सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ (Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind

 

सम्पूर्ण कबीर दास के दोहे और उनके अर्थ (Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) :- 

Kabir Das Ke Dohe in Hindi [ कबीर दास के दोहे हिंदी में  ] - नमस्कार दोस्तों आपका हमारे इस नए पोस्ट में स्वागत है - हमारे इस नए पोस्ट में आपको Sampurn Kabir Das Ke Dohe in Hindi (सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ ) मिलेगा। दोस्तों अगर आप कबीर साहेब के भक्त है तो आप इंटरनेट पर जरूर Kabir Das Ke Dohe,kabir ke dohe in hindi,kabir ke dohe, kabir dohe या kabir das ji ke dohe,kabir das ke dohe in hindi, सर्च करते ही होगे। दोस्तों अगर आप इन दोहे या उनके अर्थ को इमेज सहित Facebook, Whatsapp या किसी भी सोशल मीडिया साईट पर अपलोड कर सकते है। अगर आपको हमारा ये पोस्ट पसंद आए तो अपने दोस्तों और कबीर साहेब के भक्तो के पास जरूर शेयर करे।


(toc)


गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।

बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me)  - Bhaktilok

kabir das ke dohe

गुरु गोविंद दोउ खड़े दोहे का अर्थ (Guru Govind Dou Khade Dohe Ka Arth in Hindi) :- 

कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि अगर हमारे सामने गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो आप किसके चरण स्पर्श करेंगे? गुरु ने अपने ज्ञान से ही हमें भगवान से मिलने का रास्ता बताया है इसलिए गुरु की महिमा भगवान से भी ऊपर है और हमें गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए।


यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।

शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ।


यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।  शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ।

kabir das ke dohe

यह तन विष की बेलरी दोहे का अर्थ(Yah Tan Vish Ki Belari Dohe Ka Arth in Hindi):- कबीर दास जी कहते हैं कि यह जो शरीर है वो विष जहर से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान हैं। अगर अपना शीशसर देने के बदले में आपको कोई सच्चा गुरु मिले तो ये सौदा भी बहुत सस्ता है।


सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज ।

सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me)  - Bhaktilok

kabir ke dohe in hindi

सब धरती काजग करू दोहे का अर्थ (Sab Dharati Kagaj Karu Dohe Ka Arth in Hindi): अगर मैं इस पूरी धरती के बराबर बड़ा कागज बनाऊं और दुनियां के सभी वृक्षों की कलम बना लूँ और सातों समुद्रों के बराबर स्याही बना लूँ तो भी गुरु के गुणों को लिखना संभव नहीं है।


ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये ।

औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me)  - Bhaktilok


ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये दोहे का अर्थ(Aesi Vani Boliye Man Ka Aapa Khoy Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे। ऐसी भाषा दूसरे लोगों को तो सुख पहुँचाती ही है, इसके साथ खुद को भी बड़े आनंद का अनुभव होता है।


बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर ।

पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me)  - Bhaktilok

kabir ke dohe

बड़ा भया तो क्या भया दोहे का अर्थ (Bada Bhaya To Kya Bhaya Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि खजूर का पेड़ बेशक बहुत बड़ा होता है लेकिन ना तो वो किसी को छाया देता है और फल भी बहुत दूरऊँचाई  पे लगता है। इसी तरह अगर आप किसी का भला नहीं कर पा रहे तो ऐसे बड़े होने से भी कोई फायदा नहीं है।


निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें ।

बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me)  - Bhaktilok


निंदक नियेरे राखिये दोहे का अर्थ(Nindak Niyare Rakhiye Dohe Ka Arth in Hindi):- 

कबीर दास जी कहते हैं कि निंदकहमेशा दूसरों की बुराइयां करने वाले लोगों को हमेशा अपने पास रखना चाहिए, क्यूंकि ऐसे लोग अगर आपके पास रहेंगे तो आपकी बुराइयाँ आपको बताते रहेंगे और आप आसानी से अपनी गलतियां सुधार सकते हैं। इसीलिए कबीर जी ने कहा है कि निंदक लोग इंसान का स्वभाव शीतल बना देते हैं।


बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।

जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ji ke dohe

बुरा जो देखन मैं चला दोहे का अर्थ(Bura Jo Dekhan Mai Chala Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि मैं सारा जीवन दूसरों की बुराइयां देखने में लगा रहा लेकिन जब मैंने खुद अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई इंसान नहीं है। मैं ही सबसे स्वार्थी और बुरा हूँ भावार्थात हम लोग दूसरों की बुराइयां बहुत देखते हैं लेकिन अगर आप खुद के अंदर झाँक कर देखें तो पाएंगे कि हमसे बुरा कोई इंसान नहीं है।


दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ।

जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


दुःख में सुमिरन सब करे दोहे का अर्थ(Dukh Me Sumiran Sab Kare Dohe Ka Arth in Hindi):-

 दुःख में हर इंसान ईश्वर को याद करता है लेकिन सुख में सब ईश्वर को भूल जाते हैं। अगर सुख में भी ईश्वर को याद करो तो दुःख कभी आएगा ही नहीं।


माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोहे ।

एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ke dohe in hindi


माटी कहे कुम्हार से दोहे का अर्थ(Mati Kahe Kumhar Se Dohe Ka Arth in Hindi ):- 

जब कुम्हार बर्तन बनाने के लिए मिटटी को रौंद रहा था, तो मिटटी कुम्हार से कहती है – तू मुझे रौंद रहा है, एक दिन ऐसा आएगा जब तू इसी मिटटी में विलीन हो जायेगा और मैं तुझे रौंदूंगी।


पानी तेरा बुदबुदा, अस मानस की जात ।

देखत ही छुप जाएगा है, ज्यों सारा परभात ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


पानी तेरा बुदबुदा दोहे का अर्थ(Pani Tera BudBuda Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान की इच्छाएं एक पानी के बुलबुले के समान हैं जो पल भर में बनती हैं और पल भर में खत्म। जिस दिन आपको सच्चे गुरु के दर्शन होंगे उस दिन ये सब मोह माया और सारा अंधकार छिप जायेगा।


चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये ।

दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir dohe


चलती चक्की देख के दोहे का अर्थ(Chalati Chakki Dekh Ke Dohe Ka Arth in Hindi):- 

चलती चक्की को देखकर कबीर दास जी के आँसू निकल आते हैं और वो कहते हैं कि चक्की के  पाटों के बीच में कुछ साबुत नहीं बचता।


मलिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार ।

फूले फूले चुन लिए, कलि हमारी बार ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


मलिन आवत देख के दोहे का अर्थ(Malin Aawat Dekh Ke Dohe Ka Arth in Hindi):-

मालिन को आते देखकर बगीचे की कलियाँ आपस में बातें करती हैं कि आज मालिन ने फूलों को तोड़ लिया और कल हमारी बारी आ जाएगी। भावार्थात आज आप जवान हैं कल आप भी बूढ़े हो जायेंगे और एक दिन मिटटी में मिल जाओगे। आज की कली, कल फूल बनेगी।


काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।

पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ji ke dohe


काल करे सो आज कर दोहे का अर्थ(Kal Kare So Aaj Kar Dohe Ka Arth in Hindi):- 

कबीर दास जी कहते हैं कि हमारे पास समय बहुत कम है, जो काम कल करना है वो आज करो, और जो आज करना है वो अभी करो, क्यूंकि पलभर में प्रलय जो जाएगी फिर आप अपने काम कब करेंगे।


ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग ।

तेरा साईं तुझ ही में है, जाग सके तो जाग ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


ज्यों तिल माहि तेल है दोहे का अर्थ (Jyo Til Maahi Tel Hai Dohe Ka Arth in Hindi):- 

कबीर दास जी कहते हैं जैसे तिल के अंदर तेल होता है, और आग के अंदर रौशनी होती है ठीक वैसे ही हमारा ईश्वर हमारे अंदर ही विद्धमान है, अगर ढूंढ सको तो ढूढ लो।


जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप ।

जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ji ke dohe


जहाँ दया तहा धर्म है दोहे का अर्थ (Jahan Daya Taha Dharm Hai DOhe Ka Arth in Hindi) :-

कबीर दास जी कहते हैं कि जहाँ दया है वहीँ धर्म है और जहाँ लोभ है वहां पाप है, और जहाँ क्रोध है वहां सर्वनाश है और जहाँ क्षमा है वहाँ ईश्वर का वास होता है।


जो घट प्रेम न संचारे, जो घट जान सामान ।

जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बिनु प्राण ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

जो घट प्रेम न संचारे दोहे का अर्थ (Jo Ghat Prem Na Sanchare Dohe Ka Arth in Hindi):- 

जिस इंसान अंदर दूसरों के प्रति प्रेम की भावना नहीं है वो इंसान पशु के समान है।


जल में बसे कमोदनी, चंदा बसे आकाश ।

जो है जा को भावना सो ताहि के पास ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

जल में बसे कमोदनी चंदा बसे आकाश दोहे का अर्थ (Jal Me Base Kamodani Chanda Base Aakash Dohe Ka Arth in Hindi):-

कमल जल में खिलता है और चन्द्रमा आकाश में रहता है। लेकिन चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब जब जल में चमकता है तो कबीर दास जी कहते हैं कि कमल और चन्द्रमा में इतनी दूरी होने के बावजूद भी दोनों कितने पास है। जल में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब ऐसा लगता है जैसे चन्द्रमा खुद कमल के पास आ गया हो। वैसे ही जब कोई इंसान ईश्वर से प्रेम करता है वो ईश्वर स्वयं चलकर उसके पास आते हैं।


जाती न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान ।

मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das dohe


जाती न पूछो साधू की दोहे का अर्थ (Jati Na Puchho Sadhu ki Dohe Ka Arth in Hindi):-

साधु से उसकी जाति मत पूछो बल्कि उनसे ज्ञान की बातें करिये, उनसे ज्ञान लीजिए। मोल करना है तो तलवार का करो म्यान को पड़ी रहने दो।


जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होए ।

यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोए ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


जग में बैरी कोई नहीं जो मन शीतल होए दोहे का अर्थ (Jag Me Bairi Koi Nahi Jo Man Sheetal Hoye Dohe Ka Arth in Hindi):-

अगर आपका मन शीतल है तो दुनियां में कोई आपका दुश्मन नहीं बन सकता


ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग ।

प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ke dohe in hindi


ते दिन गए अकारथ ही संगत भई न संग दोहे का अर्थ (Te Din Gaye Akarath Hi Sangat Bhai Na Sang Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि अब तक जो समय गुजारा है वो व्यर्थ गया, ना कभी सज्जनों की संगति की और ना ही कोई अच्छा काम किया। प्रेम और भक्ति के बिना इंसान पशु के समान है और भक्ति करने वाला इंसान के ह्रदय में भगवान का वास होता है।


तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार ।

सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


तीरथ गए से एक फल संत मिले फल चार दोहे का अर्थ(Tirath Gaye Se Ek Phal Sant Mile Phal Char Dohe Ka Arth in Hindi):-

तीर्थ करने से एक पुण्य मिलता है, लेकिन संतो की संगति से  पुण्य मिलते हैं। और सच्चे गुरु के पा लेने से जीवन में अनेक पुण्य मिल जाते हैं


तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय ।

सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

sant kabir ke dohe


तन को जोगी सब करे मन को विरला कोय दोहे का अर्थ(Tan Ko Jogi Sab Kare Man Ko Virala Koy Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि लोग रोजाना अपने शरीर को साफ़ करते हैं लेकिन मन को कोई साफ़ नहीं करता। जो इंसान अपने मन को भी साफ़ करता है वही सच्चा इंसान कहलाने लायक है।


प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए ।

राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


प्रेम न बारी उपजे प्रेम न हाट बिकाए  दोहे का अर्थ (Prem Na Baari Upaje Prem Na Haat Bikaye Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि प्रेम कहीं खेतों में नहीं उगता और नाही प्रेम कहीं बाजार में बिकता है। जिसको प्रेम चाहिए उसे अपना शीशक्रोध, काम, इच्छा, भय त्यागना होगा।


जिन घर साधू न पुजिये, घर की सेवा नाही ।

ते घर मरघट जानिए, भुत बसे तिन माही ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


जिन घर साधू न पुजिये घर की सेवा नाही दोहे का अर्थ (Jin Ghar Sadhu Na Pujiye Ghar Ki Sewa Naahi Dohe Ka Arth In Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि जिस घर में साधु और सत्य की पूजा नहीं होती, उस घर में पाप बसता है। ऐसा घर तो मरघट के समान है जहाँ दिन में ही भूत प्रेत बसते हैं।


साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।

सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय दोहे का अर्थ (Sadhu Aesa Chahiye Jaisha Sup Subhay Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि एक सज्जन पुरुष में सूप जैसा गुण होना चाहिए। जैसे सूप में अनाज के दानों को अलग कर दिया जाता है वैसे ही सज्जन पुरुष को अनावश्यक चीज़ों को छोड़कर केवल अच्छी बातें ही ग्रहण करनी चाहिए।


पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत ।

अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ke dohe with meaning


पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत दोहे का अर्थ (Paache Din Paache Gaye Hari Se Kiya na Het Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि बीता समय निकल गया, आपने ना ही कोई परोपकार किया और नाही ईश्वर का ध्यान किया। अब पछताने से क्या होता है, जब चिड़िया चुग गयी खेत।


जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही ।

सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


जब मैं था तब हरी नहीं अब हरी है मैं नाही दोहे का अर्थ(Jab Mai Tha Tab Hari Nahi Ab Hari Hai Mai Nahi Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि जब मेरे अंदर अहंकारमैं था, तब मेरे ह्रदय में हरीईश्वर का वास नहीं था। और अब मेरे ह्रदय में हरीईश्वर का वास है तो मैंअहंकार नहीं है। जब से मैंने गुरु रूपी दीपक को पाया है तब से मेरे अंदर का अंधकार खत्म हो गया है।


नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए ।

मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए ।


नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए दोहे का अर्थ (Nahaye Dhoye Kya Hua Jo Man Mail Na Jaaye Dohe Ka Arth in Hindi) :-

kabir ke dohe hindi


नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए दोहे का अर्थ (Nahaye Dhoye Kya Hua Jo Man Mail Na Jaaye Dohe Ka Arth in Hindi) :-

भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि आप कितना भी नहा धो लीजिए, लेकिन अगर मन साफ़ नहीं हुआ तो उसे नहाने का क्या फायदा, जैसे मछली हमेशा पानी में रहती है लेकिन फिर भी वो साफ़ नहीं होती, मछली में तेज बदबू आती है।


प्रेम पियाला जो पिए, सिस दक्षिणा देय ।

लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


प्रेम पियाला जो पिए सिस दक्षिणा देय दोहे का अर्थ (Prem Piyala Jo Piye Sis Dakshina Deh Dohe Ka Arth in Hindi):- 

जिसको ईश्वर प्रेम और भक्ति का प्रेम पाना है उसे अपना शीशकाम, क्रोध, भय, इच्छा को त्यागना होगा। लालची इंसान अपना शीशकाम, क्रोध, भय, इच्छा तो त्याग नहीं सकता लेकिन प्रेम पाने की उम्मीद रखता है।


कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर ।

जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir dohe hindi


कबीरा सोई पीर है जो जाने पर पीर दोहे का अर्थ (Kabira Soi Peer Hai Jo Jane Par Peer Dohe Ka Arth in Hindi):- 

कबीर दास जी कहते हैं कि जो इंसान दूसरे की पीड़ा और दुःख को समझता है वही सज्जन पुरुष है और जो दूसरे की पीड़ा ही ना समझ सके ऐसे इंसान होने से क्या फायदा।


कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।

हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabirdas ke dohe


कबीरा ते नर अँध है गुरु को कहते और दोहे का अर्थ (Kabira Te Nar Andh Hai Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि वे लोग अंधे और मूर्ख हैं जो गुरु की महिमा को नहीं समझ पाते। अगर ईश्वर आपसे रूठ गया तो गुरु का सहारा है लेकिन अगर गुरु आपसे रूठ गया तो दुनियां में कहीं आपका सहारा नहीं है।


कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी ।

एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


कबीर सुता क्या करे जागी न जपे मुरारी दोहे का अर्थ(Kabir Suta Kya Kare Jaagi Na Jape Murari Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि तू क्यों हमेशा सोया रहता है, जाग कर ईश्वर की भक्ति कर, नहीं तो एक दिन तू लम्बे पैर पसार कर हमेशा के लिए सो जायेगा।


नहीं शीतल है चंद्रमा, हिम नहीं शीतल होय ।

कबीर शीतल संत जन, नाम सनेही होय ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

dohas of kabir


नहीं शीतल है चंद्रमा हिम नहीं शीतल होय दोहे का अर्थ(Nahi Sheetal Hai Chandrama Him Nahi SHeetal Hoye Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि चन्द्रमा भी उतना शीतल नहीं है और हिमबर्फ भी उतना शीतल नहीं होती जितना शीतल सज्जन पुरुष हैं। सज्जन पुरुष मन से शीतल और सभी से स्नेह करने वाले होते हैं।


पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय ।

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय दोहे का अर्थ(Pothi Padh Padh Jag Muaa Pandit Bhaya Na Koy Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि लोग बड़ी से बड़ी पढाई करते हैं लेकिन कोई पढ़कर पंडित या विद्वान नहीं बन पाता। जो इंसान प्रेम का ढाई अक्षर पढ़ लेता है वही सबसे विद्वान् है।


राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय ।

जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

sant kabir das ke dohe


राम बुलावा भेजिया दिया कबीरा रोय दोहे का अर्थ(Ram Bulawa Bhejiya Diya Kabira Roy Dohe Ka Arth in Hindi):-

जब मृत्यु का समय नजदीक आया और राम के दूतों का बुलावा आया तो कबीर दास जी रो पड़े क्यूंकि जो आनंद संत और सज्जनों की संगति में है उतना आनंद तो स्वर्ग में भी नहीं होगा।


शीलवंत सबसे बड़ा सब रतनन की खान ।

तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


शीलवंत सबसे बड़ा सब रतनन की खान दोहे का अर्थ(Sheelvant Sabase Bada Sab Ratanan Ki Khan Dohe Ka Arth in Hindi):-

शांत और शीलता सबसे बड़ा गुण है और ये दुनिया के सभी रत्नों से महंगा रत्न है। जिसके पास शीलता है उसके पास मानों तीनों लोकों की संपत्ति है।


साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाये ।

मैं भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाए ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ke dohe


साईं इतना दीजिये जामे कुटुंब समाये  दोहे का अर्थ(Sai Itana Dijiye Jame Kutumb Samay Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि हे प्रभु मुझे ज्यादा धन और संपत्ति नहीं चाहिए, मुझे केवल इतना चाहिए जिसमें मेरा परिवार अच्छे से खा सके। मैं भी भूखा ना रहूं और मेरे घर से कोई भूखा ना जाये।


माखी गुड में गडी रहे, पंख रहे लिपटाए ।

हाथ मेल और सर धुनें, लालच बुरी बलाय ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


माखी गुड में गडी रहे पंख रहे लिपटाए दोहे का अर्थ(Makhi Gud Me Gadi Rahe Pankh Rahe Lipataye Dohe Ka Arth in Hindi):-

 
कबीर दास जी कहते हैं कि मक्खी पहले तो गुड़ से लिपटी रहती है। अपने सारे पंख और मुंह गुड़ से चिपका लेती है लेकिन जब उड़ने प्रयास करती है तो उड़ नहीं पाती तब उसे अफ़सोस होता है। ठीक वैसे ही इंसान भी सांसारिक सुखों में लिपटा रहता है और अंत समय में अफ़सोस होता है।


ज्ञान रतन का जतन कर, माटी का संसार ।

हाय कबीरा फिर गया, फीका है संसार ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ke dohe with meaning in hindi


ज्ञान रतन का जतन कर माटी का संसार दोहे का अर्थ(Gyan Ratan Ka Jatan Kar Mati Ka Sansar Dohe Ka Arth in Hindi):- 


कबीर दास जी कहते हैं कि ये संसार तो माटी का है, आपको ज्ञान पाने की कोशिश करनी चाहिए नहीं तो मृत्यु के बाद जीवन और फिर जीवन के बाद मृत्यु यही क्रम चलता रहेगा।


कुटिल वचन सबसे बुरा, जा से होत न चार ।

साधू वचन जल रूप है, बरसे अमृत धार ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


कुटिल वचन सबसे बुरा जा से होत न चार दोहे का अर्थ(Kutil Vachan Sabase Bura Dohe Ka Arth in Hindi):- 

कबीर दास जी कहते हैं कि कड़वे बोल बोलना सबसे बुरा काम है, कड़वे बोल से किसी बात का समाधान नहीं होता। वहीँ सज्जन विचार और बोल अमृत के समान हैं।


आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर ।

इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ji ke dohe in hindi


आये है तो जायेंगे राजा रंक फ़कीर दोहे का अर्थ(Aaye Hai To Jayenge Raja Rank Phakir Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि जो इस दुनियां में आया है उसे एक दिन जरूर जाना है। चाहे राजा हो या फ़क़ीर, अंत समय यमदूत सबको एक ही जंजीर में बांध कर ले जायेंगे।


ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँची न होय ।

सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


ऊँचे कुल का जनमिया करनी ऊँची न होय दोहे का अर्थ(Unche Kul Ka Janamaiya Karani Unchi Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):- 

कबीर दास जी कहते हैं कि ऊँचे कुल में जन्म तो ले लिया लेकिन अगर कर्म ऊँचे नहीं है तो ये तो वही बात हुई जैसे सोने के लोटे में जहर भरा हो, इसकी चारों ओर निंदा ही होती है।


रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।

हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ke dohe with meaning


रात गंवाई सोय के दिवस गंवाया खाय दोहे का अर्थ(Raat Ganwai Soy Ke Divas Gavaya Khay Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि रात को सोते हुए गँवा दिया और दिन खाते खाते गँवा दिया। आपको जो ये अनमोल जीवन मिला है वो कोड़ियों में बदला जा रहा है।


कामी क्रोधी लालची, इनसे भक्ति न होय ।

भक्ति करे कोई सुरमा, जाती बरन कुल खोए ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


कामी क्रोधी लालची इनसे भक्ति न होय दोहे का अर्थ(Kami Krodhi Lalachi inase Bhakti Na Hoy Dohe Ka Arthnin Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि कामी, क्रोधी और लालची, ऐसे व्यक्तियों से भक्ति नहीं हो पाती। भक्ति तो कोई सूरमा ही कर सकता है जो अपनी जाति, कुल, अहंकार सबका त्याग कर देता है।


 कागा का को धन हरे, कोयल का को देय ।

मीठे वचन सुना के, जग अपना कर लेय ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

dohe of kabir


कागा का को धन हरे कोयल का को देय दोहे का अर्थ(Kaga Ka Ko Dhan Hare Koyal Ka Ko Deh Dohe Ka Arth in Hindi):- 

कबीर दास जी कहते हैं कि कौआ किसी का धन नहीं चुराता लेकिन फिर भी कौआ लोगों को पसंद नहीं होता। वहीँ कोयल किसी को धन नहीं देती लेकिन सबको अच्छी लगती है। ये फर्क है बोली का – कोयल मीठी बोली से सबके मन को हर लेती है।


लुट सके तो लुट ले, हरी नाम की लुट ।

अंत समय पछतायेगा, जब प्राण जायेगे छुट ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


लुट सके तो लुट ले हरी नाम की लुट दोहे का अर्थ(Lut Sake To Lut Le Hari Nam Ki Lut Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि ये संसार ज्ञान से भरा पड़ा है, हर जगह राम बसे हैं। अभी समय है राम की भक्ति करो, नहीं तो जब अंत समय आएगा तो पछताना पड़ेगा।


तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।

कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ke dohe ka arth


तिनका कबहुँ ना निंदये जो पाँव तले होय दोहे का अर्थ(Tinaka Kabahu Na Nindaye Jo Panv Tale Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि तिनके को पाँव के नीचे देखकर उसकी निंदा मत करिये क्यूंकि अगर हवा से उड़के तिनका आँखों में चला गया तो बहुत दर्द करता है। वैसे ही किसी कमजोर या गरीब व्यक्ति की निंदा नहीं करनी चाहिए।


धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।

माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


धीरे-धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय दोहे का अर्थ(Dhire Dhire Re Mana Dhire Sab Kuchh Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी मन को समझाते हुए कहते हैं कि हे मन! दुनिया का हर काम धीरे धीरे ही होता है। इसलिए सब्र करो। जैसे माली चाहे कितने भी पानी से बगीचे को सींच ले लेकिन वसंत ऋतू आने पर ही फूल खिलते हैं।


माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।

आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ki sakhi


माया मरी न मन मरा मर-मर गए शरीर दोहे का अर्थ(Maya Mari Na Man Mara Mar Mar Gaye Sharir Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि मायाधन और इंसान का मन कभी नहीं मरा, इंसान मरता है शरीर बदलता है लेकिन इंसान की इच्छा और ईर्ष्या कभी नहीं मरती।


मांगन मरण समान है, मत मांगो कोई भीख,

मांगन से मरना भला, ये सतगुरु की सीख


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


मांगन मरण समान है मत मांगो कोई भीख दोहे का अर्थ(Mangan Maran Saman Hai Mat Mango Koi Bhikh Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि मांगना तो मृत्यु के समान है, कभी किसी से भीख मत मांगो। मांगने से भला तो मरना है।


ज्यों नैनन में पुतली, त्यों मालिक घर माँहि।

मूरख लोग न जानिए , बाहर ढूँढत जाहिं

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


ज्यों नैनन में पुतली त्यों मालिक घर माँहि दोहे का अर्थ(Jyo Nainan Me Putali Tyo Maalik Ghar Mahi Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि जैसे आँख के अंदर पुतली है, ठीक वैसे ही ईश्वर हमारे अंदर बसा है। मूर्ख लोग नहीं जानते और बाहर ही ईश्वर को तलाशते रहते हैं।


कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये,

ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ji ke dohe in hindi


कबीरा जब हम पैदा हुए जग हँसे हम रोये दोहे का अर्थ(Kabira Jab Ham Paida Huye Jag Hase Ham Roye Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि जब हम पैदा हुए थे उस समय सारी दुनिया खुश थी और हम रो रहे थे। जीवन में कुछ ऐसा काम करके जाओ कि जब हम मरें तो दुनियां रोये और हम हँसे।


जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,

मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिये ज्ञान दोहे का अर्थ(Jaati Na Puchho Sadhu Ki Puchh Lijiye Gyan Dohe Ka Arth in Hindi):-

किसी विद्वान् व्यक्ति से उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए बल्कि ज्ञान की बात करनी चाहिए। असली मोल तो तलवार का होता है म्यान का नहीं।


जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,

मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das dohe with meaning


जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ दोहे का अर्थ(Jin Khoja Tin Paiya Gahare Paani Paith Dohe Ka Arth in Hindi):-

जो लोग लगातार प्रयत्न करते हैं, मेहनत करते हैं वह कुछ ना कुछ पाने में जरूर सफल हो जाते हैं। जैसे कोई गोताखोर जब गहरे पानी में डुबकी लगाता है तो कुछ ना कुछ लेकर जरूर आता है लेकिन जो लोग डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रहे हैं उनको जीवन पर्यन्त कुछ नहीं मिलता।


दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,

अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


दोस पराए देखि करि चला हसन्त हसन्त दोहे का अर्थ(Dos Paraye Dekhi Kari Chala Hasant Hasant Dohe Ka Arth in Hindi):-

इंसान की फितरत कुछ ऐसी है कि दूसरों के अंदर की बुराइयों को देखकर उनके दोषों पर हँसता है, व्यंग करता है लेकिन अपने दोषों पर कभी नजर नहीं जाती जिसका ना कोई आदि है न अंत।


तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,

कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ke das dohe


तिनका कबहुँ ना निन्दिये जो पाँवन तर होय दोहे का अर्थ(TInaka Kabahu Na Nindaye Jo Pawan Tar Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीरदास जी इस दोहे में बताते हैं कि छोटी से छोटी चीज़ की भी कभी निंदा नहीं करनी चाहिए क्यूंकि वक्त आने पर छोटी चीज़ें भी बड़े काम कर सकती हैं। ठीक वैसे ही जैसे एक छोटा सा तिनका पैरों तले कुचल जाता है लेकिन आंधी चलने पर अगर वही तिनका आँखों में पड़ जाये तो बड़ी तकलीफ देता है।


अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,

अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


अति का भला न बोलना अति की भली न चूप दोहे का अर्थ (Ati Ka Bhala Na Bolana Ati Ki Bhali Na Chup Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीरदास जी कहते हैं कि ज्यादा बोलना अच्छा नहीं है और ना ही ज्यादा चुप रहना भी अच्छा है जैसे ज्यादा बारिश अच्छी नहीं होती लेकिन बहुत ज्यादा धूप भी अच्छी नहीं है।


कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन,

कही कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

sant kabir dohe in hindi


कहत सुनत सब दिन गए उरझि न सुरझ्या मन दोहे का अर्थ(Kahat Sunat Sab Din Gaye urajhi Na Surjhya Man Dohe Ka Arth in Hindi):-

केवल कहने और सुनने में ही सब दिन चले गये लेकिन यह मन उलझा ही है अब तक सुलझा नहीं है। कबीर दास जी कहते हैं कि यह मन आजतक चेता नहीं है यह आज भी पहले जैसा ही है।


दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,

तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

दुर्लभ मानुष जन्म है देह न बारम्बार दोहे का अर्थ(Durlabh Manush Janm Hai Deh na Barambar Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य का जन्म मिलना बहुत दुर्लभ है यह शरीर बार बार नहीं मिलता जैसे पेड़ से झड़ा हुआ पत्ता वापस पेड़ पर नहीं लग सकता।


बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,

हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ke dohe with meaning in hindi


बोली एक अनमोल है जो कोई बोलै जानि दोहे का अर्थ(Boli Ek Anamol Hai Jo Koi Bole Haani Dohe Ka Arth in Hindi):-

जो व्यक्ति अच्छी वाणी बोलता है वही जानता है कि वाणी अनमोल रत्न है। इसके लिए हृदय रूपी तराजू में शब्दों को तोलकर ही मुख से बाहर आने दें।


हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,

आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ke dohe hindi mein


हिन्दू कहें मोहि राम पियारा तुर्क कहें रहमाना दोहे का अर्थ(Hindu Kahe Mohi Ram Piyara Turk Kahe Rahmana Dohe Ka Arth in Hindi):-

हिन्दूयों के लिए राम प्यारा है और मुस्लिमों के लिए अल्लाह रहमान प्यारा है। दोनों राम रहीम के चक्कर में आपस में लड़ मिटते हैं लेकिन कोई सत्य को नहीं जान पाया।


संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत ।

चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


संत ना छाडै संतई जो कोटिक मिले असंत दोहे का अर्थ(Sant Na Chaade Jo Kotik Mile Asant Dohe Ka Arth in Hindi):-

सज्जन पुरुष किसी भी परिस्थिति में अपनी सज्जनता नहीं छोड़ते चाहे कितने भी दुष्ट पुरुषों से क्यों ना घिरे हों। ठीक वैसे ही जैसे चन्दन के वृक्ष से हजारों सर्प लिपटे रहते हैं लेकिन वह कभी अपनी शीतलता नहीं छोड़ता।


बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,

जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय दोहे का अर्थ(Bura Jo Dekhan Mai Chala Bura Na Miliya Koy Dohe Ka Arth in Hindi):-

जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।


 पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir dohe with meaning in hindi


पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय दोहे का अर्थ(Pothi Padhi Padhi Jag Muaa Pandit Bhaya Na Koy Dohe Ka Arth in Hindi):-

बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, भावार्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।


साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,

सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय दोहे का अर्थ(Sadhu Aisha Chahiye Jaisha Sup Subhay Dohe Ka Arth in Hindi):-

इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है। जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे।


तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,

कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

sant kabir das ji ke dohe


तिनका कबहुँ ना निन्दिये जो पाँवन तर होय दोहे का अर्थ(Tinaka Kabahu Na Nindiye Jo Pawan Tar Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है। यदि कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है !


धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,

माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

sant kabir ke dohe in hindi


धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय दोहे का अर्थ(Dhire Dhire Re Mana Dhire Sab Kuchh Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-

मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है। अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु  आने पर ही लगेगा !


माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,

कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


माला फेरत जुग भया फिरा न मन का फेर दोहे का अर्थ(Maala Pherat Jug Bhaya Phira Na Man Ka Pher Dohe Ka Arth in Hindi):-

कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है, पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती। कबीर की ऐसे व्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलो या  फेरो।


जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,

मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir dohe with meaning in hindi

जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिये ज्ञान दोहे का अर्थ(Jati Na Puchho Sadhu Ki Puchh Lijiye Gyan Dohe Ka Arth in Hindi):-

सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए। तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का – उसे ढकने वाले खोल का।


दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,

अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

sant kabir ke dohe in hindi


दोस पराए देखि करि चला हसन्त हसन्त दोहे का अर्थ(Dos Paraye Dekhi Kari Chala Hasant Hasant Dohe Ka Arth in Hindi):-

यह मनुष्य का स्वभाव है कि जब वह  दूसरों के दोष देख कर हंसता है, तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत।


जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,

मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ दोहे का अर्थ(Jin Khoja Tin Paiya Gahare Paani Paith Dohe Ka Arth in Hindi):-

जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते  हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है। लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते।


बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,

हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

dohe kabir


बोली एक अनमोल है जो कोई बोलै जानि दोहे का अर्थ(Boli Ek Anamol Hai Jo Koi Bole Haani Dohe Ka Arth in Hindi):-

यदि कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो उसे पता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है। इसलिए वह ह्रदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है।


अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,

अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


अति का भला न बोलना अति की भली न चूप दोहे का अर्थ(Ati Ka Bhala Na Bolana Ati Ki Bhali Na Chup Dohe Ka Arth in Hindi):-

न तो अधिक बोलना अच्छा है, न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है। जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है।


निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,

बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ke dohe in hindi with meaning


निंदक नियरे राखिए ऑंगन कुटी छवाय दोहे का अर्थ(Nindak Niyare Rakhiye Angan Kuti Chhavay Dohe Ka Arth in Hindi):-

जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए। वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ़ करता है।


दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,

तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


दुर्लभ मानुष जन्म है देह न बारम्बार दोहे का अर्थ(Durlabh Manush Janm Hai Deh Na Barambaar Dohe Ka Arth in Hindi):-

इस संसार में मनुष्य का जन्म मुश्किल से मिलता है। यह मानव शरीर उसी तरह बार-बार नहीं मिलता जैसे वृक्ष से पत्ता  झड़ जाए तो दोबारा डाल पर नहीं लगता।


कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,

ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

कबीरा खड़ा बाज़ार में मांगे सबकी खैर दोहे का अर्थ(Kabira Khada Bazar Me Sabki Mange Khair Dohe Ka Arth in Hindi):-

इस संसार में आकर कबीर अपने जीवन में बस यही चाहते हैं कि सबका भला हो और संसार में यदि किसी से दोस्ती नहीं तो दुश्मनी भी न हो !


हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,

आपस में दोउ लड़ी-लड़ी  मुए, मरम न कोउ जाना।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ke dohe in hindi


हिन्दू कहें मोहि राम पियारा तुर्क कहें रहमाना दोहे का अर्थ(Hindu Kahe Mohi Ram Piyara Turk Kahe Rahamana Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं कि हिन्दू राम के भक्त हैं और तुर्क मुस्लिम को रहमान प्यारा है। इसी बात पर दोनों लड़-लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे, तब भी दोनों में से कोई सच को न जान पाया।


कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन।

कही कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


कहत सुनत सब दिन गए उरझि न सुरझ्या मन दोहे का अर्थ(Kahat Sunat Sab Din Gaye Urajhi Na Surjhya Man Dohe Ka Arth in Hindi):-

कहते सुनते सब दिन निकल गए, पर यह मन उलझ कर न सुलझ पाया। कबीर कहते हैं कि अब भी यह मन होश में नहीं आता। आज भी इसकी अवस्था पहले दिन के समान ही है।


कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई।

बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ji dohe


कबीर लहरि समंद की मोती बिखरे आई दोहे का अर्थ(Kabir Lahari Samand ki Moti Bikhare Aai Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं कि समुद्र की लहर में मोती आकर बिखर गए। बगुला उनका भेद नहीं जानता, परन्तु हंस उन्हें चुन-चुन कर खा रहा है। इसका भावार्थ यह है कि किसी भी वस्तु का महत्व जानकार ही जानता है।


जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई।

जब गुण को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ji ke

जब गुण को गाहक मिले तब गुण लाख बिकाई दोहे का अर्थ(Jab Gun ko Gahak Mile Tab Gud Lakh Bikai Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं कि जब गुण को परखने वाला गाहक मिल जाता है तो  गुण की कीमत होती है। पर जब ऐसा गाहक नहीं मिलता, तब गुण कौड़ी के भाव चला जाता है।


कबीर कहा गरबियो, काल गहे कर केस।

ना जाने कहाँ मारिसी, कै घर कै परदेस।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


कबीर कहा गरबियो काल गहे कर केस दोहे का अर्थ(Kabir Kaha Garabiyo Kaal Gahe Kar Kes Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं कि हे मानव ! तू क्या गर्व करता है? काल अपने हाथों में तेरे केश पकड़े हुए है। मालूम नहीं, वह घर या परदेश में, कहाँ पर तुझे मार डाले।


पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात।

एक दिना छिप जाएगा,ज्यों तारा परभात।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


पानी केरा बुदबुदा अस मानुस की जात दोहे का अर्थ(Paani tera Budbudaa As Manas Ki Jaat Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर का कथन है कि जैसे पानी के बुलबुले, इसी प्रकार मनुष्य का शरीर क्षणभंगुर है।जैसे प्रभात होते ही तारे छिप जाते हैं, वैसे ही ये देह भी एक दिन नष्ट हो जाएगी।


हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास।

सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

dohe of kabir das in hindi


हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी केस जलै ज्यूं घास दोहे का अर्थ(Haad Jale Jyu Laakadi Kes Jalai Jyu Ghas Dohe Ka Arth in Hindi):-

यह नश्वर मानव देह अंत समय में लकड़ी की तरह जलती है और केश घास की तरह जल उठते हैं। सम्पूर्ण शरीर को इस तरह जलता देख, इस अंत पर कबीर का मन उदासी से भर जाता है।


जो उग्या सो अन्तबै, फूल्या सो कुमलाहीं।

जो चिनिया सो ढही पड़े, जो आया सो जाहीं।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


जो उग्या सो अन्तबै फूल्या सो कुमलाहीं दोहे का अर्थ(Jo Ugya So Antabai Phulya So kumlahi Dohe Ka Arth in Hindi):-

इस संसार का नियम यही है कि जो उदय हुआ है,वह अस्त होगा। जो विकसित हुआ है वह मुरझा जाएगा। जो चिना गया है वह गिर पड़ेगा और जो आया है वह जाएगा।


झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद।

खलक चबैना काल का, कुछ मुंह में कुछ गोद।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


झूठे सुख को सुख कहे मानत है मन मोद दोहे का अर्थ(Jhuthe Sukh Ko Sukh Kahe Manat Hai Man Mod Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं कि अरे जीव ! तू झूठे सुख को सुख कहता है और मन में प्रसन्न होता है? देख यह सारा संसार मृत्यु के लिए उस भोजन के समान है, जो कुछ तो उसके मुंह में है और कुछ गोद में खाने के लिए रखा है।


ऐसा कोई ना मिले, हमको दे उपदेस।

भौ सागर में डूबता, कर गहि काढै केस।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


ऐसा कोई ना मिले हमको दे उपदेस दोहे का अर्थ(Aesa Koi Na Mile Hamako De Upadesh Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर संसारी जनों के लिए दुखित होते हुए कहते हैं कि इन्हें कोई ऐसा पथप्रदर्शक न  मिला जो उपदेश देता और संसार सागर में डूबते हुए इन प्राणियों को अपने हाथों से केश पकड़ कर निकाल लेता।


संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत

चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

dohas of kabir das


संत ना छाडै संतई जो कोटिक मिले असंत दोहे का अर्थ(Sant Na Chhadai Santai Jo Kotik Mile Asant Dohe Ka Arth in Hindi):-

सज्जन को चाहे करोड़ों दुष्ट पुरुष मिलें फिर भी वह अपने भले स्वभाव को नहीं छोड़ता। चन्दन के पेड़ से सांप लिपटे रहते हैं, पर वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता।


कबीर तन पंछी भया, जहां मन तहां उडी जाइ।

जो जैसी संगती कर, सो तैसा ही फल पाइ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


कबीर तन पंछी भया जहां मन तहां उडी जाइ दोहे का अर्थ(Kabir Tan Panchhi Bhaya Janha Man Tanha Udi Jaye Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं कि संसारी व्यक्ति का शरीर पक्षी बन गया है और जहां उसका मन होता है, शरीर उड़कर वहीं पहुँच जाता है। सच है कि जो जैसा साथ करता है, वह वैसा ही फल पाता है।


तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई।

सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


तन को जोगी सब करें मन को बिरला कोई दोहे का अर्थ(Tan Ko Jogi Sab Kare Man Ko Birala Koi Dohe Ka Arth in Hindi):-

शरीर में भगवे वस्त्र धारण करना सरल है, पर मन को योगी बनाना बिरले ही व्यक्तियों का काम है य़दि मन योगी हो जाए तो सारी सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं।


कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय।

सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


कबीर सो धन संचे जो आगे को होय दोहे का अर्थ(Kabir So Dhan Sanche Jo Aage Ko Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में काम आए। सर पर धन की गठरी बाँध कर ले जाते तो किसी को नहीं देखा।


माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर।

आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

कबीर दास के दोहे भक्ति


माया मुई न मन मुआ मरी मरी गया सरीर दोहे का अर्थ(Maya Mari Na Man Muaa Mari Mari Gaya Sharir Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं कि संसार में रहते हुए न माया मरती है न मन। शरीर न जाने कितनी बार मर चुका पर मनुष्य की आशा और तृष्णा कभी नहीं मरती, कबीर ऐसा कई बार कह चुके हैं।


 मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई।

पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


मन हीं मनोरथ छांड़ी दे तेरा किया न होई दोहे का अर्थ(Man Hi Manorath Chhandi De Tera Kiya Na Hoi Dohe Ka Arth in Hindi):-

मनुष्य मात्र को समझाते हुए कबीर कहते हैं कि मन की इच्छाएं छोड़ दो , उन्हें तुम अपने बूते पर पूर्ण नहीं कर सकते। यदि पानी से घी निकल आए, तो रूखी रोटी कोई न खाएगा।


जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही ।

सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


जब मैं था तब हरी नहीं अब हरी है मैं नाही दोहे का अर्थ(Jab Mai Tab Hari Nahi Ab Hari Hai Mai Nahi Dohe Ka Arth in Hindi):-

जब मैं अपने अहंकार में डूबा था – तब प्रभु को न देख पाता था – लेकिन जब गुरु ने ज्ञान का दीपक मेरे भीतर प्रकाशित किया तब अज्ञान का सब अन्धकार मिट गया  – ज्ञान की ज्योति से अहंकार जाता रहा और ज्ञान के आलोक में प्रभु को पाया।


कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी ।

एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


कबीर सुता क्या करे जागी न जपे मुरारी दोहे का अर्थ(KAbir Suta Kya Kare Jaagi Na Jape Murari Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं – अज्ञान की नींद में सोए क्यों रहते हो? ज्ञान की जागृति को हासिल कर प्रभु का नाम लो।सजग होकर प्रभु का ध्यान करो।वह दिन दूर नहीं जब तुम्हें गहन निद्रा में सो ही जाना है – जब तक जाग सकते हो जागते क्यों नहीं? प्रभु का नाम स्मरण क्यों नहीं करते ?


