श्री हनुमान चालीसा | संकटमोचन हनुमान अष्टक | बजरंग बाण | Hanuman Chalisa Bhajans | Hanuman Bhajan - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind

श्री हनुमान चालीसा | संकटमोचन हनुमान अष्टक | बजरंग बाण | Hanuman Chalisa Bhajans | Hanuman Bhajan - 


हनुमान चालीसा अवधी में लिखी एक काव्यात्मक कृति है जिसमें प्रभु श्री राम के महान भक्त हनुमान जी के गुणों एवं कार्यों का चालीस चौपाइयों में वर्णन है। यह अत्यन्त लघु रचना है जिसमें पवनपुत्र श्री हनुमान जी की सुन्दर स्तुति की गई है। इसमें बजरंगबली‍ जी की भावपूर्ण वन्दना तो है ही, प्रभु श्रीराम का व्यक्तित्व भी सरल शब्दों में उकेरा गया है। 'चालीसा' शब्द से अभिप्राय 'चालीस' (40) का है क्योंकि इस स्तुति में 40 छन्द हैं (परिचय के 2 दोहों को छोड़कर)। हनुमान चालीसा भगवान हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए उनके भक्तों द्वारा की जाने वाली प्रार्थना हैं जिसमें 40 पंक्तियाँ होती है इसलिए इस प्रार्थना को हनुमान चालीसा कहा जाता है इस हनुमान चालीसा को भक्त तुलसीदास जी द्वारा लिखा गया है जिसे बहुत शक्तिशाली माना जाता है।


श्री हनुमान चालीसा (Shree Hanuman Chalisa Lyrics in Hindi) - 



दोहा :

 
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।। 

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।  
 
चौपाई :
 
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
 
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
 
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
 
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
 
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।
 
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
 
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
 
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
 
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
 
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।
 
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
 
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
 
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
 
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
 
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
 
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
 
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
 
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
 
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
 
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
 
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
 
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।
 
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
 
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
 
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
 
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
 
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
 
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
 
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
 
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
 
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
 
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
 
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
 
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
 
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
 
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
 
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
 
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
 
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
 
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।। 
 
दोहा :
 
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।


संकट मोचन हनुमानाष्टक (Sankatmochan Hanuman Ashtak) -

॥ हनुमानाष्टक ॥

बाल समय रवि भक्षी लियो तब

तीनहुं लोक भयो अंधियारों 

ताहि सों त्रास भयो जग को

यह संकट काहु सों जात न टारो 

देवन आनि करी बिनती तब

छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो 

को नहीं जानत है जग में कपि

संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥


बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि

जात महाप्रभु पंथ निहारो 

चौंकि महामुनि साप दियो तब

चाहिए कौन बिचार बिचारो 

कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु

सो तुम दास के सोक निवारो ॥ २ ॥


अंगद के संग लेन गए सिय

खोज कपीस यह बैन उचारो 

जीवत ना बचिहौ हम सो जु

बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो 

हेरी थके तट सिन्धु सबै तब

लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥ ३ ॥


रावण त्रास दई सिय को सब

राक्षसी सों कही सोक निवारो 

ताहि समय हनुमान महाप्रभु

जाए महा रजनीचर मारो 

चाहत सीय असोक सों आगि सु

दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ ४ ॥


बान लग्यो उर लछिमन के तब

प्राण तजे सुत रावन मारो 

लै गृह बैद्य सुषेन समेत

तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो 

आनि सजीवन हाथ दई तब

लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ ५ ॥


रावन युद्ध अजान कियो तब

नाग कि फाँस सबै सिर डारो 

श्रीरघुनाथ समेत सबै दल

मोह भयो यह संकट भारो 

आनि खगेस तबै हनुमान जु

बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ ६ ॥


बंधु समेत जबै अहिरावन

लै रघुनाथ पताल सिधारो 

देबिहिं पूजि भलि विधि सों बलि

देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो 

जाय सहाय भयो तब ही

अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ ७ ॥


काज किये बड़ देवन के तुम

बीर महाप्रभु देखि बिचारो 

कौन सो संकट मोर गरीब को

जो तुमसे नहिं जात है टारो 

बेगि हरो हनुमान महाप्रभु

जो कछु संकट होय हमारो ॥ ८ ॥


॥ दोहा ॥

लाल देह लाली लसे

अरु धरि लाल लंगूर 

वज्र देह दानव दलन

जय जय जय कपि सूर ॥ 

 

बजरंग बाण ( Bajarang Baan Lyrics in Hindi) - 


दोहा : 

निश्चय प्रेम प्रतीति ते बिनय करैं सनमान।

तेहि के कारज सकल शुभ सिद्ध करैं हनुमान॥


 

चौपाई : 

जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥

जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥

जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥

आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥

जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥

बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥

अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥

लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥

अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥

जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥

जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥

ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥

ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥

जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥

बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥

भूत प्रेत पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥

इन्हें मारु तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥

सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥

जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥

पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥

बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥

जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥

जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥

चरन पकरि कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥

उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई। पायँ परौं कर जोरि मनाई॥

ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥

ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥

अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥

यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥

पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥

यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥

धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥ 

 

दोहा : 

उर प्रतीति दृढ़ सरन ह्वै पाठ करै धरि ध्यान।

बाधा सब हर करैं सब काम सफल हनुमान॥ 

 

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