एक बूँद तिहूँ भाई ।
मूरख संग न कीजिए लोहा जल न तिराई दोहे का अर्थ(Murakh Sang Na Kijiye Loha Jal Na Tirai Dohe Ka Arth in Hindi):-
मूर्ख का साथ मत करो।मूर्ख लोहे के सामान है जो जल में तैर नहीं पाता डूब जाता है । संगति का प्रभाव इतना पड़ता है कि आकाश से एक बूँद केले के पत्ते पर गिर कर कपूर, सीप के अन्दर गिर कर मोती और सांप के मुख में पड़कर विष बन जाती है।
ऊंचे कुल क्या जनमिया जे करनी ऊंच न होय।
सुबरन कलस सुरा भरा साधू निन्दै सोय ।
kabir ji ke dohe
ऊंचे कुल क्या जनमिया जे करनी ऊंच न होय दोहे का अर्थ(Unche Kul Kya Janamiya Je Karani Unch Naa Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-
यदि कार्य उच्च कोटि के नहीं हैं तो उच्च कुल में जन्म लेने से क्या लाभ? सोने का कलश यदि सुरा से भरा है तो साधु उसकी निंदा ही करेंगे।
कबीर संगति साध की , कड़े न निर्फल होई ।
चन्दन होसी बावना , नीब न कहसी कोई ।
कबीर संगति साध की कड़े न निर्फल होई दोहे का अर्थ(Kabir Sangati Sadh Ki Kade Na Nirphal Hoi Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर कहते हैं कि साधु की संगति कभी निष्फल नहीं होती। चन्दन का वृक्ष यदि छोटा – वामन – बौना भी होगा तो भी उसे कोई नीम का वृक्ष नहीं कहेगा। वह सुवासित ही रहेगा और अपने परिवेश को सुगंध ही देगा। आपने आस-पास को खुशबू से ही भरेगा
जानि बूझि साँचहि तजै, करै झूठ सूं नेह ।
ताकी संगति रामजी, सुपिनै ही जिनि देहु ।
kabir das ji ke dohe
जानि बूझि साँचहि तजै करै झूठ सूं नेह दोहे का अर्थ(Jaani Bujhi Sanchahi Tajai Karai Jhooth Sun Neh Dohe Ka Arth in Hindi):-
जो जानबूझ कर सत्य का साथ छोड़ देते हैं झूठ से प्रेम करते हैं हे भगवान् ऐसे लोगों की संगति हमें स्वप्न में भी न देना।
मन मरया ममता मुई, जहं गई सब छूटी।
जोगी था सो रमि गया, आसणि रही बिभूति ।
मन मरया ममता मुई जहं गई सब छूटी दोहे का अर्थ(Man Maraya Mamata Mui Janh Gayi Sab Chhuti Dohe Ka Arth in Hindi):-
मन को मार डाला ममता भी समाप्त हो गई अहंकार सब नष्ट हो गया जो योगी था वह तो यहाँ से चला गया अब आसन पर उसकी भस्म – विभूति पड़ी रह गई अर्थात संसार में केवल उसका यश रह गया।
तरवर तास बिलम्बिए, बारह मांस फलंत ।
सीतल छाया गहर फल, पंछी केलि करंत ।
kabir das dohe
तरवर तास बिलम्बिए बारह मांस फलंत दोहे का अर्थ(Tarawar Tas Bilambiye Barah Mans Phalant Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर कहते हैं कि ऐसे वृक्ष के नीचे विश्राम करो, जो बारहों महीने फल देता हो ।जिसकी छाया शीतल हो , फल सघन हों और जहां पक्षी क्रीडा करते हों ।
काची काया मन अथिर थिर थिर काम करंत ।
ज्यूं ज्यूं नर निधड़क फिरै त्यूं त्यूं काल हसन्त ।
काची काया मन अथिर थिर थिर काम करंत दोहे का अर्थ(Kachi Kaya Man Athir Thir Thir Kaam Karant Dohe Ka Arth in Hindi):-
शरीर कच्चा अर्थात नश्वर है मन चंचल है परन्तु तुम इन्हें स्थिर मान कर काम करते हो – इन्हें अनश्वर मानते हो मनुष्य जितना इस संसार में रमकर निडर घूमता है – मगन रहता है – उतना ही काल अर्थात मृत्यु उस पर हँसता है ! मृत्यु पास है यह जानकर भी इंसान अनजान बना रहता है ! कितनी दुखभरी बात है।
जल में कुम्भ कुम्भ में जल है बाहर भीतर पानी ।
फूटा कुम्भ जल जलहि समाना यह तथ कह्यौ गयानी ।
kabir ji ke dohe
जल में कुम्भ कुम्भ में जल है बाहर भीतर पानी दोहे का अर्थ(Jal Me Kumbh Kumbh Me Jal Hai Bahar Bhitar Pani Dohe Ka Arth in Hindi):-