आछे / पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत ।

अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

कबीर दास के 10 दोहे हिंदी में


आछे पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत दोहे का अर्थ(Aachhe Pachhe Din Paache Gaye Hari Se Kiya Na Het Dohe Ka Arth in HIndi):-

देखते ही देखते सब भले दिन – अच्छा समय बीतता चला गया – तुमने प्रभु से लौ नहीं लगाई – प्यार नहीं किया समय बीत जाने पर पछताने से क्या मिलेगा? पहले जागरूक न थे – ठीक उसी तरह जैसे कोई किसान अपने खेत की रखवाली ही न करे और देखते ही देखते पंछी उसकी फसल बर्बाद कर जाएं।


रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।

हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


रात गंवाई सोय के दिवस गंवाया खाय दोहे का अर्थ(Raat Ganvayi Soy Ke Divas Ganvaya Khay Dohe Ka Arth in Hindi):-

रात नींद में नष्ट कर दी – सोते रहे – दिन में भोजन से फुर्सत नहीं मिली यह मनुष्य जन्म हीरे के सामान बहुमूल्य था जिसे तुमने व्यर्थ कर दिया – कुछ सार्थक किया नहीं तो जीवन का क्या मूल्य बचा ? एक कौड़ी 


बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।

पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok
kabir ke dohe


बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर दोहे का अर्थ(Bada Huaa To Kya Huaa Jaishe Ped Khajur Dohe Ka Arth in Hindi):-

खजूर के पेड़ के समान बड़ा होने का क्या लाभ, जो ना ठीक से किसी को छाँव दे पाता है और न ही उसके फल सुलभ होते हैं। 


हरिया जांणे रूखड़ा, उस पाणी का नेह।

सूका काठ न जानई, कबहूँ बरसा मेंह।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

हरिया जांणे रूखड़ा उस पाणी का नेह दोहे का अर्थ(Harina Jane Rukhana Us Pani Ka Neh Dohe Ka Arth in Hindi):-

पानी के स्नेह को हरा वृक्ष ही जानता है।सूखा काठ – लकड़ी क्या जाने कि कब पानी बरसा? भावार्थात सहृदय ही प्रेम भाव को समझता है। 


झिरमिर- झिरमिर बरसिया, पाहन ऊपर मेंह।

माटी गलि सैजल भई, पांहन बोही तेह।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


झिरमिर झिरमिर बरसिया पाहन ऊपर मेंह दोहे का अर्थ(Jhirmir Jhirmir Barasiya Pahan Upar Menh Dohe Ka Arth in Hindi):-

बादल पत्थर के ऊपर झिरमिर करके बरसने लगे। इससे मिट्टी तो भीग कर सजल हो गई किन्तु पत्थर वैसा का वैसा बना रहा।


कहत सुनत सब दिन गए, उरझी न सुरझ्या मन।

कहि कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

कबीर के दोहे हिंदी में


कहत सुनत सब दिन गए उरझी न सुरझ्या मन दोहे का अर्थ(Kahat Sunat Sab Din Gaye Urajhi Na Surjhya Man Kahi Dohe Ka Arth in Hindi):-

कहते सुनते सब दिन बीत गए, पर यह मन उलझ कर न सुलझ पाया ! कबीर कहते हैं कि यह मन अभी भी होश में नहीं आता। आज भी इसकी अवस्था पहले दिन के ही समान है।


कबीर थोड़ा जीवना, मांड़े बहुत मंड़ाण।

कबीर थोड़ा जीवना, मांड़े बहुत मंड़ाण।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


कबीर थोड़ा जीवना मांड़े बहुत मंड़ाण दोहे का अर्थ(Kabir Thoda Jivana Made Bahut Mandan Dohe Ka Arth in HIndi):-

बादल पत्थर के ऊपर झिरमिर करके बरसने लगे। इससे मिट्टी तो भीग कर सजल हो गई किन्तु पत्थर वैसा का वैसा बना रहा।


झिरमिर- झिरमिर बरसिया, पाहन ऊपर मेंह।

माटी गलि सैजल भई, पांहन बोही तेह।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


झिरमिर झिरमिर बरसिया पाहन ऊपर मेंह दोहे का अर्थ(Jhirmir Jhirmir Barsiya Pahan Upar Meh Dohe Ka Arth in Hindi):-

थोड़ा सा जीवन है, उसके लिए मनुष्य अनेक प्रकार के प्रबंध करता है। चाहे राजा हो या निर्धन चाहे बादशाह – सब खड़े खड़े ही नष्ट हो गए।


इक दिन ऐसा होइगा, सब सूं पड़े बिछोह।

राजा राणा छत्रपति, सावधान किन होय।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


इक दिन ऐसा होइगा सब सूं पड़े बिछोह दोहे का अर्थ(Ek Din Aesa Hoiga Sab Su Pade Bichhoy Dohe Ka Arth in Hindi):-

एक दिन ऐसा जरूर आएगा जब सबसे बिछुड़ना पडेगा। हे राजाओं ! हे छत्रपतियों ! तुम अभी से सावधान क्यों नहीं हो जाते!


कबीर प्रेम न चक्खिया,चक्खि न लिया साव।

सूने घर का पाहुना, ज्यूं आया त्यूं जाव।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

कबीर दास जी के मशहूर दोहे


कबीर प्रेम न चक्खिया चक्खि न लिया साव दोहे का अर्थ(Kabir Prem Na Chakkhiya Chakkhi Na Liya Sav Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं कि जिस व्यक्ति ने प्रेम को चखा नहीं, और चख कर स्वाद नहीं लिया, वह उसअतिथि के समान है जो सूने, निर्जन घर में जैसा आता है, वैसा ही चला भी जाता है, कुछ प्राप्त नहीं कर पाता।


मान, महातम, प्रेम रस, गरवा तण गुण नेह।

ए सबही अहला गया, जबहीं कह्या कुछ देह।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

मान महातम प्रेम रस गरवा तण गुण नेह दोहे का अर्थ(Maan Maharat Prem Ras Garawa Tan Hun Neh Dohe Ka Arth in Hindi):-

मान, महत्त्व, प्रेम रस, गौरव गुण तथा स्नेह – सब बाढ़ में बह जाते हैं जब किसी मनुष्य से कुछ देने के लिए कहा जाता है।


जाता है सो जाण दे, तेरी दसा न जाइ।

खेवटिया की नांव ज्यूं, घने मिलेंगे आइ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


जाता है सो जाण दे तेरी दसा न जाइ दोहे का अर्थ(Jaata Hai So Jaan De Teri Dasa Na Jaai Dohe Ka Arth in Hindi):-

जो जाता है उसे जाने दो। तुम अपनी स्थिति को, दशा को न जाने दो। यदि तुम अपने स्वरूप में बने रहे तो केवट की नाव की तरह अनेक व्यक्ति आकर तुमसे मिलेंगे।


मानुष जन्म दुलभ है, देह न बारम्बार।

तरवर थे फल झड़ी पड्या,बहुरि न लागे डारि।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


मानुष जन्म दुलभ है देह न बारम्बार दोहे का अर्थ(Manush Janm Durlabh Hai Deh Na Barambar Dohe Ka Arth in Hindi):-

मानव जन्म पाना कठिन है। यह शरीर बार-बार नहीं मिलता। जो फल वृक्ष से नीचे गिर पड़ता है वह पुन: उसकी डाल पर नहीं लगता ।


यह तन काचा कुम्भ है,लिया फिरे था साथ।

ढबका लागा फूटिगा, कछू न आया हाथ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


यह तन काचा कुम्भ है लिया फिरे था साथ दोहे का अर्थ(Yah Tan Kacha Kumbh Hai Liya Phire Tha Sath Dohe Ka Arth in Hindi):-

यह शरीर कच्चा घड़ा है जिसे तू साथ लिए घूमता फिरता था।जरा-सी चोट लगते ही यह फूट गया। कुछ भी हाथ नहीं आया।


मैं मैं बड़ी बलाय है, सकै तो निकसी भागि।

कब लग राखौं हे सखी, रूई लपेटी आगि।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


मैं मैं बड़ी बलाय है सकै तो निकसी भागि दोहे का अर्थ(Mai Mai Badi Balay Hai Sakai To Nikasi Bhagi Dohe Ka Arth in Hindi):-

अहंकार बहुत बुरी वस्तु है। हो सके तो इससे निकल कर भाग जाओ। मित्र, रूई में लिपटी इस अग्नि – अहंकार – को मैं कब तक अपने पास रखूँ?


कबीर बादल प्रेम का, हम पर बरसा आई ।

अंतरि भीगी आतमा, हरी भई बनराई ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

कबीर दास जी के 15 दोहे


कबीर बादल प्रेम का हम पर बरसा आई दोहे का अर्थ(Kabir Badal Prem Ka Ham Par Barasa Aai Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं – प्रेम का बादल मेरे ऊपर आकर बरस पडा  – जिससे अंतरात्मा  तक भीग गई, आस पास पूरा परिवेश हरा-भरा हो गया – खुश हाल हो गया – यह प्रेम का अपूर्व प्रभाव है ! हम इसी प्रेम में क्यों नहीं जीते !


जिहि घट प्रेम न प्रीति रस, पुनि रसना नहीं नाम।

ते नर या संसार में , उपजी भए बेकाम ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


जिहि घट प्रेम न प्रीति रस पुनि रसना नहीं नाम दोहे का अर्थ(Jihi Ghat Prem Na Priti Ras Puni Rasana Nahi Naam Dohe Ka Arth in Hindi):-

जिनके ह्रदय में न तो प्रीति है और न प्रेम का स्वाद, जिनकी जिह्वा पर राम का नाम नहीं रहता – वे मनुष्य इस संसार में उत्पन्न हो कर भी व्यर्थ हैं। प्रेम जीवन की सार्थकता है। प्रेम रस में डूबे रहना जीवन का सार है।


लंबा मारग दूरि घर, बिकट पंथ बहु मार।

कहौ संतों क्यूं पाइए, दुर्लभ हरि दीदार।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

लंबा मारग दूरि घर बिकट पंथ बहु मार दोहे का अर्थ(Lamba Marag Duri Ghar Bikat Panth Bahu Maar Dohe Ka Arth in Hindi):-

घर दूर है मार्ग लंबा है रास्ता भयंकर है और उसमें अनेक पातक चोर ठग हैं। हे सज्जनों ! कहो , भगवान् का दुर्लभ दर्शन कैसे प्राप्त हो?संसार में जीवन कठिन  है – अनेक बाधाएं हैं विपत्तियां हैं – उनमें पड़कर हम भरमाए रहते हैं – बहुत से आकर्षण हमें अपनी ओर खींचते रहते हैं – हम अपना लक्ष्य भूलते रहते हैं – अपनी पूंजी गंवाते रहते हैं।


इस तन का दीवा करों, बाती मेल्यूं जीव।

लोही सींचौं तेल ज्यूं, कब मुख देखों पीव।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


इस तन का दीवा करों बाती मेल्यूं जीव दोहे का अर्थ(Is Tan Ka Diva Karo Baati Melyun Jiv Dohe Ka Arth in Hindi):-

इस शरीर को दीपक बना लूं, उसमें प्राणों की बत्ती डालूँ और रक्त से तेल की तरह सींचूं – इस तरह दीपक जला कर मैं अपने प्रिय के मुख का दर्शन कब कर पाऊंगा? ईश्वर  से लौ लगाना उसे पाने की चाह करना उसकी भक्ति में तन-मन  को लगाना एक साधना है तपस्या है – जिसे कोई कोई विरला ही कर पाता है !


नैना अंतर आव तू, ज्यूं हौं नैन झंपेउ।

ना हौं देखूं और को न तुझ देखन देऊँ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

कबीर दोहे कौन है


नैना अंतर आव तू ज्यूं हौं नैन झंपेउ दोहे का अर्थ(Naina Antar Aaw Tu jyun ho Nain jhnpeu Dohe Ka Arth in Hindi):-

हे प्रिय !  प्रभु  तुम इन दो नेत्रों की राह से मेरे भीतर आ जाओ और फिर मैं अपने इन नेत्रों को बंद कर लूं ! फिर न तो मैं किसी दूसरे  को देखूं और न ही किसी और को तुम्हें देखने दूं !


कबीर रेख सिन्दूर की काजल दिया न जाई।

नैनूं रमैया रमि रहा  दूजा कहाँ समाई ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


कबीर रेख सिन्दूर की काजल दिया न जाई दोहे का अर्थ(Kabir Rekh Sindur Ki kajal Diya Na Jaai Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर  कहते हैं कि जहां सिन्दूर की रेखा है – वहां काजल नहीं दिया जा सकता। जब नेत्रों में राम विराज रहे हैं तो वहां कोई अन्य कैसे निवास कर सकता है ?


कबीर सीप समंद की, रटे पियास पियास ।

समुदहि तिनका करि गिने, स्वाति बूँद की आस ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


कबीर सीप समंद की रटे पियास पियास दोहे का अर्थ(Kabir Sip Samand ki Rate Piyas Piyas Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं कि समुद्र की सीपी प्यास प्यास रटती रहती है।  स्वाति नक्षत्र की बूँद की आशा लिए हुए समुद्र की अपार जलराशि को तिनके के बराबर समझती है। हमारे मन में जो पाने की ललक है जिसे पाने की लगन है, उसके बिना सब निस्सार है।


सातों सबद जू बाजते घरि घरि होते राग ।

ते मंदिर खाली परे बैसन लागे काग ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


सातों सबद जू बाजते घरि घरि होते राग दोहे का अर्थ(Sato Sabad Ju Bajate Ghari Ghari Hote Raag Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं कि जिन घरों में सप्त स्वर गूंजते थे, पल पल उत्सव मनाए जाते थे, वे घर भी अब खाली पड़े हैं – उनपर कौए बैठने लगे हैं। हमेशा एक सा समय तो नहीं रहता ! जहां खुशियाँ थी वहां गम छा जाता है जहां हर्ष था वहां विषाद डेरा डाल सकता है – यह  इस संसार में होता है !।


कबीर कहा गरबियौ, ऊंचे देखि अवास ।

काल्हि परयौ भू लेटना ऊपरि जामे घास।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ke dohe in hindi


कबीर कहा गरबियौ ऊंचे देखि अवास दोहे का अर्थ(Kabir Kaha Garabiyo Unche Dekhi Aawas Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते है कि ऊंचे भवनों को देख कर क्या गर्व करते हो ? कल या परसों ये ऊंचाइयां और आप भी धरती पर लेट जाएंगे ध्वस्त हो जाएंगे और ऊपर से घास उगने लगेगी ! वीरान सुनसान हो जाएगा जो अभी हंसता खिलखिलाता घर आँगन है ! इसलिए कभी गर्व न करना चाहिए 


जांमण मरण बिचारि करि कूड़े काम निबारि ।

जिनि पंथूं तुझ चालणा सोई पंथ संवारि ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

जांमण मरण बिचारि करि कूड़े काम निबारि दोहे का अर्थ(Jaman Maran Bichari Karri Kude Kaam Nibaari Dohe Ka Arth in Hindi):-

जन्म और मरण का विचार करके , बुरे कर्मों को छोड़ दे। जिस मार्ग पर तुझे चलना है उसी मार्ग का स्मरण  कर – उसे ही याद रख – उसे ही संवार सुन्दर बना।


बिन रखवाले बाहिरा चिड़िये खाया खेत ।

आधा परधा ऊबरै, चेती सकै तो चेत ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok
kabir das ji ke dohe

बिन रखवाले बाहिरा चिड़िये खाया खेत दोहे का अर्थ(Bin Rakhwale Bahira Chidiye Khaya Khet Dohe Ka Arth in Hindi):-

रखवाले के बिना बाहर से चिड़ियों ने खेत खा लिया। कुछ खेत अब भी बचा है – यदि सावधान हो सकते हो तो हो जाओ – उसे बचा लो ! जीवन में  असावधानी के कारण  इंसान बहुत कुछ गँवा देता है – उसे खबर भी नहीं लगती – नुक्सान हो चुका होता है – यदि हम सावधानी बरतें तो कितने नुक्सान से बच सकते हैं !  इसलिए जागरूक होना है हर इंसान को - जैसे पराली जलाने की सावधानी बरतते तो दिल्ली में भयंकर वायु प्रदूषण से बचते पर – अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत !


कबीर देवल ढहि पड्या ईंट भई सेंवार ।

करी चिजारा सौं प्रीतड़ी ज्यूं ढहे न दूजी बार ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


कबीर देवल ढहि पड्या ईंट भई सेंवार दोहे का अर्थ(Kabir Deval Dhahi Pandaya Et Bhai Senvar Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं शरीर रूपी देवालय नष्ट हो गया – उसकी ईंट ईंट – अर्थात शरीर का अंग अंग - शैवाल अर्थात काई में बदल गई। इस देवालय को बनाने वाले प्रभु से प्रेम कर जिससे यह देवालय दूसरी बार नष्ट न हो।


कबीर मंदिर लाख का, जडियां हीरे लालि ।

दिवस चारि का पेषणा, बिनस जाएगा कालि ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ke dohe in hindi


कबीर मंदिर लाख का जडियां हीरे लालि दोहे का अर्थ(Kabir Mandir Lakh Ka Jadiya Hire Lali Dohe Ka Arth in Hindi):-

यह शरीर लाख का बना  मंदिर है जिसमें हीरे और लाल जड़े हुए हैं।यह चार दिन का खिलौना है कल ही नष्ट हो जाएगा। शरीर नश्वर है – जतन करके मेहनत  करके उसे सजाते हैं तब उसकी क्षण भंगुरता को भूल जाते हैं किन्तु सत्य तो इतना ही है कि देह किसी कच्चे खिलौने की तरह टूट फूट जाती है – अचानक ऐसे कि हम जान भी नहीं पाते !


