जयंती जीण बाई की जय लिरिक्स (Jayanti jeen bayi ki jai Lyrics in Hindi) - Rani Sati Dadi Bhajan - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind

 

जयंती जीण बाई की जय लिरिक्स (Jayanti jeen bayi ki jai Lyrics in Hindi) - Rani Sati Dadi Bhajan - Bhaktilok

जयंती जीण बाई की जय लिरिक्स (Jayanti jeen bayi ki jai Lyrics in Hindi) - 


विघ्न हरण मंगल करन

गौरी सुत गणराज

कंठ विराजो शारदा

आन बचाओ लाज

मात पिता गुरुदेव के

धरु चरण में ध्यान

कुलदेवी माँ जीण भवानी

लाखो लाख प्रणाम

जयंती जीण बाई की जय

हरष भैरू भाई की जय

जीण जीण भज बारम्बारा

हर संकट का हो निस्तारा

नाम जपे माँ खुश हो जावे

संकट हर लेती हैं सारा

जय अम्बे जय जगदम्बे

जय अम्बे जय जगदम्बे....


आदिशक्ति माँ जीण भवानी

महिमा माँ की किसने जानी

मंगलपाठ करूँ मई तेरा

करो कृपा माँ जीण भवानी

साँझ सवेरे तुझे मनाऊं

चरणो में मैं शीश नवाऊँ

तेरी कृपा से भंवरावाली

मैं अपना संसार चलाऊँ


हर्षनाथ की बहना प्यारी

जीवण बाई नाम तुम्हारा

गोरिया गाँव से दक्षिण में है

सुन्दर प्यारा धाम तुम्हारा

पूर्व मुख मंदिर है प्यारा

भँवरवाली मात तुम्हारा

तीन ओर से पर्वत माला

साँचा है दरबार तुम्हारा


अष्ट भुजाएं मात तुम्हारी

मुख मंडल पर तेज निराला

अखंड ज्योति बरसो से जलती

जीण भवानी है प्रतिपाला

एक घ्रीत और दो है तेल के

तीन दीप हर पल हैं जलते

मुग़ल काल के पहले से ही

ज्योति अखंड हैं तीनो जलते


अष्टम सदी में मात तुम्हारे

मंदिर का निर्माण हुआ है

भगतों की श्रद्धा और निष्ठा

का जीवंत प्रमाण हुआ है

देवालय की छते दीवारे

कारीगरी का है इक दर्पण

तंत्र तपस्वी वाम मारगी

के चित्रो का अनुपम चित्रण


शीतल जल के अमृत से दो

कल कल करते झरने बहते

एक कुण्ड है इसी भूमि पर

जोगी ताल जिसे सब कहते

देश निकला मिला जो उनको

पाण्डु पुत्र यहाँ पर आये

इसी धरा पर कुछ दिन रहकर

वो अपना बनवास बिताये


बड़े बड़े बलशाली भी माँ

आकर दर पे शीश झुकाये

गर्व करे जो तेरे आगे पल भर में

वो मुँह की खाए

मुगलों ने जब करी चढ़ाई

लाखो लाखो भँवरे छोड़े

छिन्न विछिन्न किये सेना को

मुगलों के अभिमान को तोड़े


नंगे पैर तेरे दर पे

चल के औरंगजेब था आया

अखन ज्योत की रीत चलायी

चरणों में माँ शीश नवाया

सूर्या उपासक जयदेव जी

राज नवलगढ़ में करते थे

भंवरा वाली माँ की पूजा

रोज नियम से वो करते थे


अपनी दोनों रानी के संग

देश निकाला मिला था उनको

पहुँच गए कन्नौज नगर में

जयचंद ने वहां शरण दी उनको

कुरुक्षेत्र के युद्ध से पहले

काली ने हुंकार भरी थी

भंवरावाली बन कंकाली

दान लेने को निकल पड़ी थी


सारी प्रजा के हित के खातिर

जगदेव ने शीश दिया था

शीश उतार के कंकाली के

श्री चरणों में चढ़ा दिया था

भंवरा वाली की किरपा से

जीवण उसने सफल बनाया

माता के चरणों में विराजे

शीश का दानी वो कहलाया


सुन्दर नगरी जीण तुम्हारी

सुन्दर तेरा भवन निराला

यहाँ बने विश्राम गृहो में

कुण्डी लगे लगे न ताला


करुणामयी माँ जीण भवानी

जो भी तेरे धाम ना आया

चाहे देखा हो जग सारा

जीवण उसने व्यर्थ गंवाया

आदि काल से ही भगतों ने

वैष्णो रूप में माँ को ध्याया

वैष्णो देवी जीण भवानी

की है सारे जग में माया


दुर्गा रूप में देवी माँ ने

महिषासुर का वध किया था

काली रूप में सब देवो ने

जीण का फिर आह्वान किया था

सभी देवताओं ने मिलकर

काली रूप में माँ को ध्याया

अपने हांथो से सुर गणों ने

माँ को मदिरा पान कराया


वर्त्तमान में वैष्णो रूप में

माँ को ध्याये ये जग सारा

जीण जीण भज बारम्बारा

हर संकट का हो निस्तारा


सिद्ध पीठ काजल सिखर

बना जीण का धाम

नित की परचा देत है

पूरन करती काम

जयंती जीण बाई की जय

हरष भैरू भाई की जय


मंगल भवन अमंगल हारी

जीण नाम होता हितकारी

कौन सो संकट है जग माहि

जो मेरी मैया मेट ना पाई

जय अम्बे जय जगदम्बे

जय अम्बे जय जगदम्बे.....


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