जब पानी भरने जाएं तो घडा जल में रहता है और भरने पर जल घड़े के अन्दर आ जाता है इस तरह देखें तो – बाहर और भीतर पानी ही रहता है – पानी की ही सत्ता है। जब घडा फूट जाए तो उसका जल जल में ही मिल जाता है – अलगाव नहीं रहता – ज्ञानी जन इस तथ्य को कह गए हैं ! आत्मा-परमात्मा दो नहीं एक हैं – आत्मा परमात्मा में और परमात्मा आत्मा में विराजमान है। अंतत: परमात्मा की ही सत्ता है – जब देह विलीन होती है – वह परमात्मा का ही अंश हो जाती है – उसी में समा जाती है। एकाकार हो जाती है।
तू कहता कागद की लेखी मैं कहता आँखिन की देखी ।मैं कहता सुरझावन हारि, तू राख्यौ उरझाई रे ।
तू कहता कागद की लेखी मैं कहता आँखिन की देखी दोहे का अर्थ(Tu Kahata Kaagad Ki Lekhi Mai KahataAnkhin Ki Dekhi Dohe Ka Arth in Hindi):-
मन के हारे हार है मन के जीते जीत ।कहे कबीर हरि पाइए मन ही की परतीत ।
मन के हारे हार है मन के जीते जीत दोहे का अर्थ(Man Ke Hare Haar Hai Man Ke Jeete Jeet Dohe Ka Arth in Hindi):-
जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहीं ।प्रेम गली अति सांकरी जामें दो न समाहीं ।
जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहीं दोहे का अर्थ(Jab Mai Tha Tab Hari Nahi Ab Hari Hai Mai Nahi Dohe Ka Arth in Hindi):-
पढ़ी पढ़ी के पत्थर भया लिख लिख भया जू ईंट ।कहें कबीरा प्रेम की लगी न एको छींट।
पढ़ी पढ़ी के पत्थर भया लिख लिख भया जू ईंट दोहे का अर्थ(Padhi Padhi Ke Patthar Bhaya Likh Likh Bhaya Ju Et Dohe Ka Arth in Hindi):-
जाति न पूछो साधू की पूछ लीजिए ज्ञान ।मोल करो तरवार को पडा रहन दो म्यान ।
जाती न पूछो साधू की दोहे का अर्थ (Jaati Na Puchho Sadhu ki Dohe Ka Arth in Hindi):-
साधु भूखा भाव का धन का भूखा नाहीं ।धन का भूखा जो फिरै सो तो साधु नाहीं ।
साधु भूखा भाव का धन का भूखा नाहीं दोहे का अर्थ(Sadhu Bhukha Bhav Ka Dhan Ka Bhukha Nahi Dohe Ka Arth in Hindi):-
पढ़े गुनै सीखै सुनै मिटी न संसै सूल।कहै कबीर कासों कहूं ये ही दुःख का मूल ।
पढ़े गुनै सीखै सुनै मिटी न संसै सूल दोहे का अर्थ(Padhai Gunai Sikhe Sunai Miti Na Sanse Sul Dohe Ka Arth in Hindi):-
प्रेम न बाडी उपजे प्रेम न हाट बिकाई ।राजा परजा जेहि रुचे सीस देहि ले जाई ।
प्रेम न बाडी उपजे प्रेम न हाट बिकाई दोहे का अर्थ(Prem Na Badi Upaje Prem Na Haat Bikai Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर सोई पीर है जो जाने पर पीर ।जो पर पीर न जानई सो काफिर बेपीर ।
कबीर सोई पीर है जो जाने पर पीर दोहे का अर्थ(Kabir Soi Peer Hai Jo Jaane Par Peer Dohe Ka Arth in Hindi):-
हाड जले लकड़ी जले जले जलावन हार ।कौतिकहारा भी जले कासों करूं पुकार ।
हाड जले लकड़ी जले जले जलावन हार दोहे का अर्थ(Haad Jale Lakadi Jale Jale Ja;awan haar Dohe Ka Arth in Hindi):-
रात गंवाई सोय कर दिवस गंवायो खाय ।हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय ।
रात गंवाई सोय कर दिवस गंवायो खाय दोहे का अर्थ(Raat Ganvayi Soy Kar Divas Ganvayo Khay Dohe Ka Arth in Hindi):-
मन मैला तन ऊजला बगुला कपटी अंग ।तासों तो कौआ भला तन मन एकही रंग ।
मन मैला तन ऊजला बगुला कपटी अंग दोहे का अर्थ(Man Maila Tan Ujala Bagula Kapati Ang Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर हमारा कोई नहीं हम काहू के नाहिं ।पारै पहुंचे नाव ज्यौं मिलिके बिछुरी जाहिं ।