कबीर यह तनु जात है सकै तो लेहू बहोरि ।

नंगे हाथूं ते गए जिनके लाख करोडि।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


कबीर यह तनु जात है सकै तो लेहू बहोरि दोहे का अर्थ(Kabir Yah Tanu Jaat Hai Sakai To Lehu Bahori Dohe Ka Arth in Hindi):-

यह शरीर नष्ट होने वाला है हो सके तो अब भी संभल जाओ – इसे संभाल लो !  जिनके पास लाखों करोड़ों की संपत्ति थी वे भी यहाँ से खाली हाथ ही गए हैं – इसलिए जीते जी धन संपत्ति जोड़ने में ही न लगे रहो – कुछ सार्थक भी कर लो ! जीवन को कोई दिशा दे लो – कुछ भले काम कर लो !


हू तन तो सब बन भया करम भए कुहांडि ।

आप आप कूँ काटि है, कहै कबीर बिचारि।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ke dohe


हू तन तो सब बन भया करम भए कुहांडि दोहे का अर्थ(Hu Tan To Sab Ban Bhaya karam Bhaye Kuhandi Dohe Ka Arth in Hindi):-

यह शरीर तो सब जंगल के समान है – हमारे कर्म ही कुल्हाड़ी के समान हैं। इस प्रकार हम खुद अपने आपको काट रहे हैं – यह बात कबीर सोच विचार कर कहते हैं।


तेरा संगी कोई नहीं सब स्वारथ बंधी लोइ ।

मन परतीति न उपजै, जीव बेसास न होइ ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

तेरा संगी कोई नहीं सब स्वारथ बंधी लोइ दोहे का अर्थ(Tera Sangi Koi Nahi Sab Swarth Badhi Loi Dohe Ka Arth in Hindi):-

तेरा साथी कोई भी नहीं है। सब मनुष्य स्वार्थ में बंधे हुए हैं, जब तक इस बात की प्रतीति – भरोसा – मन में उत्पन्न नहीं होता तब तक आत्मा के प्रति विशवास जाग्रत नहीं होता। भावार्थात वास्तविकता का ज्ञान न होने से मनुष्य संसार में रमा रहता है जब संसार के सच को जान लेता है – इस स्वार्थमय सृष्टि को समझ लेता है – तब ही अंतरात्मा की ओर उन्मुख होता है – भीतर झांकता है !


मैं मैं मेरी जिनी करै, मेरी सूल बिनास ।

मेरी पग का पैषणा मेरी  गल की पास ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


मैं मैं मेरी जिनी करै मेरी सूल बिनास दोहे का अर्थ(Mai Mai Meri Jini Karai Meri Sul Binas Dohe Ka Arth in Hindi):-

ममता और अहंकार में मत फंसो और बंधो – यह मेरा है कि रट मत लगाओ – ये विनाश के मूल हैं – जड़ हैं – कारण हैं – ममता पैरों की बेडी है और गले की फांसी है।


कबीर नाव जर्जरी कूड़े खेवनहार ।

हलके हलके तिरि गए बूड़े तिनि सर भार !।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ke dohe


कबीर नाव जर्जरी कूड़े खेवनहार दोहे का अर्थ(Kabir Nav Jarjari Kude Khevanhar Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं कि जीवन की नौका टूटी फूटी है जर्जर है उसे खेने वाले मूर्ख हैं  जिनके सर पर  विषय वासनाओं  का बोझ है वे तो संसार सागर में डूब जाते हैं – संसारी हो कर रह जाते हैं दुनिया के धंधों से उबर नहीं पाते – उसी में उलझ कर रह जाते हैं पर जो इनसे मुक्त हैं – हलके हैं वे तर जाते हैं पार लग जाते हैं भव सागर में डूबने से बच जाते हैं।


मन जाणे सब बात जांणत ही औगुन करै ।

काहे की कुसलात कर दीपक कूंवै पड़े ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


मन जाणे सब बात जांणत ही औगुन करै दोहे का अर्थ(Man Jaane Sab Baat Janat hi Augun Karai Dohe Ka Arth in Hindi):-

मन सब बातों को जानता है जानता हुआ भी अवगुणों में फंस जाता है जो दीपक हाथ में पकडे हुए भी कुंए में गिर पड़े उसकी कुशल कैसी?


हिरदा भीतर आरसी मुख देखा नहीं जाई ।

मुख तो तौ परि देखिए जे मन की दुविधा जाई ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ji ke dohe


हिरदा भीतर आरसी मुख देखा नहीं जाई दोहे का अर्थ(Hirada Bhitar Aarasi Mukh Dekha Nahi Jaai Dohe Ka Arth in Hindi):-

ह्रदय के अंदर ही दर्पण है परन्तु – वासनाओं की मलिनता के कारण – मुख का स्वरूप दिखाई ही नहीं देता मुख या अपना चेहरा या वास्तविक स्वरूप तो तभी दिखाई पड सकता  जब मन का संशय मिट जाए !


करता था तो क्यूं रहया, जब करि क्यूं पछिताय ।

बोये पेड़ बबूल का, अम्ब कहाँ ते खाय ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


करता था तो क्यूं रहया जब करि क्यूं पछिताय दोहे का अर्थ(Karata Tha To Kyu Rahaya jab Kari Kyu Pachhitay Dohe Ka Arth in Hindi):-

यदि तू अपने को कर्ता समझता था तो चुप क्यों बैठा रहा? और अब कर्म करके पश्चात्ताप  क्यों करता है? पेड़ तो बबूल का लगाया है – फिर आम खाने को कहाँ से मिलें ?


मनहिं मनोरथ छांडी दे, तेरा किया न होइ ।

पाणी मैं घीव नीकसै, तो रूखा खाई न कोइ ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ke dohe


मनहिं मनोरथ छांडी दे तेरा किया न होइ दोहे का अर्थ(Manahi Manorath Chhandi De Tera Kiya Na Hoi Dohe Ka Arth in Hindi):-

मन की इच्छा छोड़ दो।उन्हें तुम अपने बल पर पूरा नहीं कर सकते। यदि जल से घी निकल आवे, तो रूखी रोटी कोई भी न खाएगा!


माया मुई न मन मुवा, मरि मरि गया सरीर ।

आसा त्रिष्णा णा मुई यों कहि गया कबीर ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


माया मुई न मन मुवा मरि मरि गया सरीर दोहे का अर्थ(Maya Mui Na Man Muaa Mari Mari Gaya Sharir Dohe Ka Arth in Hindi):-

न माया मरती है न मन शरीर न जाने कितनी बार मर चुका। आशा, तृष्णा कभी नहीं मरती – ऐसा कबीर कई बार कह चुके हैं।


कबीर सो धन संचिए जो आगे कूं होइ।

सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्या कोइ ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir dohe


कबीर सो धन संचिए जो आगे कूं होइ दोहे का अर्थ(Kabir So Dhan Sanchiye Jo aage Ku Hoi Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में काम दे। सर पर धन की गठरी बांधकर ले जाते तो किसी को नहीं देखा।


झूठे को झूठा मिले, दूंणा बंधे सनेह

झूठे को साँचा मिले तब ही टूटे नेह ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


झूठे को झूठा मिले दूंणा बंधे सनेह दोहे का अर्थ(Jhoothe Ko  Jhootha Mile Duna Bandhe Sneh Dohe Ka Arth in Hindi):-

जब झूठे आदमी को दूसरा झूठा आदमी मिलता है तो दूना प्रेम बढ़ता है। पर जब झूठे को एक सच्चा आदमी मिलता है तभी प्रेम टूट जाता है।


करता केरे गुन बहुत औगुन कोई नाहिं।

जे दिल खोजों आपना, सब औगुन मुझ माहिं ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


करता केरे गुन बहुत औगुन कोई नाहिं दोहे का अर्थ(Karata Kere Gun Bahut Augun Koi Naahi Dohe Ka Arth in Hindi):-

प्रभु में गुण बहुत हैं – अवगुण कोई नहीं है।जब हम अपने ह्रदय की खोज करते हैं तब समस्त अवगुण अपने ही भीतर पाते हैं।


बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय ।

जो घर देखा आपना मुझसे बुरा णा कोय।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय दोहे का अर्थ(Bura Jo Dekhan Mai Chala Buraa Na Miliya Koi Dohe Ka Arth in Hindi):-

मैं इस संसार में बुरे व्यक्ति की खोज करने चला था लेकिन जब अपने घर – अपने मन में झाँक कर देखा तो खुद से बुरा कोई न पाया अर्थात हम दूसरे की बुराई पर नजर रखते हैं पर अपने आप को नहीं निहारते !


कबीर चन्दन के निडै नींव भी चन्दन होइ।

बूडा बंस बड़ाइता यों जिनी बूड़े कोइ ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ji ke dohe


कबीर चन्दन के निडै नींव भी चन्दन होइ दोहे का अर्थ(Kabir Chandan ke Nidai Niv Bhi Chandan Hoi Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं कि यदि चंदन के वृक्ष के पास नीम  का वृक्ष हो तो वह भी कुछ सुवास ले लेता है – चंदन का कुछ प्रभाव पा लेता है । लेकिन बांस अपनी लम्बाई – बडेपन – बड़प्पन के कारण डूब जाता है। इस तरह तो किसी को भी नहीं डूबना चाहिए। संगति का अच्छा प्रभाव ग्रहण करना चाहिए – आपने गर्व में ही न रहना चाहिए ।


क्काज्ल केरी कोठारी, मसि के कर्म कपाट।

पांहनि बोई पृथमीं,पंडित पाड़ी बात।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


क्काज्ल केरी कोठारी मसि के कर्म कपाट दोहे का अर्थ(Kkaajl Keri Kothari Masi Ke Karm Kapat Dohe Ka Arth in Hindi):-

यह संसार काजल की कोठरी है, इसके कर्म रूपी कपाट कालिमा के ही बने हुए हैं। पंडितों ने पृथ्वीपर पत्थर की मूर्तियाँ स्थापित करके मार्ग का निर्माण किया है।


मूरख संग न कीजिए ,लोहा जल न तिराई।

कदली सीप भावनग मुख, एक बूँद तिहूँ भाई ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


मूरख संग न कीजिए लोहा जल न तिराई दोहे का अर्थ(Murakh Sang Na Kijiye Loha Jal Na Tirai Dohe Ka Arth in Hindi):-

मूर्ख का साथ मत करो।मूर्ख लोहे के सामान है जो जल में तैर नहीं पाता  डूब जाता है । संगति का प्रभाव इतना पड़ता है कि आकाश से एक बूँद केले के पत्ते पर गिर कर कपूर, सीप के अन्दर गिर कर मोती और सांप के मुख में पड़कर विष बन जाती है।


ऊंचे कुल क्या जनमिया जे करनी ऊंच न होय।

सुबरन कलस सुरा भरा साधू निन्दै सोय ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ji ke dohe


ऊंचे कुल क्या जनमिया जे करनी ऊंच न होय दोहे का अर्थ(Unche Kul Kya Janamiya Je Karani Unch Naa Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-

यदि कार्य उच्च कोटि के नहीं हैं तो उच्च कुल में जन्म लेने से क्या लाभ? सोने का कलश यदि सुरा से भरा है तो साधु उसकी निंदा ही करेंगे।


कबीर संगति साध की , कड़े न निर्फल होई ।

चन्दन होसी बावना , नीब न कहसी कोई ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


कबीर संगति साध की कड़े न निर्फल होई दोहे का अर्थ(Kabir Sangati Sadh Ki Kade Na Nirphal Hoi Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं कि साधु  की संगति कभी निष्फल नहीं होती। चन्दन का वृक्ष यदि छोटा – वामन – बौना  भी होगा तो भी उसे कोई नीम का वृक्ष नहीं कहेगा। वह सुवासित ही रहेगा  और अपने परिवेश को सुगंध ही देगा। आपने आस-पास को खुशबू से ही भरेगा


जानि बूझि साँचहि तजै, करै झूठ सूं नेह ।

ताकी संगति रामजी, सुपिनै ही जिनि देहु ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ji ke dohe


जानि बूझि साँचहि तजै करै झूठ सूं नेह दोहे का अर्थ(Jaani Bujhi Sanchahi Tajai Karai Jhooth Sun Neh Dohe Ka Arth in Hindi):-

जो जानबूझ कर सत्य का साथ छोड़ देते हैं झूठ से प्रेम करते हैं हे भगवान् ऐसे लोगों की संगति हमें स्वप्न में भी न देना।


मन मरया ममता मुई, जहं गई सब छूटी।

जोगी था सो रमि गया, आसणि रही बिभूति ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


मन मरया ममता मुई जहं गई सब छूटी दोहे का अर्थ(Man Maraya Mamata Mui Janh Gayi Sab Chhuti Dohe Ka Arth in Hindi):-

मन को मार डाला ममता भी समाप्त हो गई अहंकार सब नष्ट हो गया जो योगी था वह तो यहाँ से चला गया अब आसन पर उसकी भस्म – विभूति पड़ी रह गई अर्थात संसार में केवल उसका यश रह गया।


तरवर तास बिलम्बिए, बारह मांस फलंत ।

सीतल छाया गहर फल, पंछी केलि करंत ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das dohe


तरवर तास बिलम्बिए बारह मांस फलंत दोहे का अर्थ(Tarawar Tas Bilambiye Barah Mans Phalant Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं कि ऐसे वृक्ष के नीचे विश्राम करो, जो बारहों महीने फल देता हो ।जिसकी छाया शीतल हो , फल सघन हों और जहां पक्षी क्रीडा करते हों ।


काची काया मन अथिर थिर थिर काम करंत ।

ज्यूं ज्यूं नर  निधड़क फिरै त्यूं त्यूं काल हसन्त ।


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


काची काया मन अथिर थिर थिर काम करंत दोहे का अर्थ(Kachi Kaya Man Athir Thir Thir Kaam Karant Dohe Ka Arth in Hindi):-

शरीर कच्चा अर्थात नश्वर है मन चंचल है परन्तु तुम इन्हें स्थिर मान कर काम  करते हो – इन्हें अनश्वर मानते हो मनुष्य जितना इस संसार में रमकर निडर घूमता है – मगन रहता है – उतना ही काल अर्थात मृत्यु उस पर  हँसता है ! मृत्यु पास है यह जानकर भी इंसान अनजान बना रहता है ! कितनी दुखभरी बात है।


जल में कुम्भ कुम्भ  में जल है बाहर भीतर पानी ।

फूटा कुम्भ जल जलहि समाना यह तथ कह्यौ गयानी ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ji ke dohe


जल में कुम्भ कुम्भ में जल है बाहर भीतर पानी दोहे का अर्थ(Jal Me Kumbh Kumbh Me Jal Hai Bahar Bhitar Pani Dohe Ka Arth in Hindi):-

जब पानी भरने जाएं तो घडा जल में रहता है और भरने पर जल घड़े के अन्दर आ जाता है इस तरह देखें तो – बाहर और भीतर पानी ही रहता है – पानी की ही सत्ता है। जब घडा फूट जाए तो उसका जल जल में ही मिल जाता है – अलगाव नहीं रहता – ज्ञानी जन इस तथ्य को कह गए हैं !  आत्मा-परमात्मा दो नहीं एक हैं – आत्मा परमात्मा में और परमात्मा आत्मा में विराजमान है। अंतत: परमात्मा की ही सत्ता है –  जब देह विलीन होती है – वह परमात्मा का ही अंश हो जाती है – उसी में समा जाती है। एकाकार हो जाती है।


तू कहता कागद की लेखी मैं कहता आँखिन की देखी ।
मैं कहता सुरझावन हारि, तू राख्यौ उरझाई रे ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ke dohe in hindi

तू कहता कागद की लेखी मैं कहता आँखिन की देखी दोहे का अर्थ(Tu Kahata Kaagad Ki Lekhi Mai KahataAnkhin Ki Dekhi Dohe Ka Arth in Hindi):-

तुम कागज़ पर लिखी बात को सत्य  कहते हो – तुम्हारे लिए वह सत्य है जो कागज़ पर लिखा है। किन्तु मैं आंखों देखा सच ही कहता और लिखता हूँ। कबीर पढे-लिखे नहीं थे पर उनकी बातों में सचाई थी। मैं सरलता से हर बात को सुलझाना चाहता हूँ – तुम उसे उलझा कर क्यों रख देते हो? जितने सरल बनोगे – उलझन से उतने ही दूर हो पाओगे।


मन के हारे हार है मन के जीते जीत ।
कहे कबीर हरि पाइए मन ही की परतीत ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

sant kabir ke dohe

मन के हारे हार है मन के जीते जीत दोहे का अर्थ(Man Ke Hare Haar Hai Man Ke Jeete Jeet Dohe Ka Arth in Hindi):-

जीवन में जय पराजय केवल मन की भावनाएं हैं।यदि मनुष्य मन में हार गया – निराश हो गया तो  पराजय है और यदि उसने मन को जीत लिया तो वह विजेता है। ईश्वर को भी मन के विश्वास से ही पा सकते हैं – यदि प्राप्ति का भरोसा ही नहीं तो कैसे पाएंगे?


जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहीं ।
प्रेम गली अति सांकरी जामें दो न समाहीं ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहीं दोहे का अर्थ(Jab Mai Tha Tab Hari Nahi Ab Hari Hai Mai Nahi Dohe Ka Arth in Hindi):-

 जब तक मन में अहंकार था तब तक ईश्वर का साक्षात्कार न हुआ। जब अहम समाप्त हुआ तभी प्रभु  मिले। जब ईश्वर का साक्षात्कार हुआ – तब अहम स्वत: नष्ट हो गया। ईश्वर की सत्ता का बोध तभी हुआ जब अहंकार गया। प्रेम में द्वैत भाव नहीं हो सकता – प्रेम की संकरी – पतली गली में एक ही समा सकता है – अहम् या परम ! परम की प्राप्ति के लिए अहम् का विसर्जन आवश्यक है।


पढ़ी पढ़ी के पत्थर भया लिख लिख भया जू ईंट ।
कहें कबीरा प्रेम की लगी न एको छींट।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ke dohe in hindi

पढ़ी पढ़ी के पत्थर भया लिख लिख भया जू ईंट दोहे का अर्थ(Padhi Padhi Ke Patthar Bhaya Likh Likh Bhaya Ju Et Dohe Ka Arth in Hindi):-

ज्ञान से बड़ा प्रेम है – बहुत ज्ञान हासिल करके यदि मनुष्य पत्थर सा कठोर हो जाए, ईंट जैसा निर्जीव हो जाए – तो क्या पाया? यदि ज्ञान मनुष्य को रूखा और कठोर बनाता है तो ऐसे ज्ञान का कोई लाभ नहीं। जिस मानव मन को प्रेम  ने नहीं छुआ, वह प्रेम के अभाव में जड़ हो रहेगा। प्रेम की एक बूँद – एक छींटा भर जड़ता को मिटाकर मनुष्य को सजीव बना देता है।


जाति न पूछो साधू की पूछ लीजिए ज्ञान ।
मोल करो तरवार को पडा रहन दो म्यान ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


जाती न पूछो साधू की दोहे का अर्थ (Jaati Na Puchho Sadhu ki Dohe Ka Arth in Hindi):-

सच्चा साधु सब प्रकार के भेदभावों से ऊपर उठ जाता है। उससे यह न पूछो की वह किस जाति का है साधु कितना ज्ञानी है यह जानना महत्वपूर्ण है। साधु की जाति म्यान के समान है और उसका ज्ञान तलवार की धार के समान है। तलवार की धार ही उसका मूल्य है – उसकी म्यान तलवार के मूल्य को नहीं बढाती।


साधु भूखा भाव का धन का भूखा नाहीं ।
धन का भूखा जो फिरै सो तो साधु नाहीं ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ke dohe with meaning

साधु भूखा भाव का धन का भूखा नाहीं दोहे का अर्थ(Sadhu Bhukha Bhav Ka Dhan Ka Bhukha Nahi Dohe Ka Arth in Hindi):-

साधु का मन भाव को जानता है, भाव का भूखा होता है,  वह धन का लोभी नहीं होता जो धन का लोभी है वह तो साधु नहीं हो सकता !


पढ़े गुनै सीखै सुनै मिटी न संसै सूल।
कहै कबीर कासों कहूं ये ही दुःख का मूल ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


पढ़े गुनै सीखै सुनै मिटी न संसै सूल दोहे का अर्थ(Padhai Gunai Sikhe Sunai Miti Na Sanse Sul Dohe Ka Arth in Hindi):-

बहुत सी पुस्तकों को पढ़ा गुना सुना सीखा  पर फिर भी मन में गड़ा संशय का काँटा न निकला कबीर कहते हैं कि किसे समझा कर यह कहूं कि यही तो सब दुखों की जड़ है – ऐसे पठन मनन से क्या लाभ जो मन का संशय न मिटा सके?


प्रेम न बाडी उपजे प्रेम न हाट बिकाई ।
राजा परजा जेहि रुचे सीस देहि ले जाई ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


प्रेम न बाडी उपजे प्रेम न हाट बिकाई दोहे का अर्थ(Prem Na Badi Upaje Prem Na Haat Bikai Dohe Ka Arth in Hindi):-

प्रेम खेत में नहीं उपजता प्रेम बाज़ार में नहीं बिकता चाहे कोई राजा हो या साधारण प्रजा – यदि प्यार पाना चाहते हैं तो वह आत्म बलिदान से ही मिलेगा। त्याग और बलिदान के बिना प्रेम को नहीं पाया जा सकता। प्रेम गहन- सघन भावना है – खरीदी बेचे जाने वाली वस्तु नहीं !


कबीर सोई पीर है जो जाने पर पीर ।
जो पर पीर न जानई  सो काफिर बेपीर ।

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ke dohe hindi

कबीर सोई पीर है जो जाने पर पीर दोहे का अर्थ(Kabir Soi Peer Hai Jo Jaane Par Peer Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर  कहते हैं कि सच्चा पीर – संत वही है जो दूसरे की पीड़ा को जानता है जो दूसरे के दुःख को नहीं जानते वे बेदर्द हैं – निष्ठुर हैं और काफिर हैं।


हाड जले लकड़ी जले जले जलावन हार ।
कौतिकहारा भी  जले कासों करूं पुकार ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


हाड जले लकड़ी जले जले जलावन हार दोहे का अर्थ(Haad Jale Lakadi Jale Jale Ja;awan haar Dohe Ka Arth in Hindi):-

दाह क्रिया में हड्डियां जलती हैं उन्हें जलाने वाली लकड़ी जलती है उनमें आग लगाने वाला भी एक दिन जल जाता है। समय आने पर उस दृश्य को देखने वाला दर्शक भी जल जाता है। जब सब का अंत यही हो तो पनी पुकार किसको दू? किससे  गुहार करूं – विनती या कोई आग्रह करूं? सभी तो एक नियति से बंधे हैं ! सभी का अंत एक है !


रात गंवाई सोय कर दिवस गंवायो खाय ।
हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir dohe hindi

रात गंवाई सोय कर दिवस गंवायो खाय दोहे का अर्थ(Raat Ganvayi Soy Kar Divas Ganvayo Khay Dohe Ka Arth in Hindi):-

रात सो कर बिता दी,  दिन खाकर बिता दिया हीरे के समान कीमती जीवन को संसार के निर्मूल्य विषयों की – कामनाओं और वासनाओं की भेंट चढ़ा दिया – इससे दुखद क्या हो सकता है ?


मन मैला तन ऊजला बगुला कपटी अंग ।
तासों तो कौआ भला तन मन एकही रंग ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


मन मैला तन ऊजला बगुला कपटी अंग दोहे का अर्थ(Man Maila Tan Ujala Bagula Kapati Ang Dohe Ka Arth in Hindi):-

बगुले का शरीर तो उज्जवल है पर मन काला – कपट से भरा है – उससे  तो कौआ भला है जिसका तन मन एक जैसा है और वह किसी को छलता भी नहीं है।


कबीर हमारा कोई नहीं हम काहू के नाहिं ।
पारै पहुंचे नाव ज्यौं मिलिके बिछुरी जाहिं ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabirdas ke dohe

कबीर हमारा कोई नहीं हम काहू के नाहिं दोहे का अर्थ(Kabir Hamara Koi Nahi Ham Kahu Ke Nahi Dohe Ka Arth in Hindi):-

इस जगत में न कोई हमारा अपना है और न ही हम किसी के ! जैसे नांव के नदी पार पहुँचने पर उसमें मिलकर बैठे हुए सब यात्री बिछुड़ जाते हैं वैसे ही हम सब मिलकर बिछुड़ने वाले हैं। सब सांसारिक सम्बन्ध यहीं छूट जाने वाले हैं


देह धरे का दंड है सब काहू को होय ।
ज्ञानी भुगते ज्ञान से अज्ञानी भुगते रोय।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

dohas of kabir

देह धरे का दंड है सब काहू को होय दोहे का अर्थ(Deh Dhare Ka Dand Hai Sab kahu Ko Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-

देह धारण करने का दंड – भोग या प्रारब्ध निश्चित है जो सब को भुगतना होता है। अंतर इतना ही है कि ज्ञानी या समझदार व्यक्ति इस भोग को या दुःख को समझदारी से भोगता है निभाता है संतुष्ट रहता है जबकि अज्ञानी रोते हुए – दुखी मन से सब कुछ झेलता है !


हीरा परखै जौहरी शब्दहि परखै साध ।
कबीर परखै साध को ताका मता अगाध ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


हीरा परखै जौहरी शब्दहि परखै साध दोहे का अर्थ(Hira Parakhai jouhari Shabdhi Prakhai Sadh Dohe Ka Arth in Hindi):-

हीरे की परख जौहरी जानता है – शब्द के सार– असार को परखने वाला विवेकी साधु – सज्जन होता है । कबीर कहते हैं कि जो साधु–असाधु को परख लेता है उसका मत – अधिक गहन गंभीर है !


एक ही बार परखिये ना वा बारम्बार ।
बालू तो हू किरकिरी जो छानै सौ बार।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


एक ही बार परखिये ना वा बारम्बार दोहे का अर्थ(Ek Hi Bar Parakhiye Na Va Barambaar Dohe Ka Arth in Hindi):-

किसी व्यक्ति को बस ठीक ठीक एक बार ही परख लो तो उसे बार बार परखने की आवश्यकता न होगी। रेत को अगर सौ बार भी छाना जाए तो भी उसकी किरकिराहट दूर न होगी – इसी प्रकार मूढ़ दुर्जन को बार बार भी परखो तब भी वह अपनी मूढ़ता दुष्टता से भरा वैसा ही मिलेगा। किन्तु सही व्यक्ति की परख एक बार में ही हो जाती है !


पतिबरता मैली भली गले कांच की पोत ।
सब सखियाँ में यों दिपै ज्यों सूरज की जोत ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

sant kabir das ke dohe

पतिबरता मैली भली गले कांच की पोत दोहे का अर्थ(Patibarata Maili Bhali Gale kanch ki Pot Dohe Ka Arth in Hindi):-

पतिव्रता स्त्री यदि तन से मैली भी हो भी अच्छी है। चाहे उसके गले में केवल कांच के मोती की माला ही क्यों न हो। फिर भी वह अपनी सब सखियों के बीच सूर्य के तेज के समान चमकती है !


जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ दोहे का अर्थ(Jin Khoja Tin Paaiya Gahare Paani Paith Dohe Ka Arth in Hindi):-

जीवन में जो लोग हमेशा प्रयास करते हैं वो उन्हें जो चाहे वो पा लेते हैं जैसे कोई गोताखोर गहरे पानी में जाता है तो कुछ न कुछ पा ही लेता हैं। लेकिन कुछ लोग गहरे पानी में डूबने के डर से यानी असफल होने के डर से कुछ करते ही नहीं और किनारे पर ही बैठे रहते हैं।


कहैं कबीर देय तू, जब लग तेरी देह।
देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


कहैं कबीर देय तू जब लग तेरी देह दोहे का अर्थ(Kahai Kabir Dey Tu Jab lag Teri Deh Dohe Ka Arth in Hindi):-

जब तक यह देह है तब तक तू कुछ न कुछ देता रह। जब देह धूल में मिल जायगी, तब कौन कहेगा कि दो।


देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह।
निश्चय कर उपकार ही, जीवन का फन येह।

 

देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह। निश्चय कर उपकार ही, जीवन का फन येह।

kabir ke dohe with meaning in hindi

देह खेह होय जायगी कौन कहेगा देह दोहे का अर्थ(Deh Kheh Hoy jayagei Kaun Kahega Deh Dohe Ka Arth in Hindi):-

मरने के पश्चात् तुमसे कौन देने को कहेगा ? अतः निश्चित पूर्वक परोपकार करो, यही जीवन का फल है।


या दुनिया दो रोज की, मत कर यासो हेत।
गुरु चरनन चित लाइये, जो पुराण सुख हेत।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


या दुनिया दो रोज की मत कर यासो हेत दोहे का अर्थ(Ya Duniya Do Roj Ki Mat Kar Yaaso het Dohe Ka Arth in Hindi):-

इस संसार का झमेला दो दिन का है अतः इससे मोह सम्बन्ध न जोड़ो। सद्गुरु के चरणों में मन लगाओ, जो पूर्ण सुखज देने वाले हैं।


ऐसी बनी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करै, आपौ शीतल होय।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ji ke dohe in hindi

ऐसी बनी बोलिये मन का आपा खोय दोहे का अर्थ(Aesi Bani Boliye Man Ka Aapa khoy Dohe Ka Arth in Hindi):-

मन के अहंकार को मिटाकर, ऐसे मीठे और नम्र वचन बोलो, जिससे दुसरे लोग सुखी हों और स्वयं भी सुखी हो।


गाँठी होय सो हाथ कर, हाथ होय सो देह।
आगे हाट न बानिया, लेना होय सो लेह।

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ke dohe with meaning

गाँठी होय सो हाथ कर हाथ होय सो देह दोहे का अर्थ(Ganthi Hoy So Haath Kar Hath Hoy So Dohe Ka Arth in Hindi):-

जो गाँठ में बाँध रखा है, उसे हाथ में ला, और जो हाथ में हो उसे परोपकार में लगा। नर-शरीर के पश्चात् इतर खानियों में बाजार-व्यापारी कोई नहीं है, लेना हो सो यही ले-लो।


धर्म किये धन ना घटे, नदी न घट्ट नीर।
अपनी आखों देखिले, यों कथि कहहिं कबीर।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


धर्म किये धन ना घटे नदी न घट्ट नीर दोहे का अर्थ(Dharm Kiye Dhan Na Ghate Nadi Na Ghatt Neer Dohe Ka Arth in Hindi):-

धर्म परोपकार, दान सेवा करने से धन नहीं घटना, देखो नदी सदैव बहती रहती है, परन्तु उसका जल घटना नहीं। धर्म करके स्वयं देख लो।


कहते को कही जान दे, गुरु की सीख तू लेय।
साकट जन औश्वान को, फेरि जवाब न देय।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

dohe of kabir

कहते को कही जान दे गुरु की सीख तू लेय दोहे का अर्थ(Kahate Ko Kahi Jaan De Guru ki Seekh Tu Ley Dohe Ka Arth in Hindi):-

