सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - पंचम स्कन्ध - भाग 2 (Full Bhagwat Katha Pancham Skandh in Hindi) | Bhagwat Katha
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( अथ द्वादशो अध्यायः )- (Full Bhagwat Katha in Hindi) -
रहूगण का प्रश्न और भरत जी का समाधान-
राजा रहूगण बोले प्रभु आप साक्षात परमात्मा रुप हैं |आपने जो उपदेश मुझे किया उसे और ठीक से समझाएं , भरत जी बोले राजन तुम जो यह समझते हो कि मैं पृथ्वी का स्वामी हूं तो ना जाने कितनी राजा इस धरती पर आए और चले गए किंतु यह धरती किसी की भी नहीं हुई , संसार में जीव आता है और प्रभु को भूल मैं मेरेपन के चक्कर में पड़ जाता है , अतः एकमात्र परमात्मा ही सत्य है |
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( अथ त्रयोदशो अध्यायः )- (Full Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ त्रयोदशो अध्यायः ) भवाटवी का वर्णन और रहूगण का संशय नाश-
भरत जी बोले हे राजा संसार के समस्त जीव एक व्यापारियों का मंडल जैसा है, यह व्यापारी व्यापार के लिए घूमते घूमते संसार रूपी जंगल में आ गए, उस जंगल में छह डाकू हैं, इन व्यापारियों को लूट लेते हैं, इस जंगल में रहने वाले हिंसक पशु भी उन्हें नोचते हैं, इस जंगल मे बड़े झाड़ झंकाड है जिसमें यह भटकते रहते हैं, कभी प्यास से व्याकुल हो जाते हैं | आपस में द्वेष भी करते हैं , विवाह संबंध भी करते हैं, वे इस जगंल में ना जाने कबसे घूम रहे हैं पर अपने लक्ष्य पर अब तक नहीं पहुंचे | राजा बोले अहो यह मनुष्य जन्म ही सर्वश्रेष्ठ है, जहां आप जैसे योगी पुरुषों का संग तो कल्याणकारी है |
इति त्रयोदशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( अथ चतुर्दशो अध्यायः )- (Full Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ चतुर्दशो अध्यायः ) भवाटवी का स्पष्टीकरण-
श्री शुकदेव जी कहते हैं कि यह संसार ही जंगल है, मन सहित छः इंद्रियां ही छः डाकू हैं, सगे संबंधी ही सब जंगली जीव हैं, स्त्री पुत्र आदि का मोह ही झाड़ झंकाड है | इस प्रकार संसार को ही जंगल कहा गया है |
इति चतुर्दशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( अथ पंचदशो अध्यायः )- (Full Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ पंचदशो अध्यायः )
भरत के वंश का वर्णन- भरत जी का पुत्र सुमति था, उसने ऋषभदेव जी के मार्ग का अनुसरण किया इसलिए कलयुग में बहुत से पाखंडी अनार्य वेद विरुद्ध कल्पना करके उसे देवता मानेंगे इनके वंश में एक गय नाम के प्रतापी राजा हुए, उन्होंने कई यज्ञ किए थे |
इति पंचदशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( अथ षोडशो अध्यायः )- (Full Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ षोडशो अध्यायः ) भुवन कोश का वर्णन (Bhuvan kosh Ka Varnan in Hindi)-
श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित, जहां तक सूर्य का प्रकाश जहां तक तारागण दिखते हैं वहां तक भूमंडल का विस्तार है , हम जहां निवास करते हैं उसे जंबूद्वीप कहते हैं | भागवत जी में जो नाम दिए हैं, वर्तमान में जो नाम उनसे भिन्न हैं, अतः समझने में कठिनाई है , एशिया महाद्वीप जंबूद्वीप है, इसी तरह छः अन्य द्वीपों के नाम आजकल जो प्रचलन में है वे यूरोप, दक्षिणी अमेरिका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, उत्तरी अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया है इन महाद्वीपों के भीतर जो देश स्थित हैं, उन्हें ही वर्ष कहा गया है | भारतवर्ष का नाम यथावत है अन्य किं पुरुष ही चीन है हरि वंश तिब्बत आदि देशों का वर्णन है |
