शनि चलीसा (Shani Chalisha in Hindi) - Bhaktilok

Deepak Kumar Bind

 

शनि चलीसा (Shani Chalisha in Hindi) - Bhaktilok


।। दोहा ।।


जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल ।

दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल ।।


जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज ।

करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज ।।


जयति जयति शनिदेव दयाला । 

करत सदा भक्तन प्रतिपाला ।।


चारि भुजा, तनु श्याम विराजै । 

माथे रतन मुकुट छवि छाजै ।।


परम विशाल मनोहर भाला । 

टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ।।


कुण्डल श्रवण चमाचम चमके । 

हिये माल मुक्तन मणि दमके ।।


कर में गदा त्रिशूल कुठारा । 

पल बिच करैं आरिहिं संहारा ।।


पिंगल, कृष्णों, छाया, नन्दन । 

यम, कोणस्थ, रौद्र, दुख भंजन ।।


सौरी, मन्द, शनि, दश नामा । 

भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ।।


जा पर प्रभु प्रसन्न है जाहीं । 

रंकहुं राव करैंक्षण माहीं ।।


पर्वतहू तृण होई निहारत । 

तृण हू को पर्वत करि डारत ।।


राज मिलत बन रामहिं दीन्हो । 

कैकेइहुं की मति हरि लीन्हों ।।


बनहूं में मृग कपट दिखाई । 

मातु जानकी गई चतुराई ।।


लखनहिं शक्ति विकल करि डारा । 

मचिगा दल में हाहाकारा ।।


रावण की गति-मति बौराई । 

रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ।।


दियो कीट करि कंचन लंका । 

बजि बजरंग बीर की डंका ।।


नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा । 

चित्र मयूर निगलि गै हारा ।।


हार नौलाखा लाग्यो चोरी । 

हाथ पैर डरवायो तोरी ।।


भारी दशा निकृष्ट दिखायो । 

तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो ।।


विनय राग दीपक महं कीन्हों । 

तब प्रसन्न प्रभु है सुख दीन्हों ।।


हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी । 

आपहुं भरे डोम घर पानी ।।


तैसे नल परदशा सिरानी । 

भूंजी-मीन कूद गई पानी ।।


श्री शंकरहि गहयो जब जाई । 

पार्वती को सती कराई ।।


तनिक विलोकत ही करि रीसा । 

नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा ।।


पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी । 

बची द्रौपदी होति उघारी ।।


कौरव के भी गति मति मारयो । 

युद्घ महाभारत करि डारयो ।।


रवि कहं मुख महं धरि तत्काला । 

लेकर कूदि परयो पाताला ।।


शेष देव-लखि विनती लाई । 

रवि को मुख ते दियो छुड़ई ।।


वाहन प्रभु के सात सुजाना । 

जग दिग्ज गर्दभ मृग स्वाना ।।


जम्बुक सिंह आदि नखधारी । 

सो फल जज्योतिष कहत पुकारी ।।


गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं । 

हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं ।।


गर्दभ हानि करै बहु काजा । 

गर्दभ सिद्घ कर राज समाजा ।।


जम्बुक बुद्घि नष्ट कर डारै । 

मृग दे कष्ट प्रण संहारै ।।


जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी । 

चोरी आदि होय डर भारी ।।


तैसहि चारि चरण यह नामा । 

स्वर्ण लौह चांजी अरु तामा ।।


लौह चरण पर जब प्रभु आवैं । 

धन जन सम्पत्ति नष्ट करावै ।।


समता ताम्र रजत शुभकारी । 

स्वर्ण सर्व सुख मंगल कारी ।।


जो यह शनि चरित्र नित गावै । 

कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ।।


अदभुत नाथ दिखावैं लीला । 

करैं शत्रु के नशि बलि ढीला ।।


जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई । 

विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ।।


पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत । 

दीप दान दै बहु सुख पावत ।।


कहत रामसुन्दर प्रभु दासा । 

शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ।।









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