कबीर अमृतवाणी (Kabir Amritwani Lyrics in Hindi) - Debashish Das Gupta - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind

कबीर अमृतवाणी (Kabir Amritwani Lyrics in Hindi) - 


गुरु गोबिंद दोह खड़ेकाके लगो पाए
बलिहारी गुरु अपने गोबिंद दियो बताया

ऐसे वाणी बोलिएमन का आपा खोये
औरन को शीतल करेअपुन शीतल होये

बढ़ा हुआ तो क्या हुआजैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नहींफल लगे अति दूर ।

निंदक नियरे राखिएऑंगन कुटी छवाय
बिन पानी साबुन बिनानिर्मल करे सुभाय।

दुःख में सुमिरन सब करेसुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥

माटी कहै कुम्हार सोक्या तू रौंदे मोहि
एक दिन ऐसा होयगामै रौंदूँगी तोहि

मेरा मुझमें कुछ नहीं जो कुछ है सो तोर ।
तेरा तुझकौं सौंपताक्या लागै है मोर ॥1॥

काल करे सो आज करआज करे सो अब ।
पल में परलय होएगी बहुरि करेगा कब ॥

जाति न पूछो साधु कीपूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तरवार कापड़ा रहन दो म्यान ॥

नहाये धोये क्या हुआजो मन मैल न जाए ।
मीन सदा जल में रहेधोये बास न जाए ।

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआपंडित भया न कोय ।
ढाई आखर प्रेम कापढ़े सो पंडित होय ।।

साँई इतना दीजिएजामे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँसाधु न भूखा जाय।।

माखी गुड में गडी रहेपंख रहे लिपटाए ।
हाथ मेल और सर धुनेंलालच बुरी बलाय ।


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