सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - पंचम स्कन्ध - भाग १ | Bhagwat Mahapuran Katha in Hindi | Bhagwat Katha - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - पंचम स्कन्ध - भाग १  (Full Bhagwat Katha Pancham Skandh in Hindi) | Panchanm Skandh -  

सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - पंचम स्कन्ध - भाग १  (Full Bhagwat Katha Pancham Skandh in Hindi) | Panchanm Skandh -  Bhaktilok


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सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( पंचम स्कन्ध - प्रथमो अध्यायः )- (Full Bhagwat Katha in Hindi) -  


 ( अथ प्रथमो अध्यायः ) प्रियव्रत चरित्र (PriyVrat Charitra in Hindi): - 


स्वायंभू मनु के दूसरे पुत्र प्रियव्रत परमात्मा के परम भक्त थे, मनु जी ने जब उन्हें राज्य देना चाहा तो उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया , इस पर उन्हें समझाने के लिए स्वयं ब्रह्मा नारद आदि आए और उन्हें समझाया कि सीधे-सीधे सन्यास लेने की अपेक्षा ग्रहस्थ धर्म के बाद जो सन्यास लिया जाता है वह अधिक उत्तम है |


इसलिए पहले राज्य कर लें, फिर सन्यास लें पितामह ब्रह्माजी की बात प्रियव्रत ने शिरोधार्य की और उन्होंने प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्री बर्हिष्मति से विवाह किया उनके दस पुत्र हुए जो उन्हीं के समान प्रतापी थे | उनके एक छोटी कन्या भी हुई जिनका नाम उर्जस्वती था पुत्रों में सबसे बड़े आग्नीध्र थे | 

एक बार उन्होंने देखा कि सूर्य का प्रकाश आधे पृथ्वी पर ही रहता है आधे में अंधेरा रहता है तो उन्होंने संकल्प पूर्वक एक प्रकाशमान रथ बनाया जिसमें बैठकर सूर्य के पीछे पीछे सात परिक्रमा लगा दी। 

उनके रथ के पहिओं से जो गढ्ढे हुए वे सात समुद्र बन गए जो भाग बीच में रहा वहाँ सात द्वीप बन गए ब्रह्मा जी के कहने से प्रियव्रत की यह रथ यात्रा सात दिन बाद पूर्ण हो गई | इस प्रकार कई वर्षों तक राज्य किया अन्त में उसका मन भगवान की ओर गया और अपने पुत्र को राज्य दे और वे वन गए भगवान का भजन करने के लिए वहां भगवान को प्राप्त कर लिया |


इति प्रथमो अध्यायः


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( पंचम स्कन्ध - द्वितीयो अध्यायः )- (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -  


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - पंचम स्कन्ध - भाग १  | Bhagwat Mahapuran Katha in Hindi | Bhagwat Katha -  Bhaktilok


( अथ द्वितीयो अध्यायः ) आग्नीध्र चरित्र (Aagirdh Charitra in hindi)- 

अपने पिता प्रियव्रत के वन चले जाने के बाद उनके पुत्र आग्नीध्र ने अपने पिता के सतांन नही हुई तो पित्रेश्वरों की उपासना की, ब्रह्मा जी ने उनके आशय को समझ अपनी पूर्वचित्ती अप्सरा को भेजा वह वहां पहुंची जहां अग्नीन्ध्र उपासना कर रहे थे। 

अप्सरा ने उनके चित्त को मोहित कर लिया, उससे उनके नौ पुत्र हुए | पूर्वचित्ति उन्हें वहीं छोड़कर ब्रह्मलोक चली गई , आग्नीध्र ने समस्त पृथ्वी के नौ भाग कर उन्हें अपने पुत्रों को सौंपा आप भी अपने पिता की तरह बन में भजन करने चले गए |


इति द्वितीयो अध्यायः


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( पंचम स्कन्ध - तृतीयो अध्यायः )- (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -  


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - पंचम स्कन्ध - भाग १  | Bhagwat Mahapuran Katha in Hindi | Bhagwat Katha -  Bhaktilok


( अथ तृतीयो अध्यायः ) राजा नाभि का चरित्र (Raja Nabhi Ka Charitra in Hindi): - 


अपने पिता के वन गमन के बाद उनके पुत्र नाभि ने राज्य संभाला उनके भी कोई संतान न होने पर भगवान नारायण का यजन किया , यज्ञ में भगवान नारायण प्रकट हुए और राजा को वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने भगवान के सामान पुत्र मांगा।

 भगवान बोले मेरे समान कोई दूसरा नहीं है, मैं स्वयं तुम्हारे यहां आऊंगा ऐसा कर भगवान अंतर्धान हो गए | समय पाकर राजा नाभि के यहां अवतरित हुए |जिनका नाम ऋषभदेव रखा गया |

इति तृतीयो अध्यायः


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( पंचम स्कन्ध - चतुर्थो अध्यायः )- (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) -  


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - पंचम स्कन्ध - भाग १  | Bhagwat Mahapuran Katha in Hindi | Bhagwat Katha -  Bhaktilok


( अथ चतुर्थो अध्यायः ) ऋषभदेव जी का राज्य शासन (Rishabhdev Ji Ka Rajya Shashan in Hindi): - 


साक्षात भगवान को पुत्र रूप में पाकर नाभि बड़े प्रसन्न हुए कुछ समय के लिए ऋषभदेव जी ने गुरुकुल में निवास किया जहां अल्पकाल में सभी विद्याओं का अध्ययन कर लिया ! 

उनके गुणों की चारों ओर चर्चा होने लगी तो इंद्र ने परीक्षा के लिए उनके राज्य में वर्षा नहीं की तो ऋषभदेव जी ने अपने योग बल से वर्षा करा ली , इससे इंद्र बड़ा लज्जित हुआ और उसने अपनी जयंती नाम की पुत्री उन्हें ब्याह दी | राजा नाभि ने अपने पुत्र को सब तरह योग्य समझ उन्हें राजा बना , आप वन में चले गए भजन करने के लिए | 

ऋषभदेव ने जयंती से सौ पुत्र उत्पन्न किए जिनमें सबसे बड़े भरत हुए जिनके नाम पर अजनाभखंड का नाम भारतवर्ष हुआ, इनसे छोटे नौ भी भरत के समान ही महान हुए, उनसे छोटे नो योगी जन हुए जिनका वर्णन एकादश स्कंध में होगा , शेष इक्यासी कर्मकांडी हुए जो अंत में ब्राम्हण बन गए उन्होंने कयी यज्ञ किए |


इति चतुर्थो अध्यायः


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( पंचम स्कन्ध - पंचमो अध्यायः )- (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) - 

 

सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - पंचम स्कन्ध - भाग १  | Bhagwat Mahapuran Katha in Hindi | Bhagwat Katha -  Bhaktilok


( अथ पंचमो अध्यायः )  ऋषभ जी का अपने पुत्रों को उपदेश तथा स्वयं अवधूत वृत्ति धारण करना (Rishabh Ji Ka Apane Putro Ko Upadesh Tatha Svyn Avadhut Vritti Dharan Karna in Hindi):- 


ऋषभदेव जी ने अपने पुत्रों को उपदेश दिया कि मनुष्य का कर्तव्य केवल विषय वासनाओं की पूर्ति नहीं है, बल्कि उनसे दूर रहकर भगवान का भजन करने में उनकी सार्थकता है | 

विषय भोग तो कूकर सूकर भी भोंगते हैं, वहां बैठे हुए ब्राह्मणों को संबोधित करते हुए बोले- मुझे ब्राह्मणों से बढ़कर कोई प्रिय नहीं है, जो उनके मुख में अन्न डालता है उससे मेरी तृप्ती होती है | 

इस प्रकार उपदेश देकर भरत को राज्य दे स्वयं वन में चले गए , वहां उन्होंने अवधूत वृत्ति धारण कर ली, पागलों की तरह रहते, वस्त्र नहीं पहनते, अपने ही मल में लोट जाते पर उसमें दुर्गंध नहीं सुगंध आती थी | उनके पास कई रिद्धि-सिद्धि आई उन्होंने स्वीकार नहीं किया |