उल्टी-पल्टी बात बकने वाले को बकते जाने दो, तू गुरु की ही शिक्षा धारण कर। साकट दुष्टोंतथा कुत्तों को उलट कर उत्तर न दो।


कबीर तहाँ न जाइये, जहाँ जो कुल को हेत।
साधुपनो जाने नहीं, नाम बाप को लेत।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


कबीर तहाँ न जाइये जहाँ जो कुल को हेत दोहे का अर्थ(Kabir tanha Na Jayiye Janha Jo Kul Ka Het Dohe Ka Arth in Hindi) :-

गुरु कबीर साधुओं से कहते हैं कि वहाँ पर मत जाओ, जहाँ पर पूर्व के कुल-कुटुम्ब का सम्बन्ध हो। क्योंकि वे लोग आपकी साधुता के महत्व को नहीं जानेंगे, केवल शारीरिक पिता का नाम लेंगे ‘अमुक का लड़का आया है’।


जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय।
जैसा पानी पीजिये, तैसी बानी सोय।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ke dohe ka arth

जैसा भोजन खाइये तैसा ही मन होय दोहे का अर्थ(Jaisha Bhojan Khayiye taisa Hi Man Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-

आहारशुध्दी: जैसे खाय अन्न, वैसे बने मन्न लोक प्रचलित कहावत है और मनुष्य जैसी संगत करके जैसे उपदेश पायेगा, वैसे ही स्वयं बात करेगा। अतएव आहाविहार एवं संगत ठीक रखो।


कबीर तहाँ न जाइये, जहाँ सिध्द को गाँव।
स्वामी कहै न बैठना, फिर-फिर पूछै नाँव।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


कबीर तहाँ न जाइये जहाँ सिध्द को गाँव दोहे का अर्थ(Kabir Tanha Na Jayiye Janha Sidhdh Ko Ganv Dohe Ka Arth in Hindi):-

अपने को सर्वोपरि मानने वाले अभिमानी सिध्दों के स्थान पर भी मत जाओ। क्योंकि स्वामीजी ठीक से बैठने तक की बात नहीं कहेंगे, बारम्बार नाम पूछते रहेंगे।


इष्ट मिले अरु मन मिले, मिले सकल रस रीति।
कहैं कबीर तहँ जाइये, यह सन्तन की प्रीति।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ki sakhi

इष्ट मिले अरु मन मिले मिले सकल रस रीति दोहे का अर्थ(Isht Mile Aru Man Mile Mile Sakal Ras Riti Dohe Ka Arth in Hindi):-

उपास्य, उपासना-पध्दति, सम्पूर्ण रीति-रिवाज और मन जहाँ पर मिले, वहीँ पर जाना सन्तों को प्रियकर होना चाहिए।


कबीर संगी साधु का, दल आया भरपूर।
इन्द्रिन को तब बाँधीया, या तन किया धर।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


कबीर संगी साधु का दल आया भरपूर दोहे का अर्थ(Kabir Sangi Sadhu Ka Dal Aaya Bharapur Dohe Ka Arth in Hindi):-

सन्तों के साधी विवेक-वैराग्य, दया, क्षमा, समता आदि का दल जब परिपूर्ण रूप से ह्रदय में आया। तब सन्तों ने इद्रियों को रोककर शरीर की व्याधियों को धूल कर दिया। भावार्थात् तन-मन को वश में कर लिया।


गारी मोटा ज्ञान, जो रंचक उर में जरै।
कोटि सँवारे काम, बैरि उलटि पायन परै।
गारी सो क्या हान, हिरदै जो यह ज्ञान धरै।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ji ke dohe in hindi

गारी मोटा ज्ञान जो रंचक उर में जरै दोहे का अर्थ(Gaari Mota Gyan jo Ranchak ur Me jarai Dohe Ka Arth in Hindi):-

यदि अपने ह्रदय में थोड़ी भी सहन शक्ति हो, ओ मिली हुई गली भारी ज्ञान है। सहन करने से करोड़ों काम संसार में सुधर जाते हैं। और शत्रु आकर पैरों में पड़ता है। यदि ज्ञान ह्रदय में आ जाय, तो मिली हुई गाली से अपनी क्या हानि है ?


गारी ही से उपजै, कलह कष्ट औ मीच।
हारि चले सो सन्त है, लागि मरै सो नीच।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das dohe with meaning

गारी ही से उपजै कलह कष्ट औ मीच दोहे का अर्थ(Gari Hi Se Upaje Kalah kasht Au Meech Dohe Ka Arth in Hindi):-

गाली से झगड़ा सन्ताप एवं मरने मारने तक की बात आ जाती है। इससे अपनी हार मानकर जो विरक्त हो चलता है, वह सन्त है, और गाली गलौच एवं झगड़े में जो व्यक्ति मरता है, वह नीच है।


बहते को मत बहन दो, कर गहि एचहु ठौर।
कह्यो सुन्यो मानै नहीं, शब्द कहो दुइ और।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


बहते को मत बहन दो कर गहि एचहु ठौर दोहे का अर्थ(Bahate Ko Mat Bahan Do Kar gahi Auch Thaur Dohe Ka Arth in Hindi):-

बहते हुए को मत बहने दो, हाथ पकड़ कर उसको मानवता की भूमिका पर निकाल लो। यदि वह कहा-सुना न माने, तो भी निर्णय के दो वचन और सुना दो।


बन्दे तू कर बन्दगी, तो पावै दीदार।
औसर मानुष जन्म का, बहुरि न बारम्बार।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ke das dohe

बन्दे तू कर बन्दगी तो पावै दीदार दोहे का अर्थ(Bande tu Kar Bandagi To Paavai Didar Dohe Ka Arth in Hindi):-

हे दास ! तू सद्गुरु की सेवा कर, तब स्वरूप-साक्षात्कार हो सकता है। इस मनुष्य जन्म का उत्तम अवसर फिर से बारम्बार न मिलेगा।


बार-बार तोसों कहा, सुन रे मनुवा नीच।
बनजारे का बैल ज्यों, पैडा माही मीच।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

sant kabir dohe in hindi

बार बार तोसों कहा सुन रे मनुवा नीच दोहे का अर्थ(Baar Baar Toso Kaha Sun Re Manuaa Neech Dohe Ka Arth in Hindi):-

हे नीच मनुष्य ! सुन, मैं बारम्बार तेरे से कहता हूं। जैसे व्यापारी का बैल बीच मार्ग में ही मार जाता है। वैसे तू भी अचानक एक दिन मर जाएगा।


मन राजा नायक भया, टाँडा लादा जाय।
है है है है है रही, पूँजी गयी बिलाय।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


 मन राजा नायक भया टाँडा लादा जाय दोहे का अर्थ(Man Raaja Naayak Bhaya Tanda Lada Jaay Dohe Ka Arth in Hindi):-

मन-राजा बड़ा भारी व्यापारी बना और विषयों का टांडा बहुत सौदा जाकर लाद लिया। भोगों-एश्वर्यों में लाभ है-लोग कह रहे हैं, परन्तु इसमें पड़कर मानवता की पूँजी भी विनष्ट हो जाती है।


बनिजारे के बैल ज्यों, भरमि फिर्यो चहुँदेश।
खाँड़ लादी भुस खात है, बिन सतगुरु उपदेश।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


बनिजारे के बैल ज्यों भरमि फिर्यो चहुँदेश दोहे का अर्थ(Banijaare Ke Bail jyon Bharami Phiryo Chahudesh Dohe Ka Arth in Hindi):-

सौदागरों के बैल जैसे पीठ पर शक्कर लाद कर भी भूसा खाते हुए चारों और फेरि करते है। इस प्रकार इस प्रकार यथार्थ सद्गुरु के उपदेश बिना ज्ञान कहते हुए भी विषय – प्रपंचो में उलझे हुए मनुष्य नष्ट होते है।


जीवत कोय समुझै नहीं, मुवा न कह संदेश।
तन – मन से परिचय नहीं, ताको क्या उपदेश।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ke dohe with meaning in hindi

जीवत कोय समुझै नहीं मुवा न कह संदेश दोहे का अर्थ(Jeevat Koy Samujhai Nahi Muaa na Kah Sandesh Dohe Ka Arth in Hindi):-

शरीर रहते हुए तो कोई यथार्थ ज्ञान की बात समझता नहीं, और मार जाने पर इन्हे कौन उपदेश करने जायगा। जिसे अपने तन मन की की ही सुधि – बूधी नहीं हैं, उसको क्या उपदेश किया?

जिही जिवरी से जाग बँधा, तु जनी बँधे कबीर।
जासी आटा लौन ज्यों, सों समान शरीर।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


जिही जिवरी से जाग बँधा तु जनी बँधे कबीर दोहे का अर्थ(Jihi Jivari Se Jaag Bandha Tu Jani Bandhe Kabir Dohe Ka Arth in Hindi):-

जिस भ्रम तथा मोह की रस्सी से जगत के जीव बंधे है। हे कल्याण इच्छुक ! तू उसमें मत बंध। नमक के बिना जैसे आटा फीका हो जाता है। वैसे सोने के समान तुम्हारा उत्तम नर – शरीर भजन बिना व्यर्थ जा रहा हैं।


बुरा जो देखन मैं देखन चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ke dohe hindi mein

बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय दोहे का अर्थ(Buraa Jo Dekhan Mai Chalaa Buraa Na Miliya Koi Dohe Ka Arth in Hindi):-

जब मैं इस दुनिया में बुराई खोजने निकला तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला। पर फिर जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि दुनिया में मुझसे बुरा और कोई नहीं हैं।


साधू ऐसा चाहिये, जैसा सूप सुभाय,
सार – सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir dohe with meaning in hindi

साधू ऐसा चाहिये जैसा सूप सुभाय दोहे का अर्थ(Sadhu Aesh Chahiye Jaisgha Soop Subhay Dohe Ka Arth in Hindi):-

जैसे अनाज साफ करने वाला सूप होता हैं वैसे इस दुनिया में सज्जनों की जरुरत हैं जो सार्थक चीजों को बचा ले और निरर्थक को चीजों को निकाल दे।



तिनका कबहूँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहूँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


तिनका कबहूँ ना निन्दिये जो पाँवन तर होय, दोहे का अर्थ(Tinaka Kabahu Na Nindaye Jo Pawan tar Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-

अपने इस दोहे में संत कबीरदासजी कहते हैं की एक छोटे तिनके को छोटा समझ के उसकी निंदा न करो जैसे वो पैरों के नीचे आकर बुझ जाता हैं वैसे ही वो उड़कर आँख में चला जाये तो बहोत बड़ा घाव देता हैं।


धीरे – धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

sant kabir das ji ke dohe

धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय दोहे का अर्थ(Dhire Dhire Re Mana Dhire Sab Kuchh Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-

जैसे कोई आम के पेड़ को रोज बहोत सारा पानी डाले और उसके नीचे आम आने की रह में बैठा रहे तो भी आम ऋतु में ही आयेंगे, वैसेही धीरज रखने से सब काम हो जाते हैं।

माला फेरत जग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


माला फेरत जग भया फिरा न मन का फेर दोहे का अर्थ(Mala Pherat jag Bhaya Phira Na Man Ka Pher Dohe Ka Arth in Hindi):-

जब कोई व्यक्ति काफ़ी समय तक हाथ में मोती की माला लेकर घुमाता हैं लेकिन उसका भाव नहीं बदलता। संत कबीरदास ऐसे इन्सान को एक सलाह देते हैं की हाथ में मोतियों की माला को फेरना छोड़कर मन के मोती को बदलो।


दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

sant kabir ke dohe in hindi

दोस पराए देखि करि चला हसन्त हसन्त दोहे का अर्थ(Dos Paraye Dekhi Kari Chalaa Hasant Hasant Dohe Ka Arth in Hindi):-


संत कबीरदासजी अपने दोहे में कहते हैं की मनुष्य का यह स्वभाव होता है की वो दुसरे के दोष देखकर और ख़ुश होकर हंसता है। तब उसे अपने अंदर के दोष दिखाई नहीं देते। जिनकी न ही शुरुवात हैं न ही अंत।


संत ना छाडै संतई, कोटिक मिले असंत ।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटत रहत भुजंग ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


संत ना छाडै संतई जो कोटिक मिले असंत दोहे का अर्थ(Sant Na Chhaadai Santai Jo Kotik Mile Asant Dohe Ka Arth in Hindi):-

सच्चा इंसान वही है जो अपनी सज्जनता कभी नहीं छोड़ता, चाहे कितने ही बुरे लोग उसे क्यों न मिलें, बिलकुल वैसे ही जैसे हज़ारों ज़हरीले सांप चन्दन के पेड़ से लिपटे रहने के बावजूद चन्दन कभी भी विषैला नहीं होता ।


साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय ।
सार–सार को गहि रहै थोथा देई उड़ाय ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir dohe with meaning in hindi

साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय दोहे का अर्थ(Sadhu Aisha Chahiye Jaisha Sup Subhay Dohe Ka Arth in Hindi):-


एक अच्छे इंसान को सूप जैसा होना चाहिए जो कि अनाज को तो रख ले पर उसके छिलके व दूसरी गैर-ज़रूरी चीज़ों को बाहर कर दे ।


तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय ।
सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


तन को जोगी सब करे मन को विरला कोय दोहे का अर्थ(Tan Ko Jogi Sab Kare Man Ko Viralaa Koy Dohe Ka Arth in Hindi):-

हम सभी हर रोज़ अपने शरीर को साफ़ करते हैं लेकिन मन को बहुत कम लोग साफ़ करते हैं । जो इंसान अपने मन को साफ़ करता है, वही हर मायने में सच्चा इंसान बन पाता है 


नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए ।
मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

sant kabir ke dohe in hindi

नहाये धोये क्या हुआ जो मन मैल न जाए दोहे का अर्थ (Nahaaye Dhoye Kyaa Huaa Jo Man Mail Na Jaaye Dohe Ka Arth in Hindi):-

अगर मन का मैल ही नहीं गया तो ऐसे नहाने से क्या फ़ायदा? मछली हमेशा पानी में ही रहती है, पर फिर भी उसे कितना भी धोइए, उसकी बदबू नहीं जाती ।


ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग ।
प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

dohe kabir

ते दिन गए अकारथ ही संगत भई न संग दोहे का अर्थ(Te Din Gaye Akarath Hi Sangat Bhai na Sang Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि जिसने कभी अच्छे लोगों की संगति नहीं की और न ही कोई अच्छा काम किया, उसका तो ज़िन्दगी का सारा गुजारा हुआ समय ही बेकार हो गया । जिसके मन में दूसरों के लिए प्रेम नहीं है, वह इंसान पशु के समान है और जिसके मन में सच्ची भक्ति नहीं है उसके ह्रदय में कभी अच्छाई या ईश्वर का वास नहीं होता ।



कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर ।
जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


कबीरा सोई पीर है जो जाने पर पीर दोहे का अर्थ (Kabiraa Soi Peer Hai Jo Jane Par Peer Dohe Ka Arth in Hindi):-

जो इंसान दूसरों की पीड़ा को समझता है वही सच्चा इंसान है । जो दूसरों के कष्ट को ही नहीं समझ पाता, ऐसा इंसान भला किस काम का!

