शनिवार अक्षय तृतीया पर (SHaniwar Akshyay tritaya Par )-Hanumanashtak | Om JaiJagdish Hare | Vishnu Chalisa | Parshuram Chalisa | Aarti - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind

शनिवार अक्षय तृतीया पर (SHaniwar Akshyay tritaya Par )-Hanumanashtak | Om JaiJagdish Hare | Vishnu Chalisa | Parshuram Chalisa | Aarti - Bhaktilok

1) हनुमानाष्टक  लिरिक्स  (Hanumanashtak Lyrics in Hindi) :- 


बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों ।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो ।
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥


बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
चाहिए कौन बिचार बिचारो ।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो ॥


अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो ।
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥


रावण त्रास दई सिय को सब,
राक्षसी सों कही सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाए महा रजनीचर मरो ।
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥

बान लाग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सूत रावन मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ।
आनि सजीवन हाथ दिए तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥


रावन जुध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥

बंधू समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो ।
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो ।
जाये सहाए भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥


काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो ।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होए हमारो ॥


॥ दोहा ॥

लाल देह लाली लसे,
अरु धरि लाल लंगूर ।
वज्र देह दानव दलन,
जय जय जय कपि सूर ॥

💚💛💜💙💚💛💜💙💚💛💜💙💚💛💜💙💙💚💛💜💙


2) ॐ जय जगदीश हरे लिरिक्स (om jay jagadeesh hare Lyrics in Hindi) :-



ॐ जय जगदीश हरे
स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट
दास जनों के संकट
क्षण में दूर करे ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

जो ध्यावे फल पावे
दुःख बिनसे मन का
स्वामी दुःख बिनसे मन का ।
सुख सम्पति घर आवे
सुख सम्पति घर आवे
कष्ट मिटे तन का ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

मात पिता तुम मेरे
शरण गहूं किसकी
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा
तुम बिन और न दूजा
आस करूं मैं जिसकी ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

तुम पूरण परमात्मा
तुम अन्तर्यामी
स्वामी तुम अन्तर्यामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर
पारब्रह्म परमेश्वर
तुम सब के स्वामी ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

तुम करुणा के सागर
तुम पालनकर्ता
स्वामी तुम पालनकर्ता ।
मैं मूरख फलकामी
मैं सेवक तुम स्वामी
कृपा करो भर्ता॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

तुम हो एक अगोचर
सबके प्राणपति
स्वामी सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूं दयामय
किस विधि मिलूं दयामय
तुमको मैं कुमति ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

दीन-बन्धु दुःख-हर्ता
ठाकुर तुम मेरे
स्वामी रक्षक तुम मेरे ।
अपने हाथ उठाओ
अपने शरण लगाओ
द्वार पड़ा तेरे ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

विषय-विकार मिटाओ
पाप हरो देवा
स्वमी पाप(कष्ट) हरो देवा ।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ
सन्तन की सेवा ॥

ॐ जय जगदीश हरे
स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट
दास जनों के संकट
क्षण में दूर करे ॥

💚💛💜💙💚💛💜💙💚💛💜💙💚💛💜💙💙💚💛💜💙

3) विष्णु चालीसा लिरिक्स (Vinshnu Chalisha Lyrics in Hindi) : 



॥ दोहा॥
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ।

॥ चौपाई ॥
नमो विष्णु भगवान खरारी ।
कष्ट नशावन अखिल बिहारी ॥

प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी ।
त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥

सुन्दर रूप मनोहर सूरत ।
सरल स्वभाव मोहनी मूरत ॥

तन पर पीतांबर अति सोहत ।
बैजन्ती माला मन मोहत ॥4॥

शंख चक्र कर गदा बिराजे ।
देखत दैत्य असुर दल भाजे ॥

सत्य धर्म मद लोभ न गाजे ।
काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥

संतभक्त सज्जन मनरंजन ।
दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ॥

सुख उपजाय कष्ट सब भंजन ।
दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥8॥