कबीर हमारा कोई नहीं हम काहू के नाहिं दोहे का अर्थ(Kabir Hamara Koi Nahi Ham Kahu Ke Nahi Dohe Ka Arth in Hindi):-
देह धरे का दंड है सब काहू को होय ।ज्ञानी भुगते ज्ञान से अज्ञानी भुगते रोय।
देह धरे का दंड है सब काहू को होय दोहे का अर्थ(Deh Dhare Ka Dand Hai Sab kahu Ko Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-
हीरा परखै जौहरी शब्दहि परखै साध ।कबीर परखै साध को ताका मता अगाध ।
हीरा परखै जौहरी शब्दहि परखै साध दोहे का अर्थ(Hira Parakhai jouhari Shabdhi Prakhai Sadh Dohe Ka Arth in Hindi):-
एक ही बार परखिये ना वा बारम्बार ।बालू तो हू किरकिरी जो छानै सौ बार।
एक ही बार परखिये ना वा बारम्बार दोहे का अर्थ(Ek Hi Bar Parakhiye Na Va Barambaar Dohe Ka Arth in Hindi):-
पतिबरता मैली भली गले कांच की पोत ।सब सखियाँ में यों दिपै ज्यों सूरज की जोत ।
पतिबरता मैली भली गले कांच की पोत दोहे का अर्थ(Patibarata Maili Bhali Gale kanch ki Pot Dohe Ka Arth in Hindi):-
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।
जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ दोहे का अर्थ(Jin Khoja Tin Paaiya Gahare Paani Paith Dohe Ka Arth in Hindi):-
कहैं कबीर देय तू, जब लग तेरी देह।देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह।
कहैं कबीर देय तू जब लग तेरी देह दोहे का अर्थ(Kahai Kabir Dey Tu Jab lag Teri Deh Dohe Ka Arth in Hindi):-
देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह।निश्चय कर उपकार ही, जीवन का फन येह।
देह खेह होय जायगी कौन कहेगा देह दोहे का अर्थ(Deh Kheh Hoy jayagei Kaun Kahega Deh Dohe Ka Arth in Hindi):-
या दुनिया दो रोज की, मत कर यासो हेत।गुरु चरनन चित लाइये, जो पुराण सुख हेत।
या दुनिया दो रोज की मत कर यासो हेत दोहे का अर्थ(Ya Duniya Do Roj Ki Mat Kar Yaaso het Dohe Ka Arth in Hindi):-
ऐसी बनी बोलिये, मन का आपा खोय।औरन को शीतल करै, आपौ शीतल होय।
ऐसी बनी बोलिये मन का आपा खोय दोहे का अर्थ(Aesi Bani Boliye Man Ka Aapa khoy Dohe Ka Arth in Hindi):-
गाँठी होय सो हाथ कर, हाथ होय सो देह।आगे हाट न बानिया, लेना होय सो लेह।
गाँठी होय सो हाथ कर हाथ होय सो देह दोहे का अर्थ(Ganthi Hoy So Haath Kar Hath Hoy So Dohe Ka Arth in Hindi):-
धर्म किये धन ना घटे, नदी न घट्ट नीर।अपनी आखों देखिले, यों कथि कहहिं कबीर।
धर्म किये धन ना घटे नदी न घट्ट नीर दोहे का अर्थ(Dharm Kiye Dhan Na Ghate Nadi Na Ghatt Neer Dohe Ka Arth in Hindi):-
कहते को कही जान दे, गुरु की सीख तू लेय।साकट जन औश्वान को, फेरि जवाब न देय।
कहते को कही जान दे गुरु की सीख तू लेय दोहे का अर्थ(Kahate Ko Kahi Jaan De Guru ki Seekh Tu Ley Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर तहाँ न जाइये, जहाँ जो कुल को हेत।साधुपनो जाने नहीं, नाम बाप को लेत।
कबीर तहाँ न जाइये जहाँ जो कुल को हेत दोहे का अर्थ(Kabir tanha Na Jayiye Janha Jo Kul Ka Het Dohe Ka Arth in Hindi) :-
जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय।जैसा पानी पीजिये, तैसी बानी सोय।
जैसा भोजन खाइये तैसा ही मन होय दोहे का अर्थ(Jaisha Bhojan Khayiye taisa Hi Man Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर तहाँ न जाइये, जहाँ सिध्द को गाँव।स्वामी कहै न बैठना, फिर-फिर पूछै नाँव।
कबीर तहाँ न जाइये जहाँ सिध्द को गाँव दोहे का अर्थ(Kabir Tanha Na Jayiye Janha Sidhdh Ko Ganv Dohe Ka Arth in Hindi):-
