चल कांवरिया शिव के
धाम की कथा राजा एवं
रानी उनकी पुत्री राजकुमारी
पार्वती तथा जमुना और
उसके शिव भक्त पुत्र शिवा
के इर्द गिर्द घूमती है |
महाराज एक बहुत बड़ी
शिव पूजा का अनुष्ठान करते हैं।
राजपुरोहित के कहने पर
आदेश देते हैं की राज्य की
प्रजा के हिस्से का सारा दूध
भगवन शिव को अर्पित होगा
दूध का एक भी हिस्सा प्रजा
उपयोग नहीं करेगी राजा के
ऐसे कठोर आदेश पर सारी
प्रजा अपने अपने हिस्से का
दूध लेकर प्रस्तुत होती है
परन्तु शिव जी उस दूध को
स्वीकार नहीं करते हैं तभी
गरीब जमुना अपने बेटे शिवा
के हिस्से का दूध लेकर
महाराज के पास आती है
इस उत्तम मंशा से की महाराज
और प्रजा शिव जी का दुग्ध
अनुष्ठान अधूरा रहने पर कहीं
शिव जी के कोप के भागी ना
बने, परन्तु एक चमत्कार होता है
अच्छी मंशा से निर्धन जमुना
द्वारा अर्पित दूध शिव जी स्वीकार
करते हैं इस प्रकार महाराज का
शिव पूजा अनुष्ठान पूर्ण होता है |
यह देख कर अभिमानी राजपुरोहित
को क्रोध आ जाता है और वो जमुना
और उसके बेटे शिवा की मृत्यु का
षड्यंत्र करता है और उनकी शिव
कुटी में आग लगवा देता है तब
शिव जी जमुना और उसके पुत्र
की अग्नि से रक्षा करते हैं |
इसी बीच महाराज के घर
राजकुमारी पार्वती का जन्म होता है |
आगे चलकर जमुना का
यही पुत्र शिवा के नाम से जाना जाता है
जो शिव जी का परम भक्त है
शिवा को पूर्व जन्म के किसी
साधु का श्राप लगा है जिसके
कारण वह अल्पायु है और शरद
पूर्णिमा की रात उसके जीवन
की अंतिम रात होगी परन्तु यदि
शिवा शिव भक्ति में लीन रहते
हुए कांवड़ में जल भरकर
अपनी १२ ज्योतिर्लिंगों की
यात्रा करते हुए शिवलिंगों का
अभिषेक करेगा तो उसकी
आयु बढ़ जाएगी राजकुमारी
पार्वती शिवा को पति रूप में
पाना चाहती है और पूर्ण रूप से
समर्पण के भाव से शिवा की
१२ ज्योतिर्लिंग यात्रा को पूर्ण करने में
सहायता करती है शिव जी की कृपा
से शिवा अपनी यात्रा का आरंभ करता है
तथा १२ ज्योतिर्लिंगों यात्रा को पूर्ण
भी करता है अंत में उसका विवाह
राजकुमारी के साथ संपन्न होता है ||
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