इति षोडशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( अथ सप्तदशो अध्यायः )- (Full Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ सप्तदशो अध्यायः ) गंगा जी का वर्णन शंकर कृत संकर्षण देव की स्तुति (Ganga Ji Ka Varnan Shankar Krit Dev Ki Stuti in Hindi)-
श्री शुकदेव जी बोले परीक्षित, जब वामन अवतार के समय भगवान ने तीन पैर में पृथ्वी नापने के लिए अपना पैर बढ़ाया तो उनके पैर के अंगूठे से ब्रह्मांड का ऊपरी भाग फट गया तो उस छिद्र से जो जल आया ब्रह्मा जी ने उस जल से भगवान के चरण को धोया, वही चरण धोबन भगवान विष्णुपदी गंगा है | राजा भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो ब्रह्मा जी ने धरती पर भेजा जो तीन धारा में विभक्त हो गई भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी तीनों मिलकर भारत को सींचती हुयी समुद्र में जा गिरी |
इति सप्तदशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( अथ अष्टादशो अध्यायः )- (Full Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ अष्टादशो अध्यायः ) भिन्न-भिन्न वर्षों का वर्णन (Bhinn Bhinn Varsho Ka Varnan in Hindi)-
जैसे जंबूद्वीप में नववर्ष हैं उसी तरह अन्य द्वीपों में भी अनेक वर्ष हैं, सभी वर्षों में भगवान के अनेक स्वरूपों की अलग-अलग पूजा होती है |
इति अष्टादशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( अथ एकोनविंशो अध्यायः )- (Full Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ एकोनविंशो अध्यायः ) किंपुरुष और भारतवर्ष का वर्णन (KiPurush Aur Bharatvarsh Ka Varnan)-
किं पुरुष वर्ष में लक्ष्मण जी के बड़े भाई आदि पुरुष सीता हृदयाभि राम भगवान श्री राम के चरणों की सन्निधि के रसिक परम भागवत श्री हनुमान जी अन्न किन्नरों के सहित अविचल भक्ति भाव से उनकी उपासना करते हैं | भारतवर्ष में भी भगवान दयावश नर नारायण का रूप धारण करके, संयम शील पुरुषों पर अनुग्रह करने के लिए अव्यक्त रूप से कल्प के अंत तक तप करते रहते हैं, वहां नारद जी सावर्णि मनु को पांच रात्रगम का उपदेश कराने के लिए भारत की प्रजा के साथ भगवान नर नारायण की उपासना करते हैं |
इति एकोनविंशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( अथ विंशो अध्यायः )- (Full Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ विंशो अध्यायः ) अन्य छः द्वीप तथा लोकालोक पर्वत का वर्णन (Six Dvip tatha lokalok Parvat Ka Varnan in Hindi)-
जैसे जंबूद्वीप एशिया महाद्वीप है ऐसे ही अन्य
छः दीपों के नाम भी आज के नामों से भागवत में भिन्न हैं, उनको समझने के लिए प्रचलित नाम ही उपयुक्त रहेंगे यह नाम हैं- यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी अमेरिका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, उत्तरी अफ़्रीका इस तरह समस्त पृथ्वी सातद्वीपों में विभक्त है |
इति विंशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( अथ विंशो अध्यायः )- (Full Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ एकविंशो अध्यायः ) सूर्य के रथ और उसकी गति का वर्णन(Surya Ke Rath Aur Usaki Gati Ka Varnan in Hindi) -
श्री शुकदेव जी कहते हैं कि भूलोक के समान ही द्युः लोक हैं दोनों के बीच में अंतरिक्ष लोक है | अंतरिक्ष लोक में भगवान सूर्य तीनों लोकों को प्रकाशित करते रहते हैं | ये उत्तरायण व दक्षिणायन गतियों से चलते हुए दिन रात को छोटा बड़ा करते हैं | जब सूर्य मेष या तुला राशियों पर होते हैं दिन रात बराबर होते हैं , वृष आदि पांच राशियों पर दिन एक एक घड़ी बढ़ता रहता है और रात्रि छोटी होती रहती है, वृश्चिक आदि पांच राशियों पर रात्रि बढ़ती रहती है और दिन छोटे होते रहते हैं |
इति एकविंशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( अथ द्वाविशों अध्यायः )- (Full Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ द्वाविशों अध्यायः ) भिंन्न भिंन्न ग्रहों की स्थिति और गति का वर्णन-
समस्त आकाश को बारह भागों में बांट कर उन्हें राशि नाम दिया गया है, तथा सत्ताइस उप भागों में बांट कर उसे नक्षत्र नाम दिया गया है, पृथ्वी के सबसे नजदीक चंद्रमा है यह एक नक्षत्र को एक दिन में तथा एक राशि को सवा दो दिनों में बारह राशियों को एक माह में पार कर लेता है, इससे आगे मंगल यह एक राशि पर डेढ़ माह रहता है, गुरु एक राशि को तेरह माह में पार करता है, शुक्र बुध और सूर्य लगभग थोड़ा आगे पीछे साथ ही रहते हैं एक माह में एक राशि पार करते हैं और बारह राशियों को एक वर्ष में पूरा करते हैं | सबसे मंद गति शनि की है यह ढाई वर्ष में एक राशि पार करता है |
इति द्वाविंशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( अथ द्वाविशों अध्यायः )- (Full Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ त्रयोविंशो अध्यायः ) शिशुमार चक्र का वर्णन (Shishumar Chakr ka Varnan in hindi)-
श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित ! ध्रुव लोक के सप्त ऋषि सहित सभी नवग्रह, नक्षत्र परिक्रमा करते हैं , परिक्रमा मार्ग में जो तारों का समूह है आकाश में स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है इसे आकाशगंगा भी कहते हैं, यही शिशुमार चक्र है |
इति त्रयोविंशो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( अथ चतुर्विंशो अध्यायः )- (Full Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ चतुर्विंशो अध्यायः ) राहु आदि की स्थिति अतलादि नीचे के लोकों का वर्णन (Rahu Aadi Ki Sthiti Atlaadi Niche Ke Loko Ka Varnan in Hindi)-
सूर्यलोक और चंद्रलोक के बीच में राहु का लोक है यह यद्यपि राक्षस है, भगवान की कृपा से इसे देवत्व प्राप्त हुआ है अमृत वितरण के समय सूर्य और चंद्रमा के बीच बैठ गया था उन्होंने इसका भेद खोल दिया तभी से राहु इनसे शत्रुता रखता है इसलिए अमावस्या पूर्णिमा को राहु इन्हें ग्रसता है इसे ग्रहण कहते हैं | पृथ्वी के नीचे अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, महातल और पाताल ये सात लोक हैं |
इति चतुर्विशों अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( अथ पंचविशो अध्यायः )- (Full Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ पंचविशो अध्यायः ) श्री संकर्षणदेव का विवरण और स्तुति (Shri Sankarshan Dev Ka Vivaran Aur Stuti in Hindi)-
श्री शुकदेव जी कहते हैं राजन ! पाताल के नीचे तीस हजार योजन की दूरी पर अनंत नाम से विख्यात भगवान की तामसी नित्य कला है | यह अहंकार रूपा होने से दुष्टा और दृश्य को खेंचकर एक कर देती है , इसलिए पांच रात्र आगम के अनुयाई इसे संकर्षण कहते हैं | इनके हजार मस्तक हैं जिनमें से एक पर रखा हुआ यह भूमंडल सरसों के दाने के बराबर है | प्रलय काल में इनसे असंख्य रूद्र गण उत्पन्न होकर सृष्टि का संहार करते हैं | ऐसे अनंत भगवान को हम प्रणाम करते हैं |
इति पंचविंशों अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( अथ पंचविशो अध्यायः )- (Full Bhagwat Katha in Hindi) -
( अथ षडविंशो अध्यायः ) नरकों की विभिन्न गतियों का वर्णन (Narako ki Vibhinn Gatiyon Ka Varanan in Hindi)-
शुकदेव बोले दक्षिण में नरक लोक में पितृराज सूर्यपुत्र यम राज्य करते हैं उनके समीप ही एक और पितृ लोक दूसरी ओर अनेक प्रकार के नर्क हैं | जिनमें मरने के बाद पापियों को अपने पापों की सजा दी जाती है | ये पापों के अनुसार कई प्रकार के हैं |
इति षडविंशो अध्यायः
इति पंचम स्कन्ध समाप्त
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