इष्ट मिले अरु मन मिले, मिले सकल रस रीति।कहैं कबीर तहँ जाइये, यह सन्तन की प्रीति।
इष्ट मिले अरु मन मिले मिले सकल रस रीति दोहे का अर्थ(Isht Mile Aru Man Mile Mile Sakal Ras Riti Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर संगी साधु का, दल आया भरपूर।इन्द्रिन को तब बाँधीया, या तन किया धर।
कबीर संगी साधु का दल आया भरपूर दोहे का अर्थ(Kabir Sangi Sadhu Ka Dal Aaya Bharapur Dohe Ka Arth in Hindi):-
गारी मोटा ज्ञान, जो रंचक उर में जरै।कोटि सँवारे काम, बैरि उलटि पायन परै।गारी सो क्या हान, हिरदै जो यह ज्ञान धरै।
गारी मोटा ज्ञान जो रंचक उर में जरै दोहे का अर्थ(Gaari Mota Gyan jo Ranchak ur Me jarai Dohe Ka Arth in Hindi):-
गारी ही से उपजै, कलह कष्ट औ मीच।हारि चले सो सन्त है, लागि मरै सो नीच।
गारी ही से उपजै कलह कष्ट औ मीच दोहे का अर्थ(Gari Hi Se Upaje Kalah kasht Au Meech Dohe Ka Arth in Hindi):-
बहते को मत बहन दो, कर गहि एचहु ठौर।कह्यो सुन्यो मानै नहीं, शब्द कहो दुइ और।
बहते को मत बहन दो कर गहि एचहु ठौर दोहे का अर्थ(Bahate Ko Mat Bahan Do Kar gahi Auch Thaur Dohe Ka Arth in Hindi):-
बन्दे तू कर बन्दगी, तो पावै दीदार।औसर मानुष जन्म का, बहुरि न बारम्बार।
बन्दे तू कर बन्दगी तो पावै दीदार दोहे का अर्थ(Bande tu Kar Bandagi To Paavai Didar Dohe Ka Arth in Hindi):-
बार-बार तोसों कहा, सुन रे मनुवा नीच।बनजारे का बैल ज्यों, पैडा माही मीच।
बार बार तोसों कहा सुन रे मनुवा नीच दोहे का अर्थ(Baar Baar Toso Kaha Sun Re Manuaa Neech Dohe Ka Arth in Hindi):-
मन राजा नायक भया, टाँडा लादा जाय।है है है है है रही, पूँजी गयी बिलाय।
मन राजा नायक भया टाँडा लादा जाय दोहे का अर्थ(Man Raaja Naayak Bhaya Tanda Lada Jaay Dohe Ka Arth in Hindi):-
बनिजारे के बैल ज्यों, भरमि फिर्यो चहुँदेश।खाँड़ लादी भुस खात है, बिन सतगुरु उपदेश।
बनिजारे के बैल ज्यों भरमि फिर्यो चहुँदेश दोहे का अर्थ(Banijaare Ke Bail jyon Bharami Phiryo Chahudesh Dohe Ka Arth in Hindi):-
जीवत कोय समुझै नहीं, मुवा न कह संदेश।तन – मन से परिचय नहीं, ताको क्या उपदेश।
जीवत कोय समुझै नहीं मुवा न कह संदेश दोहे का अर्थ(Jeevat Koy Samujhai Nahi Muaa na Kah Sandesh Dohe Ka Arth in Hindi):-
जिही जिवरी से जाग बँधा, तु जनी बँधे कबीर।जासी आटा लौन ज्यों, सों समान शरीर।
जिही जिवरी से जाग बँधा तु जनी बँधे कबीर दोहे का अर्थ(Jihi Jivari Se Jaag Bandha Tu Jani Bandhe Kabir Dohe Ka Arth in Hindi):-
बुरा जो देखन मैं देखन चला, बुरा न मिलिया कोय,जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय दोहे का अर्थ(Buraa Jo Dekhan Mai Chalaa Buraa Na Miliya Koi Dohe Ka Arth in Hindi):-
साधू ऐसा चाहिये, जैसा सूप सुभाय,सार – सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।
साधू ऐसा चाहिये जैसा सूप सुभाय दोहे का अर्थ(Sadhu Aesh Chahiye Jaisgha Soop Subhay Dohe Ka Arth in Hindi):-
तिनका कबहूँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,कबहूँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।
तिनका कबहूँ ना निन्दिये जो पाँवन तर होय, दोहे का अर्थ(Tinaka Kabahu Na Nindaye Jo Pawan tar Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-
धीरे – धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।
धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय दोहे का अर्थ(Dhire Dhire Re Mana Dhire Sab Kuchh Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-
