श्रीमद् भगवद् गीता सार कर्म योग (Shrimad Bhagwad Geeta Saar 3 ) - Gita Saar| MANOJ MISHRA Karm Yog - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind

श्रीमद् भगवद् गीता सार कर्म योग (Shrimad Bhagwad Geeta Saar 3 ) - Gita Saar| MANOJ MISHRA Karm Yog - Bhaktilok


श्रीमद् भगवद् गीता सार: अध्याय 3 - कर्म योग भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद भगवद गीता अध्याय ३ में कर्म योग की परिभाषा को व्यक्त किया गया है। मित्रों इस संसार में ऐसा कोई जीव नहीं है जो कर्म किये बिना रह पाता हो फिर वह सत्कर्म हो या दुष्कर्म। सत्कर्मों का परिणाम अत्यंत सुखदायी होता है और दुष्कर्मों का परिणाम अत्यंत पीड़ादायी और दुखदायी होता है इसलिए हमें वो ही कर्म करने चाहिए जो हमें आनंदमयी जीवन के साथ लक्ष्य तक ले जाएं । इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अपने उपदेशों द्वारा यही समझाया है तो आइये भगवान श्री कृष्ण के इन अनमोल उपदेशों को ग्रहण करते हुए अपने जीवन को ऐसे सत्कर्मों की ओर लेकर चलें जो हमें हमारे जीवन के उद्देश्य को पूर्ण करने में मार्गदर्शन करें। कहने का तात्पर्य यह है की हमें सदैव सोच समझकर अच्छे कर्म ही करने चाहिए । इस हेतु मनुष्य को अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखने हुए अपनी इन्द्रयों को अपने वश में करते हुए सत्कर्म करना चाहिए वो मनुष्य पाप की ओर अग्रसर होता जो अपनी इच्छाओं को नियंत्रित नहीं करता है वो इन्द्रियों के हावी होने की जानकारी होते हुए भी और ये जानते हुए भी की वो दुष्कर्म करने जा रहा है स्वयं को पाप करने से नहीं रोक पता है जिसका परिणाम विनाशकारी होता है स्वयं उस व्यक्ति के लिए भी और समाज के लिए भी। अतः हमें सदैव अच्छे कर्म करना चाहिए। भगवद् गीता एक महान ग्रन्थ है। युगों पूर्व लिखी यह रचना आज के धरातल पर भी सत्य साबित होती है। जो व्यक्ति नियमित गीता को पढ़ता या श्रवण करता है, उसका मन शांत बना रहता है। आज के कलयुग में भगवद् गीता पढ़ने से मनुष्य को अपनी समस्याओं का हल मिलता है आत्मिक शांति का अनुभव होता है। आज का मनुष्य जीवन की चिंताओं, समस्याओं, अनेक तरह के तनावों से घिरा हुआ है। यह ग्रन्थ भटके मनुष्यों को राह दिखाता है। गीता को, धर्म-अध्यात्म समझाने वाला अनमोल काव्य कहा जा सकता है। सभी शास्त्रों का सार एक स्थान पर कहीं एक साथ मिलता हो, तो वह स्थान है-गीता। गीता रूपी ज्ञान नदी में स्नान कर अज्ञानी सद्ज्ञान को प्राप्त करता है। पापी पाप-ताप से मुक्त होकर संसार सागर को पार कर जाता है। मन को शांति मिलती है, काम, क्रोध, लोभ, मोह दूर होता है। गीता का अध्ययन करने वाला व्यक्ति धीरे धीरे कामवासना, क्रोध, लालच और मोह माया के बंधनों से मुक्त हो जाता है। आज भी राजनीतिक या सामाजिक संकट के समय लोग इसका सहारा लेते हैं। मन नियंत्रण में रहता है। सच और झूठ का ज्ञान होता है। आत्मबल बढ़ता है। सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है तो आइये हम सभी इस अद्भुत ज्ञान को प्राप्त करें | भगवद् गीता के इस सार को श्रवण करने से आशा है हम सभी को अवश्य आत्मज्ञान और आत्मिक सुख की अनुभूति होगी | आशा है हमारा ये प्रयास आप सभी को लाभ प्रदान करेगा | 


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