पाप काट भव सिंधु उतारण ।
कष्ट नाशकर भक्त उबारण ॥

करत अनेक रूप प्रभु धारण ।
केवल आप भक्ति के कारण ॥

धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा ।
तब तुम रूप राम का धारा ॥

भार उतार असुर दल मारा ।
रावण आदिक को संहारा ॥12॥

आप वराह रूप बनाया ।
हरण्याक्ष को मार गिराया ॥

धर मत्स्य तन सिंधु बनाया ।
चौदह रतनन को निकलाया ॥

अमिलख असुरन द्वंद मचाया ।
रूप मोहनी आप दिखाया ॥

देवन को अमृत पान कराया ।
असुरन को छवि से बहलाया ॥16॥

कूर्म रूप धर सिंधु मझाया ।
मंद्राचल गिरि तुरत उठाया ॥

शंकर का तुम फन्द छुड़ाया ।
भस्मासुर को रूप दिखाया ॥

वेदन को जब असुर डुबाया ।
कर प्रबंध उन्हें ढूंढवाया ॥

मोहित बनकर खलहि नचाया ।
उसही कर से भस्म कराया ॥20॥

असुर जलंधर अति बलदाई ।
शंकर से उन कीन्ह लडाई ॥

हार पार शिव सकल बनाई ।
कीन सती से छल खल जाई ॥

सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी ।
बतलाई सब विपत कहानी ॥

तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी ।
वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥24॥

देखत तीन दनुज शैतानी ।
वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ॥

हो स्पर्श धर्म क्षति मानी ।
हना असुर उर शिव शैतानी ॥

तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे ।
हिरणाकुश आदिक खल मारे ॥

गणिका और अजामिल तारे ।
बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥28॥

हरहु सकल संताप हमारे ।
कृपा करहु हरि सिरजन हारे ॥

देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे ।
दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥

चहत आपका सेवक दर्शन ।
करहु दया अपनी मधुसूदन ॥

जानूं नहीं योग्य जप पूजन ।
होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥32॥

शीलदया सन्तोष सुलक्षण ।
विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ॥

करहुं आपका किस विधि पूजन ।
कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥

करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण ।
कौन भांति मैं करहु समर्पण ॥

सुर मुनि करत सदा सेवकाई ।
हर्षित रहत परम गति पाई ॥36॥

दीन दुखिन पर सदा सहाई ।
निज जन जान लेव अपनाई ॥

पाप दोष संताप नशाओ ।
भव-बंधन से मुक्त कराओ ॥

सुख संपत्ति दे सुख उपजाओ ।
निज चरनन का दास बनाओ ॥

निगम सदा ये विनय सुनावै ।
पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥40॥


परशुराम चालीसा लिरिक्स  ( parshuram chalisa lyrics in Hindi):- 


॥दोहा॥
श्री गुरु चरण सरोज छवि
निज मन मन्दिर धारि।
सुमरि गजानन शारदा
गहि आशिष त्रिपुरारि॥