माला फेरत जग भया, फिरा न मन का फेर,कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
माला फेरत जग भया फिरा न मन का फेर दोहे का अर्थ(Mala Pherat jag Bhaya Phira Na Man Ka Pher Dohe Ka Arth in Hindi):-
दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।
दोस पराए देखि करि चला हसन्त हसन्त दोहे का अर्थ(Dos Paraye Dekhi Kari Chalaa Hasant Hasant Dohe Ka Arth in Hindi):-
संत ना छाडै संतई, कोटिक मिले असंत ।चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटत रहत भुजंग ।
संत ना छाडै संतई जो कोटिक मिले असंत दोहे का अर्थ(Sant Na Chhaadai Santai Jo Kotik Mile Asant Dohe Ka Arth in Hindi):-
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय ।सार–सार को गहि रहै थोथा देई उड़ाय ।
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय दोहे का अर्थ(Sadhu Aisha Chahiye Jaisha Sup Subhay Dohe Ka Arth in Hindi):-
तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय ।सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए ।
तन को जोगी सब करे मन को विरला कोय दोहे का अर्थ(Tan Ko Jogi Sab Kare Man Ko Viralaa Koy Dohe Ka Arth in Hindi):-
नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए ।मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए ।
नहाये धोये क्या हुआ जो मन मैल न जाए दोहे का अर्थ (Nahaaye Dhoye Kyaa Huaa Jo Man Mail Na Jaaye Dohe Ka Arth in Hindi):-
ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग ।प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत ।
ते दिन गए अकारथ ही संगत भई न संग दोहे का अर्थ(Te Din Gaye Akarath Hi Sangat Bhai na Sang Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर ।जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर ।
कबीरा सोई पीर है जो जाने पर पीर दोहे का अर्थ (Kabiraa Soi Peer Hai Jo Jane Par Peer Dohe Ka Arth in Hindi):-
काल करे सो आज कर, आज करे सो अबपल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगो कब।
काल करे सो आज कर दोहे का अर्थ(Kaal Kaare So Aaj Kar Dohe Ka Arth in Hindi):-
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समायमैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय।
साईं इतना दीजिये जा मे कुटुम समाय दोहे का अर्थ(Sai Itana Dijiye Jame Kutumb Samay Dohe Ka Arth in Hindi):-
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ।
रात गंवाई सोय के दिवस गंवाया खाय दोहे का अर्थ(Raat Ganvayi Soy Ke Divas Ganvaya Khay Dohe Ka Arth in Hindi):-
आछे / पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत ।अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ।
आछे पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत दोहे का अर्थ(Aachhe Pachhe Din Paache Gaye Hari Se Kiya Na Het Dohe Ka Arth in HIndi):-
कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी ।एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ।
कबीर सुता क्या करे जागी न जपे मुरारी दोहे का अर्थ(Kabir Sutaa Kya Kare Jaagi Na Jape Murari Dohe Ka Arth in Hindi):-
जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही ।सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ।