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगो कब।

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ke dohe in hindi with meaning

काल करे सो आज कर दोहे का अर्थ(Kaal Kaare So Aaj Kar Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते हैं कि जो कल करना है उसे आज करो और जो आज करना है उसे अभी करो। जीवन बहुत छोटा होता है अगर पल भर में समाप्त हो गया तो क्या करोगे।

साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ji dohe

साईं इतना दीजिये जा मे कुटुम समाय दोहे का अर्थ(Sai Itana Dijiye Jame Kutumb Samay Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते कि हे परमात्मा तुम मुझे केवल इतना दो कि जिसमें मेरे गुजरा चल जाये। मैं भी भूखा न रहूँ और अतिथि भी भूखे वापस न जाए।


रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok



रात गंवाई सोय के दिवस गंवाया खाय दोहे का अर्थ(Raat Ganvayi Soy Ke Divas Ganvaya Khay Dohe Ka Arth in Hindi):-

रात नींद में नष्ट कर दी – सोते रहे – दिन में भोजन से फुर्सत नहीं मिली यह मनुष्य जन्म हीरे के सामान बहुमूल्य था जिसे तुमने व्यर्थ कर दिया – कुछ सार्थक किया नहीं तो जीवन का क्या मूल्य बचा? एक कौड़ी


आछे / पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत ।
अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

dohe of kabir das in hindi

आछे पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत दोहे का अर्थ(Aachhe Pachhe Din Paache Gaye Hari Se Kiya Na Het Dohe Ka Arth in HIndi):-

देखते ही देखते सब भले दिन – अच्छा समय बीतता चला गया – तुमने प्रभु से लौ नहीं लगाई – प्यार नहीं किया समय बीत जाने पर पछताने से क्या मिलेगा? पहले जागरूक न थे – ठीक उसी तरह जैसे कोई किसान अपने खेत की रखवाली ही न करें और देखते ही देखते पंछी उसकी फसल बर्बाद कर जाएं

कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी ।
एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


कबीर सुता क्या करे जागी न जपे मुरारी दोहे का अर्थ(Kabir Sutaa Kya Kare Jaagi Na Jape Murari Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं – अज्ञान की नींद में सोए क्यों रहते हो? ज्ञान की जागृति को हासिल कर प्रभु का नाम लो।सजग होकर प्रभु का ध्यान करो।वह दिन दूर नहीं जब तुम्हें गहन निद्रा में सो ही जाना है – जब तक जाग सकते हो जागते क्यों नहीं? प्रभु का नाम स्मरण क्यों नहीं करते ?

जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही ।
सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


जब मैं था तब हरी नहीं अब हरी है मैं नाही सब अँधियारा मिट गया दोहे का अर्थ(Jab Mai Tab Hari Nahi Ab Hari Hai Mai Nahi Sab Dohe Ka Arth in Hindi):-

जब मैं अपने अहंकार में डूबा था – तब प्रभु को न देख पाता था – लेकिन जब गुरु ने ज्ञान का दीपक मेरे भीतर प्रकाशित किया तब अज्ञान का सब अन्धकार मिट गया – ज्ञान की ज्योति से अहंकार जाता रहा और ज्ञान के आलोक में प्रभु को पाया।

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

dohas of kabir das

जग में बैरी कोई नहीं जो मन शीतल होय दोहे का अर्थ(Jag Me Bairi Koi Nahi Jo Man Sheetal Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते है अगर हमारा मन शीतल है तो इस संसार में हमारा कोई बैरी नहीं हो सकता। अगर अहंकार छोड़ दें तो हर कोई हम पर दया करने को तैयार हो जाता है।


दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय
जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय दोहे का अर्थ(Dukh Me Sumiran Sab Kare Sukh Me Kare na koy Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते कि सुख में भगवान को कोई याद नहीं करता लेकिन दुःख में सभी भगवान से प्रार्थना करते है। अगर सुख में भगवान को याद किया जाये तो दुःख क्यों होगा।


मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई।
पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ke dohe

मन हीं मनोरथ छांड़ी दे तेरा किया न होई दोहे का अर्थ(Man Hi Manorath Chhandi De Tera Kiya Na Hoi Dohe Ka Arth in Hindi):-

मनुष्य मात्र को समझाते हुए कबीर कहते हैं कि मन की इच्छाएं छोड़ दो, उन्हें तुम अपने बूते पर पूर्ण नहीं कर सकते। यदि पानी से घी निकल आए, तो रूखी रोटी कोई न खाएगा।


माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर।
आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ke dohe

माया मुई न मन मुआ मरी मरी गया सरीर दोहे का अर्थ(Maaya Mari Na Man Muaa Mari Mari Gaya Sharir Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं कि संसार में रहते हुए न माया मरती है न मन। शरीर न जाने कितनी बार मर चुका पर मनुष्य की आशा और तृष्णा कभी नहीं मरती, कबीर ऐसा कई बार कह चुके हैं।


साधू भूखा भाव का, धन का भूखा नाहिं
धन का भूखा जी फिरै, सो तो साधू नाहिं।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


साधू भूखा भाव का धन का भूखा नाहिं दोहे का अर्थ(Sadhu Bhukha Bhav Ka Dhan Ka bhukha Nahi Dohe Ka Arth Hindi Me):-

कबीर दास जी कहते कि साधू हमेशा करुणा और प्रेम का भूखा होता और कभी भी धन का भूखा नहीं होता। और जो धन का भूखा होता है वह साधू नहीं हो सकता।

कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय।
सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ke dohe in hindi

कबीर सो धन संचे जो आगे को होय दोहे का अर्थ(Kabir So Dhan Sanche Jo aage Ko Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में काम आए। सर पर धन की गठरी बाँध कर ले जाते तो किसी को नहीं देखा।

तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई।
सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ji ke dohe

तन को जोगी सब करें मन को बिरला कोई दोहे का अर्थ(Tan Ko Jogi Sab Kare Man Ko Biralaa Koi Dohe Ka Arth in Hindi):-

शरीर में भगवे वस्त्र धारण करना सरल है, पर मन को योगी बनाना बिरले ही व्यक्तियों का काम है य़दि मन योगी हो जाए तो सारी सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं।

कुटिल वचन सबतें बुरा, जारि करै सब छार
साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ji ke dohe

कुटिल वचन सबतें बुरा जारि करै सब छार दोहे का अर्थ(Kutil Vachan Sabate Bura Jaari Karai Sab Chhar Dohe Ka Arth Hindi Me):-

बुरे वचन विष के समान होते है और अच्छे वचन अमृत के समान लगते है।

जैसा भोजन खाइये , तैसा ही मन होय
जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das dohe

जैसा भोजन खाइये तैसा ही मन होय दोहे का अर्थ(Jaishaa Bhojan Khaayiye taisa Hi Man Hoy Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर दास जी कहते है कि हम जैसा भोजन करते है वैसा ही हमारा मन हो जाता है और हम जैसा पानी पीते है वैसी ही हमारी वाणी हो जाती है।

कबीर तन पंछी भया, जहां मन तहां उडी जाइ।
जो जैसी संगती कर, सो तैसा ही फल पाइ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir das ke dohe in hindi

कबीर तन पंछी भया जहां मन तहां उडी जाइ दोहे का अर्थ(Kabir Tan Panchhi Bhaya Janha Man Tanha Udi Jaai Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं कि संसारी व्यक्ति का शरीर पक्षी बन गया है और जहां उसका मन होता है, शरीर उड़कर वहीं पहुँच जाता है। सच है कि जो जैसा साथ करता है, वह वैसा ही फल पाता है।

साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय दोहे का अर्थ(Saadhu Aisha Chahiye Jaishaa Sup Subhay Dohe Ka Arth in Hindi):-

इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है। जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे।

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ke dohe with meaning

माला फेरत जुग भया फिरा न मन का फेर दोहे का अर्थ(Mala Pherat Jug Bhaya Phira Na Man Ka Pher Dohe Ka Arth in Hindi):-

कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है, पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती। कबीर की ऐसे व्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलो या  फेरो।

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ke dohe hindi

जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ दोहे का अर्थ(Jin Khojaa Tin Paiyaa Gahare Paani Paith Dohe Ka Arth in Hindi):-

जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते  हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है। लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते।


बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


बोली एक अनमोल है जो कोई बोलै जानि दोहे का अर्थ(Boli Ek Anamol Hai Jo Koi Bole Jani Dohe Ka Arth in Hindi):-

यदि कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो उसे पता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है। इसलिए वह ह्रदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है।


अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir dohe hindi

अति का भला न बोलना अति की भली न चूप दोहे का अर्थ(Ati Ka Bhala Na Bolana Ati Ki Bhali Na Chup Dohe Ka Arth in Hindi):-

न तो अधिक बोलना अच्छा है, न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है। जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है।


निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


निंदक नियरे राखिए ऑंगन कुटी छवाय दोहे का अर्थ(Nindak Niyare Raakhiye Aangan Kuti Chhavay Dohe Ka Arth in Hindi):-

जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए। वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ़ करता है।


दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

sant kabir das ke dohe

दुर्लभ मानुष जन्म है देह न बारम्बार दोहे का अर्थ(Durlabh Maanush Janm Hai Deh Na Barambaar Dohe Ka Arth in Hindi):-

इस संसार में मनुष्य का जन्म मुश्किल से मिलता है। यह मानव शरीर उसी तरह बार-बार नहीं मिलता जैसे वृक्ष से पत्ता  झड़ जाए तो दोबारा डाल पर नहीं लगता।


कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ji ke dohe in hindi

कबीरा खड़ा बाज़ार में मांगे सबकी खैर दोहे का अर्थ(Kabira Khada Bazar Me Mange Sab Ki Khair Dohe Ka Arth Hindi Me):-

इस संसार में आकर कबीर अपने जीवन में बस यही चाहते हैं कि सबका भला हो और संसार में यदि किसी से दोस्ती नहीं तो दुश्मनी भी न हो !


हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी  मुए, मरम न कोउ जाना।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


हिन्दू कहें मोहि राम पियारा तुर्क कहें रहमाना दोहे का अर्थ(Hindu Kahe Mohi Ram Piyaaraa Turk Kahe Rahamanaa Dohe Ka Arth Hindi Me):-

कबीर कहते हैं कि हिन्दू राम के भक्त हैं और तुर्क (मुस्लिम) को रहमान प्यारा है। इसी बात पर दोनों लड़-लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे, तब भी दोनों में से कोई सच को न जान पाया।


माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख
माँगन ते मारना भला, यह सतगुरु की सीख।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ke dohe ka arth

माँगन मरण समान है मति माँगो कोई भीख(Maangan Maran Saman Hai Mati Mango Koi Bheekh Dohe Ka Arth Hindi Me):-

कबीर दास जी कहते कि माँगना मरने के समान है इसलिए कभी भी किसी से कुछ मत मांगो।


कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई।
बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई।

 


सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


कबीर लहरि समंद की मोती बिखरे आई दोहे का अर्थ(Kabir Lahari Samundra Ki Moti Bhikhare Aai Dohe Ka Arth Hindi Me):-

कबीर कहते हैं कि समुद्र की लहर में मोती आकर बिखर गए। बगुला उनका भेद नहीं जानता, परन्तु हंस उन्हें चुन-चुन कर खा रहा है। इसका अर्थ यह है कि किसी भी वस्तु का महत्व जानकार ही जानता है।


जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई।
जब गुण को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

sant kabir dohe in hindi

जब गुण को गाहक मिले तब गुण लाख बिकाई दोहे का अर्थ(Jab Gun Ko Gahak Mile Tab Gun Lakh Bikaai Dohe Ka Arth Hindi Me):-

कबीर कहते हैं कि जब गुण को परखने वाला गाहक मिल जाता है तो गुण की कीमत होती है। पर जब ऐसा गाहक नहीं मिलता, तब गुण कौड़ी के भाव चला जाता है।


कबीर कहा गरबियो, काल गहे कर केस।
ना जाने कहाँ मारिसी, कै घर कै परदेस।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


कबीर कहा गरबियो काल गहे कर केस दोहे का अर्थ(Kabir Kaha Garabiyo Kaal Gahe Kar Kes Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर कहते हैं कि हे मानव ! तू क्या गर्व करता है? काल अपने हाथों में तेरे केश पकड़े हुए है। मालूम नहीं, वह घर या परदेश में, कहाँ पर तुझे मार डाले।


पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात।
एक दिना छिप जाएगा,ज्यों तारा परभात।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabirdas ke dohe

पानी केरा बुदबुदा अस मानुस की जात दोहे का अर्थ(Pani tera Budbuda As Manas Ki Jaat Dohe Ka Arth in Hindi):-

कबीर का कथन है कि जैसे पानी के बुलबुले, इसी प्रकार मनुष्य का शरीर क्षण भंगुर है जैसे प्रभात होते ही तारे छिप जाते हैं, वैसे ही ये देह भी एक दिन नष्ट हो जाएगी।

हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास।
सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी केस जलै ज्यूं घास दोहे का अर्थ(Haad Jalai Jyu Lakadi KEs Jalai jyu Ghas Dohe Ka Arth Hindi Me):-

यह नश्वर मानव देह अंत समय में लकड़ी की तरह जलती है और केश घास की तरह जल उठते हैं। सम्पूर्ण शरीर को इस तरह जलता देख, इस अंत पर कबीर का मन उदासी से भर जाता है।

जो उग्या सो अन्तबै, फूल्या सो कुमलाहीं।
जो चिनिया सो ढही पड़े, जो आया सो जाहीं।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir dohe

जो उग्या सो अन्तबै फूल्या सो कुमलाहीं दोहे का अर्थ(Jo Ugya So Antabai Phulya So Kumlaahi Dohe Ka Arth Hindi Me):-

इस संसार का नियम यही है कि जो उदय हुआ है,वह अस्त होगा। जो विकसित हुआ है वह मुरझा जाएगा। जो चिना गया है वह गिर पड़ेगा और जो आया है वह जाएगा।


झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद।
खलक चबैना काल का, कुछ मुंह में कुछ गोद।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok


झूठे सुख को सुख कहे मानत है मन मोद दोहे का अर्थ(Jhoothe Sukh Ko Sukh Jahe Maanat Hai Man Mod Dohe Ka Arth Hindi Me):-

कबीर कहते हैं कि अरे जीव! तू झूठे सुख को सुख कहता है और मन में प्रसन्न होता है? देख यह सारा संसार मृत्यु के लिए उस भोजन के समान है, जो कुछ तो उसके मुंह में है और कुछ गोद में खाने के लिए रखा है।


ऐसा कोई ना मिले, हमको दे उपदेस।
भौ सागर में डूबता, कर गहि काढै केस।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ke dohe

ऐसा कोई ना मिले हमको दे उपदेस दोहे का अर्थ(Aesha Koi Na Mile Hamako De Upadesh Dohe Ka Arth Hindi Me):-

कबीर संसारी जनों के लिए दुखित होते हुए कहते हैं कि इन्हें कोई ऐसा पथप्रदर्शक न मिला जो उपदेश देता और संसार सागर में डूबते हुए इन प्राणियों को अपने हाथों से केश पकड़ कर निकाल लेता।


संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत
चन्दन भुवंगा बैठिया,  तऊ सीतलता न तजंत।

 

सम्पूर्ण कबीर साहेब के दोहे और उनके अर्थ(Kabir Das Ke Dohe Hindi Me) - Bhaktilok

kabir ke dohe in hindi

संत ना छाडै संतई जो कोटिक मिले असंत दोहे का अर्थ(Sant Na Chhaadai Santai Jo Kotik Mile Asant Dohe Ka Arth Hindi Me):-

सज्जन को चाहे करोड़ों दुष्ट पुरुष मिलें फिर भी वह अपने भले स्वभाव को नहीं छोड़ता। चन्दन के पेड़ से सांप लिपटे रहते हैं, पर वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता


kabir das ke dohe

Post a Comment

0Comments

If you liked this post please do not forget to leave a comment. Thanks

Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !