शरमदभगवदगत सर: अधयय 14 ( Shrimad Bhagwad Geeta Saar Lyrics) -
श्रीमद्भगवद्गीता सार: श्रीमद्भगवद्गीता सार: अध्याय 14 | गुण त्रय विभाग योग | Gun Tray Vibhag Yog | Shrimad Bhagwad Geeta Saar | MANOJ MISHRA🙏 भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 14 में गुण त्रय विभाग योग की परिभाषा को व्यक्त करते हैं |वे अर्जुन से कहते हैं हे अर्जुन ये शरीर तीन गुणों से निर्मित है ये ही वो तीन गुण हैं जो आत्मा को शरीर से बांधते हैं। सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण। इसमें सतोगुण सर्वश्रेष्ठ है जो मनुष्य को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर देता है सतोगुण से मनुष्य जन्म मृत्यु के विष चक्र से मुक्त हो जाता है वो पुनः इस धरती पर जन्म नहीं लेता उसे मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है I शरीर में नौ द्वार हैं। २ आँखें, २ कान, २ नथुने,एक मुख, एक गुदा एवं एक उपस्थ यही वे द्वार हैं जो शरीर से बाहर की ओर खुलते हैं और नौ द्वारों में जब प्रकश रूपी ज्ञान उत्पन्न होता है तो सतोगुण प्रभावी हो जाता है । ये सभी गुण अविनाशी आत्मा को नश्वर शरीर के बंधन में डालते हैं। इनमें से सतोगुण अर्थात अच्छाई का गुण अन्यों की अपेक्षा शुद्ध होने के कारण प्रकाश प्रदान करने वाला और पुण्य कर्मों से युक्त है। यह आत्मा में सुख और ज्ञान के भावों के प्रति आसक्ति उत्पन्न कर उसे बंधन में डालता है। रजोगुण की प्रकृति मोह है। यह सांसारिक आकांक्षाओं और आकर्षणों से उत्पन्न होता है और आसक्ति तमोगुण जो अज्ञानता के कारण उत्पन्न होता है और देहधारियों जीवात्माओं के लिए मोह का कारण है। यह सभी जीवों को असावधानी, आलस्य और निद्रा द्वारा भ्रमित करता है। ये आत्मा को कर्म के प्रतिफलों में बांधता है। सत्वगुण सांसारिक सुखों में बांधता है, रजोगुण आत्मा को सकाम कर्मों की ओर प्रवृत्त करता है और तमोगुण ज्ञान को आच्छादित कर आत्मा को भ्रम में रखता है। कभी-कभी सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण को परास्त करता है और कभी-कभी रजोगुण सतोगुण और तमोगुण पर हावी हो जाता है और कभी-कभी ऐसा भी होता है कि तमोगुण सतोगुण और रजोगुण पर हावी हो जाता है। जब शरीर के सभी द्वार ज्ञान से आलोकित हो जाते हैं तब उस मनुष्य में सतोगुण का प्रकाश चारों और प्रकाशित हो जाता है। जब रजोगुण प्रबल होता है तब हे अर्जुन! लोभ, सांसारिक सुखों के लिए परिश्रम, बचैनी और उत्कंठा के लक्षण विकसित होते हैं। जिनमें सतोगुण की प्रधानता होती है वे मृत्यु पश्चात ऋषियों के ऐसे उच्च लोक में जाते हैं जो रजो और तमोगुण से मुक्त होता है। रजोगुण की प्रबलता वाले सकाम कर्म करने वाले लोगों के बीच जन्म लेते हैं और तमोगुण में मरने वाले पशुओं की प्रजातियों में जन्म लेते है। ऐसा कहा जाता है कि सतोगुण में सम्पन्न किए गये कार्य शुभ फल प्रदान करते हैं, रजोगुण के प्रभाव में किए गये कर्मों का परिणाम पीड़ादायक होता है तथा तमोगुण से सम्पन्न किए गए कार्यों का परिणाम अंधकार है। सतोगुण से ज्ञान उत्पन्न होता है, रजोगुण से लोभ और तमोगुण से अज्ञानता, प्रमाद और भ्रम उत्पन्न होता है। सतोगुण में स्थित जीव ऊपर उच्च लोकों में जाते हैं, रजोगुणी मध्य में पृथ्वी लोक पर और तमोगुणी निम्न नरक लोकों में जाते हैं। रजोगुण आत्मा को भौतिक सुख सुविधाओं में भटकाकर उस मनुष्य को अपने लक्ष्य से भटका देता है।
भगवद् गीता:-
भगवद् गीता एक महान ग्रन्थ है। युगों पूर्व लिखी यह रचना आज के धरातल पर भी सत्य साबित होती है। जो व्यक्ति नियमित गीता को पढ़ता या श्रवण करता है, उसका मन शांत बना रहता है। आज के कलयुग में भगवद् गीता पढ़ने से मनुष्य को अपनी समस्याओं का हल मिलता है आत्मिक शांति का अनुभव होता है। आज का मनुष्य जीवन की चिंताओं, समस्याओं, अनेक तरह के तनावों से घिरा हुआ है। यह ग्रन्थ भटके मनुष्यों को राह दिखाता है। गीता को, धर्म-अध्यात्म समझाने वाला अनमोल काव्य कहा जा सकता है। सभी शास्त्रों का सार एक स्थान पर कहीं एक साथ मिलता हो, तो वह स्थान है-गीता। गीता रूपी ज्ञान नदी में स्नान कर अज्ञानी सद्ज्ञान को प्राप्त करता है। पापी पाप-ताप से मुक्त होकर संसार सागर को पार कर जाता है। मन को शांति मिलती है, काम, क्रोध, लोभ, मोह दूर होता है। गीता का अध्ययन करने वाला व्यक्ति धीरे धीरे कामवासना, क्रोध, लालच और मोह माया के बंधनों से मुक्त हो जाता है। आज भी राजनीतिक या सामाजिक संकट के समय लोग इसका सहारा लेते हैं। मन नियंत्रण में रहता है। सच और झूठ का ज्ञान होता है। आत्मबल बढ़ता है। सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है तो आइये हम सभी इस अद्भुत ज्ञान को प्राप्त करें | भगवद् गीता के इस सार को श्रवण करने से आशा है हम सभी को अवश्य आत्मज्ञान और आत्मिक सुख की अनुभूति होगी | आशा है हमारा ये प्रयास आप सभी को लाभ प्रदान करेगा |
If you liked this post please do not forget to leave a comment. Thanks