जब मैं था तब हरी नहीं अब हरी है मैं नाही सब अँधियारा मिट गया दोहे का अर्थ(Jab Mai Tab Hari Nahi Ab Hari Hai Mai Nahi Sab Dohe Ka Arth in Hindi):-
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होययह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय।
जग में बैरी कोई नहीं जो मन शीतल होय दोहे का अर्थ(Jag Me Bairi Koi Nahi Jo Man Sheetal Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोयजो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय।
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय दोहे का अर्थ(Dukh Me Sumiran Sab Kare Sukh Me Kare na koy Dohe Ka Arth in Hindi):-
मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई।पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई।
मन हीं मनोरथ छांड़ी दे तेरा किया न होई दोहे का अर्थ(Man Hi Manorath Chhandi De Tera Kiya Na Hoi Dohe Ka Arth in Hindi):-
माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर।आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर ।
माया मुई न मन मुआ मरी मरी गया सरीर दोहे का अर्थ(Maaya Mari Na Man Muaa Mari Mari Gaya Sharir Dohe Ka Arth in Hindi):-
साधू भूखा भाव का, धन का भूखा नाहिंधन का भूखा जी फिरै, सो तो साधू नाहिं।
साधू भूखा भाव का धन का भूखा नाहिं दोहे का अर्थ(Sadhu Bhukha Bhav Ka Dhan Ka bhukha Nahi Dohe Ka Arth Hindi Me):-
कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय।सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय।
कबीर सो धन संचे जो आगे को होय दोहे का अर्थ(Kabir So Dhan Sanche Jo aage Ko Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-
तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई।सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ।
तन को जोगी सब करें मन को बिरला कोई दोहे का अर्थ(Tan Ko Jogi Sab Kare Man Ko Biralaa Koi Dohe Ka Arth in Hindi):-
कुटिल वचन सबतें बुरा, जारि करै सब छारसाधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार।
कुटिल वचन सबतें बुरा जारि करै सब छार दोहे का अर्थ(Kutil Vachan Sabate Bura Jaari Karai Sab Chhar Dohe Ka Arth Hindi Me):-
जैसा भोजन खाइये , तैसा ही मन होयजैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय।
जैसा भोजन खाइये तैसा ही मन होय दोहे का अर्थ(Jaishaa Bhojan Khaayiye taisa Hi Man Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीर तन पंछी भया, जहां मन तहां उडी जाइ।जो जैसी संगती कर, सो तैसा ही फल पाइ।
कबीर तन पंछी भया जहां मन तहां उडी जाइ दोहे का अर्थ(Kabir Tan Panchhi Bhaya Janha Man Tanha Udi Jaai Dohe Ka Arth in Hindi):-
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय दोहे का अर्थ(Saadhu Aisha Chahiye Jaishaa Sup Subhay Dohe Ka Arth in Hindi):-
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
माला फेरत जुग भया फिरा न मन का फेर दोहे का अर्थ(Mala Pherat Jug Bhaya Phira Na Man Ka Pher Dohe Ka Arth in Hindi):-
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।
जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ दोहे का अर्थ(Jin Khojaa Tin Paiyaa Gahare Paani Paith Dohe Ka Arth in Hindi):-
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।
बोली एक अनमोल है जो कोई बोलै जानि दोहे का अर्थ(Boli Ek Anamol Hai Jo Koi Bole Jani Dohe Ka Arth in Hindi):-
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।
अति का भला न बोलना अति की भली न चूप दोहे का अर्थ(Ati Ka Bhala Na Bolana Ati Ki Bhali Na Chup Dohe Ka Arth in Hindi):-
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
निंदक नियरे राखिए ऑंगन कुटी छवाय दोहे का अर्थ(Nindak Niyare Raakhiye Aangan Kuti Chhavay Dohe Ka Arth in Hindi):-
दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।
दुर्लभ मानुष जन्म है देह न बारम्बार दोहे का अर्थ(Durlabh Maanush Janm Hai Deh Na Barambaar Dohe Ka Arth in Hindi):-
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।
कबीरा खड़ा बाज़ार में मांगे सबकी खैर दोहे का अर्थ(Kabira Khada Bazar Me Mange Sab Ki Khair Dohe Ka Arth Hindi Me):-
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा तुर्क कहें रहमाना दोहे का अर्थ(Hindu Kahe Mohi Ram Piyaaraa Turk Kahe Rahamanaa Dohe Ka Arth Hindi Me):-
माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीखमाँगन ते मारना भला, यह सतगुरु की सीख।
माँगन मरण समान है मति माँगो कोई भीख(Maangan Maran Saman Hai Mati Mango Koi Bheekh Dohe Ka Arth Hindi Me):-
कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई।बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई।
कबीर लहरि समंद की मोती बिखरे आई दोहे का अर्थ(Kabir Lahari Samundra Ki Moti Bhikhare Aai Dohe Ka Arth Hindi Me):-
जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई।जब गुण को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई।
जब गुण को गाहक मिले तब गुण लाख बिकाई दोहे का अर्थ(Jab Gun Ko Gahak Mile Tab Gun Lakh Bikaai Dohe Ka Arth Hindi Me):-
कबीर कहा गरबियो, काल गहे कर केस।ना जाने कहाँ मारिसी, कै घर कै परदेस।
कबीर कहा गरबियो काल गहे कर केस दोहे का अर्थ(Kabir Kaha Garabiyo Kaal Gahe Kar Kes Dohe Ka Arth in Hindi):-
पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात।एक दिना छिप जाएगा,ज्यों तारा परभात।
पानी केरा बुदबुदा अस मानुस की जात दोहे का अर्थ(Pani tera Budbuda As Manas Ki Jaat Dohe Ka Arth in Hindi):-
हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास।सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास।
हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी केस जलै ज्यूं घास दोहे का अर्थ(Haad Jalai Jyu Lakadi KEs Jalai jyu Ghas Dohe Ka Arth Hindi Me):-
जो उग्या सो अन्तबै, फूल्या सो कुमलाहीं।जो चिनिया सो ढही पड़े, जो आया सो जाहीं।
जो उग्या सो अन्तबै फूल्या सो कुमलाहीं दोहे का अर्थ(Jo Ugya So Antabai Phulya So Kumlaahi Dohe Ka Arth Hindi Me):-
झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद।खलक चबैना काल का, कुछ मुंह में कुछ गोद।
झूठे सुख को सुख कहे मानत है मन मोद दोहे का अर्थ(Jhoothe Sukh Ko Sukh Jahe Maanat Hai Man Mod Dohe Ka Arth Hindi Me):-
ऐसा कोई ना मिले, हमको दे उपदेस।भौ सागर में डूबता, कर गहि काढै केस।
ऐसा कोई ना मिले हमको दे उपदेस दोहे का अर्थ(Aesha Koi Na Mile Hamako De Upadesh Dohe Ka Arth Hindi Me):-
संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंतचन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत।
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