बुद्धिहीन जन जानिये
अवगुणों का भण्डार।
बरणौं परशुराम सुयश
निज मति के अनुसार॥

॥ चौपाई॥
जय प्रभु परशुराम सुख सागर
जय मुनीश गुण ज्ञान दिवाकर।

भृगुकुल मुकुट बिकट रणधीरा
क्षत्रिय तेज मुख संत शरीरा।

जमदग्नी सुत रेणुका जाया
तेज प्रताप सकल जग छाया।

मास बैसाख सित पच्छ उदारा
तृतीया पुनर्वसु मनुहारा।

प्रहर प्रथम निशा शीत न घामा
तिथि प्रदोष ब्यापि सुखधामा।

तब ऋषि कुटीर रुदन शिशु कीन्हा
रेणुका कोखि जनम हरि लीन्हा।

निज घर उच्च ग्रह छ: ठाढ़े
मिथुन राशि राहु सुख गाढ़े।

तेज-ज्ञान मिल नर तनु धारा
जमदग्नी घर ब्रह्म अवतारा।

धरा राम शिशु पावन नामा
नाम जपत जग लह विश्रामा।

भाल त्रिपुण्ड जटा सिर सुन्दर
कांधे मुंज जनेउ मनहर।

मंजु मेखला कटि मृगछाला
रूद्र माला बर वक्ष बिशाला।

पीत बसन सुन्दर तनु सोहें
कंध तुणीर धनुष मन मोहें।

वेद-पुराण-श्रुति-समृति ज्ञाता
क्रोध रूप तुम जग विख्याता।

दायें हाथ श्रीपरशु उठावा
वेद-संहिता बायें सुहावा।

विद्यावान गुण ज्ञान अपारा
शास्त्र-शस्त्र दोउ पर अधिकारा।

भुवन चारिदस अरू नवखंडा
चहुं दिशि सुयश प्रताप प्रचंडा।

एक बार गणपतिजी के संगा
जूझे भृगुकुल कमल पतंगा।

दांत तोड़ रण कीन्ह विरामा
एक दन्त गणपति भयो नामा।

कार्तवीर्य अर्जुन भूपाला
सहस्त्रबाहु दुर्जन विकराला।

सुरगऊ लखि जमदग्नी पांही
रखिहहुं निज घर ठानि मन मांहीं।

मिली न मांगि तब कीन्ह लड़ाई
भयो पराजित जगत हंसाई।

तन खल हृदय भई रिस गाढ़ी
रिपुता मुनि सौं अतिसय बाढ़ी।

ऋषिवर रहे ध्यान लवलीना
तिन्ह पर शक्तिघात नृप कीन्हा।

लगत शक्ति जमदग्नी निपाता
मनहुँ क्षत्रिकुल बाम विधाता।

पितु- -बध मातु-रुदन सुनि भारा
भा अति क्रोध मन शोक अपारा।

कर गहि तीक्षण परशु कराला
दुष्ट हनन कीन्हेउ तत्काला।

क्षत्रिय रुधिर पितु तर्पण कीन्हा
पितु-बध प्रतिशोध सुत लीन्हा।

इक्कीस बार भू क्षत्रिय बिहीनी
छीन धरा बिप्रन्ह कहँ दीनी।

जुग त्रेता कर चरित सुहाई
शिव-धनु भंग कीन्ह रघुराई।

गुरु धनु भंजक रिपु करि जाना
तब समूल नाश ताहि ठाना।

कर जोरि तब राम रघुराई
विनय कीन्ही पुनि शक्ति दिखाई।

भीष्म द्रोण कर्ण बलवन्ता
भये शिष्या द्वापर महँ अनन्ता।

शस्त्र विद्या देह सुयश कमाव
गुरु प्रताप दिगन्त फिरावा।

चारों युग तव महिमा गाई
सुर मुनि मनुज दनुज समुदाई।

देसी कश्यप सों संपदा भाई
तप कीन्हा महेन्द्र गिरि जाई।

अब लौं लीन समाधि नाथा
सकल लोक नावइ नित माथा।

चारों वर्ण एक सम जाना
समदर्शी प्रभु तुम भगवाना।

ललहिं चारि फल शरण तुम्हारी
देव दनुज नर भूप भिखारी।

जो यह पढ़े श्री परशु चालीसा
तिन्ह अनुकूल सदा गौरीसा।

पूर्णेन्दु निसि बासर स्वामी
बसहु हृदय प्रभु अन्तरयामी।

॥ दोहा ॥
परशुराम को चारू चरित
मेटत सकल अज्ञान।
शरण पड़े को देत प्रभु
सदा सुयश सम्मान।

॥ श्लोक ॥
भृगुदेव कुलं भानुं सहस्रबाहुर्मर्दनम्।
रेणुका नयना नंद परशुंवन्दे विप्रधनम्॥

💚💛💜💙💚💛💜💙💚💛💜💙💚💛💜💙💙💚💛💜💙

Post a Comment

0Comments

If you liked this post please do not forget to leave a comment. Thanks

Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !