अयिगिरि नन्दिनि महिषासुर मर्दिनि(Aigiri Nandini lyrics in Hindi) - Mahishasura Mardini Stotram | JANANI KAMAKSH - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind

अयिगिरि नन्दिनि महिषासुर मर्दिनि(Aigiri Nandini lyrics in Hindi)  - Mahishasura Mardini Stotram | JANANI KAMAKSH - Bhaktilok


अयिगिरि नन्दिनि महिषासुर मर्दिनि(Aigiri Nandini lyrics in Hindi)  - Mahishasura Mardini Stotram | JANANI KAMAKSH - 



अयिगिरि नन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते,
गिरिवरविन्ध्यशिरोधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते,
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते,
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते,
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥

अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्बवनप्रियवासिनि हासरते,
शिखरिशिरोमणितुङ्गहिमालयशृङ्गनिजालयमध्यगते,
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥

अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्ड गजाधिपते,
रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते,
निजभुजदण्ड निपातितखण्डविपातितमुण्डभटाधिपते,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥


अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते,
चतुरविचारधुरीण महाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते,
दुरितदुरीहदुराशयदुर्मतिदानवदूतकृतान्तमते,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥

अयि शरणागतवैरिवधूवर वीरवराभयदायकरे,
त्रिभुवन मस्तक शूलविरोधिशिरोधिकृतामल शूलकरे,
दुमिदुमितामर दुन्दुभिनाद महो मुखरीकृत तिग्मकरे,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥

अयि निजहुङ्कृतिमात्र निराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते,
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते,
शिव शिव शुम्भ निशुम्भ महाहव तर्पित भूत पिशाचरते,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥

धनुरनुसङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके,
कनक पिशङ्गपृषत्कनिषङ्गरसद्भट शृङ्ग हतावटुके,
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥

सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते,
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते,
धुधुकुट धुक्कुट धिन्धिमित ध्वनि धीर मृदङ्ग निनादरते,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥

जय जय जप्य जये जय शब्दपरस्तुति तत्पर विश्वनुते,
भण भण भिञ्जिमि भिङ्कृतनूपुर सिञ्जितमोहित भूतपते,
नटितनटार्ध नटीनटनायक नाटितनाट्य सुगानरते,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥

अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनोहर कान्तियुते,
श्रित रजनी रजनी रजनी रजनी रजनीकर वक्त्रवृते,
सुनयन विभ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपते,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥

सहित महाहव मल्लम तल्लिक मल्लित रल्लक मल्लरते,
विरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक भिल्लिक भिल्लिक वर्ग वृते,
सितकृत पुल्लिसमुल्लसितारुण तल्लज पल्लव सल्ललिते,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥

अविरलगण्डगलन्मदमेदुर मत्तमतङ्गज राजपते,
त्रिभुवनभूषणभूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते,
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहनमन्मथ राजसुते,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥

कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते,
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले,
अलिकुल सङ्कुल कुवलय मण्डल मौलिमिलद्भकुलालि कुले,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥

करमुरलीरववीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते,
मिलित पुलिन्द मनोहर गुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते,
निजगुणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥

कटितटपीत दुकूलविचित्र मयूखतिरस्कृत चन्द्ररुचे,
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुरदंशुलसन्नख चन्द्ररुचे,
जितकनकाचल मौलिपदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥

विजित सहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते,
कृत सुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते,
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥

पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं स शिवे,
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत्,
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥

कनकलसत्कल सिन्धुजलैरनु सिञ्चिनुतेगुण रङ्गभुवं,
भजति स किं न शचीकुचकुम्भ तटीपरिरम्भ सुखानुभवम्,
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवं,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥

तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते,
किमु पुरुहूत पुरीन्दुमुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते,
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥

अयि मयि दीनदयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे,
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथाऽनुभितासिरते,
यदुचितमत्र भवत्युररि कुरुतादुरुतापमपाकुरुते,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २१ ॥

इति श्री महिषासुर मर्दिनि स्तोत्रम् ||



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