इति पंचमो अध्यायः


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( पंचम स्कन्ध - षष्ठो अध्यायः )- (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) - 


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( अथ षष्ठो अध्यायः ) ऋषभदेव जी का देह त्याग (Rishabh Jo Ka Deh Tyag in Hindi): - 


अवधूत वृत्ति में घूमते घूमते ऋषभदेव जी ने अपनी आत्मा को परमात्मा में लीन कर देह को दावाग्नि में जलाकर भस्म कर दिया | 

जिस समय कलयुग में अधर्म की बुद्धि होगी उस समय कोंक वेंक और कुटक देश का मंदमति राजा अर्हत वहां के लोगों से ऋषभदेव जी के आश्रमातीत आचरण का वृत्तांत सुनकर तथा स्वयं उसे ग्रहण कर लोगों के पूर्व संचित पाप फल रूप होनहार के वशीभूत होकर भय रहित स्वधर्म पथ का परित्याग करके अपनी बुद्धि से अनुचित और पाखंड पूर्ण कुमार्ग का प्रचार करेगा | उसे कलयुग में देवमाया से मोहित अनेकों अधम मनुष्य अपने शास्त्र विहित शौच आचार को छोड़ बैठेंगे | 

अधर्म बाहुल्य कलयुग के प्रभाव से बुद्धि हीन हो जाने के कारण वे स्नान न करना, आचमन न करना, अशुद्ध रहना, केश नुचवाना आदि ईश्वर का तिरस्कार करने वाले पाखंड धर्मों को मनमाने ढंग से स्वीकार करेंगे और प्रायः वेद, ब्राम्हण और भगवान यज्ञ पुरुष की निंदा करने लगेंगे |

इति षष्ठो अध्यायः


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( पंचम स्कन्ध - सप्तमो अध्यायः )- (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) - 


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - पंचम स्कन्ध - भाग १  | Bhagwat Mahapuran Katha in Hindi | Bhagwat Katha -  Bhaktilok


( अथ सप्तमो अध्यायः ) भरत चरित्र (Bharat Charitra in hindi):- 


अपने पिता के चले जाने के बाद भरत जी राज्य सिंहासन पर बैठे, विश्वरूप भ

की कन्या पंचजनी से विवाह किया, जिससे पांच पुत्र हुए, वे उन्हीं के समान थे | धर्म पूर्वक राज्य करने के बाद वे वन में भजन करने को गण्डकी के तीर पर पुलह आश्रम पर चले गए और भगवान का भजन करने लगे |

इति सप्तमो अध्यायः


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( पंचम स्कन्ध - अष्टमो अध्यायः )- (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) - 


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( अथ अष्टमो अध्यायः ) भरत जी का मृग मोह में फंसकर मृग योनि में जन्म लेना (Bharat Ji Ka Mrig Moh Me Phasakar Mrig Yoni Me Janm Lena in Hindi):- 


एक दिन भरत जी गंडकी नदी के किनारे भजन कर रहे थे, सहसा एक सिंह की दहाड़ हुई उससे घबराकर एक हिरनी ने नदी को पार करने के लिए छलांग लगाई , जिससे उसका गर्भ का बच्चा नदी में गिर गया और हिरणी दूसरी तरफ जाकर मर गई , भरत जी ने देखा कि हरनी का बालक पानी में बह रहा है, दया बस दौड़कर उसे उठा लिया और उसका पालन-पोषण करने लगे | 

धीरे-धीरे उनका भजन छूटता गया और मृग में मोह बढ़ता गया, एक दिन मृग समाप्त हो गया और उसके बिरह में भरत जी ने भी शरीर त्याग मृग योनि में जन्म लिया, किंतु उन्हें पूर्व जन्म की स्मृति थी वे पुनः आसक्ती ना हो जाए मृगों से भी दूर ही रहने लगे और अंत में गंडकी में अपने शरीर को छोड़ दिया |

इति अष्टमो अध्यायः


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( पंचम स्कन्ध - नवमो अध्यायः )- (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) - 


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - पंचम स्कन्ध - भाग १  | Bhagwat Mahapuran Katha in Hindi | Bhagwat Katha -  Bhaktilok


( अथ नवमो अध्यायः ) भरत जी का ब्राह्मण कुल में जन्म (Bharat Ji Ka Bramhan Kul Me Janm in Hindi): - 


आंगीरस गोत्र के एक ब्राम्हण परिवार में आपका दूसरा जन्म हुआ , वहां भी आप की पूर्व जन्म की स्मृति बनी रही, उनकी बड़ी माता से उनके पांच भाई थे और कहीं पुनः आसक्ती ना हो जाए इस भय से वे पागलों की तरह रहते थे , पिता ने उनका यगोपवित संस्कार कर दिया बचपन में ही इनकी माता का स्वर्गवास हो गया | विमाता कुछ दे देती उसे ही खाकर वे संतुष्ट रहते , चारों ओर भ्रमण करते रहते थे | 

एक बार डाकू ने ने पकड़ लिया और भद्रकाली की भेंट चढ़ाने को इन्हें ले गए अपनी पद्धति के अनुसार उन्हें पहले स्नान करवाया फिर मधुर भोजन करवाया और फिर भद्रकाली के सामने बलि देने के लिए ले गए वे हर परिस्थिति में प्रसन्न थे। 

तलवार निकालकर जब उन्हें मारने को उद्यत हुए फिर भी वह प्रसन्न थे, किंतु परमात्मा के भक्तों का अपने सामने वध देवी को स्वीकार नहीं हुआ, देवी ने चोरों के हाथ से तलवार छीन ली और उन्हें मौत के घाट उतार कर भगवान के भक्तों की रक्षा की |

इति नवमो अध्यायः


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( पंचम स्कन्ध - दशमो अध्यायः )- (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) - 


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - पंचम स्कन्ध - भाग १  | Bhagwat Mahapuran Katha in Hindi | Bhagwat Katha -  Bhaktilok


( अथ दशमो अध्यायः ) जड़ भरत और राजा रहूगण की भेंट(Jad Bharat Aur Raja Rahugan ki Bhet in Hindi): - 

एक समय सिंधुसौवीर्य देश का राजा रहूगण अपनी पालकी में बैठकर कहीं जा रहा था, रास्ते में उसकी पालकी का एक कहार बीमार हो गया तो उसे उसने पास ही खड़े भरत जी को पालकी में जोत लिया | 

उसका भी उन्होंने कोई विरोध नहीं किया किंतु वे रास्ते के जीवो को बचाते हुए टेढ़ी-मेढ़ी चाल चलने लगे तो पालकी डोलने लगी रहूगण ने कहारों को डांटते हुए कहा यह कौन मूर्ख है जो पालकी को ठीक से नहीं ढोता | 

कहार बोले यह नया कहार ठीक से नहीं चलता, राजा ने भरत जी को डांटते हुए कहा अरे तू मेरे राज्य का अन्न खाकर मोटा हो रहा है और काम नहीं करता, डंडे से तेरी इतनी मार लगाऊंगा कि ठीक हो जाएगा | 

भरत जी ने मौन तोड़ा और बोले मोटा ताजा शरीर है आत्मा सबकी समान है फिर मार भी यह शरीर खाएगा , मैं तो सुख दुख से परे हूँ, यह सुन कर रहूगण ने देखाकि अरे यह तो कोई संत है , पालकी से नीचे उतर भरत जी के चरणों में गिर गया |

इति दशमो अध्यायः


सम्पूर्ण भागवत महापुराण कथा - ( पंचम स्कन्ध - एकादशो अध्यायः )- (Sampurn Bhagwat Katha in Hindi) - 


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( अथ एकादशो अध्यायः ) राजा रहूगण को भरत जी का उपदेश (Raja Rahugan ko Bharat ji Ka Upadesh in Hindi): - 


भरत जी बोले राजा आत्मा और शरीर दोनों अलग-अलग हैं जिन्होंने इस शरीर को ही आत्मा समझा है वह ठीक नहीं है शरीर तो जड़ है जो मरता रहता है किंतु आत्मा कभी नहीं मरती , आत्मा परमात्मा का ही अंश अविनाशी तत्व है |

इति एकादशो अध्यायः







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